असली सुंदरता. निशांत त्रिपाठी द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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असली सुंदरता.

टेलीविजन पर हमें कई सौंदर्य प्रसाधन सामग्री से संबधित विज्ञापन देखने को मिलते हैं तथा कई विज्ञापन में दावा किया जाता हैं की कुछ दिन में पाए सुन्दर गोरी कोमल त्वचा.इसके अलावा ऐसे कई साबुनो के विज्ञापन दिन भर टेलीविज़न पर चलते हैं जिसमे बताया जाता हैं की उनके साबुन ऐसे ख़ास तत्वों से बने हैं जो त्वचा को गोरा करने में मदत करते हैं. चाहे महिला हो या पुरुष बाजार में सभी के गोरे होने के लिए विभिन्न कंपनियों द्वारा निर्मित क्रीमे,साबुन,लोशन उपलब्ध हैं. लेकिन मैंने अब तक किसी ऐसे कोई सांवले शख्स को नहीं देखा जिसके क्रीमों तथा साबुन का इस्तेमाल करने के बाद उसका रंग गोरा हो गया हो. फिर भी सांवला रंग लेकर जन्मा व्यक्ति गोरे होने के लिए कई प्रकार के नुख्स आजमाते रहता हैं.
यू ट्यूब पर भी कई चैनल देखने को मिलते हैं, जिसमें गोरा करने के विभिन्न उपाय बताये जाते हैं. इन चैनलों में बताया जाता हैं की बाजारों की महंगी क्रीम खरीदने के बदले घरेलु क्रीम बनाकर एक महीने में गोरा रंग पाए तथा इन चैनलो में लाखो व्यू देखने को भी मिलते हैं इससे यही निष्कर्ष निकलता हैं की कई भारतीय अपने सांवले तथा काले रंग से नाखुश एवं असंतुष्ट हैं तथा टेलीविजन के विज्ञापनों एवं यू ट्यूब के भ्रम जाल में फंसकर अपने त्वचा को गोरा करने के लिए विभिन्न उपचार एवं उपाय करते हैं. लेकिन अंत में यह सब उपाय भी बेअसर साबित होते हैं क्योंकि रंग सांवला का सांवला ही रह जाता हैं.

भारतीय समाज में युवक तथा युवती में स्वयं को गोरा करने की मानो होड़ सी मची हुयी हैं तथा यह होड़ इसलिए देखने को मिलती हैं क्योंकि समाज में गोरे रंग को श्रेष्ठ तथा सुंदरता का प्रतिक माना जाता हैं. इसके अलावा हमारे देशी फिल्मो एवं विज्ञापनों में केवल वे युवक तथा युवतियां दिखाई जाती हैं जिनकी त्वचा गोरी होती हैं. फिल्मो में भलेही किसी अभिनेत्री के पास एक्टिंग का हुनर कम हो लेकिन फिल्म निर्माता तथा निर्देशक द्वारा अभिनेत्री का गोरा देह परखने के बाद ही फिल्म में काम दिया जाता हैं क्योंकि वे जानते हैं भारतीय दर्शको को गोरे रंग के प्रति ज्यादा आकर्षण तथा लगाव हैं एवं अधिकांश दर्शक आकर्षक गोरी अभिनेत्री को देखने के खातिर फिल्म की टिकट खरीदते हैं. यह पक्षपात फिल्मो तक सिमित नहीं हैं बल्कि टेलीविजन के धारावाहिक में भी देखने को मिलता हैं क्योंकि वैसे तो भगवान क्रिष्ण का रंग सांवला था बावजूद विभिन्न धारावाहिक तथा नाटकों में गोरे देह के कलाकार को क्रिष्ण के भूमिका करने के लिए प्राथमिकता दी जाती हैं. इस तरह की, मानसिकता का सीधा असर समाज की सोच पर पड़ता हैं तथा अधिकांश लोग सोचने लगते हैं ज़िन्दगी में सफलता तथा आत्मविश्वास का राज गोरी त्वचा में छीपा हैं. इसके विपरीत, फिल्मो में दुष्ट प्रवृत्ति के खलनायक तथा जल्लाद की भूमिका में सांवले तथा काले त्वचा के व्यक्ति को प्रदर्शित किया जाता हैं. जैसे की भारतीय समाज में फिल्मो का गहरा असर पड़ता हैं परिणस्मस्वरूप लोगो के मन में सांवला तथा काले रंग के प्रति कुंठा जागने लगती हैं. ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जो सांवले तथा काले रंग के प्रति अपमानस्पद तथा पक्षपात का रवैया दर्शाते हैं. आम लोग जो फिल्मो तथा धारावाहिक में देखते हैं उसे बिना सोचे समझे स्वीकार कर लेते हैं तथा अपनी ज़िन्दगी में उतारने का प्रयत्न करते हैं जिस वजह से गोरा होने का जूनून लोगो में सवार हो जाता हैं.

फिल्मो के अलावा अगर निजी ज़िन्दगी में टटोल कर देखा जाए तो अधिकांश माता -पिता सहित परिवार के सदस्य अपनी संतान को गोरा देखने चाहते हैं लेकिन अगर संतान सांवला या काली त्वचा लेकर जन्म लेता हैं तो वे चिंतित हो जाते हैं एवं बचपन से उन्हें गोरा करने के उद्देश्य से विभिन्न तरीके के घरेलु नुस्खे संतान के त्वचा पर आजमाए जाते हैं. क्योंकि समाज में ऐसे कई मामले मौजूद हैं, जैसे अगर किसी लड़की या लड़के के त्वचा का रंग सांवला या काला हैं तो उनके रंग की वजह से शादी का रिश्ता जुड़ने में बाधाएं आती हैं क्योंकि समाज में सुंदरता की पहचान गोरा रंग हैं.

यही नहीं सांवला या काले होने का सबसे ज्यादा दंश लड़कियों को झेलना पड़ता हैं क्योंकि अधिकतर वर पक्ष के लोग अपने परिवार के लिए गोरी खूबसूरत बहु की अपेक्षा रखते हैं तथा कई बार लड़कियों को उनके सांवला रंग होने की वजह से अस्वीकार किया जाता हैं. यही नहीं, कुछ घटनाये ज्यादा हैरान कर देने वाली हैं, यदि लड़की सांवली हैं तो वर पक्ष के लोग ज्यादा दहेज़ के बदले शादी के लिए राजी होते हैं परिणामस्वरूप लड़की के आत्मविश्वास पर ही नहीं अपितु आत्मसम्मान पर भी ठेस पहुँचती हैं. इसके अलावा कई मैट्रिमोनियल वेबसाइट में देखने को मिलती हैं की अधिकतर महिलाएं ऊंचा-लम्बा तथा गोरे रंग के त्वचा वाले पुरुष से शादी की चाह रखती हैं. इन सबसे यही सिद्ध होता हैं की अधिकांश लोग गोरे रंग की त्वचा को आकर्षित तथा श्रेष्ठ मानते हैं जबकि सांवले तथा तथा काली त्वचा को भद्दा तथा कनिष्ठ मानते हैं.


अगर हम गहराई से समझने का प्रयास करे तो यह समाज का एक सवेंदनशील मुद्दा हैं जिसपर खुलकर चर्चा नहीं की जाती. इंसान की सुंदरता को महज गोरे रंग से तौलना एक तरह उन अधिकांश महिलाओ एवं पुरुषो पर अन्याय हैं जिनका रंग गोरा नहीं हैं. व्यक्ति का गोरा होना उसके नियंत्रण से बाहर हैं लेकिन उनके सांवले रंग रूप की वजह से उनका मूल्यांकन तथा आकलन करके मजाक एवं उन्हें निचा दिखाना अनुचित हैं.

माता पीता का भी कर्त्तव्य बनता हैं की अगर उनकी संतान का रंग सांवला या काला हैं तो उनके बारे में चिंतित होने के बजाय या वे गोरे हो जाये इस मंशा से उन्हें हल्दी चन्दन युक्त लेप लगवाने के बजाय, संतान की त्वचा के सांवले रंग के कारण उन्हें कभी कम मूल्यवान महसूस नहीं होने देने की कसम खानी चाहिए.

परिवार के सदस्यों ने भी उन्हें बहुत कम उम्र से, एहसास कराना चाहिए कि आप जैसे भी हैं सुंदर है आपकी त्वचा भी सुन्दर हैं. तथा उनके मन एक बात बैठाना चाहिए की महज किसीकी गोरी त्वचा होना किसी व्यक्ति के खूबसूरती का प्रमाणपत्र नहीं होता बल्कि असली सुंदरता का राज मुस्कान तथा खुशियाँ बिखेरने में हैं.

समाज में, हम सभी ने सांवले रंग को गोरे जितना समान महत्व देना चाहिए एवं उसे आदर की नज़रिये एवं प्रशंसा की भावना से देखना चाहिए तथा समाज में व्यक्ति की परख उसके रूप से नहीं बल्कि गुणों से करनी चाहिए.

इसके अलावा, वे लोग जो जन्म से सांवले या काले हैं, उन्होंने यह बात समझना चाहिए की उनका सांवला होना अनुवांशिक गुण हैं तथा इस पर किसी का नियंत्रण नहीं होता इसलिए खुद के रंग रूप से कुंठित होने के बजाय अपनी त्वचा को एवं खुदको स्वीकार करके सुखद एहसास करना चाहिए तथा आंनदित होकर अपना जीवन जीना चाहिए. क्योंकि बाहरी सुंदरता से ज्यादा आतंरिक सुंदरता प्रबल होती हैं तथा आतंरिक सुंदरता को किसी श्रृंगार की जरुरत भी नहीं होती क्योंकि व्यक्ति की असल सुंदरता गोरे त्वचा में नहीं बल्कि व्यक्ति के भीतर की अच्छाई, शालीन व्यवहार एवं उसके श्रेष्ठ कर्मो में छिपी होती हैं.