परियों का पेड़
(21)
परी ! तुम ऐसी क्यों हो ?
परी रानी आगे भी बताती रही – “ ...तो उस युग में भी परियों की प्रगति और खुशियों से ईर्ष्या रखने वालों की कमी न थी | हमारे जैसी थोड़ी बहुत शक्तियाँ रखने वाले कुछ लोग जिन्हें हम शैतान राक्षस और दुष्ट जादूगर कहते हैं , वे हम सबको पकड़कर हमें बहुत कष्ट देते थे और हमारी उन्नत शक्तियाँ छीनने का प्रयास करते रहते थे | हम उन सबके कारण बहुत दुखी रहते थे |”
“आपके पास भी तो बहुत शक्तियाँ हैं | आप सभी उन दुष्ट लोगों से मुक़ाबला क्यों नहीं करते थे ?” – राजू ने सोचते हुए पूछा |
“करते थे, मुक़ाबला भी करते थे, तभी हमारा अस्तित्व आज तक बचा हुआ है | लेकिन हम सहृदय होने के कारण कभी उन दुष्टों की तरह क्रूर नहीं बन सके | हमारी पकड़ में आते ही वे क्षमा माँग कर, हमारी दयालुता व भलमनसाहत का लाभ उठाकर बच निकलते थे, फिर भी हमें परेशान करने से बाज नहीं आते थे | इसलिये बहुत दुखी होकर सभी परियों ने तय किया कि हम धरती से दूर किसी अन्य लोक में अपना निवास बना लेंगे और दुष्ट लोगों से दूर रहकर शान्ति पूर्वक अपना निर्वाह करेंगे | इस तरह हमने अपनी तकनीक की सहायता से सुंदर परीलोक बसाया और सुखपूर्वक रहने लगे |”
“लेकिन फिर भी इस तरह धरती पर बार – बार लौटकर आते रहने का क्या कारण है ?” – राजू के मन में अब भी कुछ शेष रह गया था |
परी रानी कहने लगी – “राजू ! यह भी एक बहुत बड़ा रहस्य है | तुमने देखा होगा कि परीलोक में सबकुछ है लेकिन बच्चे नहीं हैं ....| जानते हो क्यों ?”
“अरे हाँ, यह तो मैंने देखा जरूर, लेकिन इसके बारे में सोचा ही नहीं |” – उसकी आँखें जिज्ञासा से खुली की खुली रह गयी |
“हूँ ..., तो सुनो राजू ! वो इसलिये कि हमारे नये परीलोक में नियम बदल गये हैं | चूँकि हम धरती के ही मूल निवासी हैं इसलिये यहाँ अब भी सीधे मनुष्य ही रहने आते हैं, लेकिन सिर्फ वही लोग जो स्वभाव के बहुत अच्छे होते हैं | जैसे कि तुम्हारी माँ थी | हमारे भगवान हमें पंख और जादुई छड़ी देकर परी बना देते हैं फिर प्रशिक्षण देकर धरती पर भेज देते हैं | यहाँ के तुम्हारे जैसे बच्चों से प्यार करने के लिये | हम परियों को धरती के फूल और तुम्हारे जैसे बच्चे बहुत पसन्द हैं इसलिये हम यहीं लौट – लौटकर आते रहते हैं |…….”
“.......और दुष्ट जादूगर तथा शैतान लोग परेशान न कर सकें इसलिये यहाँ परियों के पेड़ में फलों के रूप में छुप कर रहती हैं | .....सिर्फ मेरे जैसे अच्छे बच्चों को ही दिखती हैं | हैं न ?” – राजू ने परी की बात को बीच में ही लपक लिया और अपनी समझ के अनुसार जवाब को खुद पूरा कर दिया |
“ बिलकुल सही जवाब ! .....और तुम्हें इस बात के लिये मिलते हैं दस में से पूरे दस नम्बर |” – परी रानी ने विद्यालय की अध्यापिका की तरह मुस्कान बिखेरते हुए प्यार से राजू के गालों पर थपकी दिया |
इस बात पर दोनों ही खिलखिलाकर हँस पड़े | तब परी रानी ने कहा – “ हाँ तो राजू ! अब रात बहुत हो चुकी है | सुबह कभी भी हो सकती है | इसलिये अब तुम भी चैन की नींद सो जाओ और हम सब भी आराम करें |”
“जी हाँ, मुझे भी नींद की जरूरत है |” – राजू बिस्तर पर करवटें बदल कर फिर से सोने का प्रयास करने लगा |
लेकिन राजू की एक अच्छी आदत थी कि वह सोने से पहले दिनभर की बीती घटनाओं को याद करके उन पर एक बार मनन अवश्य कर लेता था | अतः इस समय भी सोने से पहले वह परियों के लोक में घटी आज की सारी घटनाओं को अपनी यादों में संरक्षित कर लेना चाहता था | इसके लिये वह मन को एकाग्र करने की कोशिश करने लगा | आज उसके साथ बहुत कुछ ऐसा घटा था, जो जीवन में कभी भूलने वाला नहीं था |
यादों की सड़क पर थोड़ा ज़ोर डालते ही सुबह से रात तक की सारी घटनाएँ उसके मस्तिष्क में किसी चलचित्र की भाँति आकर गुजरती चली गयी | इसी क्रम में उसे यह भी याद आया कि कैसे वह अपने पिताजी को बताये बिना सारी रात घर से बाहर बिता चुका था | फिर .....
........पिता जी की याद आते ही वह आत्मग्लानि से भर गया | वह सोचने लगा कि पिताजी ने उसे कहा था कि बिना अपने से बड़ों को बताये अकेले घर से बाहर नहीं जाना चाहिये | लेकिन फिर भी राजू यह गलती कर बैठा था | अच्छे बच्चे तो ऐसा नहीं करते हैं ? है न ?”
राजू जैसे आज्ञाकारी और समझदार बच्चे को इस बात का दुख होना स्वाभाविक ही था | हमेशा उसका ध्यान रखने वाले पिताजी को वह भला कितनी देर तक भुलाये रख सकता था ? अतः उसे नींद झटक कर परी रानी से कहना ही पड़ा - “ परी माँ ! मुझे अपने घर वापस जाना है | बापू परेशान हो रहे होंगे ? मैं उन्हे बताकर नहीं आया था |”
परी रानी ने उसकी भावनाओं को समझते हुए ढाढ़स बँधाया और कहने लगी - “राजू ! मैं समझ रही हूँ | तुम उसकी चिन्ता मत करो | अभी चैन से सो जाओ | सब ठीक हो जायेगा | तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी |”
“लेकिन ...?” – राजू की आँखों में अब भी एक साथ कई प्रश्न उभर रहे थे |
अतः परी रानी ने समझाया – “ मैं इसका भी प्रबन्ध कर दूँगी | देखो, वैसे भी तुम्हें अकेले वापस जाने में फिर परेशानी होगी | चूँकि सुबह होने वाली है और दिन होते ही हम भी तुम्हारे साथ बाहर नहीं जा सकते | अतः मैंने यह सोचा है कि हमारी प्रेरणा से तुम्हारे पिताजी तुम्हें खोजते हुए स्वयं इस पेड़ के नीचे तक पहुँच आयेंगे | ......और उससे पहले ही हमारे सेवक तुम्हें परी लोक के बाहर तक सुरक्षित छोड़ आयेंगे |”
इतना सुनकर राजू निश्चिन्त हो गया | उसकी चिन्ता अब काफी कम हो गयी थी | अतः वह फिर से बिस्तर पर लोटपोट करके सोने का प्रयास करने लगा | लेकिन यह क्या ?
नींद तो अब उससे और भी कई कोस दूर जा चुकी थी | यह कैसी समस्या थी ? राजू का दिमाग फिर से उलझ गया | लेकिन इसका कारण भी जल्द ही उसे समझ में आ गया था | ......और यह कारण समझते ही उसकी आँखें अनायास ही आँसुओं से भीग गयी |
कारण यह था कि अब एक प्रकार से राजू के परी लोक से विदाई लेने की घड़ी आ गयी थी | अब उसे परी माँ के साथ ही अपनी असली माँ की ताजा हुई यादों से पुनः दूर चले जाना था |
इधर राजू के मन में उठ रहे भावनाओं के तूफान से अंजान परी रानी ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा | उसने राजू को सो जाने का इशारा किया | उसने आँखें भी बन्द करके सोने का प्रयास किया | लेकिन राजू की आँखों में नींद आने का नाम ही नहीं नहीं ले रही थी |
राजू को फिर से सोने की असफल कोशिश करते हुए देख परी रानी सोच में पड़ गयी | फिर उसे परी लोक में दिये गये प्रशिक्षण का पाठ याद आया कि बच्चों को सुलाने के लिये भी कोई प्यार भरा तरीका ही चाहिए | फिर राजू को मीठी नींद सुलाने का समाधान भी सूझ गया |
तब परी रानी ने जादुई छड़ी से एक संकेत किया और देखते ही देखते वह पलंग एक पालने जैसे झूले में बदल गया | फिर वहाँ दो परियाँ और आयी तथा पलंग के सिरहाने बैठकर उस पलंग जैसे बड़े पालने को झूलने लगी | राजू को इससे बड़ा प्यारा सा आनन्द अनुभव हुआ | फिर परी रानी स्वयं ही अपनी शहद जैसी मीठी और कोमल आवाज में ममता से भरी हुई एक लोरी गाने लगी | लोरी की सुरीली आवाज आस-पास दूर तक गूंज रही थी –
“सो जा मेरे प्यारे बेटे, सो जा मेरे राजकुमार !
राजा सोये, रानी सोये, सोये अपनी प्रजा हजार,
पंछी सोये, फूल भी सोये, सोये जग के सूर्य कुमार,
अब जागे हैं चन्दा – तारे, जो हैं रात के पहरेदार,
अँखियों मे भर मीठे सपने, नींद करेगी कुछ तकरार,
लेकिन लल्ला सुबह उठेगा, सुनकर चिड़ियों की मनुहार |
सो जा मेरे राजू बेटे, सो जा मेरे राजकुमार ||
परी रानी उसे धीरे – धीरे थपकी देती जा रही थी | ये अनुभव कुछ वैसा ही था, जैसा राजू की माँ उसे लोरियाँ गाकर, थपकी देते हुए सुलाने की कोशिश किया करती थी |
राजू को लगा कि मानो उसकी असली माँ ही उसे सुलाने की कोशिश कर रही है | माँ के सपनों में खोया हुआ राजू आखिर धीरे – धीरे निद्रा देवी की गोद में समाता चला गया | आज वह किसी भी प्रकार की चिन्ता - फिक्र से कोसों दूर था | उसे खूब गहरी नींद आई थी | वह शेष बची हुई रात भी मीठे – मीठे सपनों में बीत गयी थी |
-----------क्रमशः