बदलते हम और जरुरी बदलाव... Pravin Ingle द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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बदलते हम और जरुरी बदलाव...

मै लेखक तो नहीं हू पर कुछ अनुभव सांझा करुंगा आप से. हम खुद महसूस नहीं कर पाते पर कभी किसी के बताने पर समझ मे आता है शायद सच ही हम बदल से गए है. जब हम छोटे थे, जिसने जो कहा हम भरोसा कर लेते थे.

वक्त के साथ जो अनुभव आते है, उनकी वजह से हमारे स्वभाव मे बदलाव आना शुरु हो जाता है. बहुत सी बाते जो हमे बचपन मे सुनाई जाती है, कुछ डराने के लिए, कुछ समझाने के लिए और कुछ उनकी बाते मानवाने के लिए. वो सभी बाते सच नहीं होती, पर ये बात हमे थोडा समझदार होणे पर पता चलती है और अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना सिख लेते है, जैसे हमारे साथ हमारे बडो ने किया था. वरना झूठ का तो हमे पता ही नहीं चलता और जिंदगी भर सच ही बोलते रहते.

आज ये लिखने की जरुरत इसलिये महसूस हुयी के मै जीन बातो को उमर के 32 साल तक सच और जरुरी मानता रहा वो सब झुटीं और दकियानूसी थी. और पता चला की 32 सालो तक मै अंधेरे मे था और उन्ही बातों को सच मानता रहा. अब जिंदगी मे पीछे जाने का कोई जरिया तो है नहीं, की ऐसी गलत धारणाओ पर विश्वास रख मेरा जो नुकसान हुआ, उसे पुरा कर पाए, हां तब से मुझमे बदलाव ये आया की किसी भी बात को अपनी समझ और अनुभवो की परीक्षा मे खरी उतरने पर ही मानता हू.

मेरा जन्म एक हिंदू माळी परिवार मे हुआ. मेरी दादी बहुत धार्मिक थी, मै उसके साथ भागवत सप्ताह मे, कीर्तन मे रामायण महाभारत कथाओ मे उसके साथ जाता, राम, कृष्ण विष्णू, नारद, ब्रम्हा, शिवजी इत्यादी की कथाए सुनता. बडे मजेदार तरीके से पाठ लेनेवाले कथाए सुनाते थे, बिना किसी शक के मै वो कहाणीया सुनता और सच मानकर उनमे जैसे बताया गया वैसा ही आचरण भी करता. रामायण सिरीयल देखकर तिसरी कक्षा मे ही मैने एक पत्नी व्रत और सत्य वचन का प्रण कर लिया था. ऊस वक्त शायद मैने कृष्ण लीलाए नही सुनी थी. किस तरह कृष्ण अपने शत्रूओ को हराने या उनका वध करने के लिए कपट का सहारा लेता था, लेकिन कथा सुनानेवाले उसपर पाऊडर लागते और बताते की कुछ अच्छा करने के लिए कभी झूठ का सहारा लेना पडे बिलकुल भी गलत नही होता. फिर कुछ स्वार्थ साध्य करने के लिए मै कभी कबार लेकिन झूठ बोलने लगा. लेकिन पुण्य और पाप, न्याय और अन्याय ये सब एक ही सिक्के के दो बाजू होते है ये न समजता था. जैसे एक के साथ न्याय करो तो दुसरे के साथ अन्याय होता है, और जो भी जितने वाला या लिखने वाला होता है वह एक ही बाजू हमारे सामने रखता है. और दुसरी बाजू हमेशा छुपी रहती है. सिर्फ आत्म चरित्र लिखनेवाले ही दोनो बाजू लिख सकते है ( इमानदारी से लिखे तो ) इसे पढते वक्त भी आपको अपनी सुजबुज और समजदारी का इस्तेमाल करना चाहिए.
1) भगवान सब ठीक करता है
2) नसीब मे हो तभी और सही वक्त आणे पर ही हमे कोई भी चीज मिलती है
3) मेहनत करते रहो फल की चिंता ना करो
4) हमारे करने से क्या होता है
5) ईश्वर ने चहा तो सब ठीक होगा

इस तरह की ढेर सारी बाते सिर्फ हम लोगो को मूर्ख बनाने के लिए बनायी गयी है, जिससे हम भगवान और नसीब के भरोसे बैठे रहे और ये सब बोलनेवाले और लिखनेवाले प्रतियोगिताओ मे हमसे आगे रह सके. भगवान किसी के लिए कुछ नही करता, उसने एक सबसे महत्वपूर्ण काम किया, आपको और मुझे इस दुनिया मे अपनी अपनी काबीलियात के साथ लाया है, और इसके आगे सब आपके कर्मोपर, मेहनतपर, समझदारी और निर्णय क्षमता पर छोड दिया है. ये सभी बाते, मै अपने अनुभवो और गल्तीयो से सिखा हू. और चाहता हू की ऐसी फालतू बातो पर भरोसा न कर अपनी मेहनत, सिद्धांत तथा अपनी कार्यक्षमता को समझकर सही जगहपर सही ज्ञान प्राप्त कर सही तरीके से मेहनत करे और अपने ध्येय को प्राप्त करें....
इस परीच्छेद को लिखने के पीछे मेरी सिर्फ ये ही कामना है, की आपको अपने भविष्य मे इच्छित कामयाबी प्राप्त हो !
प्रविण इंगळे.