बाबुल मोरा... - 3 - अंतिम भाग Zakia Zubairi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बाबुल मोरा... - 3 - अंतिम भाग

बाबुल मोरा....

ज़किया ज़ुबैरी

(3)

लिसा का ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था; जैसे जैसे उसे अहसास हो रहा था अपना कुछ खो जाने का ; लुट जाने का...अपने ही घर में आंखों के सामने डाका पड़ जाने का और अपनी मजबूरी का. उसके डैडी ने उसे कुछ संस्कार दिये थे। रोमन केथॉलिक होने के संस्कार। वह अपने जीज़स की बताई बातों पर चलना चाहती थी क्योंकि उसके डैडी को वही बातें पसन्द थी। नैंसी हमेशा मज़हब के ख़िलाफ़ बात करती... मज़ाक उड़ाती मज़हब का। उसके अनुसार मज़हब के अनुसार चलने वाले दक़ियानूसी होते हैं... पिछड़े हुए लोग। शुक्र मनाती कि हेनरी अष्ठम ने मज़हब को आधुनिक चोला पहना दिया वर्ना आज भी हम कितने पीछे रह गये होते। उसके पिता सदा ही मध्य मार्ग की बात करते । छोटी बहने स्वयं ही बड़ी बहन को देख कर उसी के पदचिन्हों पर चलना चाहती थीं। इसी लिये कहा जाता है कि पहले बड़े बच्चे को अच्छे संस्कार दे देने से बाद के बच्चे ख़ुद ही उसके पीछे चलने लगते हैं।

लिसा की यह हालत देख कर पी सी रूथ ने केवल कंधे पर हलका सा हाथ रख दिया और चुप खड़ी रही. लिसा अब तुमको अस्पताल जाना होगा चेकअप के लिए.

“क्या तुमको यक़ीन नहीं आ रहा जो मैं बक रही हूं..?”

“नहीं लिसा ऐसा नहीं... यह सब कोर्ट की रिक्वाएर्मेंट्स होती है।”

फिर लिसा सोचने लगी कि घर में चैन हो जाएगा....और अब वह अपने डैडी के दिये घर में मज़े से रह सकेगी...अपनी बहनों की भी देख भाल कर सकेगी... वे भी सुरक्शित रहेंगी उस भेड़िये से....ना मालूम जेल कब तक जाएगा..!!

नैन्सी ने कुछ दिनों से लिसा को समझाना शुरू कर दिया था कि ओ-लेवेल्स का इम्तहान देने के बाद अपने क्षेत्र की काउंसलर की सलाह उसकी सर्जरी में जाकर अपने लिये एक बेडरूम के फ़्लैट की मांग करे। हाउसिंग डिपार्टमेण्ट वाले फ़ौरन तो सुनते नहीं हैं। दुनियां भर की इंक्वायरी करते हैं। जैसे ही अठ्ठारह वर्ष की होगी, अलग फ़्लैट में रह सकेगी।

“यह कैसी मां है?” लिसा सोचती। यहां तो बच्चे घर छोड़ कर भागने के चक्कर में होते हैं और यह मुझे भगाने के चक्कर चला रही है! मैने तो नहीं सोचा कि मुझे फ़्लैट लेकर अलग होना है। तो फिर मां को क्या जल्दी पड़ी है... ? हमारे डैडी तो हम तीनों बहनों के लिये ही घर छोड़ कर गये हैं कि हम सुखी रहें।

वह स्वयं ही मां के इस रवैये से चिंतित रहते थे, पर संकोच आता ऐसी गन्दी बातें पत्नी के बारे में सोचते हुए। उसकी उज्जवल धुली धुलाई साफ़ सुथरी बेटियों ने उसी मां की कोख से जन्म लिया है. ‘मेरी बेटियां तो मदर मेरी की तरह पवित्र, मासूम और सुन्दर हैं।’

कितना प्यार करते थे हमारे पिता हमसे, मुझको तो कितना बड़ा हो जाने तक कन्धे पर उठा लेते और पूरे घर के चक्कर लगाते... ये सोचकर लिसा को अपने बड़े हो जाने पर हल्की सी कसक महसूस होती....

ये सोचकर कि यदि आज डैडी होते और मैं अपने मज़बूत डैडी के मज़बूत कन्धों पर बैठ जाती तो मेरी टांगें तो धर्ती को चूमती ही रहतीं... वह यह सोच कर चकराने लगी कि उस दिन इन्हीं लम्बी टांगों से रक्त की बारीक़ सी कुंवारी लकीर बह कर घुटनों और टख़नों तलक पहुंचकर वैसे ही खो गई जैसे नदियां अपने अस्तित्व को समुद्र में समर्पित कर गुम हो जाती हैं। गुम वह भी थी इस उधेड़बुन में कि मां ने काउंसलर के पास जाने की रट क्यों लगाई हुई है...?

महसूस तो उसको होता था अन्दर से खोखलापन... टूट गई थी जैसे, जब उस अधखिली कुंवारी का प्रेगनेन्सी टेस्ट हुआ था। लॉर्ड जीज़स ने अपना स्नेह बनाए रखा और उसका टेस्ट निगेटिव निकला। यदि ऐसा ना होता... इसका उल्टा हो जाता तो क्या वह जी सकती थी इस पाप के बीज को लेकर! कभी नहीं ... कभी नहीं... ! हालांकि अब वह इस घनघोर समस्या से बाहर आ गई थी... मगर....

समस्याओं ने तो उसका परिवार ढूंढ लिया था। घर तो उसी दिन दुखों की सुपर मार्केट बन गया था जिस दिन वह दुम हिलाता कुत्ता इस घर में आया था... अब वह फ़िल को ऐसे ही सम्बोधन से याद करती। लिसा का इतना बड़ा बलिदान देने के बाद उसकी अपनी मां सयंम से काम लेगी, लिसा सोचती। यही एक आशा उसको सहारा दिये हुए थी।... मगर मां, उसके बड़े हो जाने पर इसलिये ख़ुश है कि अब वह अलग फ़्लैट में शिफ़्ट हो जाएगी।

मां... ! मैं क्यों बेईमानी करूं... ! मेरे पास तो रहने को दिया हुआ घर मौजूद है। और हां डैडी को तो काउंसिल से फ़्लैट भी मिल गया है। मैं क्यों काउंसिल पर बोझ बनूं? मेरे बदले वो फ़्लैट किसी होमलेस व्यक्ति को मिल जाएगा।

लिसा जितनी ईमानदार थी, मां नैन्सी उतनी ही चाण्डाल। उसका तो ख़मीर ही गड़बड़ है। कोई सोच सीधी रेखा पर चलती ही नहीं थी। उलझी बातें करती और उसी में उलझा देती आसपास के रिश्तों को।

“लिसा, आज शनिवार है; काउंसलर दस से साढ़े ग्यारह बजे तक ग्राहम पार्क लायब्रेरी के एक कमरे में बैठती है। तू पौने दस बजे ही जा कर बैठ जा। शायद तेरा नंबर पहला ही आ जाएगा। सुना है काउंसलर दुःखी लोगों का कष्ट महसूस करने वाली महिला है।”

“मां तुमने जो दुःख दिया है उसको काउंसलर तो क्या संसार का कोई भी व्यक्त नहीं धो सकता।... मैनें कह दिया है... न तो मैं काउंसलर के पास जाऊंगी और ना ही अलग फ़्लैट में। मैं अपनी बहनों के साथ अपने डैडी के दिये हुए घर ही में रहूंगी।”

“मेरी बात मान ले लिसा... ज़िद ना कर... अब इस घर में भीड़ बढ़ रही है।”

“आजतक तो घर में भीड़ नहीं महसूस हुई। अब अचानक क्या हो गया है? मां... मैं कोई एसाइलम सीकर नहीं हूं... जिसके पास रहने की कोई जगह ना हो। मैं इस लिए नहीं जाऊंगी कि किसी ज़रूरतमन्द का हिस्सा मारा जाएगा और इसलिये भी नहीं जाऊंगी कि मेरे पास घर है... मैं बेघर नहीं हूं। हां बे-मां ज़रूर महसूस करने लगी हूं... !”

उस दिन पहली बार लिसा के व्यवहार में कड़वाहट की मिलावट महसूस हो रही थी। लिसा का शहद की तरह मीठी लहजा शेविंग ब्लेड की तरह कटारी चीरता चला जा रहा था।

नैंसी तो बेहिस हो चली थी... ख़ुदग़र्ज, लापरवाह... केवल अपने बारे में सोचना... और... अपने ही लिये जीना... और फिर अपनी बेचारगी के दुःख रोना।

और....

कितनी बेचैन थी नैन्सी उस दिन....

उस दिन से वर्षों तक मुलाक़ात वाले दिन तीन घंटा जाना और तीन घंटा आना करती रही. लिसा को कोसती रही कि इस अभागन के कारण मेरा फ़िल जेल गया इसका भी तो सौतेला बाप हुआ...इसको बाप का कोइ ख़्याल नहीं..!!

आज जब वह वापस आने वाला है तो सवेरे ही से नैंसी अपना बेडरूम सजाने में वयस्त है. अपने मोटे मोटे काले मैल भरे नाख़ूनों में से खोद खोद कर मैल निकालकर नाख़ूनों को गाढ़ा लाल रंग कर बीर बहुटी बना रही है। बालों में भी रोलर लगाए घूम रही है कि घुंघर वाले बाल ज़रा घने लगेंगे वर्ना सिर की खाल जगह जगह से दिखाई देने लगी है। ब्लाउज़ के साथ काली चमड़े की मिनी स्कर्ट, घुटनों से दस इंच ऊपर कूल्हों पर फंसी, पहनकर बाहर निकली और मॉडल बनकर खड़ी हो गई। दोनों छोटी बेटियों से राय लेने लगी कि – मैं कैसी लग रही हूं?... वो दोनों देखकर खिलखिलाने लगीं और लिसा की नज़र सीधे उसकी टांग पर उभरी हुई नाड़ियों पे जा टिकी – जैसे विश्व की एटलस की तमाम नदियां नीला जाल बिछाए और कहीं कहीं छोटे छोटे ख़ून जमे हुए टीले बने नज़र आ रहे थे।

वह कमरे से बाहर निकल गई, मां की लाल साटन की ब्लाउज़ पर नज़र डालते हुए जिसमें से उसके अंग बाहर को उबल पड़ रहे थे। नैन्सी ने बेटियों का भौंचक्कापन देखकर स्वयं ही सोचा कि ब्लाउज़ इतनी ऊंची होनी चाहिये कि उसकी गोरी कमर और पेट नज़र आए। कमरे का पीला बीमार सा बल्ब निकाल कर लाल रौशनी वाला बल्ब लगा दिया कि कमरा देखते ही

फ़िल के होश उड़ जाएं..... और............!

उसे क्या मालूम फ़िल को तो कच्चा ख़ून मुंह को लग चुका है...!

और आज उस से कहीं अधिक बेचैन है लिसा....! उसे जब अहसास हुआ कि आज वह दरिन्दा वापिस आ रहा है और मां उसको इसी घर में वापिस ला रही है जहां उसकी अपनी बेटी की जीवन भर की तपस्या... कुंवारी रहने की तपस्या... जीज़स क्राइस्ट के बताए रास्तों पर चलने की तमन्ना, मदर मेरी की तरह पवित्र रहने की ख़्वाहिश और पिता के सिखाए संस्कारों पर क़ायम रहने की उमंग... अब तो सब भंग हो चुका है। पर यह नैन्सी अब भी बाज़ नहीं आती... क्या दोनों बहनों की भी बलि लेगी... ? ऐसा नहीं होने दूंगी... कभी नहीं...

काउंसिलर के सामने खड़ी गिड़गिड़ा रही है, “मैं कुछ नहीं जानती मुझे अलग फ़्लैट चाहिए...एक कमरे का चाहिये...मैं अपना घर छोड़ दूंगी...छोड दूंगी अपना घर... हां छोड़ दूंगी अपने डैडी का घर...”

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