कशिश - 32 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कशिश - 32

कशिश

सीमा असीम

(32)

खाना खाने के बाद वे लोग उस बालकनी में आकर बैठ गए, जहाँ पर कुर्सियां पड़ी हुई थी ! सुबह और रात दोनों समय यही आकर बैठना उन सभी का भी सबसे महत्वपूर्ण शगल था ! सुबह होते ही चाय का कप लेकर नीचे दिख रहे उस घर को देखना, जिसमे लकड़ियाँ जलाकर एक बड़ी सी पतीली में पानी गर्म होता रहता था, जिसे नहाना होता बाल्टी में थोड़ा गर्म पानी निकालता और थोड़ा ठंडा पानी उसमें ड़ाल देता ! लोगों की खिड़कियां बंद रहती ! देर तक एकदन सन्नटा जैसा रहता ! कहीं कोई शोर नहीं ! शांत माहौल में सुबह की चाय का स्वाद और भी बढ़ जाता था और अभी रात में दूर दूर तक पहाड़ियों पर बने हुए घरो में टिमटिमाती हुई रौशनी दिवाली के दीयों जैसा अहसास दे रही थी और आसमान में चमकते हुए सितारे एकदम से ऐसा लग रहे थे मानों जैसे कोई हीरे से भी ज्यादा चमकता हुआ कोई छाता सा लगा लिया है, कितना करीब लग रहा था आसमान, इतने पास की जरा सा हाथ बढ़ाओ और आसमा के तारों को छू लो ! आज शायद अमावस्या की रात थी ! तभी इतना काला गहरा अँधेरा था और सितारों की चमक दोगुनी हो गयी थी ! वो यह सब सोच ही रही थी, तभी एक लड़का एक ट्रे में बड़े सलीके से काफी लेकर आ गया था !

पारुल सुबह जल्दी उठना होगा क्योंकि हम तवांग जा रहे हैं !राघव ने उसकी तरफ प्यार भरी नजर से देखते हुए कहा !

हम्म्म ! पारुल ने काफी का घूंट भरते हुए हुंकारा भरा

जल्दी ही काफी ख़त्म करके वे लोग अपने कमरों में चले गए थे!

अपने प्यार साथ किसी ऐसी जगह जाना जहां झील बिल्‍कुल शांत हो और हल्‍की-हल्‍की हवाएं चल रही हों। होगा ना कितना आशिकाना मौसम कुछ ऐसा ही है तवांग। यहां आकर यूं लगा जैसे किसी बादलों के शहर में आ गए हों। शायद यही वजह है कि हमें यह जगह लवर्स और नेचर लवर्स के लिए पहली प्रॉयरिटी है। लोग तो इस जगह को 'छिपा हुआ स्‍वर्ग' भी कहते हैं। अरुणाचल प्रदेश का यह शहर तवांग बेहद खूबसूरत है। यहां आपको छोटे-छोटे गांव ऊंची- ऊंची चोटियां और उनपर मंडराते बादल का खूबसूरत नजारा देखने को मिलेगा। तभी ईश्वर ने हमें चुना था यहाँ आने के लिए ! हम उगते सूर्य की नगरी से बादलों की नगरी में आ गए थे राघव ने सेला पास के पहुँच कर ख़ुशी से उछलना कूदना शुरू कर दिया था ! पारुल भी ख़ुशी से नाचना चाहती थी परन्तु उसके दिल में दर्द का सागर हिलोरे मार रहा था ! वो स्वर्ग में आकर अपने प्रेम का प्यार उसका साथ पाने को तरस रही थी ! न जाने किस तरह से इनको बनाया गया है कि उनको कोई फर्क ही नहीं पड़ता है ! जान देकर अपनी जान के लिए मन तड़प उठा ! सुनो, राघव आओ न, हम साथ में सेल्फी लेते हैं ! अरे यार अभी तुम ले लो ! मैं जरा इन बर्फ से लड़ी पहाड़ियों के संग तो खेल लूँ !

अरे दीवाने, तू क्या जाने, इन बेजान पहाड़ियों के बजाय अगर मेरे साथ रहेगा तो तुझे ज्यादा ख़ुशी का अनुभव होगा ! पारुल को दुःख हुआ था अपने चुनाव पर अपने लिए या अपनी आजादी के लिए जीने वाला स्वतंत्र इंसान दूसरे के बंधन को भला कैसे समझ सकेगा ! खैर राघव कितना खुश हैं ! चलो उसकी ख़ुशी में खुश होकर ही खुश हो लेती हूँ ! कोई बात नहीं क्योंकि प्रेम में खुश होना मुश्किल होता है ! अगर वो प्रेम के साथ होकर भी तनहा हो! पाहि घाव रुल ने सेल्फी लेने शुरू कर दिए ! राघव कभी पहाड़ी पर अपना नाम उकेरते, कभी वर्फ के गोल गोल लड्डू बना खुद पर ही ड़ाल लेते !

आइये राघव जी यहाँ पर एक ग्रुप फोटो लेते हैं ! मेनका मैडम ने आवाज लगते हुए कहा !

जी अभी आता हूँ ! राघव वही से बोले !

पारुल के दिल में फिर दर्द सा उठा, क्यों कर रहे हो तुम ऐसा ? मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ न ? प्रेम करने का क्या मतलब होता है ? लेकिन उन्हें तो कुछ समझना ही नहीं है ! आप लोग खड़े हो जाइये, मैं अपने कैमरे से लेता हूँ ! कहते हुए रज्जाक ने अपने गले में पड़े कैमरे से सबके फोटो उतारने शुरू कर दिए कोई नाचने का पोस दे रहा था, तो कोई अपनी दो उँगलियाँ उठाये जीत जाने का संकेत, अब चलो भाई वर्ना देर जो जायेगी बर्फ और नदी से खेल कर सबको चाय की तलब लग आयी थी, नहीं पहले चाय पीते हैं आज पहली बार राघब ने मेनका मैडम का विरोध किया था पारुल के मन को ख़ुशी का अहसास हुआ चलो आज कुछ तो बोले राघव नहीं तो जैसा वे कहती है, वही ठीक है ! राघव आओ, उस नदी में पाँव डुबोये ! वो ख़ुशी के अतिरेक में बोल पड़ी !

अरे पागल है क्या ? उसमें बर्फ जमी हुई है ! हमारे पांव ही नहीं बल्कि जिस्म भी जम जाएगा ! अगर थोड़ी देर भी उसमें पांव डाले !राघव ने बड़े प्रेम के साथ उससे कहा, आओ पारुल पहले चाय पीते हैं ! राघव इतने अपनेपन से बोल रहे थे,! लग ही नहीं रहा था कि वे कभी अपने मन से पारुल को जरा देर को भी हटाये हो, सच में यह प्रेम करने वाले लड़के भी एकदम से बुद्धू ही होते हैं ! कुछ समझते ही नहीं ! सोचती हुई पारुल ने अपना सर झटका और मुस्कुरा दी !

सेला पास तवांग का पहाड़ी दर्रा इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। यह साल भर बर्फ से ढंका रहता है। इसी के पास दर्रे के पास सेला झील है, जो कि 101 पवित्र बौद्ध झीलों में से एक मानी जाती है। इस दर्रे के आस-पास ही यह सारी झीलें बसी हैं। जिससे आसपास हल्‍की-हल्‍की हवाएं बहती हैं। जो पर्यटकों को यहां से प्‍यार करने पर मजबूर कर देती है।

और जो प्यार में डूबे हुए हैं उनको कभी भी प्रेम से उबरने नहीं देती क्योंकि उन्होंने इन वादियों में अपने प्रेम का स्पर्श किया है अपने प्रेम को जिया है !!

चाय पीने के लिए वहां पर बने हुए कुछ रेस्टोरेंट में से एक बड़े और खुले हुए रेस्टोरेंट को चुना जिससे सभी लोग आसानी से बैठ सके, सबने चाय के साथ मोमोज का आर्डर भी कर दिया गर्म गर्म मोमोस यहाँ के बहुत प्रसिद्ध हैं लोग कहते हैं कि यहाँ पर सबसे अच्छे और स्वादिष्ट मोमोस मिलते हैं,,, पारुल को खाने का मन कर रहा था लेकिन वो अपने मन को समझा रही थी न खाने के लिए क्योंकि आज उसने बिना कुछ खाये पिए ही तवांग तक जाना था वो नहीं चाहती थी अपने इस व्रत को तोड़े ! मेनका मैडम ने उसे खाली चाय पीते देखकर टोंका, क्यों भाई तुम क्यों नहीं खा रही हो ?

अरे इसने व्रत रखा हुआ है, यह कुछ नहीं खायेगी ! उसके बोलने से पहले ही राघव बोल पड़े ! अरे इनको कैसे पता चला मेरे व्रत के बारे में मैंने तो इनसे कुछ भी नहीं कहा उसने देखा वे उसी की तरफ देखते हुए मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं !

हे भगवन यह राघव भी न बहुत जी दुखाते हैं, चिढ़ाते हैं ! चलो अब तो मैं खा ही लेती हूँ “लेकिन नहीं खाना है,” उसकी आत्मा से आवाज आयी ! चलो मैं नहीं खाती हूँ ! भूखे रहने से न मैं मरूंगी, न ही इनको कोई फर्क पड़ेगा ! राघव उसी की तरफ देखते हुए खाते रहे और वो मन ही मन कुढ़ती रही, यह कितने बुरे हैं ! इनको मेरी जरा भी परवाह नहीं और मैं इनके लिए अपनी जान देने को तैयार हूँ लेकिन उसे यह समझ क्यों नहीं आया कि राघव उससे खाने का अनुरोध कर रहे है ! अपनी आँखों से वो सब कह रहे हैं जो वहां पर मुंह से नहीं कह सकते ! राघव ने जल्दी जल्दी खाना ख़त्म किया और वे उठकर बाहर चले गए ! कितने बुरे हो तुम राघव, तुम्हें मेरा जरा भी ख्याल नहीं ! पारुल की आँखों से आँसू छलक पड़े !

पहाड़ काट काट कर बनायीं गयी सड़क पर इक्का दुक्का गाड़ियां चल रही थी और वे सब घूमने के लिए ही तवान्ग की तरफ जा रहे थे ! वहां के लोकल लोग अभी तक कोई भी नहीं दिखा जो अपनी गाडी से निकला हो सुनसान सड़कें एक डैम सन्नाटे से भरी हुई लग रही थी ! यहाँ पर कितनी शांति है ! पारुल ने सोचा ! उसकी नजरे सड़क की तरफ ही लगी हुई थी जिधर से अभी राघव निकल कर गए थे ! न जाने कहाँ चले गए !

अरे बता कर तो जाते और किसे या फिर क्यों वो उसकी लगती ही कौन है? पारुल ने बुरा सा मुंह बनाते हुए सोचा ! यहाँ पर जीवन न जाने किस तरह से चलता होगा ? लोग कहाँ और कैसे रहते होंगे ? क्योंकि कोई परिंदा तक नजर नहीं आ रहा था ! इतनी जयादा शांति थी, मानों हम बादलों के बीच में हैं और आसपास कोई नहीं है बिलकुल एकांत ! मन में अनेकों सवाल झंझाबानत मचाये हुए थे जिनके जवाब जान्ने के लिए राघव से बात करने का मन कर रहा था ! पर उन्हें तो और लोगों से ही फुर्सत नहीं थी तो वे मुझसे क्या बात करेंगे ! तभी सामने से वे आते दिख गये ! वे उसके पास से निकल कर मेनका मैडम की टेबल पर जाकर बैठ गए ! अलग सी खुशबु है, जो राघव के पास से आती है ! कुछ पल वो उसमें खोयी रही फिर मन ही मन चिढ़ते हुए खुद को ही समझाने लगी, हुंह, जाने दो, मुझे क्या ? बैठा रहने दो मेनका के पास ! खुद ही आएंगे एक दिन मेरे प्यार में तड़पते हुए ! जब मेरी याद सताएगी या मेरा प्रेम याद आएगा ! पारुल ने मन को समझाया लेकिन यह प्रेम में डूबा मन भला कहाँ कुछ कभी समझता है नहीं समझता समझने से मानों समझ ही कहीं खो गयी है ! अब राघव ड्राइबर के साथ न बैठकर पीछे वाली सीट पर बैठ गए थे ! मैं, मेनका जी और राघव ! इतनी ही प्यारी लगती है मेनका तो मुझे क्यों प्रेम करते हैं ? कहाँ करते हैं ? अगर करते तो मुझसे भी एकाध बार बात करते या मेरे पास ही आकर बैठते ! ऐसा लग रहा था जैसे उनकी खुशबु अपन तरफ खींचे लिए जा रही है और वो किसी भी तरह राघव के पास बैठ कर अपना सर उनके कंधे पर रख देने को आतुर सी हो उठी ! राघव आओ मेरे पास आकर बैठो ! मत सताओ मुझे ! मत तड़पाओ मेरे दिल को ! अब मेरे इस दिल में तुम ही रहते हो ! तो तुम्हें भी तो कष्ट हो रहा होगा !, हे भगवान यह पागल दिल और इसका प्रेम सच में बड़े बेदर्द होते हैं,,, जो किसी भी तरह से अपने प्रेम को अपने कब्जे में जकड़ लेना चाहता है ! जैसे वो जकड़ी है और घुटन से भर गयी है, स्वांस लेना भी मुश्किल होने लगा है !मानों किसी अवसाद में जी रही जो जिस्म ने जान खीचने लगता है ! किस तरह से वो अपने प्रेम को कम करे ? हे ईश्वर, अब तू ही मेरी मदद कर दे न !पारुल ने अपने दोनों हाथ हवा में उठाते हुए कहा !

अपनी आँखों में छलक आये आंसुओं को रोकने की कोशिश की लेकिन यह क्या यह आंसूं तो बेतरह बेवजह बहने लग गए हैं रोकने से रुक ही नहीं रहे ! अगर मेनका जी ने देख लिया तो फिर अच्छा नहीं लगेगा ! यह सोच कर वो पहाड़ों के मनोरम दृश्य और घाटियां देखने लगी ! पर दिल में उठती हूक आँखों से आंसू बन गिरती जा रही थी !

***