कशिश - 3 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कशिश - 3

कशिश

सीमा असीम

(3)

पापा के साथ स्टेशन तक आई ! वैसे तो पापा हमेशा हर जगह उसे अपने साथ ही लेकर जाते हैं लेकिन आज उन्होने भी अकेले जाने देने मे कोई आनाकानी नहीं की थी ! बल्कि रास्ते में समझाते हुए कहा था, देखो संभाल कर जाना और अपना खयाल रखना !

जी पापा ! आप बिल्कुल बेफिक्र रहें ! मैं अब बड़ी हो गयी हूँ !

ट्रेन में बैठते समय पापा के पाँव छूते हुए पारुल ने कहा, पापा आप अपना और मम्मी का ख्याल रखना !

तू सदा खुश रहे ! सफलता तेरे कदम चूमे ! आशीर्वाद देकर वे बोले, तू कौन सा हमेशा के लिए जा रही है पाँच दिन की ही तो बात है !

ट्रेन ने व्हिशील दे दी और वो हल्के हल्के सरकने लगी ! पारुल ने अपना कपड़ों वाला बैग सीट के नीचे कर दिया, लेपटाप का बैग साइड से रखकर पर्स को अपनी गोद में रख लिया !

अचानक से चलती ट्रेन मे कोई चढ़ा और उसका पर्स उठाकर चलती ट्रेन से ही कूद गया वो एकदम से भौचक्की रह गयी ! चीखने तक का मौका नहीं मिला ! पूरे कोच में हड़बड़ी मच गयी ! मेरा पर्स ! वो मेरा पर्स ले गया ! अब वो अपनी पूरी ताकत के साथ चीखी ! किसी ने ट्रेन की चैन खींच दी ! पतला दुबला काले से रंग का वो बीस बाईस साल का लड़का पटरियों को फलांगता उसकी आँखों के सामने से ओझल हो रहा था पर वो कुछ भी नहीं कर सकी, कोई भी नहीं कर सका ! काफी देर ट्रेन रुकी रही पर इसका पर्स जाना था और वो चला गया था उसमे ही तो उसने अपनी सोने की चैन निकाल कर रख ली थी ! पैसे और मेकअप का सारा समान भी तो उसमें ही पड़ा था ! वो ज़ोर ज़ोर से चीख चीख कर रोना चाहती थी लेकिन रोने से क्या फायदा होना था ! मोबाइल उसका मोबाइल कहाँ है ? कहीं वो भी तो पर्स मे नहीं ! सोच ही रही थी कि उसे अपने फोन की रिंगटोन सुनाई दी ! जींस की पाकेट में बजते हुए अपने फोन को निकाल कर देखा पापा का फोन था !

अरे पापा ! अब उनसे क्या कहेगी ? वैसे जब हम परेशान होते हैं तो हमारे अपनों को कैसे पता चल जाता है ? कैसे उन तक हमारी बात पहुँच जाती है हमारे बिना कुछ कहे ही !

जरूर कोई ऐसा तार होता है जो सब कह आता है !

हैलो ! वो फोन उठाकर बोली !

बेटा तुम्हारी ट्रेन से अभी कोई पर्स लेकर भागा है !

जी पापा ! वो रोते हुए बोली !

क्या हुआ ? तुम ठीक तो हो न ?

पापा वो मेरा ही पर्स था !

अरे ! पैसे कहाँ रखे थे ?

पर्स में ही थे ! मेरा आई कार्ड भी उसमें ही था !

ओहहों बेटा ! कर दी न तुमने नादानी ! पहला सफर और पहले ही गलती कर बैठी ! कैसे सब संभालोगी !

अब क्या करूँ पापा ? वापस आ जाऊँ ? उतर जाऊँगी अगले स्टेशन पर !

नहीं, तुम जाओ ! मैं यहाँ से सब कुछ मैनेज करता हूँ !

पापा की बातों ने हौंसला दिया था !

पैसे बिल्कुल नहीं हैं ?

है पापा, जींस मे 100 रुपये पड़े हैं !

फिर ठीक है ! बाकी मैं देखता हूँ ! किसी के हाथ भिजवा देता हूँ !

जी ठीक है पापा !

चलो अभी फोन रखो और थोड़ा चौकन्ने होकर बैठो !

कोच में बैठे सारे लोग उसके आसपास ही आ गए थे !

बेटा अगर कोई परेशानी हो तो बता देना ! एक आंटी उससे बोली ! कुछ लोगों ने उसको पैसे भी देने चाहें ! लेकिन उसने मना कर दिया !

स्टेशन से 100 रुपए मे ऑटो करके आसानी से चली जाएगी ! हो सकता वहाँ पर कोई लेने ही आ जाए !

कोई न कोई हल तो अवश्य ही निकल आएगा ! जब तकलीफ ईश्वर ने दी है तो दूर भी वही करेगा ! पूरा सफ़र यूं ही परेशान हाल मे गुजर गया ! एक पल का भी चैन नहीं मिला ! पापा बराबर फोन पर ढाढस बंधाते रहे !

प्रकाश को उसने फोन करके बता दिया था !

क्या करूँ ? मैं आऊँ या वापस लौट जाऊँ ?

नहीं वापस नहीं जाना है क्योंकि जिंदगी मे वापस लौटने का मतलब है खुद हार मान जाना ! यह परीक्षा की घड़ी है इसे हिम्मत और अपने विश्वास के सहारे पार करो ! क्योंकि डर के आगे जीत है इस बात को हमेशा ध्यान रखना ! कितनी शांति और प्रेम से हर बात को प्रकाश समझा देते हैं ! बिल्कुल पापा जैसे ही ध्यान भी रखते हैं कि कभी कहीं कोई परेशानी न हो ! वैसे जब हम अकेले हो और परेशानी में हो तो मन में खुद ब खुद हिम्मत आ जाती है ! प्रकाश ने सही ही कहा था कि हिम्मत मत हारना और कभी वापस मत लौटना, न कभी पीछे मुड़ कर देखना ! सफर सिर्फ तीन घंटे का था लेकिन वो जिंदगी भर का सबक बन गया !

ठीक समय पर ट्रेन उसके गंतव्य तक पहुँच कर रुक गयी, उसका स्टेशन आ गया था ! लेपटाप वाला बैग पीठ पर और ट्रॉली बैग हाथ में उठाकर वो ट्रेन से उतर गयी ! मन बहुत ही ज्यादा परेशान रहा था अब खुली हवा में स्वांस लेकर कुछ तसल्ली सी हुई ! न जाने कैसी मनभावन खुशबू जो दुख में भी खुशी का अनुभव करा रही थी ! शाम का हल्का हल्का सा धुंधलका छा गया था ! नया शहर, अंजान लोग फिर भी डर का अहसास नहीं ! यह डर दूर किया था उसके पापा ने उसे गहन विश्वास देकर और प्रकाश के मार्गदर्शन ने !

स्टेशन से बाहर आकर वो ऑटो देख ही रही थी कि प्रकाश का फोन आ गया !

कहाँ हो पारुल ?

मैं पहुँच गयी और वहाँ आने के लिए ऑटो देख रही हूँ !

अरे तुमने बताया तक नहीं ? एक फोन तो किया होता ?

आपको क्यों परेशान करती ! मैं आ जाऊँगी !

ठीक है फिर ! तुम मेनेज कर लोगी न ?

हाँ जी बिल्कुल !

ओके !

उसने हिम्मत करके प्रकाश से कह तो दिया लेकिन जब किसी अपने से बात हो जाए तो मन सहारा ढूँढने लगता है ! क्योंकि प्रेम और अपनापन हमें कभी कभी कमजोर भी बना देता है !

ओहह वो यह क्या सोचने लगी ? उसने अपने मन को हल्का सा झटका दिया !

उसने देखा सामने से कुछ महिलाएं ग्रुप मे कहीं जा रही हैं ! वो भी उनके साथ ही हो ली ! अकेले और अंजान शहर मे उन लोगों का साथ उसे हिम्मत बंधाने के लिए बहुत था !

आंटी आप लोग कहाँ जा रहे हो ? पारुल ने एक महिला से पुंछा !

जब उन लोगों ने उस स्थान का ही नाम बताया जहाँ उसे जाना था तो पारुल के चेहरे पर ख़ुशी की लहर सी आ गयी! अरे यह लोग तो वहीं तक जा रही हैं !

क्या मैं भी आपके साथ चल सकती हूँ एक ही ऑटो में?

हाँ हाँ क्यों नहीं ! आ जाओ बेटा !

वे छह लोग बड़ी आसानी से बैठ गए थे ! वे सब तो रास्ते मे उतर गयी और ऑटो वाले को समझा गयी ! देखो, इसे संभाल कर उतार देना !

ठीक है भाई ! मेरा तो यही काम है लोगो को उनके सही स्थान तक सही से पहुंचा देना ! वे सब चली गयी और पारुल चलते हुए ऑटो से उन लोगों को तब तक जाती हुई देखती रही जब तक वे आँखों से ओझल न हो गयी ! वो मन ही मन सोचने लगी कि दुनिया में कोई अद्रश्य शक्ति अवश्य होती है, जो हमारी उस वक्त मदद करती है जब हमारे साथ कोई नहीं होता या हमें सहारे की जरूरत होती है ! ये लोग भी उसी शक्ति का हिस्सा ही तो थी जो उसकी मदद को आ गयी थी अचानक से !

ऑटो वाले ने उसको ठीक स्थान पर पहुंचा दिया ! उसे प्रकाश दूर से ही खड़े दिखाई पड रहे थे ! उसने ऑटो वाले को 100 का नोट दिया ! तब तक प्रकाश भी आ गए थे !

पैसे मैं देता हूँ !

नहीं अभी रहने दो !

आपके पास कहाँ हैं ?

जींस मे 100 रुपये थे !

ऑटो वाले ने 50 रुपये वापस किए !

आप रख लो भाई ! वो इस समय खुशी के अतिरेक मे थी कि अकेले ही गंतव्य तक पहुँच गयी ! तो पैसे कोई मायने नहीं रखते !

ऑटो वाला मुस्कुराता हुआ मुड़कर वापस चला गया ! जरूर उसने दिल से दुआ दी होगी ! वैसे अक्सर होता यह है कि हम अपने खाने पीने पर हजारों रुपए होटल में जाकर एक मिनट में खर्च कर आएंगे लेकिन कभी किसी जरूरतमन्द को नहीं देंगे ! पारुल की यह आदत हमेशा ही है ! कभी रिक्शे वाले को बढ़ाकर पैसे दे दिये या कभी किसी बुजुर्ग को अपने साथ रिक्शे पर बैठा लिया और उसे घर तक छोड़ दिया !

अरे पारुल वो ऑटो वाला पैसे वापस कर रहा था तो तुमने लिए क्यों नहीं ! प्रकाश ने टोंका !

कोई नहीं रहने दो !

क्या रहने दो ? अभी तुम्हारे पास पैसे कहाँ हैं !

ओहह हाँ ! अब उसे याद आया कहाँ हैं उसके पास पैसे तो हैं ही नहीं ! उसका पर्स चोर लेकर भाग गया है !

अब फालतू का मत सोचो जो भी हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सुध लो !

प्रकाश उसका सामान लेकर कमरे तक छोडकर चले गए ! अगर कुछ खाना है तो नीचे आ जाना !

नहीं मुझे कुछ भी खाना नहीं है !

तो ऐसा करता हूँ तुम्हारे लिए यहाँ कमरे मे ही चाय नाश्ता भिजवा देता हूँ तुम आराम करो ! ठीक है न ?

जी बिलकुल ठीक है क्योंकि अभी उसका किसी से भी मिलने का, बात करने का दिल ही नहीं कर रहा था !

थोड़ी देर के बाद ही एक लड़की उसके लिए चाय और सेडविच लेकर कमरे में आ गयी !

हे भगवान, यह प्रकाश को भी न उसकी कितनी फिक्र लगी रहती है !

चाय सेडविच से उसका पेट भर गया था ! घर से पापा का फोन आया था कि अगर तुम्हें कोई भी तकलीफ या परेशानी हो तो बता देबा !

जी जरूर पापा ! बस आप लोग परेशान न होना ! यहाँ सब कुछ सही है !

वो पर्स जाने की परेशानी और दुख अब भूल जाना चाहती थी ! क्योंकि पूरे रास्ते बस रोती हुई ही चली आई थी !

बिस्तर पर लेटते ही उसकी आँखों में भरी हुई नींद उसे थपकी देकर सुला गयी ! बेहद खूबसूरत ख्वाब पूरी रात सपनों में उसकी रखवाली करते रहे ! सुबह जब आँख खुली तो उसने सोचा कि न तो कभी इतनी अच्छी नींद आई और न ही कभी इतने सुदर सपने ही आए ! खैर आगाज तो अच्छा नहीं हुआ था अब अंजाम देखते हैं क्या होगा !

सुबह उठते ही वो अपने बाल बनाने के लिए किसी से कंघी मिल जाये यह देखने के लिए कमरे से बाहर गयी, तब वहीं पर उसकी मुलाक़ात राघव से हो गयी थी ! तेज तर्रार किसी बिगड़े हुए इंसान जैसे लगे थे राघव, अब वे अपनी अलग छवि बना चुके थे !

सच ही तो है किसी को पहली नजर में देखते ही हम उसे जो द्रष्टि देते हैं जरूरी तो नहीं कि वो शख्स बाद मे भी वैसा ही निकले हाँ यह अलग बात है कि वो छवि दिमाग से हटती नहीं है !

++++++

उस दिन पहाड़ी स्थल पर सबने खूब मस्ती की लेकिन वो तो अपने जी घबराने और उल्टियों से ही इतना परेशान रही कि न तो उससे कुछ खाया गया, न ही कुछ पिया गया ! हाँ पारुल फोटो सेशन में सबसे आगे रही, भले ही चेहरा उतरा हुआ ही क्यों न आया हो ! एक हाथ में पानी की बोतल, एक में नीबू शिकंजी और चेहरे पर बिखरे हुए बाल, यही हर तस्वीर में नजर आ रहा था !

एक बेहद खूबसूरत और यादगार दिन बीत गया था ! अपनी यादें हर किसी के जेहन में देकर निकल गया ! आज समापन का दिन मतलब आखिरी दिन था ! सभी का मन था कि समापन से पहले एक बार सब लोग फिर से उसी तट पर जाएँ जहां पहले दिन गए थे !

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