कशिश - 26 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कशिश - 26

कशिश

सीमा असीम

(26)

रात भर चैन की नींद न आने से मन एकदम से भरा भरा था ! समझ में नहीं आ रहा था कि वो प्रेम में है या किसी के वशोकरन में ! जैसे वो चाहता है उसी तरह से हर बार हो जाता है ! अरे टावल तो लेकर ही नहीं आई ! वो बाहर आकर तौलिया उठाती है ! मैडआम ने सदी बअनध ली है पिंक कलर की साड़ी में उन्के खुले बालों से गईरतआ हुआ पानी उनकी साड़ी को गीला कर रहा था और वे शीशे के सामने खड़े होकर चेहरे पर पीएनके कलर की लिपसीटिक लगा रहा थी ! सच में मेकप कर सए सबहई लओग बहुत प्यारे लाग्ने लगते हैं ! मम्मी कहती भी हैं कि जाली हुई काली लकड़ी को अगर सजा धजा कर खड़ा कर दो तो वो भी सुंदर लाग्ने लगती है ! किटनआ सहई कहते हैं यह हमारए बड़े बुजुरग ! दरअसल यह नहीं बोलते बल्कि इनके अनुभव बोलते हैं और हम इतने नादान हैं कि इनके अनुभावून से कोई फ़ायदा ही नहीं उठाना चाहते !

अरे पारुल तू कीआ सओकह रहई है यहाँ खडी होकर ! बहुत सोचती है तू ! आरे पहले नहा ले वरना देर हो जाएगी न !

हाँ हाँ ! जा रही रही हूँ वो मउसकुराई ! सच में बहुत सोचती हउन मैं ! जैसे सीरफ सोचने का काम ही दे रखा है मुझे और कोई काम ही नहीं ! अक्सर मम्मी भी यही कहतई हैं ! आज माँममी और पापा न जाने क्यों इतना याद आ रहे हैं !

मैडम आप बहुत प्यारी लग रही हैं ! आखिर पारुल ने उनको बोल ही दिया !

वैसे भी अगर कोई चीज अच्छी लगे तो उसकी तारीफ करना ही चाहिए मन क्यों मारना ! थोड़ा सा जीवन ईश्वर देता है उसे भी रो धो कर मन मार मार कर जीते रहो !

थेंकू पारुल ! वे किसी कमसिन की तरह मुसकुराती हुई बोली ! अच्छा अब ज्यादा बातें मत बनाओ और चुपचाप से तैयार हो जाओ !

ठीक है जाती हूँ ! वो सीधे वशरूम में जाती हुई बोली !

वशरूम का दरवाजा बंद करके टावल टाँगकर सीधे सावर खोल दिया ! पानी आँखों पर गिरा तो आँखें स्वाभाविक रूप से बंद हो गयी और आँखों के बंद होते ही राघव दिमाग से निकल आँखों में आ गए मुसकुराते हुए से ! हे ईश्वर यह सब क्या है मैं कैसे जी पाऊँगी अपने राघव के बिना क्योंकि पल भर की दूरी इतनी असहनीय है कि जान सी खींचती है जिस्म से और राघव कहते हैं कि यह अनन्त यात्रा है और इसमें बस चलते रहो, बिना रुके, बिना थके, न कोई मंजिल न कोई ठिकाना ! नहीं चाहिए मुझे नहीं चाहिए ऐसा प्रेम जो मेरा जीना दुश्वार कर दे और मुझे दर्द के गर्त में धकेल दे !वो ज़ोर ज़ोर से चीखना चाहती थी इतनी ज़ोर से राघव खुद उसके पास आकर पुछे कि बता आखिर तेरी रज़ा क्या है ?

हाँ वो यही चाहती है कि राघव आयें और उससे उसके मन की एक एक बात जाने समझे और पुछे ! कितनी देर गुजर गयी और उसके मन का भ्रम नहीं निकला ! यह द्वंद निरंतर चलता ही रहा ! अरे पारुल अभी और कितनी देर लगेगी ? मैडम ने दरवाजे को पीटते हुए कहा !

वो वापस खुद में लौटते हुए बोली जी बस दो मिनट में आई ! हे भगवान तुमने मुझे किस व्याधि से ग्रसित कर दिया है जिसका कोई भी इलाज नहीं है ? जिसका कोई समाधान नहीं है !

घर जाकर भी अगर यही बावरों वाली स्थिति बनी रही तो मम्मी पापा पक्का मुझ पर किसी का साया समझ लेंगे ! वैसे उस पर साया ही तो है हाँ उसके राघव का साया जों उसके भीतर घुसकर बैठ गया है उसे अपने कब्जे में करके !

पारुल ने अपने बाल टावल में लपेटे और रेड व व्हाइट कुर्ती aur jeens पहन कर बाहर निकल आई ! मैडम कमरे में नहीं थी शायद वे हाल में चाय पीने चली गयी थी ! उसने जल्दी से लैगी पहनी और शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गयी ! आँखें कितनी धुली धुली और निखरी निखरी सी लग रही थी रो रो कर पवित्र जों हो गयी थी अपने प्रिय को बसने के लिए और हमेशा बसाये रखने के लिए ! बाल खोल दिये जों उसके चेहरे पर छितरा गए थे तभी कमरे में कोई आहट सी हुई वो फौरन पलटी ! अरे राघव ! उन्हें देखते ही उसकी आँखों से आँसू बह निकले वो दौड़ के गयी और राघव को कसकर अपने गले से लगा लिया ! रो क्यों रही हो ? राघव ने उसके बालों को अपने एक हाथ से हटाया और उसके गाल पर लुढ़क आए आँसू को अपने होठों से चूमते हुए कहा ! कितना रोमांचित करने वाला यह स्पर्श था! उसने अपने राघव को और कसकर अपने सीने से चिपका लिया इतना कि कोई उन्हें उससे ज़ुदा न कर पाये ! चलो जल्दी से तैयार होकर आ जाओ चाय नाश्ते के बाद घूमने जा रहे हैं तुम भी मैडम के साथ आ जाना वरना यह लोग तुमको यही छोड़ देंगे !

जी सही है ! वो मुस्कुरा कर बोली ! आँसू न जाने कब मुस्कान में बदल गए पता ही नहीं चला ! दुख के जाते ही सुख आ जाता है और सुख के जाते के साथ दुख ! सच में सुख और दुख का रिश्ता भी अजीब है दोनों एक एकदूसरे के बिना रहते हैं कभी साथ नहीं आते एक आता है तो दूसरा खुद ब खुद चला जाता है ! उसने राघव के गाल पर एक साथ कई किस किए किसी दीवानी की तरह और उसके कंधे पर अपना सर रख दिया !

अच्छा अब मैं चलता हूँ तुम जल्दी से आओ ! राघव तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर निकाल गए !

तुम मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए ! वो गुनगुनाती हुई आईने के सामने आकर खड़ी हो गयी कितनी प्यारी लग रही है वो खूबसूरती कुछ और भी ज्यादा बढ गयी है ! यह लाल और सफ़ेद रंग उसपर कितना खिल रहा है उसने बाल सुलझाये, हल्का सा मेकअप किया और पाँवों में सेंडिल पहनकर मन ही मन गुनगुनाती हुई कमरे को लाक करके हाल मे आ गयी ! जहां सभी लोग नाश्ता करने में लगे हुए थे !

राघव को ढूंढती हुई उसकी नजरें पूरे हाल का निरीक्षण कर रही थी !

***