इंसान_बनाम_मशीन - 1 सिद्धार्थ शुक्ला द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इंसान_बनाम_मशीन - 1

#इंसान_बनाम_मशीन 🎤

वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत जहाँ इंसान की जरूरतें पूरी होतीं थी वहीं परस्पर अनुग्रह और प्रेम का भाव बना रहता होगा ऐसा मैं समझता हूं। फिर वैज्ञानिक क्रांति के चलते नई नई वस्तुओं का अविष्कार हुआ नयी नयी वस्तुओं का आविष्कार हुआ तो आदमी का काम सरल होता गया, आदमी का काम सरल हुआ तो उसे अपने लिए खाली समय मिलने लगा , अब इस खाली समय में वह करें क्या ? तो मनोरंजन की जरूरत महसूस हुई , मनोरंजन और कुछ नहीं जो समय आदमी अपने परिष्कार के लिए सदुपयोग कर सकता है उस समय को काटने के लिए या बर्बाद करने के लिए जो व्यवस्था बनती है वह मनोरंजन होता है। इस मनोरंजन के लिए वैज्ञानिकों ने नयी नयी चीजें ईजाद करना शुरू किया ।

मनोरंजन की चीजें पहले मनोरंजन करती रही फिर धीरे-धीरे आदमी की जरूरत बन गई और जब उनकी जरूरत बन गई तो उसके लिए बाजार खड़ा हुआ जैसे कि टी वी , फ्रिज इत्यादि और इसे आदमी के सामाजिक स्तर से जोड़ दिया गया , फिर आदमी के लिए और मनोरंजन के साधन बनाने की जरूरत पड़ी क्योंकि जो मनोरंजन के साधन बनते हैं वह धीरे-धीरे जरूरत बनती जाती है। इसका परिणाम यह हुआ की एक बहुत बड़ा बाजार खड़ा होता है आदमी ज्यादा से ज्यादा लालची होने लगा ।

लालच इस कदर बढ़ गया कि कुछ धूर्त लोगों के दिल में यह इच्छा हुई - क्यों ना इस लालच का फायदा उठाया जाए तो मुद्रा का आविष्कार हुआ , मुद्रा के बारे में अगर हम ऊपरी सतह पर सोचें तो ऐसा लगा जैसे सुविधा के लिए बनाई गई मगर ऐसा नहीं हुआ मुद्रा का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि धीरे-धीरे विश्व की पूरी संपदा एक छोटे से व्यक्ति समूह के हाथों में कैद हो गई फिर कुछ ऐसी व्यवस्था बनी कुछ ऐसी कंपनियां बनी जिनसे धीरे-धीरे आदमी स्वेच्छा से अपना धन उनके हाथों में सौंपने लगा । हाँ, उन्हें कुछ फायदे मसलन ब्याज का लालच जरूर दिया जाता था मगर वह लालच काम कर जाता था क्योंकि आदमी की एक प्रवृत्ति है बिना किए अगर कुछ मिल जाए तो उसे छोड़ना नहीं चाहता आज के संदर्भ में अगर हम देखें तो मुद्रा अब धातु के सिक्कों, कागज के दौर से निकलकर महज कंप्यूटर पर अंकित एक नंबर तक सीमित रह गई है ऊपर से अब यह जोर दिया जाता है कि हम लोग कागज की या धातु की मुद्रा इस्तेमाल ना करते हुए पूर्ण रूप से मशीन पर निर्भर हो जाएं जहां हमारा धन हमारे हाथ में नहीं बल्कि बड़ी बड़ी कंपनियों की तिजोरियों में पहुंच जाए और हमारे हाथ मे रह जाये बस कंप्यूटर पटल 🖥️ पर अंकित एक नंबर विद टर्म्स एंड कंडीशन्स जो इतनी बारीक होतीं हैं कि दिखाई भी न पड़े और उसी नंबर का आदान-प्रदान पूरे विश्व में होता है। हमारी धन संपदा का कौन क्या कैसे प्रयोग कर रहा है यह हमें कभी भी मालूम नहीं पड़ सकता।

आज वायरस का जो खतरा पूरी दुनिया के सर पर मंडरा रहा है उससे भी कई गुणा बड़ा खतरा है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कि AI , जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है या फिर पता ही नहीं । दुनिया में अब महायुद्ध अगर कभी हुआ या हो रहा है तो एटम बम से नहीं होगा क्योंकि यह सबको पता है कि अगर एटम बमों से युद्ध हुआ तो कोई भी नहीं बचेगा तो अब युद्ध बहुत ही धूर्त तरीके से किए जाएंगे , युद्ध अब दिमाग का होगा व्यक्तियों की हत्या नहीं होगी , व्यक्तियों के विवेक की हत्या की जाएगी उसके दिमाग की हत्या की जाएगी और इस हत्या के अंदर सबसे बड़ा कारगर अगर कोई हथियार उनके हाथ में है तो वह है मोबाइल "स्मार्टफोन" जी हां आप की लोकेशन से लेकर आपके पल पल की जानकारी आपकी पर्सनल लाइफ से लेकर आपकी प्रोफेशनल लाइफ , आप क्या खाते हैं क्या पीते हैं , क्या पहनते हैं , कहाँ जाते हैं इस सब की जानकारी उनके हाथ में मौजूद है और वह जब चाहे आपके दिमाग में कुछ भी भर सकते हैं यह जो हमारे हाथों में है यही सबसे बड़ा वायरस है यही उनका हथियार है जो हमें इस तरह खत्म करता है कि हमें पता भी नहीं चलता क्यूंकी उसको खरीदने वाले हम खुद हैं। एक तो किसी विद्वान ने मुझे कहा था कि सोशल मीडिया का आविष्कार लोगों के मनोरंजन के लिए नहीं इसके पीछे बहुत गहरी साजिश है कुछ साल पहले यह बात मैंने सुनकर हवा में उड़ा दी थी मगर आज के संदर्भ में अगर मैं देखता हूं तो मुझे उस आदमी का एक एक शब्द याद आ जाता हैं और वह सही होता मालूम पड़ता है आज अगर हम अपने आप को बचाना चाहते हैं , अपने राष्ट्र को बचाना चाहते हैं तो सबसे पहले कोई रास्ता खोजना पड़ेगा इस AI वायरस के विरुद्ध क्योंकि हम इससे इस कदर बंध चुके हैं हम इसके इस कदर गुलाम बन चुके हैं कि अब लगने लगा है कि यह हमारे शरीर का ही एक अंग बन चुका है मैं खुद इसका गुलाम बन चुका हूँ।

यह आज मुझे महसूस होता है यह मैं देख पाता हूं किस तरीके से इंटरनेट शॉपिंग वेबसाइट ने छोटे-मोटे बिजनेस को खत्म किया है किराने की दुकानों को खत्म किया है मुद्रा को डिजिटल कर दिया है यह स्थिति बहुत भयावह है बहुत सारी बात बातें चल रही है आज की स्थिति को देखते हुए क्या सही है क्या गलत कोई साजिश है या नहीं है नहीं मालूम मगर एक बात पक्का है कि एक डर है जो धीरे-धीरे हमारी नसों में घोला जा रहा है हमारी आर्थिक , मानसिक स्वतंत्रता पर आघात किया जा रहा है हम बेबस महसूस कर रहे हैं ऐसा लग रहा है कि कोई हमें कंट्रोल कर रहा है और यह सब कुछ अदृश्य हो रहा है जिसे अगर हम थोड़ा दिमाग लगाकर सोचे तो हमें समझ आने लगेगा । और बात राजनीतिक नही क्योंकि राजनीति और राजनेता भी उनके हाथ की कठपुतलियां हैं।

क्रमशः

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