बंधन प्यार का - 2 જીગર _અનામી રાઇટર द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बंधन प्यार का - 2

बंधन प्यार का..

मनुष्य में जीतनी भी इमोसन्स है उसमें सबसे बेस्ट और खूबसूरत इमोसन्स प्यार है । इस धरती पर जो भी जीव है , पशु है ...सब प्यार को अच्छे से समजते है.. प्यार हर कोई को पसंद ही है..फिर वो चाहे पशु हो , पंछी हो या मानव.. सबमे प्यार एक अलग ही भावनाएं पैदा करता है ।

कॉलेज में मेरी और नेहा की पहली मुलाकात कॉलेज के केंटीन में हुई । पता नही उसकी पहली ही मुलाकात ने मुजे उसके प्रति इतना आकर्षित कर दिया था की मेरा दिल और दिमाग दोनों उसके ही खयालो में डूबे रहते थे ।

दूसरे दिन में जल्द से उठकर अपने सारे काम खतम करके नहाया धोया और अच्छे से नए कपड़े पहनकर , परफ्यूम लगाकर कॉलेज की ओर निकल पड़ा । मेरे घर से कॉलेज तक का रास्ता दस मिनट का था । कॉलेज में पहुचकर मैं लेक्चर अटेंट करने के लिए अपने क्लास में गया.. आज पहला लेक्चर हिंदी लिटरेचर का था । कॉलेज में हिंदी लिटरेचर के प्रोफेसर मिस रीटा गुप्ता थे । आज में सबसे लास्ट में बैठा था । हररोज प्रथम बेंच पे बैठता था ।

प्रोफेसर रीटाने क्लास में एंट्री की....सब स्टूडेंट्स ने खड़े होकर प्रोफेसर को गुड़ मोर्निंग विस् किया। प्रोफेसर भी सबको गुड़ मोर्निंग कहा। बाद में सब स्टूडेंट्स अपनी अपनी जगह पे बैठ गए । प्रोफेसर ने में हररोज बैठता था वहाँ पे अपनी नजर घुमाई ।
बाद में बोले...
शायर कहा गया..दिखा नही आज..नही आया क्या ?

आगे बैठी हुई एक लड़कीने जवाब दिया..
मेम वो सबसे लास्ट वाली बेंच पे बैठा है..

प्रोफेसरने सबसे लास्ट बेंच पे नजर घुमाई ओर मुजे देखकर बोले...
क्या हुआ शायर पीछे क्यू बैठे हो ? कोई दिक्कत है क्या ??

नही मेम कोई दिक्कत नही है.. बस यू ही बैठ गया..
मैंने थोड़ा शरमाते हुए जवाब दिया..

अच्छा कोई बात नही... प्रोफेसर बोले..

ओर में बेंच पे बैठ गया.. मुजे बैठा हुआ देखकर प्रोफेसर फिरसे बोले..
अरे तु बैठ क्यू गया ? किसने कहा तुजे बैठने का ??

सोरी मेम.. में फिरसे खड़ा होकर बोला..ओर अपना शिर जुकाकर मुँह जमीन की ओर रखकर खड़ा रहा ।

अरे सोरी बोलने की कोई जरूरत नही है..अब आगे जा...ओर पूरे क्लास को एक दो शायरी सुना दे..प्रोफेसर रीटाने हसते हुए कहा..

में नेहा के खयालों में डूबा हुआ था..और प्रोफेसर मुजे शायरी सुनाने के लिए कह रही थी। ओर अभी मुजे कोई शायरी भी याद नही आ रही थी।

मुजे खामोश देखकर प्रोफेसर फिरसे बोली...
क्या हुआ तुम चुप क्यो हो गए शायर ??

मैं बोला... मेम आज कोई शायरी याद नही रही... प्लीज आप लेक्चर शुरू कीजिए... शायरी मैं कल बोल दूंगा..

मेरा जवाब सुनकर प्रोफेसर की आवाज थोडी तेज हुई...
अबे तू होता कौन है.. लेक्चर शुरू करवानेवाला..

प्रोफेसर रीटा की बात सुनकर सभी स्टूडेंट्स मेरे ऊपर मुँह दबाके हस पड़े । मैं कुछ बोले बिना ही अपना मुंह ज़ुककर खड़ा रहा ।

मुजे फिरसे खामोस हुआ देखकर प्रोफेसर अपनी आवाज़ में थोड़ा प्यार लाकर बोली..
देखो शायर... अगर तुमने शायरी नही बोली तो इस क्लास में रौनक नही आएगी... मैं कितना भी अच्छे से हिंदी साहित्य क्यों पढ़ाऊं..पर ये सब एक लास की तरह बैठके सुनते ही रहेंगे.. इन लोगो के भेजे में कुछ भी नही घुसेगा..

अब ये बात सुनकर तो में भी अचंबित हो गया.. मेरी शायरी सुने बिना इन लोगो को पढ़ने में भी मजा नही आता। मैंने सोचा चल जो आए मनमे एक दो लाइन बोल ही दू... ये सोचकर में पीछे से आगे की ओर चला... मुजे आता देखकर सभी प्रफुल्लित हो गए...ओर शायर.. शायर..शायर.. ऐसे चिल्लाने लगे..

प्रोफेसर रीटा लड़कियो की ओर अपना हाथ करके बोली..
देख....इन लड़कियों अब इनमे जान गई ऐसा लगता है.. बेचारी तुम्हारी शायरी की कितनी प्यासी है..

प्रोफेसर की ये बात सुनकर सब लड़के जोर-जोर हँसने लगे।
एक दो लड़के ने तो सिटी भी बजा दी..और सभी लडकियो का मुँह शर्म से लाल हो गया..क्लास का पूरा वातावरण ही चेंज हो गया..
में आगे आया और मैंने एक शायरी बोली..

बात में बहोत बात होती है...
पर वो बात नही होती...
जो मेरे ख्यालात में होती है...

वजह तो बहोत होती है जीने की..
पर वो वजह नही मिलती..
जो जीना शिखाकर भी
बेवजह बन जाती है..

सभी ने तालियां बजाई.. आज में कुछ और ही खयालो में डूबा हुआ था । इसलिए ज्यादा कुछ बोल नही पाया । इसके बाद प्रोफेसर हिंदी लिटरेचर के बारे मे बताना शुरू किया.. एक लेक्चर पूरा हो गया। मेरा मन लग नही रहा था इसलिए में लायब्रेरी में चला गया।

लायब्रेरी में जाकर मैंने गुलज़ार साहब की किताब ढूंढकर उसे पढ़ने लगा। में किताब पढ़ने में ही डूबा हुआ था। तब मुजे लगा की शायद पीछे कोई मुजे बुला रहा रहा है..मैंने पीछे देखा तो नेहा खडी थी... मैंने इधर-उधर सब जगह पे अपनी नजर घुमाई पर उसके अलावा दूसरा कोई नही था लायब्रेरी में..

मुजे ऐसे देखते हुए देखकर वो बोली..
अरे क्या देख रहे हो.. मैंने ही तुम्हे बुलाया था..

ओह्ह...तो आपने ही वो आवाज लगाई थी.. बोलिए क्या काम था ?? मेरे माइंड में दूसरा कोई क्वेचन आया नही इसलिए मैंने ये ही पूछ डाला ।

अरे..काम के अलावा हम आपसे नही मिल शकते क्या ?.. उसने मुँह पे थोड़ी नाराजगी लाकर कहा।

नही..नही..ऐसी कोई बात नही है नेहाजी.. बस ऐसे ही पूछ लिया.. मैंने हँसकर उसको कहा ।

तो ठीक है.. और अगर ऐसा कोई रूल्स हो तो पहले ही बता दीजिएगा की काम के अलावा कोई आपसे मिल भी नही शकता.. उसने हँसते हुए कहा..

नही..नही ऐसा कोई भी रूल्स नही है.. मेरी लाइफ में..
ओर आपके लिए तो बिलकुल नही.. में खड़ा हुआ और गुलज़ार साहब की किताब को जहासे उठाया था वही पे रख दिया..

तो... अब चलेंगे.. में उसके पास आया ओर बोला..

कहाँ जाना है... उसने कहा..

चलो आज गार्डन में बैठके बात करते है...आएंगी आप.. मेने उसके आंखों में अपनी आँख डालकर कहा..

चलो..आप इतने प्यार से बोल रहे हो..तो चलते है
उसने हँसकर कहा..

फिर हम दोनों लायब्रेरी से बाहर निकले और गार्डन की ओर चलने लगे.. बीचमे खड़े दो चार लडकोने तो हम दोनों को एक साथ देखकर बोल भी दिया कि.. क्या बात है आज दोनों शायर एक साथ जा रहे है.. जरूर आज कुछ नया होने वाला है..

उन लोगो की इस टिप्पणी पे हम दोनोने ध्यान दिए बिनाही वहाँ से निकल गए.. बाद में गार्डन में जहाँ कोई नही था वहाँ पे बैठ गए ।

अब.. बोलो इस एकांत जगह पे मुजे लाने का कोई खास प्रयोजन.. उसने मेरी ओर देखके कहा..

हा.. है बहोत बड़ा प्रयोजन है ..एक बहोत बड़ी समस्या पड़ी है उसका समाधान करना है.. और वो समस्या भी ऐसी है की आपके बिना कोई उसका सॉल्यूशन नही कर शकेगा.. मैंने उसकी ओर देखकर कहा..

ओह्ह..ऐसी बात है... चलो समस्या क्या है.. वो बताइए पहले..मेरे से हो शका तो में जरूर सॉल्यूशन कर दूंगी.. उसने कहा..

नेहाजी..आप तो जानती होंगी की.. हर इंसान को एक
ऐसा पात्र मिल जाए.. जो उसकी भावनाओं और इमोसन्स को अच्छी तरफ समझ शके... मैंने उसकी आँखों में देखकर कहा..

हा.. वो तो है ही... जिंदगी को अच्छे तरीके से जीने के लिए हर कोई को अच्छा पात्र मिले वो जरूरी है.. उसने मेरी बात को समर्थन देते हुए कहा..

में भी कोई ऐसे ही पात्र की तलाश में था.. ओर वो मैंने
ढूंढ लिया है.. मैंने कहा..

क्या बात है ढूंढ भी लिया..क्या में जान शकति हु.. वो कौन है... उसने कहा..

मैने उसको ढूंढ तो ली है.. पर शायद वो मुजे मिलेगी नही.. मैने निराश होते हुए कहा..

पर पहले बता तो दो...वो है कौन है.. उसने मुजे कहा..

सही में बता दू...पर बताने में थोड़ा डर लग रहा है.. मैंने उसके सामने देखकर कहा..

अरे...यार उसमें डरने की क्या बात है.. हम दोनों ही तो है यहीं पे.. फिर क्यों डर रहे हो... उसने मुस्कुराते हुए कहा ।

पर.. हम जिसको चाहते है.. वो सामने ही हो तो थोड़ा डर तो लगेगा ही... में अपना मुँह जमीन की ओर करके बोल दिया।

क्या तुम मेरी बात कर रहे हो..?? उसने थोड़ा शरमाते हुए कहा...

जी... हा.. मैने अपना मुँह ज़ुकाकर कहा..

देखो.. हसन हम दोनों अलग-अलग धर्म से आते है.. जहाँ पे दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ शादी करनी वो तो दूरकी बात है..पर हम अपने ही धर्ममे समाविष्ट दूसरे कास्ट के व्यक्ति के साथ भी शादी नही कर शकते..
उसने मेरा चहेरा अपने हाथों से ऊपर उठाते हुए कहा..

तो.. क्या कोई भी व्यक्तिको धर्म के खातिर अपना प्यार
गवाना चाहिए... मैंने उसकी आंखों मे आंख डालकर प्रश्न किया..

अरे.. हसन तुम जानते हो की में तुम्हारे योग्य हूं.. और में भी जानती हूं की तुम मेरे लायक हो... पर.. ये बोलते बोलते उसकी आंख भर आई..

पर क्या नेहा... बोलो उसका अधूरा जवाब सुनकर मैंने फिर प्रश्न किया..

हसन.. हम दोनों की तो एक ही सोच है की हम एकदूसरे के काबिल इंसान है.. पर ये समाज.. ये दुनिया के लिए तो हम सिर्फ हिन्दू-मुसलमान ही है.. क्या तुजे लगता है की ये दुनिया हम दोनों का रिश्ता कबूल करेगी..? उसने मुजे प्रश्न किया..

यार..धर्म ठीक है.. पर उसमें घुसे हुए ये बंधन जाने कितने लोगो की इमोसन्स का मर्डर करते होंगे..
मैंने निराश होते हुए कहा..

हम मजबूर है.. इस बंधनो के आगे.. वो बोली

ओर एक साथ ही हम दोनों के आंखों में से आंसु गिर पड़े..

बाद में हम दोनों चलने लगे.. आज मेरे दिल को लग रहा था कि वो फिर एक बार धर्म के आगे हार गया.. थोड़ी नफरत भी होने लगी थी धर्म के प्रति पर बताए किसको... दुनिया तो बस ये ही समझ रही थी की ये मुस्लिम है.. ये हिन्दू है.. कोई ये समजने के लिए तैयार नही था की ये दोनों इंसान है..