मेगा 325
हरीश कुमार 'अमित'
(7)
शशांक के पापा के बताए तरीक़े को आजमाने के लिए बड़े दादा जी जल्दी से ड्राइंगरूम में आए. उन्होंने देखा कि सोफे की कुर्सियों को इधर से उधर खिसका दिया गया है. सोफे के सामने की मेज़ भी अपनी जगह पर न होकर दीवार के पास पहुँच चुकी थी. मेगा 325 चुपचाप एक कोने में खड़ा था. शायद उसे यह समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है. बड़े दादा जी को लगा कि इस बीच शशांक ने मेगा 325 को और तंग किया है.
पूरा घर सेन्ट्रली एयरकंडीषंड (वातानुकूलित) था. बड़े दादा जी ने जल्दी से ड्राइंगरूम का ए.सी. चला दिया और रिमोट से उसका तापमान दस डिग्री कर दिया. तापमान को इससे ज़्यादा कम करने की गुंजाइश थी नहीं.
उसके बाद बड़े दादा जी ने हर कमरे का ए.सी. चला दिया और रिमोट की मदद से तापमान दस डिग्री कर दिया. सारे रिमोट उन्होंने एक थैले में डाल लिए.
इसके बाद उन्होंने ड्राइंगरूम के एक दरवाज़े को बन्द करके ताला लगा दिया. दरवाज़े को ताला लगाने के लिए ताले-चाबी की ज़रूरत नहीं पड़ती थी. बस एक पासवर्ड बोलना पड़ता था - ताला बन्द करने के लिए अलग और ताला खोलने के लिए अलग. बड़े दादा जी कुछ दिनों बाद बीच-बीच में दरवाज़ों के तालों के पासवर्ड बदलते रहते थे. अभी कल ही उन्होंने पासवर्ड बदले थे. इसलिए दरवाज़ों का ताला खोलने का पासवर्ड शशांक को मालूम नहीं था - मतलब वह दरवाज़ा खोलकर घर से बाहर नहीं जा सकता था.
दरवाज़ा बन्द करने के बाद बड़े दादा जी ने मेगा 325 को कहा कि वह ड्राइंगरूम से बाहर चला जाए. उसके बाहर जाते ही बड़े दादा जी ख़ुद भी बाहर आ गए और ड्राइंगरूम के दूसरे दरवाज़े का ताला भी बन्द कर दिया.
घर का तापमान कम होना शुरू हो गया था. बड़े दादा जी जल्दी से मेगा 325 को साथ लेकर घर से बाहर आ गए. बाहर आकर उन्होंने घर का मुख्य दरवाज़ा बाहर से बन्द कर दिया.
उन्होंने पूरी उम्मीद थी कि शशांक घर के अन्दर ही होगा और तापमान कम होने पर अपने असली रूप में आ जाएगा. हालाँकि यह बात भी उनके दिमाग़ में आ रही थी कि कहीं वह भी उन लोगों के साथ-ही-साथ घर से बाहर न निकल आया हो.
'चलो, जो भी स्थिति होगी, अभी थोड़ी देर में साफ़ हो जाएगी' सोचते हुए वे ड्राइंगरूम की खिड़की से अन्दर का दृश्य देखने लगे. अन्दर का हाल पहले जैसा ही था. अब कोई बार-बार ड्राइंगरूम की बत्तियों को जला-बुझा रहा था. बड़े दादा जी चुपचाप बाहर से यह सब देखे जा रहे थे. मेगा 325 उनके पास खड़ा था.
थोड़ी देर बाद ही बड़े दादा जी को ड्राइंगरूम की खिड़की के शीशे पर अन्दर से थपथपाहट की आवाज़ आई. साथ ही किसी के कुछ बोलने की भी आवाज़ें आने लगीं. खिड़की के बन्द काँच से आवाज़ पूरी तरह साफ़ तो सुनाई नहीं दे रही थी, मगर आवाज़ सुनते ही बड़े दादा जी पहचान गए कि यह शशांक की ही आवाज़ है. इससे उन्हें एक तो यह यक़ीन हो गया कि शशांक ही वह गोली खाकर अदृश्य हुआ था. साथ ही उन्हें यह भी पता चल गया कि शशांक घर के अन्दर ही है और वह उनके साथ घर से बाहर नहीं आ गया था.
क़रीब पाँच मिनट बाद बड़े दादा जी ने देखा कि शशांक ड्राइंगरूम की खिड़की के पास खड़े हुए धीरे-धीरे दिखाई देने लग गया है. एकाध मिनट में ही वह पूरी तरह अपने असली रुप में आ गया. वह ठंड से काँप रहा था.
यह सब देखकर बड़े दादा जी घर का दरवाज़ा खोलकर अन्दर जाने लगे. मेगा 325 को भी उन्होंने साथ आने के लिए कहा.
घर के अन्दर कदम रखते ही वह किसी बर्फीले पहाड़ जैसा लगा. बड़े दादा जी का शरीर ठंड से सुन्न पड़ने लगा. मेगा 325 को भी ठंड के मारे कुछ अजीब-सा लगने लगा था.
बड़े दादा जी ने रिमोट की मदद से घर के हर ए.सी. का तापमान 40 डिग्री कर दिया. तापमान इतना ज़्यादा बढ़ाना बेहद ज़रूरी था ताकि ठंड को भगाया जा सके.
उसके बाद वे शशांक के पास आए. वह अब भी ठंड से काँप रहा था और बगलों में हाथ छुपाए ज़मीन पर बैठ गया हुआ था.
बड़े दादा जी ने उसे ज़मीन से उठाया. उसकी नज़रें झुकी हुई थीं.
घर का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था. ठंड कम होती जा रही थी.
''आई एम सॉरी, बड़े दादू! मुझे माफ़ कर दीजिए. मुझसे ग़लती हो गई.'' शशांक बड़े दादा जी से माफ़ी माँगने लगा.
''बेटा, तुम एक वैज्ञानिक के बेटे हो. वैज्ञानिक के मन में तो हमेशा जिज्ञासा रहती है कि फलाँ प्रयोग किया जाए तो क्या होगा और फलाँ प्रयोग किया जाए तो क्या होगा. तुमने भी एक वैज्ञानिक की तरह एक प्रयोग ही किया है और वह भी अपने ऊपर जो हो गया, सो हो गया. आओ मेरे कमरे में चलो और इस बार में विस्तार से मुझे सब कुछ बताओ. फिर मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें तुम्हारे असली रूप में दो घंटे से पहले ही हम कैसे ला जाए.'' बड़े दादा जी ने शशांक के सिर और कंधों पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा. फिर वे उसे साथ लेकर अपने कमरे की ओर चल पड़े. मेगा 325 को भी उन्होंने साथ आने के लिए कहा.
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अदृश्य होनेवाली घटना के बारे में बड़े दादा जी और शशांक ने एक-दूसरे को सब बातें बता दी. शशांक ने बता दिया कि उसने गोली कैसे हासिल की थी. इसी तरह बड़े दादा जी ने भी शशांक को बता दिया कि उन्होंने कैसे उसके पापा से बात करके उसे उसके असली रूप में लाने की तरकीब पता की.
बड़े दादा जी और शशांक की बातों का आदान-प्रदान समाप्त हुआ तो बड़े दादा जी ने शशांक से कहा कि वह अपने कमरे में जाकर कुछ देर आराम कर ले. ऐसी घटना घटित होने के बाद उसे कुछ आराम की ज़रूरत थी भी.
शशांक जैसे ही उठकर अपने कमरे की तरफ़ गया, बड़े दादा जी के हाथ पर बंधे यंत्र पर शशांक के पापा का फोन आ गया.
बड़े दादा जी ने शशांक के पापा को सब कुछ बता दिया कि शशांक अपने असली रूप में कैसे और कितनी देर में आया.
सारी बात सुनकर शशांक के पापा कहने लगे, ''मेरे ख़याल से इस घटना से शशांक के मन को धक्का लगा होगा. ऐसे में उसका मन बहलाने की ज़रूरत है.''
''तुम सही कह रहे हो, राहुल. मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था.'' बड़े दादा जी बोले.
''अच्छा होगा अगर शशांक को कहीं घुमाने ले जाया जाए.'' शशांक के पापा ने सुझाव दिया.
''बात तो तुम्हारी ठीक है राहुल, मगर मेरे ख़याल से जितनी ज़रूरत शशांक को कहीं घुमाने ले जाने की है, उतनी ही मेगा 325 को भी ले जाने की है. आज की घटना के बाद तो वह बेचारा बहुत बौखलाया हुआ-सा है.'' बड़े दादा जी ने अपनी बात कही.
''आप सही कह रहे हैं, दादा जी. दोनों को कहीं घुमाकर लाने का प्रोग्राम बनाइए न.'' शशांक के पापा कहने लगे.
''ठीक है, बनाता हूँ कोई प्रोग्राम.'' बड़े दादा जी ने उत्तर दिया.
''कहाँ ले जाएँगे इन दोनों को?'' शशांक के पापा पूछने लगे.
''शशांक तो कई जगहें घूम चुका है. अब कौन-सी नई जगह पर जाया जाए?'' बड़े दादा जी सोच में पड़ गए थे.
''दादा जी, आजकल हवा में तैरनेवाले होटल भी आ गए हैं न जिनमें आदमी एक शहर से दूसरे शहर तक होटल के कमरे में बैठे-बैठे ही सैर करता रहता है.'' शशांक के पापा ने सुझाव दिया.
''हाँ, यह तो बहुत बढ़िया आइडिया है. शशांक ने आगरा नहीं देखा हुआ. मैं उसे और मेगा 325 को हवा में उड़नेवाले होटल में दिल्ली से आगरा तक की सैर करवा लाता हूँ. कल और परसों दो दिनों की शशांक की स्कूल की छुट्टी भी है. इन्हीं छुट्टियों में घूमकर वापिस आ जाएँगे.'' दादा जी ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई.
''हाँ, यह बहुत अच्छा रहेगा. होटल वग़ैरह की बुकिंग मैं यहाँ से करवा देता हूँ.'' शशांक के पापा ने कहा.
''ठीक है, राहुल. मैं अभी शशांक और मेगा 325 को इस प्रोग्राम के बारे में बताता हूँ.'' कहते हुए बड़े दादा जी ने फोन काट दिया.
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