तृप्ति - भाग (४) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तृप्ति - भाग (४)

रोते हुए कमलनयनी मंदिर से वापस आ गई,उसे आज बार बार रोना आ रहा था,वो कितने अच्छे मन से मंदिर गई थी लेकिन पुरोहित जी ने दूर से ही देखकर बाहर निकाल दिया,इन सबका वो पुरोहित जी से उत्तर चाहती थी और उसने मन बना लिया को वो उनके निवास जाकर इस प्रश्न का उत्तर पूछेगी क्योंकि मंदिर में तो उसका प्रवेश निषेध है और महल में उनको अपने कक्ष में बुलाना उचित नहीं होगा।
उसने मयूरी से पता करवाया कि पूजा-पाठ करके वो कब अपने निवास को निकलते हैं,हम तभी पहुंचेंगे, उनके घर, मयूरी सब कुछ पता करके कमलनयनी को बताया कि पुरोहित जी दोपहर तक घर जाते हैं फिर घर पर भोजन और विश्राम करके दिन डूबने से पहले मंदिर आ जाते हैं।
फिर एक दिन पुरोहित जी मंदिर से अपने निवास पर लौट रहे थे, मयूरी और कमलनयनी उनको निवास को चल दी, पुरोहित जी का निवास थोड़ा दूर राज्य के बाहर था, इसका अवश्य कोई ठोस कारण होगा, नहीं तो पुरोहित जी चाहते तो उन्हें महल में ही रहने के लिए मिल जाता।
दोपहर का समय कमलनयनी कभी भी इस समय बाहर नहीं निकलती थी,वो कुम्हालने लगी थी,कच्चा रास्ता, धूल और मिट्टी भरा ,अगल-बगल घनी झाड़ियां और वृक्ष, जिनसे छुपते-छुपाते वो दोनों गौरीशंकर के पीछे चलती चली जा रही थीं,राज्य से बाहर निकल कर जहां किसानों के खेत थे, किसान वहीं खेतों में अपनी छोटी-छोटी झोपड़ियां बना कर रहते थे, गौरीशंकर का भी वहीं मिट्टी का खपरैल वाला घर था,घर को चारों ओर से छोटी-छोटी लकड़ी के पटरों से गोलाकार रूप में घेरा गया था, वहीं एक कुआं था और थोड़ी बहुत फूल-फुलवारी लगी थी और घर की छत और दरवाजे की बगल की दीवार से होती हुई लताये छायी हुई थी।
कमलनयनी और मयूरी ने देखा की गौरीशंकर ने द्वार पर जाकर किवाड़ की सांकल खटखटाई, तभी एक बूढ़ी स्त्री ने किवाड़ खोले और गौरीशंकर अंदर चला गया, तभी मयूरी बोली चलिए स्वामिनी जी हम भी चलते हैं लेकिन कमलनयनी बोली अभी नहीं!! नहीं तो पुरोहित जी को लगेगा की हम उनका पीछा कर रहे हैं, थोड़ी देर इसी वृक्ष के नीचे विश्राम करके चलते हैं।
थोड़े समय पश्चात् कमलनयनी और मयूरी गौरीशंकर के निवास द्वार पर खड़ी थीं, कमलनयनी ने किवाड़ की सांकल खटखटाई, तभी गौरीशंकर ने किवाड़ खोले और बोले आप लोग!!
आइए, अंदर आइए, और गौरीशंकर दोनों को अतिथि-कक्ष में बैठाकर चले गए और थोड़ी देर में कुछ लड्डू और जल साथ में लाए बोले आप जलपान गृहण करें,तब तक मैं आता हूं और थोड़ी में वो अपनी माता के साथ आए और बोले ये मेरी माता है, उनकी गोद में लगभग दो साल का बालक था, मयूरी ने पूछा माता जी ये बालक!!
माता जी बोली, ये देववृत है, गौरीशंकर का पुत्र, ये सुनकर कमलनयनी को धक्का सा लगा, फिर मयूरी ने पूछा, और पुरोहित जी की पत्नी,माता जी बोली,आइए आपकी उनसे भेंट करवाती हूं और वो उन्हें दूसरे कक्ष में ले गई।
गौरीशंकर की पत्नी पलंग पर लेटी हुई थी,उन लोगो के आते ही मुस्करा दी और माता जी की तरफ इशारा करते हुए पूछा,आप लोग, माता जी बोली ये तो मुझे भी नहीं पता।
फिर कमलनयनी बोली, मैं और मेरी सखी,हम मंदिर में भजन गाते हैं, गौरीशंकर ने कमलनयनी को झूठ बोलते हुए सुना लेकिन कोई उत्तर नहीं दिया फिर गौरीशंकर बोला ये मेरी धर्मपत्नी, सौभाग्यवती!!
सौभाग्यवती मुस्कुरा दी और बोली हां नाम सौभाग्यवती है लेकिन इनके लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य हूं,एक साल से लकवे से पीड़ित हूं,कमर के नीचे का भाग कार्य नहीं करता, कोई भी वस्तु को इन अंगों पर अनुभव नहीं कर पाती, ये एक साल से मेरी सेवा कर रहे हैं, तभी तो हम राजमहल से इतनी दूर रहते हैं ,कभी कभी तो इन पर तरस आता है मुझे!!
तभी गौरीशंकर बोले, कैसी बातें कर रही हो! मैंने कभी भी तुमसे कोई उलाहना दिया कि मुझे तुमसे कोई भी आपत्ति है और अगर मेरे साथ ऐसा हो जाता तो क्या तुम मुझे छोड़ देती?
फिर माता बोली, चलिए भोजन तैयार है आप लोग भी करके जाइए, लेकिन कमलनयनी ने मना कर दिया, तभी सौभाग्यवती ने कहा,आप लोगों ने नाम तो बताया ही नहीं फिर कमलनयनी बोली,मेरा नाम कमल और ये मयूरी, अच्छा हम चलते हैं और दोनों ही महल वापस आ गये।
अब कमलनयनी को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें, उसे शायद गौरीशंकर से प्रेम होने लगा था, वो बस उसके ही स्वप्न देखने लगी,अब वो जब भी गौरीशंकर से मिलती तो बिल्कुल श्रृंगार विहीन होकर,वो अब उसके निवास में आए दिन जाने लगी, सौभाग्यवती को भी कमल से मिलकर अच्छा लगता, लेकिन वो जिस दृष्टि से गौरीशंकर को देखती थी,ये सौभाग्यवती से छुप नहीं पा रहा था।
और उधर श्याम कमलनयनी को इस दशा में देखकर हैरान था जो कमलनयनी लोभ-मोह में फंसी थी और जो अब उसका रूप-रंग हो गया था वो पहले से बिल्कुल अलग था, उसने एक दिन मयूरी से पूछा भी कि ये क्या हो गया है, कमलनयनी को इतनी बेसुध सी रहने लगी है,ना श्रृंगार और ना नृत्य का अभ्यास और अब राजा से भी दूरी बना कर रहती है,जब भी राजा बुलावा भेजते हैं ये स्वास्थ्य ठीक नहीं है का बहाना बना देती है।
मयूरी बोली,स्वामिनी को प्रेम हो गया है,जिस प्रकार मैं तुमसे प्रेम करती हूं!!
लेकिन मैं तुमसे प्रेम नहीं करता!! मयूरी,श्याम बोला।
तो किससे करते हो, कमलनयनी से, मयूरी बोली ‌।
मुझे पता कि तुम जाने कबसे स्वामिनी से प्रेम करते हो लेकिन वो किसी और से प्रेम करती है और शायद तुम्हारी तरह उनका भी प्रेम का सपना अधूरा रह जाएगा क्योंकि वो जिससे प्रेम करती है वो विवाहित हैं , पता नहीं ये कौन सा करतब रचा है प्रभु ने।
फिर एक दिन गौरीशंकर की विवाह की वर्षगांठ थी, सौभाग्यवती ने कमलनयनी और मयूरी को बुलावा भेजा, अतिथि के रूप में यही दोनों ही वहां थी, कमलनयनी ने डरते हुए गौरीशंकर से पूछा कि क्या मैं माता जी की भोजन बनाने में मदद कर सकती हूं? क्या मेरे छूने से आपकी रसोई अपवित्र तो नहीं हो जाएगी, क्योंकि आप ने मेरा मंदिर में जाना वर्जित कर रखा है।
गौरीशंकर बोले, हां क्यो नही, तुम मेरी अतिथि हो और अतिथि तो भगवान के समान होता है और रही मंदिर की बात तो,वो तो मेरा धर्म और कर्त्तव्य है, मेरी निष्ठा, ईमानदारी और सबका विश्वास है कि कुछ भी वहां ऐसा ना हो कि लोगों की श्रद्धा और आस्था डगमगाने लगे।
कमलनयनी और मयूरी ने रसोई सम्भाल ली, माता जी को कोई भी कार्य नहीं करने दिया, सबने रात्रि में ठीक से भोजन किया फिर सब सो गए, माता जी और सौभाग्यवती एक कक्ष में, कमलनयनी और मयूरी एक कक्ष में और अतिथि कक्ष में गौरीशंकर सो गया।
बहुत रात तक कमलनयनी को नींद नहीं आ रही थी,आधी रात को, सबके सो जाने के बाद कमलनयनी उठी और अतिथि कक्ष पहुंची, पूर्णिमा की रात्रि थी, चन्द्र का सफेद उज्जवल प्रकाश खिड़की से आकर गौरीशंकर के शरीर पर पड़ रहा था,वो गौरीशंकर के पास जाकर उसे ध्यानपूर्वक देखने लगी, काले घने बाल ,सुंदर मुखड़ा, गुलाबी होंठ और सुन्दर सुडौल बाजू, चौड़ा सीना ,वो अपने आप को रोक नहीं पाई और गौरीशंकर से प्रेमपूर्वक लिपट गई, तभी झटके से गौरीशंकर की आंख खुली,इस प्रकार कमलनयनी को लिपटे हुए देखकर उसने,उसको खुद से झटककर अलग किया और गाल में जोर का थप्पड़ दिया।
कमलनयनी तिलमिला गई और बोली मेरा दोष क्या है? मैं आपसे प्रेम करने लगी हूं।
गौरीशंकर बोला, ये प्रेम नहीं वासना है,जाओ अपने कक्ष में इसी समय!!

क्रमशः____

सरोज वर्मा____🐦