तृप्ति - भाग (७) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तृप्ति - भाग (७)

गौरीशंकर के निवास स्थान पर___
गौरीशंकर की मां वर्षो पहले, गौरीशंकर को छोड़कर जा चुकी है!!
आज सौभाग्यवती का स्वास्थ्य बहुत ही बुरा है, उसकी श्वास बार-बार ऊपर-नीचे हो रही है,उसकी नब्ज भी कमजोर पड़ रही है, वहीं बैठे गौरीशंकर को सौभाग्यवती ने धीरे से पुकारा,स्वामी!!
हां, सुभागी,कहो क्या बात है? गौरीशंकर ने पूछा।
आप मेरे समीप आकर बैठिए, सौभाग्यवती बोली।
गौरीशंकर, सौभाग्यवती के समीप आकर बैठ गया।
सौभाग्यवती बोली,स्वामी एक इच्छा है!
हां कहो, गौरीशंकर ने कहा!!
मुझे धरती पर लिटा दीजिए और आप खड़े हो जाइए,आपके चरणों की धूल अपने माथे पर लगाना चाहती हूं, मैं जब से लकवाग्रस्त हुई हूं ,मैंने आपके चरण नहीं छुए स्वामी, पिछले बीस वर्ष से निरंतर आप मेरी सेवा कर रहे हैं, आपने मेरे कारण अपने प्रेम को भी त्याग दिया,उन्नीस वर्ष हो गए कमलनयनी को आपके जीवन से गए हुए लेकिन आपने कभी भी उसकी खोज नहीं की,आप धन्य हैं स्वामी, आपने कभी भी अपने प्रेम के पीछे अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ा,मैं तो धन्य हो गई आपको पाकर, ईश्वर से कामना करती हूं कि हर जन्म में आप मुझे मिले, मेरे जाने के बाद कृपया कमलनयनी को ढूंढ कर उससे विवाह कर लीजिएगा,मेरी अंतिम इच्छा पूरी नहीं करेंगे स्वामी!!
तभी गौरीशंकर की आंखें छलक पड़ी और बोले नहीं सुभागी ऐसा मत कहो!!
सौभाग्यवती बोली, मेरे पास समय नहीं है स्वामी,आप कृपया शीघ्रता करें, मुझे वचन दे कि आप कमलनयनी को अपनायेगे।
सौभाग्यवती ने अपना हाथ, गौरीशंकर के हाथ में देकर वचन लिया।
तभी गौरीशंकर ने वहीं बैठे अपने पुत्र को संकेत किया कि अपनी माता को धरती में लिटाने में मेरी मदद करें और उन्होंने जैसे ही सौभाग्यवती को धरती पर लिटाया, गौरीशंकर के चरणों को अपने माथे से लगाते ही सौभाग्यवती का तन निर्जीव हो गया।
एक दिन, गांव के मुखिया ने जोगन से आकर कहा___
" भक्तिन"अगर आपको कोई आपत्ति ना हो तो किसी जाने-माने पुरोहित के पुत्र हैं,वो बड़े पुरोहित बनने से पहले इस मंदिर में आकर, मंदिर का कार्य-भार सम्भालकर पूजा-पाठ सीखना चाहते हैं अगर आपका आदेश हो तो क्या ?वो यहां आ सकते हैं क्योंकि आप यहां वर्षो से रहकर भजन-कीर्तन कर रही है, इससे आपकी भक्ति में तो कोई बांधा उत्पन्न नहीं होगी।
कैसी बातें कर रहे हैं ?आप मुखिया जी, आपने तो मुझे उस समय इस मंदिर में शरण देकर बहुत बड़ा उपकार किया था,जब मेरे पास रहने के लिए कोई साधन नहीं था, मैं गांव में श्याम और मयूरी के गृहस्थ जीवन में सम्मिलित नहीं होना चाहती थी,तब उनका नया-नया विवाह हुआ था,मुझे वैसे भी सांसारिक जीवन से अरूचि और नीरसता हो गई थी, ऐसे में मुझे आपने इस मंदिर में शरण दी थी,आप जिसे भी इस मंदिर में रखना चाहें ,रख सकते हैं, मेरी जैसी अंधी के लिए एक आसरा हो जाएगा, मुझे कोई आपत्ति नहीं है,आप उन्हें बुला लीजिए।
और उधर,कादम्बरी के घर पर____
मां ,आज मैं भोजन पकाऊंगी,कादम्बरी बोली।
लेकिन क्यो? मयूरी बोली।
आज मेरा मन बड़ी मां से मिलने का कर रहा है, अपने हाथों से भोजन पकाकर उन्हें खिलाऊंगी,कादम्बरी बोली।
तू अकेली कैसे जाएगी, रास्ते में जंगल पड़ता है, जंगली जानवरों का भय रहता है, मुझे फिर तेरी बड़ी मां फटकार लगाएंगी कि कादम्बरी को अकेले भेज दिया,मयूरी बोली।
मैंने बाबा से पूछ लिया है,कादम्बरी ने कहा।
ठहर अभी ,मै तेरे बाबा से पूछती हूं, मयूरी ने श्याम को आवाज दी___
अरे, सुनो तुमने कादम्बरी से मंदिर जाने के लिए अनुमति दे दी है क्या?
तभी श्याम बाहर से अंदर आकर बोला, हां!!
अब बेटी बड़ी हो गई है, अभी भी तुम उसकी हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करते हो,कल को उसका ब्याह होगा तो ससुराल में क्या करेंगी,लोग कहेंगे कि मां ने कुछ नहीं सिखाया, मयूरी बोली।
चिंता मत करो, हमारी बेटी सबकुछ सीख जाएगी और जाने दो उसे अपनी बड़ी मां से मिलने, हमारी बेटी बहुत बहादुर है किसी से नहीं डरती,श्याम बोला।
दोपहर का समय कड़कती धूप और आस-पास घनी झाड़ियां और घने-घने वृक्ष___
एक नवयुवक घोड़े पर सवार, किसी वृद्ध व्यक्ति से मंदिर जाने का रास्ता पूछ रहा है,उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा,बेटा सीधे इसी रास्ते पर चलते चले जाओ,एक पहाड़ी दिखेंगी,बस उसी पर मंदिर स्थित है, उसके बगल में एक कुटिया है , उसमें एक जोगन रहती है, उसके मधुर भजन तुम्हें दूर से ही सुनाई दे जाएंगे।
वो नवयुवक चलता चला जा रहा है लेकिन उसे अभी तक कहीं कोई पहाड़ी नहीं दिखीं,उसे बहुत जोर की भूख और प्यास लग रही है, तभी उसे रास्ते में एक नवयुवती जाती हुई दिखी जिसके हाथों में बहुत सी वस्तुएं थीं।
उस नवयुवक ने उस नवयुवती से पूछा,ऐ लड़की!क्या पहाड़ी वाले मंदिर का यही रास्ता है?
उस लड़की ने अपनी बड़ी बड़ी आंखों से उसकी तरफ क्रोधित होकर देखा और बोली।
किसी लड़की से ऐसे बात करते हैं!! क्या यही तुम्हारा शिष्टाचार हैं, नहीं बताऊंगी,पता भी होगा तब भी नहीं, वो लड़की कोई और नहीं कादम्बरी थी, जो अपनी बड़ी मां से मंदिर मिलने जा रही थी।
अच्छा! देवी जी,आप कृपया करके बताएंगी कि पहाड़ी वाला मंदिर किस ओर है,उस नवयुवक ने फिर से पूछा।
हां,अब ठीक है,अब तुम शिष्टता से बात कर रहे हो,हां तुम ठीक रास्ते पर चल रहे हो, मैं भी वहीं तक जा रही हूं, मेरे पीछे पीछे चले आओ!!कादम्बरी बोली।
अगर आपको कष्ट ना हो तो,आप अपने हाथों की वस्तुएं मुझे दे सकतीं हैं, मैं घोड़े पर रख लेता हूं,उस नवयुवक ने कहा।
ठीक है, तुम्हें अच्छा लग रहा है तो ये लो रख लो, अपने घोड़े पर,कादम्बरी बोलीं।
तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो तुम्हें भी घोड़े पर बिठा सकता हूं, नवयुवक हंसते हुए बोला।
ऐ,सुनो!! ज्यादा परोपकार करने की आवश्यकता नहीं है,लाओ दो मेरी वस्तुएं, मैं चली जाऊंगी,कादम्बरी बोली।
अरे! मैं तो परिहास कर रहा था,तुम तो बुरा मान गई, नवयुवक बोला।
वैसे तुम हो बहुत नकचढ़ी और सुंदर भी, नवयुवक बोला।
कादम्बरी शरमा कर इधर उधर देखने लगी।
अच्छा ये बताओ! तुम मंदिर इतनी दोपहर में, इतनी सामग्री क्यो लेकर जा रही हो?नवयुवक ने पूछा।
वहां मेरी बड़ी मां रहती है, वो वहां भजन गाती है,कादम्बरी बोली।
तो क्या तुम्हारी मां, तुम्हारे घर में नहीं रहती? नवयुवक ने पूछा।
वो मेरी,मां की सखी है,उनका सिवाय मेरी मां के कोई नहीं है और वो देख भी नहीं सकतीं, वो सांसारिक जीवन से ऊब चुकी थी इसलिए मंदिर में रहती हैं,कादम्बरी बोली।
और बातों ही बातों में मंदिर आ गया___
कादम्बरी बोली,वो रहा मंदिर__
और दोनों मंदिर में पहुंचे,कादम्बरी की बड़ी मां वहीं बैठी थी, गांव के मुखिया जी के साथ___
मुखिया जी,नये पंडित जी की प्रतिक्षा कर रहे थे__
उस नवयुवक ने अपना परिचय मुखिया जी को दिया,मेरा नाम देववृत है, मुझे इस मंदिर में नये पंडित जी के लिए नियुक्त किया गया है।
मुखिया जी बोले, आपकी ही प्रतिक्षा हो रही थी, मैं इस गांव का मुखिया और ये हमारे मंदिर की भक्तिन हैं,वर्षों से यहां रहतीं हैं और भजन गाती है।
देववृत ने कमल के चरण-स्पर्श किए__
अरे! ये आप क्या कर रहे हैं, पंडित जी,आप तो देवी-देवताओ के चरण-स्पर्श कीजिए, उनके चरण-स्पर्श करने से आपका भला होगा, मेरे चरण-स्पर्श करने से भला आपको क्या मिलेगा,कमल बोली।
आप मेरी मां समान है और हर पुत्र का कर्त्तव्य होता है, अपनी मां के चरण-स्पर्श करना,देववृत बोला।
बहुत भाग्यशाली हैं वो माता-पिता जिनकी तुम संतान हो,कमल बोली।
बड़ी मां मैं भी यहां हूं,कादम्बरी बोली।
तू कब आई? कादम्बरी बेटी!!कमल ने पूछा।
इन्हीं के साथ आई हूं,आपके लिए भोजन ला रही थीं तो ये रास्ते में मिल गये,कादम्बरी बोली।
अच्छा तो कुछ जलपान देववृत बेटे को भी कराओ,कमल बोली।
ठीक है बड़ी मां,कादम्बरी ने कहा।
और फिर सबने साथ मिलकर भोजन किया।

क्रमशः_____

सरोज वर्मा____🐦