तृप्ति - (अंतिम भाग) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

  • अंगद - एक योद्धा। - 9

    अब अंगद के जीवन में एक नई यात्रा की शुरुआत हुई। यह आरंभ था न...

श्रेणी
शेयर करे

तृप्ति - (अंतिम भाग)

अच्छा तो तुम्हारा नाम कादम्बरी हैं, देवव्रत बोला।
हां,क्यो? कादम्बरी बोली!!
ऐसे ही, बहुत ही सुंदर नाम है तुम्हारा,कादम्बरी का अर्थ होता है कोयल लेकिन तुम्हारे स्वर तो बिल्कुल भी मीठे नहीं है, तुम्हारे मुख से सदैव कड़वे बोल ही निकलते हैं,देववृत बोला।
हां..... हां....क्यो नही?आपके बोल तो मधु में डूबे हुए होते हैं,कादम्बरी बोली।
उन दोनों की सारी नोंक-झोंक कमल सुन रही थी और मन-ही-मन मुस्कुरा भी रही थी फिर कमल ने पूछा, पंडित जी आपकी उमर क्या होगी?
देवव्रत बोला, पहले तो आप मुझे पंडित जी ना कहकर "देव" कहे! क्योंकि मैं तो अब आपको मां ही पुकारूंगा,भक्तिन मां!
और मेरी उमर यही कोई इक्कीस साल होगी।
अरे, बेटा, इतनी कम उमर में इतना ज्ञान अर्जित कर लिया, जीते रहो!कमल बोली।
वैसे! तुम्हारा नाम सुना-सुना सा लगता है लेकिन याद नहीं आ रहा कि कहां?कमल बोली।
हां,सुना होगा आपने, होगा कोई मेरे नाम जैसा, देवव्रत बोला।
फिर कमल सोचने लगी, कितना शिष्ट बालक है और ज्ञानी भी है कादम्बरी का ब्याह इससे हो जाए अगर, लेकिन ये तो अच्छे परिवार से लगता है,क्या ये विवाह के लिए सहमत होगा?
और ऐसे ही दिन गुजर रहे थे___
देवव्रत की भी छोटी सी कुटिया, बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे और मंदिर के बगल में गांव के मुखिया जी ने बनवा दी,कभी देवव्रत स्वयं भोजन पकाकर भक्तिन मां के साथ कर लेता, कभी कमल ही कुछ पकाकर देवव्रत को खिला देती,कभी कादम्बरी दोनों के लिए भोजन लें आती लेकिन देवव्रत भोजन हमेशा अपनी भक्तिन मां के साथ करता।
इस तरह कादम्बरी और देवव्रत एक-दूसरे के समीप आते जा रहे थे, दोनों के हृदय में एक-दूसरे के लिए प्रेम अंकुरित हो रहा था लेकिन दोनों में से किसी ने भी अपने हृदय की बात एक-दूसरे को नहीं बताई थी।
लेकिन मयूरी को कुछ संदेह होने लगा, क्योंकि कादम्बरी अब आए दिन मंदिर जा रही थी, कुछ चुपचाप सी रहने लगी थी, पहले की तरह ना ज्यादा बोलती और ना ज्यादा हठ करती,जो कह दो वहीं मान लेती थी,ये बात मयूरी ने श्याम को बताई,श्याम बोला मंदिर जाकर पता कर लो कि क्या बात है,शायद कमल को कुछ पता हो।
मयूरी, कादम्बरी को घर में छोड़कर अकेले ही मंदिर गई,कमल से पूछा कि आजकल कादम्बरी कुछ बदलीं-बदली सी नजर आती है।
कमल ने कहा कि हमारी कादम्बरी को प्रेम हो गया है शायद, मंदिर के पंडित जी देवव्रत से, मैंने ये कई बार अनुभव किया है, मैं देख नहीं सकती लेकिन मन के भावों को बहुत अच्छी तरह अनुभव कर सकती हूं,हो ना हो यहीं बात है__
तभी,देवव्रत आ गया ___
उसने कहा,भक्तिन मां आज दोपहर का भोजन मैंने पकाया है, चलिए, भोजन कर लीजिए और आप!
कमल बोली, हां, ये कादम्बरी की मां है,
देवव्रत ने , शीघ्रता से मयूरी के चरण छुए और बोला आप भी चलिए!!
मयूरी बोली, कुछ भोजन मैं भी लाई थीं, अपनी सखी के लिए, चलिए साथ में भोजन करते हैं, सबने भोजन किया और कुछ वार्तालाप भी हुई।
बाद में, मयूरी ने कमल से कहा,बालक तो अच्छा है, बहुत ही संस्कारों वाला है, मुझे तो पसंद आया।
कमल बोली, मैंने शक्ल तो नहीं देखी लेकिन इतना तो कह सकती हूं कि बालक हृदय से बहुत अच्छा है, हमारी कादम्बरी उसके साथ खुश रहेगी।
मयूरी बोली,आज ही श्याम से इस विषय पर बात करती हूं,बस पन्द्रह दिन बाद नवरात्र शुरू है तो इसी बीच में शुभ कार्य हो जाए
कमल बोली,बिलंब मत करना मयूरी, कभी कभी बहुत बिलंब हो जाता है और हाथों से सब छूट जाता है।
और ये कहते-कहते कमल उदास हो गई।
घर जाकर, मयूरी ने श्याम से देवव्रत के बारे में कहा,श्याम ने कहा कि पहले कादम्बरी से पूछ लो, उसकी अगर इच्छा है तो हम सब की भी यही इच्छा है।
मयूरी ने कादम्बरी से पूछा तो उसका उत्तर "हां"में मिला फिर एक दिन मयूरी और श्याम देवव्रत की इच्छा जानने मंदिर गये,
देवव्रत ने कहा,जैसा आप उचित समझें,आप लोगों को लगता है कि आपकी पुत्री के लिए मैं ही उचित वर हूं तो ठीक है और मुझे भी कादम्बरी तो पहले से ही पसंद थी अगर आप लोगों को कोई आपत्ति ना हो तो,बस अपने पिता श्री की भी इस कार्य के लिए सहमति चाहूंगा!!
श्याम ने कहा,हां अवश्य उनकी सहमति के बिना तो कुछ भी नहीं हो सकता,आप नवरात्र में अपने पिता श्री को हमारे घर लाइए और वो हमारी बेटी को देखकर वे संतुष्ट हो जाए तभी ये विवाह होगा और आप कल ही हमारे घर जलपान पर आमंत्रित हैं, कृपया अपने चरणों से हमारे घर को पवित्र करें।
बस ऐसे ही मिलने-मिलाने में नवरात्र भी आ गई और इसी बीच कुछ दिनों के लिए देवव्रत अपने घर अपने पिता जी को इस बात की सूचना देने गया और लौटते समय पिता को भी साथ लाने वाला था ताकि वे कादम्बरी के माता-पिता से मिल लें।
कमल ने नवरात्र का व्रत रखा,बस एक ही समय जल और कुछ फल ग्रहण करती थी, ऐसे करने से उसका स्वास्थ्य खराब हो गया लेकिन उसनेे अपना नियम नहीं तोड़ा,जब बहुत ही अत्यधिक जीर्ण अवस्था हो गई स्वास्थ्य की तो उसने अपनी कुटिया में कादम्बरी को बुलवा लिया।
आज बहुत ही बुरी अवस्था है,कमल की लेकिन सुबह उसने थोड़ा जल और कुछ फल ग्रहण किए थे और कादम्बरी के कहने पर भी वह कुछ ग्रहण नहीं कर रही।
बड़ी मां आपकी अवस्था बहुत ही दयनीय हो रही है, कुछ तो खा लीजिए,कादम्बरी बोली।
नहीं,मेरा व्रत पूर्ण नहीं होगा, मेरी वर्षो की तपस्या भंग हो जाएगी और कमल ने कुछ नहीं खाया।
श्याम और मयूरी के घर पर जैसे ही देवव्रत और उसके पिता पहुंचे,द्वार के किवाड़ खोलते ही श्याम बोला__
"पुरोहित जी" आप इतने वर्षों बाद, देवव्रत आपका ही पुत्र हैं!!
हां,श्याम जी,आप मुझे कमल के बारे में बताए कि वो कहां है?
गौरीशंकर बोले।
आपसे दूर जाने के बाद उसकी बहुत ही बुरी अवस्था हो गई, उसके नेत्रों की ज्योति चली गई, वो तो जोगन बन गई आपके प्रेम में!!
श्याम बोला।
तो भक्तिन मां ही आपकी कमलनयनी है,जैसा कि मरते समय मां ने कहा था, देवव्रत बोला।
हां, पुत्र और उसकी अवस्था बहुत ही दयनीय है, बचने की कोई आशा नहीं है,हम बस कुछ समय पश्चात् उसी के पास जाने वाले थे,श्याम बोला।
और सब निकल पड़े, मंदिर की ओर___
वहां पहुंच कर, गौरीशंकर ने कुटिया के बाहर से ही कमल पुकारा!!
कमल बोली, पुरोहित जी आप आ गए, भगवान को अंतिम समय में दया आ ही गई मेरे ऊपर।
गौरीशंकर ने शीघ्र ही कमल का सिर अपने गोद में रखा,कमल ने कहा पुरोहित जी बस एक बार मुझे अपने हृदय से लगा लीजिए मेरी वर्षो से प्यासी आत्मा को शांत कर दीजिए और हृदय से लगाते ही कमलनयनी की हृदय गति रुक गई, उसने श्वास लेना बंद कर दिया, गौरीशंकर को पाकर वो तृप्त हो चुकी थीं।
गौरीशंकर फूट-फूटकर रो पड़ा और बोला____
इतने वर्षों बाद मिली थी, इतनी घनघोर तपस्या की तुमने मेरे लिए और आज जब हमारा संगम होने वाला था तो तुम मुझे छोड़कर चली गई, बहुत बड़ा विश्वासघात किया तुमने कमल, जितनी तुम बैचैन थी मेरे लिए उससे कहीं अधिक मैंने तुम्हें याद किया है, भगवान साक्षी है मैंने इतने वर्ष कैसे मृत जैसे बिताए हैं तुम चली गई तो ऐसा लगा कि ये शरीर भी मृत हो गया था तुम ही तो मेरी आत्मा थी, मैंने जब तुम्हारे होठों को पहली बार स्पर्श किया था, मुझे तुमसे तभी प्रेम हो गया था और आज मैं तुम्हारे मृत होंठों को फिर से स्पर्श करना चाहता हूं वो पहले वाला अनुभव फिर से पाना चाहता हूं क्या पता फिर मैं कभी भी तुम्हें ना छू पाऊं__
और रोते हुए गौरीशंकर ने कमलनयनी के होंठों को अपने होंठों से जैसे ही स्पर्श किया, कमलनयनी के शरीर में कम्पन हुआ और उसमें चेतना का संचार हुआ और वो जीवित हो उठी और गौरीशंकर ने "कमल "कहकर, कमलनयनी को अपने हृदय से लगा लिया।
आज वर्षो बाद एक-दूसरे के प्रेम को पाकर दोनों को तृप्ति मिल गई थी।

समाप्त____

सरोज वर्मा___🐦