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भदूकड़ा - 20

किसी प्रकार गांववालों को समझा-बुझा के बाहर किया गया. बड़के दादा को दिल का दौरा पड़ा था, रात के किसी समय . ये अटैक इतना ज़बर्दस्त था, कि दादाजी किसी से कुछ बोल ही न पाये और चले गये. घर-गांव वाले ले के गये थे दादाजी को, लौटे खाली हाथ....!
पूरा घर जैसे अनाथ हो गया......! पूरे गांव ने जैसे अपना पिता खो दिया...! चारों ओर सन्नाटा. घर में बच्चे तक शोर नहीं कर रहे थे. कुन्ती के दोनों बेटे अभी छोटे थे. शादी को अभी समय ही कितना हुआ था? कुल आठ साल!!!! झटका तो कुन्ती को भी लगा लेकिन इस बात का नहीं कि उसने पति खो दिया, बल्कि इस बात का कि हाय! अब वो विधवा कहलायेगी!!

कुन्ती मन ही मन बुदबुताती-

’सुमित्रा का दुख इतना साल रहा था कि महाशय जी चले गये? और मेरा दुख? मेरा अपमान? वो कुछ नहीं? जो इंसान अपनी पत्नी का अपमान सह लेता है उसकी तो मौत होती ही है. होनी ही चाहिये थी. बड़े कर्ता-धर्ता बने बैठे थे,अब चलाओ आदेश उधर स्वर्ग में, हुंह...!

’ ये सुमित्रा...! बड़ी हितैषी बनती है न, इसने जानबूझ के ऐसा आदमी ढूंढ़ा, जिसकी उमर मुझसे इतनी बड़ी थी. और क्या जाने, किसी मर्ज़ का पहले से रोगी रह्गा हो? सुमित्रा को मैने बचपन में परेशान किया तो उसने इतना बुरा बदला लिया? जीवन भर का बदला? छोड़ूंगी नहीं इस सुमित्रा की बच्ची को.’ मन ही मन कोसती, दांत पीसती कुन्ती आखिरी वाक्य ज़रा ज़ोर से बोल गयी. पास में ही चावल बीनती रमा चौंक गयी-

’का हुआ जीजी? किसे नहीं छोडेंगीं? बर्रा रईं का? काय हां ऐसी बातें सोचती रहतीं हर दम? जिज्जी, इत्तौ बड़ौ झटका लगो है अबै अपने घर हां, दादाजी चले गये, अब ऐसौ कछु न करियो जौन समारे न समरै. अब कोऊ नैया मामला सुलझाबे वारो. हल्के मौं बड़ी बात कै रय जिज्जी, माफ़ करियो, लेकिन तुमाई हरकतें अब सब जान गये, सो तुम कौनऊ के लाने कुंआं खोदहौ, तौ खुदई गिर जैहौ ऊ में. कोऊ न मानहै अब तुमाई कही. तुम घर की बड़ीं हौ, अब दादाजी की जांगा पै हौ, सो अपनौ बड़प्पन दिखाऔ तनक.’
कट के रह गयी कुंती! अब ये अनपढ़ रमा ज्ञान देगी हमें!
गांव में पन्द्रह दिन रहने के बाद तिवारी जी और सुमित्रा, बच्चों सहित वापस ग्वालियर लौट आये. उन्होंने कुन्ती से भी साथ चलने को कहा, लेकिन कुन्ती ने साफ़ मना कर दिया. फिर भी सुमित्रा जी ने सोच लिया था, कि अगले महीने गर्मियों की छुट्टियां लगते ही वे कुन्ती को लेकर अपने बड़े भैया के घर चली जायेंगीं, कुछ दिनों के लिये ताकि कुन्ती का मन बदल सके. बड़े भैया की शादी हुए एक साल होने को आया, लेकिन अभी तक सुमित्रा जी अपनी इस प्यारी भाभी के साथ चैन से रह नहीं पायी थीं. जब भैया की शादी हुई, तभी तो उनका बीटीसी, फिर नौकरी जैसे झमेले चल रहे थे. अब सब उठापटक खत्म हो गयी है, तो कुछ दिनों के लिये जायेंगीं सुमित्रा जी. बड़के दादाजी के बिना उस हवेली में कदम रखने का मन ही न होता था सुमित्रा जी का. लगता, जैसे अब सारे औपचारिक रिश्ते बचे हों. दादाजी के रहते जो परिवार एक सूत्र में बंधा था, अब बिखरता सा दिखाई दे रहा था. खैर......!
(क्रमशः)

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