मधुरिमा - भाग (२) - अंतिम भाग Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मधुरिमा - भाग (२) - अंतिम भाग

मझे आते आते शाम हो चली थी, रास्ते भर खेतों से लौटते हुए लोग मिल रहे थे , डूबते सूरज की लालिमा भी फीकी पड़ती जा रही थी,
चरवाहे भी जानवरों को चरा कर घर लौट रहे थे, जानवरों के गले में बंधी हुई घंटियों की आवाज एक के बाद एक सुनाई दे रही थी और कुछ पनिहारियां भी पानी भरकर आ रही थी कुछ पानी भरने जा रही थी,मैं घर वापस आ गया और घर आकर मैंने किसी से भी कुछ नहीं कहा।।
मां ने पूछा भी कि कहां था दिनभर?
मैंने कहा दोस्तों के साथ फिर मां ने भी कुछ नहीं पूछा!!
हल्का हल्का अंधेरा हो रहा था, मां चूल्हे पर खाना बना रही थी, फिर सबको दादी ने खाना खाने के लिए कहा,उस समय लालटेन या ढ़िबरी की ही रोशनी हुआ करती थी, दादी ने सबके लिए खाना परोसा, सबने खाना खाया।।
मैंने खाना खाते हुए दादी से पूछा कि दादी सच में उस खेतों वाले बड़े पहाड़ पर भूत रहते हैं, दादी बोली हां!! हमारे बुजुर्ग बताते थे कि उस पहाड़ पर भूत रहते हैं, फिर सब सो गए।।
दूसरे दिन मैं फिर उस पहाड़ पर चला गया, मुझे केशव भइया और मधुरिमा दीदी बहुत अच्छे लगे, मैं अब रोज रोज वहां जाता, उनसे बात करता और चला आता फिर दीवाली आई मैं तीन दिनों तक पहाड़ पर नहीं जा पाया और गांव में मेला भी लगा था मैंने मेले से बांसुरी खरीदी केशव भइया के लिए, उन्होंने बताया था कि उन्हें बांसुरी बजाना पसंद है लेकिन वो गांव जाकर नहीं खरीद सकते।।
मैं दीवाली के बाद उन लोगों से मिलने गया, केशव भइया के लिए बांसुरी और दोनों के लिए दीवाली का प्रसाद भी लेकर गया,केशव भइया ने बांसुरी तो ले ली लेकिन जैसे ही मैं दोनों को प्रसाद देने लगा तो दोनों डरकर बोले ये प्रसाद हम नहीं ले सकते,इसे उस टीले पर रख दो पशु पक्षी का जाएंगे, मैं ने सोचा नहीं खाना होगा प्रसाद इसलिए ऐसा कह रहे हैं, मैंने भी प्रसाद टीले पर जा कर रख दिया।।
केशव भइया ने बहुत अच्छी बांसुरी बजाई, सुनकर बहुत अच्छा लगा।
मुझे अब आदत सी पड़ गई थी,उन दोनों से ना मिलूं तो अच्छा नहीं!! लगता था और मधुरिमा दीदी भी मेरे आने का हमेशा इंतजार करतीं थीं एक दिन ना पहुंचूं तो परेशान हो जाती थी,पूछती थी।।
क्यो राजू,कल क्यो नही आए?तुम आते हो तो अच्छा लगता है ऐसा लगता है कि अभी भी कोई अपना हैं।
फिर मेरे स्कूल की छुट्टी भी खत्म होने वाली थी और पापा के आफिस की भी,अब हमें वापस लौटना था, मुझे बहुत बुरा लग रहा था पापा ने कहा कि हम दो दिन के बाद वापस जा रहे हैं, मैंने सोचा,अब मैं मधुरिमा दीदी से नहीं मिल पाऊंगा।।
मैंने पापा से पूछा ___
लेकिन पापा मैं कल तो अपने दोस्तों के साथ खेतों में घूमने जा सकता हूं!!
पापा बोले नहीं, मैंने कहा कि हम तो दो दिन के बाद जा रहे हैं तो कल तो मैं घूमने जा सकता हूं ना!!
पापा बोले,कल हमें किसी के यहां जाना है वो भी सपरिवार।।
तभी दादी बोली, बेटा कहां जाना है किसके यहां?
पापा बोले,वो पड़ोस वाले गांव का मेरे बचपन का सहपाठी था ना पूरन सिंह, उसके यहां दो बेटियों के बाद बेटा हुआ है,वो भी गांव में नहीं रहता बाहर कहीं नौकरी करता है लेकिन इस समय गांव में है, कल उसके बेटे का नामकरण और साथ में भोज भी है तो उसके यहां जाना है।।
दादी बोली, अच्छा वहीं पूरन!!तब तो बहुत अच्छी बात है,हम सब चलेंगे ,मैं अभी सुनार के यहां से बच्चे के लिए कुछ ले आती हूं,बाजार भी तो जाना होगा,बच्चे और बहु के लिए कुछ कपड़े लेने होंगे।।
पापा बोले, हां मां अभी चली जाओ।।
दादी सामान लेने चली गई और मैं सोच में डूब गया कि कल मैं नहीं जा पाऊंगा दीदी के पास।।
अब दूसरे दिन हम सब पूरन सिंह अंकल के यहां पहुंचे, उनके बड़े भाई भान सिंह मुझे कुछ अजीब और डरावने लगे,बचपन का कोमल मन जरा जरा सी डरावनी चीजें देखकर भयभीत हो जाता है।।
लेकिन उनकी पत्नी अच्छी थी मुझे बड़े से प्यार से गोदी में बिठाकर बातें की, फिर मैं पूरन सिंह अंकल की बेटियों के साथ खेलने लगा।।
थोड़ी देर बाद सब पंगत में बैठे,सबने खाना खा लिया फिर महिलाओं की बारी आई, लेकिन तभी भान सिंह जी की पत्नी दौड़ते हुए आई और बोली डॉक्टर को बुलाइए, जीजी की बहुत ज्यादा तबियत खराब हो गई।।
मेरी मां और दादी खाने से उठकर अंदर पहुंचे और बाक़ी लोगों से कहा गया कि आप लोग खाना खाएं।।
ये थी पूरन सिंह अंकल और मान सिंह की विधवा बहन जो पूरी तरह से अपने भाइयों पर आश्रित थीं, डाक्टर को बुलाया गया, डाक्टर ने कहा घबराने की बात नहीं बस थोड़ी कमजोरी है इनका ख्याल रखिए।
डाक्टर के जाने के बाद हम सब अंदर पहुंचे, उन्हें देखने लेकिन ये क्या? मैंने उनके कमरे में जाकर देखा कि एक दीवार पर मधुरिमा दीदी की फोटो लगी थी।।
मैंने सबसे कहा कि ये तो मधुरिमा दीदी है!!
सबने पूछा लेकिन तुम कैसे जानते हो?
मैंने कहा कि ये और केशव भइया तो हमारे गांव के ऊंचे वाले पहाड़ पर झोपड़ी में रहते हैं।।
तभी भान सिंह की बहन बोल पड़ी____
कहां है मेरी बेटी? कोई कुछ नहीं बताता ना जाने कहां चली गई,वो उस चरवाहे से प्यार करती थी,एक रोज वो उसके साथ ना जाने कहां चली गई फिर तब से लौट कर नहीं , अपनी मां के बारे में भी नहीं सोचा कि मेरा क्या होगा,वो मेरी इकलौती संतान थी।।
तब मैंने कहा, बुआ जी आप परेशान ना हों , मुझे पता है वो दोनों कहां रहते हैं, मैं रोज उनसे मिलता हूं,पहाड़ पर, मुझे मधुरिमा दीदी खाना भी खिलाती है।
तभी भान सिंह बोले, ऐसा कैसे हो सकता है कि वो लोग ज़िंदा है, मैंने अपने हाथों से ही उनके खाने और पानी में जहर मिलाया था।।
तभी पूरन सिंह अंकल बोले,ये क्या कह रहे हैं ?भइया!!
भान सिंह बोले, हां, मुझे ऐसा करना पड़ा,उस लड़की ने सारे समाज के सामने हमारी नाक कटवा दी तभी मुझे ऐसा करना पड़ा, एक दिन मुझे पता चला कि वो दोनों यहां से भागकर पड़ोस वाले गांव के पहाड़ पर छुपकर रह रहे हैं,मैं ताक में था कि दोनो झोपड़ी से बाहर जाएं ,केशव लकड़ियां लेने चला गया और मधुरिमा दूर पानी भरने चली गई,मैं झोपड़ी में गया देखा तो एक छोटा मटका छाछ से भरा है और एक बड़ा सा मटका पानी से, मैं दोनों में विष घोलकर भाग गया।।
फिर मैं दोबारा वहां नहीं गया, सोचा कि मर ही गए होंगे दोनों लेकिन ये कह रहा कि जिंदा है दोनों।।
तभी मैंने कहा कि लेकिन वो लोग अभी तक जिंदा है, मैं उन लोगों से मिला हूं आपको भरोसा नहीं होता तो चलिए,मैं वहां पर ले चलता हूं।।
मैं ,मेरे पापा,पूरन सिंह अंकल,भान सिंह और भी दो चार लोग उस पहाड़ पर गए,हम चढ़ते हुए पहुंच गए, वहां झोपड़ी में जाकर देखा कि दो कंकाल एक दूसरे के बगल में पड़े हैं और मेरी दी हुई बांसुरी केशव भइया की मुट्ठी में है।।
तभी पूरन सिंह अंकल बोले,कल इन लोगों का अंतिम संस्कार करना होगा लगता है इन लोगों की आत्मा को मुक्ति नहीं मिली अभी तो शाम हो चुकी है, भइया ये आपने बिल्कुल भी सही नहीं किया,पूरन सिंह अंकल ने भानसिंह से कहा!! और हम उतर चले पहाड़ से तभी भान सिंह का पैर फिसला और वो पहाड़ से ऐसे गिरे की फिर कभी उठ ना सके,केशव और मधुरिमा ने अपना बदला ले लिया था शायद,उस दिन के बाद मैं वहां कभी नहीं गया।।
वर्षो बाद मैं फिर इस पहाड़ के पास आया हूं और पहाड़ के ऊपर जाने का मन कर रहा है,चलो हो ही आता हूं और मैं चला पहाड़ पर फिर आज मुझे प्यास लगी है,ऊपर पहुंच कर मेरे कंधे पर फिर किसी ने हाथ रखा पहले की तरह और मुस्कुराते हुए पूछा,प्यास लगी है!!

समाप्त____
सरोज वर्मा___