जिवनसाथी ओर भ्रम Uhugvvuv Uguh8uhu द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जिवनसाथी ओर भ्रम

'अधुरा ज्ञान सदैव नाश को आमंत्रीत करता है।।'

लोगो के मन मे जीवन साथी को लेकर एक अजीब सा भ्रम है,जो सदीयो से सब मान ते आ रहे है,

और यह शायद आधे अधुरे ज्ञान की वजह से है

की 'जो जीवन साथी इश्वर ने हमारे लीये चुना होता है वे बीना कोइ संघर्ष कीये बीन कुछ कीये अपने आप हमारे साथ जुडता है और उनसे वीवाह होता है।


या फीर अपने भाग्य मे जो होता है वह बीना संघर्ष और परीश्रम कीये अपने जीवन मे आ ही जाता है।'


आपने शायद यह तथ्य सुना ही होगा,ओर शायद कीसी को कहा भी होगा।

अगर यह तथ्य पुरी तरह सत्य होता तो आप हमे एक बात बताइए

की यदी एसा ही है तो पार्वती ने शिव से वीवाह करने केलीए तपस्या और संघर्ष क्युं कीये?

रुकमणी का वीवाह जब शीशुपाल के साथ तय हुआ तो अपने वीवाह के एक दीन पहेले क्रीष्न से वीवाह करने केलीए , उन्हे अपने भवन से लेजाने का प्रेम पत्र अपने रक्त से क्युं लीखा?

चलीए यह तो हुइ पुराणो की बात
में आपके सामने एक सरल सा उदाहरण रखता हुं ठीक है॰॰

की आप कोइ व्यक्ती जो सोचते है,आप चाहते है,आपकी इच्छा है की आपको डोक्टर,एंजीनीअर,गायक या लेखक बन ना है
उदाहरण के तोर पर इनमे से कोइ एक आपकी इच्छा है

तो आप अपनी उस इच्छ पुर्ती के हेतु पढाइ करेंगे,परीश्रम करेंगे,संघर्ष करेंगे,अपना पुरा जोर लगाएगे ओर अपनी इच्छा पुरी करने के प्रयास करेंगे,

करेंगे ना,

मैया जी॰॰
ओ मैया॰॰

संघर्ष क्युं करेंगे?
परीश्रम क्युं करेंगे आप?

क्युंकी आपको ग्यात है की में मेरी इस इच्छा की पुर्ती हेतु परीश्रम करुंगा या करुंगी तो ही मे सफल हो पाउगा या फीर हो पाउगी
अन्यथा कुछ नही

तो आप उस क्षण यह तथ्य क्युं नही मानते
की आपके भाग्य मे होगा या फीर इश्वर ने चाहा होगा तो मुझे मील जाएगा
या फीर मे ये ये ये बन जाउंगी या बन जाउंगा

मुझे कीसी भी प्रकारके संघर्ष और परीश्रम करने की कोइ झरुरत नही है,

यदी मेरे भाग्य में होगा तो मेरी सफलता नीश्चीत है
ओर यदी मेरे भाग्य में नही होगा तो मेरी नीस्फलता नीश्चीत है
तो फीर बेकार मे में अपने आपको कश्ट क्युं दुं।

आप चाहे तो सोच सकते है
मगर क्या आप इस परीस्थीती मे एसा सोचते है?

चलो मान लो आपने सोच भी लीया तो क्या आप उस समय अपनी यह सोच को इस तथ्य को अपनाएंगे?

नही ना॰॰

इसी तरहा जीवन साथी और प्रेम प्रसंग मे भी एसा ही होता है

आपकी जो चाह है ,आपकी जो इच्छा है,आपका जो प्रेम है,आपकी जो कामना है

उनकी पुर्ती ओर संतोस हेतु आपको परीश्रम,संघर्ष,प्रयत्न ओर प्रयास तो करने ही पडते है

क्युंकी यह सब वे कर्म के नाम है जो आप अपनी इच्छा पुर्ती हेतु कर रहे है

श्रीमद भागवत गीता महापुराण मे धर्म के ग्याता भगवान श्री क्रीष्न द्वारा यह कहा गया है की

''तेरे जिवन का है कर्मो से नाता।
तु ही है॰॰तेरा भाग्य वीधाता।।''

जेसे की छोटे से पर्वत ओर पहाड पर चढने केलीए मनुष्य को झ्यादा परीश्रम और तैयारी की आवश्यकता नही होती
ओर हीमालय जेसे पर्वत पर चढने केलीए उसे झ्यादा परीश्रम ओर तैयारीओ की आवश्यकता होती है,

उसी प्रकार

आपके परीश्रम,संघर्ष,प्रयत्न ओर प्रयास उतने ही झ्यादा होंगे जीतनी बडी आपकी इच्छा और कामना होगी

ओर यदी आप प्रयत्न ओर प्रयास करना बीच मे ही छोड दे बीच मे ही अपनी इच्छा को त्याग दे
तो क्या आप पर्वत की टोच पर होगे या फीर उसके तट पर
तब आप केसी ओर कोनसी स्थीती पर होंगे?

क्या उस समय इश्वर को दोस देना योग्य है?

अपने भाग्य को दोस देना योग्य है?

क्या पर्वत को दोश देना योग्य है?

क्या यह सोचना योग्य है की वह पर्वत की टोच आपके लीये हे ही नही,
आपके भाग्य मे वह हे ही नही

उस समय आपके पास कोनसे रास्ते होगे?
आप कोनसा रास्ता चुनेंगे?

स्वयं वीचार कीजीएगा॰॰

नमः शिवाय