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मतलबी प्यार - 2

प्यार क्या है?
यह सवाल हर उस शख्स के भीतर है जो प्यार पर हकीकत में विश्वास रखते हैं, चांद बड़ा दिखने में विश्वास रखते हैं और साथ ही साथ पहली नजर के प्यार में विश्वास रखते हैं। लेकिन जब प्यार की ठोकर लगती है तो यही सवाल को रेपीटेड मोड पर खुद से ही पूछे जाते हैं। 'आखिर!, प्यार क्या है?'
प्यार कहीं नादानी है तो कहीं शरारतें हैं, कहीं कसमें तो कहीं वादे भी है। प्यार एक खेल है आंखों से अनकही बातों का। इंसानों की आंखे बेहद अजीब है, यह बहुत कुछ कह देती है बिना कुछ लफ्ज़ कहे। कभी किसी से आंख मिलाते हुए तो कभी किसी से आंख छुपाते हुए बड़ी नादानी से पर्दा कर देती है।
मुझसे जब कोई यह पूछे तो सिर्फ यह कह देता हूं 'प्यार दोस्ती है'। शाहरुख खान जी ने कहा था।
सच कहूं तो मैं कभी प्यार को नहीं समझ पाया, या प्यार मुझे नहीं। लेकिन रणधीर जब प्यार पर मंद सी मुस्कान दे गया तब अपने आप के कुछ पुराने अध्याय याद आए। यह जीवन के वह अध्याय थे जिसपर अब मैं मिट्टी डाल चुका था।
अब दिमाग में एक फ़िल्म की तरह कहानी चलने लगी जिसमें एक लड़का जिसका शरीर उसके शर्ट के बटनों के बीच से झांक रहा था। अपने से भरी बैग लिए स्कूल के मुख्य दरवाजे से स्कूल के अंदर आ रहा था। उसके मूहँ पर शर्म थी और आंखे जमीन को ताक रहे थे। आस पास हस्सी खुशी भरी आवाजों की बरसात हो रही थी। एक बूंद भी न पड़ जाए इसी डर से कदम थोड़े तेज चले गए, नैनों ने अभी भी धरती दर्शन का प्रण किया हुआ था की अचानक से लहराती हुई हवा उस शरीर से टकराई तो कुछ समय के लिए समय को भी रुकना पड़ा।
"अरे सोभित! ध्यान से भाई"- रणधीर, जो कि पहले से क्लास में मौजूद था, मुझे यह कहते ही सीधा रितिका को संभालने के लिए आगे बढ़ा।
रितिका क्लास की वह लड़की थी जिसके पीछे सिर्फ हमारे क्लास के ही नहीं बल्कि पूरे स्कूल इसके साथ साथ पड़ोसी स्कूलों को भी जोड़ लीजिए। सभी स्कूलों के लड़के फिदा थे। सच्चाई यह थी कि रितिका सुंदरता का प्रतीक तो थी ही लेकिन इसके साथ प्रिंसिपल की बेटी भी थी।
इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि प्रिंसिपल या टीचर के बच्चों से दोस्ती हमेशा फायदेमंद साबित हुई है।
रितिका क्लास में ताजगी और फुल अटेंडेंस लाने का काम बखूबी निभाया करती थी। खुले लहराते बाल, नशीली आंखे उसकी सुंदरता के प्रतीक रहे। कुछ बोलती तो सुनने वाले हजार होते न बोलती तो खामोशी में हम भी अपना नाम लिखवाकर आते।
"रितिका, तुम ठीक होना?" मैंने घबराहट भरी आवाज में कहा।
अपने आप को मन मे जुल्मी घोषित कर चुका था।
प्यार में पड़ा आशिक हर वक्त खुद को ही दोषी समझते हैं।
लेकिन मैं तो प्यार में था ही नहीं, तो फिर क्यों खुद पर इल्जाम की बौछार कर रहा था। अपने भारी शरीर की कला का प्रदर्शन किसी और मानव शरीर पर किया होता तो मैं एक पल संभल भी जाता लेकिन इस वक्त तो रितिका के जमीन पर गिरे होने के साथ मेरी धड़कन भी नीचे ही गिरी हुई थी।
शेष भाग जल्द.......

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