गिरवी का टेबल फैन Manoj kumar shukla द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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गिरवी का टेबल फैन

" गिरवी का टेबल फैन "

* मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "

मई माह में नवा तपा अपने पूरे उफान पर था। भरी दोपहरी में सड़कें पूरी बियावान सी सुनसान नजर आती थी। लोग अपने घरों और आफिसों में दुबक कर रह गये थे। रमेश एक आर्डिनेन्स फैक्ट्री में काम करते थे। सुबह पाँच बजे से जब उठते तब कहीं सात बजे काम पर पहुँच पाते थे फिर रात आठ बजे उसकी घर वापसी होती।

उनके घर में पाँच लोग थे। दो बेटे, एक बेटी, पत्नी और वह स्वयं। आज के महँगाई के युग में अपने परिवार का लालन पालन करना कितना कठिन होता है, वह रमेश के अलावा कौन समझ सकता था। वे बच्चों की शिक्षा दीक्षा से लेकर उनकी हर माँगों को पूरा करने की भरकस कोशिश करते। बच्चे पढ़ लिखकर बड़े हुए तो पहले बेटी की शादी कर डाली। घर से अपनी बेटी को बिदा किया तो दूसरे घर के घर से बेटे की शादी कर बहू ले आये। अपने कम वेतन में भी उन्होंने इतने कार्य आराम से कर डाले थे। वह अपने जीवन में अपनी चादर के अनुरूप ही पैर पसारते थे। अपने कम संसाधनों में अपनी आवश्यकताओं को सीमित करने में वे निपुण हो गये थे।

बेटों के बड़े होने और कमाने पर घर गृहस्थी में उनका भी सहयोग मिलने लगा था। पिता के संस्कार बेटों में भी आ गए थे। बचत का दायरा बढ़ गया था। दिल से दयालु रमेश दूसरों की मदद करने में कभी पीछे न हटते थे। वह अपनी बचत से कभी कभी दूसरों की मदद करते किन्तु सभी की नियत एक जैसी नहीं होती। जब मदद लेकर लोग रुपये वापस करना भूलने लगे तो अपनी इस आदत पर उसे विराम लगाना पड़ा। किन्तु लोगों की मजबूरी के आगे आखिर उसे कभी कभी झुकना भी पड़ता। लोग सुरक्षा बतौर समान गिरवी रखकर या फिर ब्याज का लालच देकर उससे पैसा उधार माँगने लगे। पहले तो उसने मना किया किन्तु उसकी पत्नी सुनंदा ने उसको अपनी सलाह देते हुए कहा कि -“इसमें हर्ज ही क्या है, कुछ दो पैसे ही बचेंगे। जो भविष्य के काम में आएँगे।”

रमेश को भी सुनंदा की बातों में कुछ दम लगा। और इस काम के लिए अपनी पत्नी को ही उसने जुम्मेदारी सौंप दी । यह कहते हुए कि “यह साहूकारी का काम मेरे से नहीं होगा अगर तुम कर सकती हो तो करो मुझे कोई एतराज नहीं। “

एक छोटे से भूभाग में रमेश का तीन मंजिला मकान था। मकान के ऊपरी मंजिले में उसका बेडरूम था। जिसमें एक सीलिंग फैन लगा था, जो काफी दिनों से थकाहारा सा चल रहा था। और नीचे बैठक रूम में लगा पंखा भी अपने ऊपर वाले दोस्त का साथ देता दिखाई पड़ता था। पर आज इस नव तपे की गर्मी ने तो पूरे शहर में कहर बरपा रखा था। मकानों की दीवालें तपकर इंसानों को कुकर की भांति उबाल रहीं थीं।

रात्रि आठ बजे फैक्ट्री से थके हारे रमेश ने रोज की भांति स्नान किया। फिर खाना खा कर गर्मी से निजात पाने के लिए बाहर खुली सड़क में आकर चहल कदमी करता रहा। हवा तो जैसे कहीं थम सी गई थी, बहने का नाम ही नहीं ले रही थी। बार बार हाथ में बंधी घड़ी पर नजर डाल कर रमेश गर्मी से परेशान हो उठा था।

रात के ग्यारह बज चुके थे। कल सुबह काम पर जाने की चिन्ता खाए जा रही थी। मन मार कर वह ऊपर, अपने कमरे में सोने के लिए चला गया। पर बिस्तर पर जाकर उसे नींद कहाँ से आती। बारह बजे तक वह कभी दीवालों की तपन को कोसता, तो कभी उस बीमार सीलिंग फैन को। सचमुच आज तो वह इस गर्मी से बेहाल हो चुका था।

रमेश से जब सहा नहीं गया तो उसने अपनी पत्नी सुनंदा से कहा -”समझ में नहीं आता आज कैसे नींद आएगी ? कल सुबह उठकर नौकरी पर कैसे जा सकेंगे। जरा इस पंखे को तो देखो, बेशर्म आज घूमने से भी इंकार कर रहा है। जैसे इसको भी गर्मी लग रही हो। मैं तो बिस्तर लेकर नीचे ही जाता हूँ, कम से कम इन तपती दीवालों से कुछ तो राहत मिलेगी। नीचे का बैठकरूम कुछ तो ठंडा होगा। “
रमेश अपना बिस्तर लेकर नीचे बैठक रूम में आया और जमीन में ही अपने बिस्तर बिछा कर लेट गया।

सुनंदा को अपने पति की बैचेनी देखी नहीं जा रही थी। वह स्टोर में गई और वहाँ से एक टेबिल फैन निकाल कर ले आई। रमेश हैरानी से उसकी ओर देखता रह गया। उसने आश्चर्य चकित हो कहा -”अपने घर में टेबिल फैन ? उसे खबर नहीं ...। यह कौन लाया ?... यह कहाँ से आया सुनंदा ?... मैं तो इसे कभी नहीं लाया ?...

सुनंदा ने बतलाया कि -”पिछले सप्ताह सामने पटैल के मकान में रहने वाले, एक किराएदार की पत्नी कला बाई इसे गिरवी में रख गई थी। उसको अपने बीमार बच्चे के इलाज के लिए एक हजार रूपयों की आवश्यकता थी। उसका घर वाला रामदीन ट्रक ड्रायवर है। वह कहीं माल लेकर दूसरे शहर गया है। मैंने पहले तो मना कर दिया, एक तो वह अभी अभी किराएदार के रूप में आया था। फिर जान न पहिचान, क्या पता कहीं यह बहाना न हो। किन्तु वह सामने वाली मालती को लेकर आई थी। वह बोली -”बहिन जी यह टेबिल फैन गिरवी में रख लीजिए, पर पैसे मुझे जरूर दे दीजिए। मुझे डाक्टर के यहाँ जाना है। मेरा सात साल का छोटा बेटा बहुत बीमार है। इलाज के लिए रूपए चाहिए, पता नही कितने रूपए लग जाएँ। उसका शरीर बहुत तप रहा है “
मालती ने भी मुझसे कहा कि “मैं वापसी की जवाबदारी लेती हँू ।” मुझे लगा वह मुसीबत में है, सो मैंने यह टेबिल फैन गिरवी रखकर उसे पैसे दे दिये। कह कर सुनंदा ने टेबिल फैन को फुल स्पीड में चालू कर दिया।

रमेश ने एक बार अपनी पत्नी सुनंदा को देखा और फिर उस टेबिल फैन को जो तेजी से घूम-घूम कर अपनी हवा दे रहा था। उसकी यह तत्परता ने उसकी गर्मी तो भगा दी, किन्तु उसकी रात की नींद को बुरी तरह से उड़ा दिया।
रात भर उसे कला बाई का बीमार बच्चा आँखों के सामने घूमता नजर आ रहा था। उसका बुखार से तपता शरीर उस पर अंगारे बरसा रहा था। जब जब वह अपनी आँख बंद करता, वह उसके नजरों के सामने खड़ा होकर अपने दोनों हाथ फैलाकर अपना टेबल फैन मंगाता नजर आता। उसके सामने उसकी बेबस माँ का चेहरा घूम जाता, वह रात भर करवटें बदलता रहा।

बड़ी बेसब्री से सुबह की प्रतीक्षा करता रहा कि कब वह इस गिरवी के टेबल फैन को उसे लौटा दे। .....ताकि कल रात वह गहरी नींद में सो सके और इस तरह रात भर उसे न जागना पड़े.....

मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”