में समय हूँ ! - 3 Keval द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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में समय हूँ ! - 3

(अबतक : अपरिचित श्रीमान के भड़काऊ शब्दो से महाराज क्रोधित हो कर उसे बंदी बनाने का आदेश देते है। फिरसे सभा आगे बढ़ती है राज दरबारी अपनी अपनी राय देते है । कोई उसे मायावी राक्षस तो कोई उसे मंदबुद्धि , कोई दुश्मनी राजाओका महाराज अभयवंशी के खिलाफ षड्यंत्र का अनुमान लगता है। मगर राजगुरु को लगता है यह कोई साधारण मनुष्य से परे है। मगर सच किसीको पता नही होता।

( मानसिक रूप से थके महाराज मंदिर के सामने भगवान से उपाय मांगते है तभी सैनिक आकर महाराज को बताता है की वह आदमी बस यही वाक्य दोहरा रहा है , "अगर तुम्हें बता दिया तो तुम्हारे महाराज मारे जाएंगे" )

~अब आगे :

महाराज अभी भी सोच रहे है कि क्या उसका निर्णय उचित होगा ! वह ओर नही सोचना चाहते थे । अब तो बस उसे अपने सवालो का उत्तर चाहिए था । और निकल पड़े कैदखाने की तरफ ।

महाराज आगे चल रहे है और पीछे हथियारधारी सैनिक महाराज की सुरक्षा में जा रहे है। महाराज कैदखाने में जाकर देखते है तो वह श्रीमान दीवार में कुछ चित्र बना रहे थे मानो किसी प्रदेश का भाग ओर कुछ गुप्त रास्तो का वर्णन । महाराज यह देखकर और भी चोक गए ।

कैद का दरवाजा खुलने की आवाज़ सुनकर वह शांत मुद्रा में थोड़ा मुस्कुराया ओर कहा "आपकी कारागृह में आपका स्वागत है महाराज !"

महाराज को देखर वह चौका नही , मगर महाराज चोक गए थे ,उसका आत्मविश्वास व भविष्य का सटीक वर्णन याद कर के। उसने महाराज की तरफ देखा तक नही ! मानो उसे पूरा विश्वास था की महाराज आएंगे ।

महाराज अंदर आकर उस व्यक्ति से बनाए गए चित्र को देखते रहे ।

उस व्यक्ति ने महाराज की ओर गर्दन घुमा कर देखा । ओर कहा, "यह नक्शा है दुश्मनी राज महापुरम का । आज मध्यरात्रि को महापुरम की एक बड़ी सेना राजा धनुष के साथ आक्रमण करेगी। हमें तैयार रहना होगा । (चित्र समजाते हुए) यह गुप्त सुरंगे जो आपके महल से हो कर अलग अलग दिशाओ में बंटति है। यह 4 में से 3 सुरंगों के बारे में किसी ने खबर दे दी है । वहा पर पहलेसे बड़ी संख्या में सैनिक मौजूद है।

उसकी रणनीति रहेगी चारो ओर से महल को घेर लेना । हथियार धारी सैनिको में सबका ध्यान भटकाकर तोप एवं तीर से हमला करना । उसका मकसद तुम्हे मारकर तुम्हारा राजपाट हथियाना होगा जो कि एक राजा का होता है।


यह युद्ध इतनी तीव्रता से होगा कि तुम मध्यरात्रि तक सोचोगे फिर भी उसका अनुमान नही लगा पाओगे ।

ओर एक खास बात । तुम्हारी सेना में कई विद्रोही सैनिक है जिसे महल के बारे में सम्पूर्ण जानकारी रहती है। उसमेंसे एक सैनिक मौजूद था जब हमसे पूछताछ हो रही थी। अगर मेने यह सभी बातें बता दी होती तो यह जानकारी दुश्मनी राजा धनुष को पता चल जाती । सावचेत रहना राजन , आज मध्यान भोजन में 100 सर्पो से विशेष विष पिरसा जाएगा ।


( महाराज उसे आश्चर्य से देखते रहते है । उसकी आँखों मे जाँख कर देखनेपे उसमे सच्चाई छलक रही थी एमजीआर महाराज को समझ नही आ रहा था यह सब क्या वाकई सच है या महज एक षड्यंत्र का भाग । अभी भी उसके मन मे "यह कौन है , "क्यों है" , "यह सभी बातें मुजे क्यो बता रहा है "जैसे सवाल थे । मगर जो अभी बताया उसके सामने वह सवाल बेमतलब के लगने लगे थे ।)

महाराज : "क्या यह सब सच है !?"

अपरिचित : " अगर विश्वास नही हो रहा तो आज मध्यरात्रि पे विश्वास हो जाएगा ।"

(महाराज को उसके मुख पर वही आत्मविश्वास दिखा जो ज़ुम्मर गिरने का आगाह करते वक्त दिखा था )

(महाराज दुखी दिख रहे थे इसलिए नही की उसके राज्य पर आक्रमण होगा या उसके गुप्त रास्तो का पता दुश्मनो को चल गया । पर इसलिए क्योंकि उसकी सेना के कुछ सैनिको ने विद्रोह किया जो कि एक राज्य की आयु के लिए हानिकारक है। )


अपरिचित : " तुम्हारा दुखी होना जायज़ है राजन ! चिंता मत करो आज मध्यहान भोजन के बाद विद्रोहियों का फैंसला हो जाएगा ।"

महाराज : "अगर यह सभी बातें सही साबित हुई तो तुम्हे जीवनदान के साथ पुरुष्कार भी दिया जाएगा और अगर यह बातें गलत साबित हुई तो तुम्हारी मृत्यु स्वयं भगवान भी नही टाल सकते। "

( इतना कहकर महाराज सैनिको को आदेश देते है कि उस अपरिचित को मुक्त किया जाए । )

(अपरिचित व्यक्ति महाराज को बिनती करता है कि सेनापति को बुलाया जाए ।)

(पहले तो वो महाराज को कैदखाने में ओर उस उस व्यक्ति के साथ महाराज को चलते देख आश्चर्य में पड़ जाता है )


"महाराज की जयहो , क्या आज्ञा है महाराज ?"


अपरिचित : " सेना तैयार करो , सावचेत हो जाओ , सतर्कता सेदुष्मनो पे कड़ी नजर रखो । आज की रात तुम्हारे इम्तेहान की घड़ी है। दुश्मनो को साबित शिखादो की योद्धा किसे कहते है ! एक एक सिपाही का महत्व है । उसके प्राणों का महत्व है । जितनी बहादुरी दिखाओगे उतने जीवनदान दोगे तुम अपने भाइयो को । "


(सेनापति महाराज की ओर देखता है )

महाराज : " इसकी आज्ञा को महाराज की आज्ञा समाज कर पालन पालन किया जाए । "


(यह सुनकर अपरिचित थोड़ा मुस्कुराता है जैसे वो जानता हो कि महाराज यही आदेश देंगे)


(महाराज को अभी भी मन मे शंका है कि कहि यह आदमी कोई छल या षड्यंत्र तो नही बनाएगा , क्या इसकी बातो पर विश्वास कर सकते है ?)

महाराज : (सैनिको से ) अतिथि महोदय को अतिथीभाव दिया जाए। और ख्याल रहे अतिथि को कोई भी चीज़ के लिए कक्ष के बाहर न निकलना पड़े ।"


(सैनिक इशारा समझ गए और अपरिचित को अतिथिकक्ष में नजरकैद रखा ।)


°°°°°

दोपहर हो गई थी ।

महाराज ने मध्यान भोजन के लिए अतिथि को भोजनकक्ष में लाने का आदेश दिया । " आइए अतिथि महोदय । भोजन ग्रहण कीजिए। "

(अपरिचित श्रीमान खीर की मटकी ले कर फोड़ देते है । यह देखकर राजा का गुस्सा भड़क उठता है। महाराज लाल पिले हो जाते है ओर चिल्ला उठते है ।)

"बस , अब पानी सर से ऊपर जा रहा है ,अब हमारे सब्र की सीमाएं पर हो गई है । (पास रखी तलवार उठा कर म्यान से बाहर निकल लेते है )

(तभी दासी दौड़ कर कापती कापती आती है ओर चिल्लाती है )

दासी : "महाराज…. व्यंजन को छूना मत महाराज ! व्यंजन में विष मिला हुआ है। "

(महाराज चोक जाते है)

दासी : महाराज जब हम रसोईघर में गए तो हमने खीर के मटके के पास एक पत्र देखा । सूंघ कर हमें बड़ी विचित्र बु आई। हमे लगा कोई खास किस्म की जड़ीबूटी है क्योकि सब्ज़ी तो नही थी यह हम भलीभांति जानते थे । सौभाग्य से राजवैद श्री वहां से गुजरे ,हमने उसे उस पात्र में रखी जड़ीबूटी के बारेमे पूछा तो वह चोक गए ।

" जब राजवैद्य श्री ने पूछा कि यह पात्र यहा पर कैसे तो हमने पूछा कि "पता नही ,क्यो !?" , तो राजवैध श्री ने बताया कि यह बहुत ही शक्तिशाली विष है जो इंसान को कुछ पल में तड़पा तड़पा कर मार देता है वह मरते वक्त शरीर की सारी इन्द्रिया काम करना रोक देती है । "


(महाराज तलवार फिरसे म्यान में रख कर बड़े क्रोध से सैनिको को आदेश देता है कि " रसोईघर के दरवाजे पर जो भी सैनिक सुरक्षा कर रहे थे उसे बुलाया जाए "दो सैनिक आकर सर झुका कर खड़े हो जाते है ।)



महाराज : (चिल्लाते हुए) " हमारे भोजन में ज़हर मिलने का साहस किसने किया ?"


सैनिक : "क्षमा करें महाराज , हमे रसोई घर के अंदर प्रवेश करने की अनुमति नही होती। हम केवल द्वार पर खड़े होकर रक्षा करते है। मगर आज एक सैनिक रसोईघर के अंदर गया था । हाथ मे कुछ था उसके । वह व्यक्ति रसोइकाम से न जुड़ा होने पर हमने उसे अंदर जाने का कारण पूछा । हमारे पूछने पर उसने बताया कि पड़ोसी राजा के पास से महाराज के लिए बहुत खास वनस्पति उपहार आयी है। जिसे अंदर रखने के लिए महाराज का आदेश है। आपका आदेश सुनकर हमने उसे जाने दिया । "


(महाराज उस सैनिक को पेश करने का आदेश देते है । कुछ देर बार 4 सैनिक उसे पकड़कर लाते है , वह आकर नीचे फैली हुई खीर देखकर कॉप उठता है ओर महाराज के पैरों में पदक गिड़गिड़ाने लगता है)


सैनिक : महाराज मुजे क्षमा कर दीजिए। मुजसे घोर पाप हुआ है। महाराज में विवश था ।"


महाराज : "किसने भेजा है तुम्हे "


सैनिक : "राजा धनुष !"


(महाराज यह सुन कर भौचक्के रह गए)

महाराज : " तुम हमारे महल में पूर्ण रुप से सुरक्षित थे । तुम हमे सूचना दे सकते थे मगर तुमने हमे मारने का निर्णय लिया "


सैनिक : "महाराज में विवश था , , मेरे जैसे कुछ और सैनिक है जो राजा से मिले हुए है व आपको मारने हेतु षड्यंत्र बना रहे है , में विवश था क्योंकि मेरे पास उन सैनिको को राजा धनुष से संधि की जानकारी थी । मेरे परिवार को मार देने की धमकी दे कर मुजस यह पाप करवाया गया है ताकि मुजे मृत्युदंड मीले ओर उसका जूठ छुपा रहे। महाराज मेरे परिवार की रक्षा कीजिए । महाराज, मुजे क्षमा कर दीजिए। "


°°°°°
(क्रमशः)


( क्या होगी अपरिचित की अगली भविष्यवाणी !?, क्या मध्यरात्रि पर वही होगा जो उस अपरिचित ने भविष्यवाणी की थी!? , यह सब महाराज के जानने के बावजूद भी क्या वही होगा जो भविष्यवाणी हुई है !? , क्या है राजा धनुष की नई युक्ति !? अभी तक गुप्तचर कोई खबर लेकर क्यों नही आये !? क्या हुआ मध्यरात्रि को !? कौन है अपरिचित )

( जानेंगे अगले भाग में )