जाना - पहचाना रंग Tasnim Bharmal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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जाना - पहचाना रंग

ये पेहचान जिंदगी का सबसे अच्छा और शायद सबसे ज्यादा दिलचस्प अजूबा है। पारंगत वर्माने कभी नहीं सोचा था कि वो निखिल पुंज को ऐसे मिलेगा, १२ साल बाद ये दो लॉ- कॉलेज के सहपाठी जो कभी एक दूसरे की विचााभिव्यक्ति से असहमत हुआ करते थे आज कोर्ट ने दोनों को वापस वैसे ही लाके खड़ा किया है अपने मुवक्किलों के साथ, पारंगत आज भी समाज और प्यार की वकिलात करता थ है और निखिल पैसा पैदा करने की तरकीब। मुद्दा ये था कि पारंगत प्रताड़ितो के पक्षमे थे और निखिल उसके विरोध में जो की उस इलाके के नेता द्वारिका सिंग के कहने पर केस लेके बैठे थे जो अपने चुनाव के स्वार्थ में लाडवा रहे थे जानता के सामने आश्वस्त होने के लिए की में आप का हाफ़िज़ हूं ,वरना निखिल ऐसे मोहल्ले के केस कभी सुनता भी नहीं था। द्वारिका सिंग मुद्दे को मसाला बनाना चाहता थे ताकि वो चुनाव जितने का आनंद चटकारे लेते हुए ले सके। इस मार-पीट में कई हड्डियां टूटी दोनों ओर से, इस बात को लेकर की शिवनगर का पानी भरने अल्लारखापुर की ओरते क्यों पोहच जाती है??? उसमे बड़ा बवाल मचा और ये दो मोहल्ले के मर्द मजहबी उन्माद कब बन गए पता नहीं चला और मारने - मराने पर उतर आए। पारंगत जुम्मन चाचा को बोला: ' चाचा पानी तो पानी है इमाम हुसैन भी तरसे थे!!! और फिर मां तो अपने बच्चे को थोड़ीना प्यासा मार सकती है, भला मां के प्यार का कैसा मजहब और कौन सा इलाका।' तभी निखिल हरिनंदन चाचा को बोला " हा ! चाचा बात तो सही है। जब आप की मोहल्ले की जनानीयो को दिक्कत नहीं है और ना ही शिवनगर की ओरतो को तो फिर आप क्यों तिलमिला रहे हो!? ", दोनों वकीलों को एक सी बाते करता देख सब दंग रह गए। तभी पारंगत बोला आप सब बोले तो में और निखिल एक लीगल अरजी बना देते है कलेक्टर साहब को की आप दोनों के मोहल्ले में एक एक्स्ट्रा सरकारी नल बिठवा दे। सब सहमत हुए और वहीं वापस ज़िंदगी में चल दिए। रोज़ का काम और थोड़ा आराम पाने वाले सादे से लोग को भगवान और अल्लाह को अखाड़े म लाने की फुरसत कहा वो तो खुद दिन रात मेहनत की खोज में और कभी कभी त्योहारों की मोज में अपना बसेरा करते है। पारंगत नहीं पुछना चाहता था फिर भी ने जाते - जाते निखिल से पुछा ' आज आपने किसी को लुटा नहीं मिस्टर पुंज, ये केस को भी सुर्खिया दे देते बड़े ठाठ बरकरार रहते आप के ; निखिल जवाब मे बोला ' नहीं, मे सिर्फ मुवक्किल से पैसे लेता हूं ,इंसानियत को जोड़ने के नहीं ,और ये मैंने तुमसे सीखा है। अपनी गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए निखिल पारंगत से बोला ' एक बड़ा सियासी मामले का केस है, मदद करेंगे आप!!! मुस्कुराकर पारंगत बोला ' अगर सिर्फ सियासी नहीं हुआ तो ही करूंगा , मुझे रंग सारे पसंद है बस वक़्त रहते बदलना नहीं पसंद।'
दोनों हरीफ से हर्फ हुए है आज।

लिखित - तस्न्नीम भारमल