माँ की आवाज सुन अंकित बोझिल मन से उठ कर कमरे से बाहर निकलते हुए बोला ‘जी माँ, बोलिए’| अंकित की आवाज सुन माँ ख़ुश होते हुए बोली ‘बेटा, क्या बात है आज तुम बहुत देर से उठे हो | तुम्हें याद है न परसों से तुम्हारी परीक्षा शुरू होने वाली है’| अंगड़ाई लेते हुए बुझी आवाज में अंकित बोला ‘हाँ माँ मुझे अच्छी तरह से याद है | मैं देर रात तक पढ़ता रहा इसीलिए आज देर से नींद खुली है’|
अंकित को परेशान देख माँ बोली ‘बेटा तुम्हारी तैयारी तो है न ? बेटा अच्छे से तैयारी करो | अब तुमने छठी कक्षा में जाना है | उस कक्षा में और भी मेहनत करनी पड़ेगी | अंकित अंगड़ाई लेते हुए बोला ‘हाँ माँ मैं सब जानता हूँ | लेकिन पता नहीं क्यों कुछ दिन से मैं पाठ याद नहीं कर पा रहा हूँ | अब मुझे कुछ ऐसा करना पड़ेगा जिससे मैं जल्द से जल्द पाठ याद कर पाऊं | खैर, आप नाश्ता लगाइए जब तक मैं हाथ-मुँह धो कर आता हूँ’| अंकित की बात सुन माँ ख़ुशी-ख़ुशी रसोई की ओर बढ़ जाती है और वह गुस्लखाने की ओर |
अंकित को नाश्ता दे माँ घर के काम में जुट जाती है | वह जब रसोई में दोपहर के खाने की तैयारी करने आती है तो अचानक उसकी नजर बाहर बगीचे में फूलों की क्यारी पर पड़ती है तो वह देख कर हैरान रह जाती है | अंकित गुलाब की क्यारी के पास छोटा-सा गड्ढा खोद कर उसमें खड़ा किताब पढ़ रहा था | एक-डेढ़ घंटे में दोपहर का खाना बना कर माँ एक बार फिर खिड़की से झाँक कर देखती है | अंकित अभी भी उसी तरह खड़ा किताब पढ़ रहा था | यह देख वह चिंतित हो जाती है | इसका मतलब अंकित पिछले दो-तीन घंटे से गीली जमीन में पैर डाले खड़ा है | माँ अंकित की रोज की शरारतों से वाकिफ़ थी | लेकिन ये शरारत नहीं लग रही है | यही सोच वह जल्दी से हाथ धो कर बगीचे की ओर चल देती है |
बगीचे में पहुँच कर वह गुस्से से बोली ‘अंकित ये आज क्या नया तमाशा कर रहे हो | तुम्हारे इम्तिहान आने वाले हैं और तुम यहाँ गीले में इतनी देर से खड़े हो | चलो निकलो यहाँ से | बीमार पड़ गये तो मुसीबत हो जायेगी’| माँ की आवाज सुन अंकित बहुत मासूमियत से बोला ‘आप गुस्सा क्यों कर रही हैं | मैं कोई शरारत नहीं कर रहा हूँ | मैं तो यहाँ खड़े हो कर अपना पाठ याद कर रहा हूँ | देखो ये पाठ दो दिन याद नहीं हो रहा था और यहाँ कुछ ही देर में पूरा याद हो गया है | दादी सही कहती थीं | धरती हमारी माँ है वह सब कर सकती है’|
माँ, अंकित को लगभग खींच कर गड्ढे से बाहर निकालते हुए बोली ‘हाँ, हाँ, ठीक है सब | अब जाओ और अपने पैर पानी से धो कर कमरे में बैठो | मैं जब तक तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूँ’, कह कर वह तेज क़दमों से रसोई की ओर चली जाती है |
माँ चाय का कप अंकित को पकड़ाते हुए बोली ‘अब बोल, दादी की क्या बात बोल रहा था’ | यह सुन अंकित चेहकते हुए बोला ‘एक दिन जब मैं दादी के साथ पार्क में घूमने गया था | उस दिन मुझे दादी ये बात बताई थी’ | माँ उतावली हो बोली ‘क्या ? कहानी क्यों सुना रहा है | मुझे ये बता कि दादी ने ऐसा क्या बोला जो तू इस मौसम में गीली जमीन खोद कर वहाँ पढ़ने खड़ा हो गया था’ |
अंकित हँसते हुए बोला ‘पार्क में दादी ने अपने हाथ में मिटटी लेते हुए बोला कि देख इस मिटटी को | इस मिटटी में कोई खुशबु नहीं है | इसका कोई स्वाद नहीं है | लेकिन फिर भी ये मिटटी हमें मीठे से मीठा फल देती है | अच्छी से अच्छी खुशबु देती है | जब मैंने बोला कि दादी आप बूढा गई हो | हमें खुशबु फूल के पौधे से और फल पेड़ से मिलते हैं | तब वह हँसते हुए बोलीं ‘बेटा ये पेड़ पौधे लगे कहाँ हुए हैं | आम का पौधा एक गुठली भर दबाने से निकलता है और फिर वह पौधा बड़ा हो कर पेड़ बन हमें सैकड़ों मीठे-से मीठा आम देता है | आम के पेड़ को छील का चखना उसमें भी आम जैसा स्वाद नहीं होता लेकिन आम में होता है | ये सब करामात इस मिटटी इस धरती की है | तभी तो हम इसे माँ कहते हैं | ये भी माँ की तरह अपने पेट में बीज पाल कर बड़ा करती है | और फिर माँ की तरह अपने बच्चों को अच्छे से अच्छा खाने को देती है | बेटा ये धरती माँ तो हमें माँ से भी बढ़ कर हर वो चीज देती है जो हमें चाहिए | तू खुद अपने आस-पास नजर दौड़ा कर देख | जहाँ तक तेरी नजर जाती है | वहाँ तक की हर चीज धरती से ही निकली है | सोना, चांदी, लोहा, पेट्रोल, प्लास्टिक सब धरती से ही निकला है | बेटा ये धरती हमारी माँ से भी बढ़ कर है’ | दादी ने उस दिन और बहुत कुछ भी बताया | लेकिन गढ्ढा खोद कर पढ़ने तो मैं खुद गया था | ये दादी ने नहीं बोला था | मैंने ये सोचा जब धरती हमें इतना कुछ देती है | हमारा इतना ख्याल रखती है | तो वो मुझे मेरे पाठ याद करने में भी मदद करेगी | और दादी कि बात सही साबित हुई | मैं जो पाठ पिछले दो दिन में याद नहीं कर पाया था वो मुझे दो से तीन घंटे में याद हो गया’ |
माँ हँसते हुए बोली ‘बेटा उसके लिए गढ्ढा खोद कर बैठने या खड़े होने कि जरूरत नहीं है | तुम ये काम किसी पेड़ के नीचे बैठकर भी कर सकते हो | प्रकृति हमेशा इंसान का साथ देती रही है और देती रहेगी | बस हम इंसान इस बात को भूलते जा रहे हैं | बेटा इसीलिए कहते हैं कि इस प्रकृति को नष्ट मत करो | इस प्रकृति को नष्ट करने का मतलब है कि तुम अपनी धरती माँ को कष्ट पहुँचा रहे हो’ | ‘हाँ, माँ मैं इस धरती को कभी दुखी नहीं करूँगा’, कह अंकित चाय का कप रख कर माँ से लिपट जाता है |