"ये तो कुछ नही कर सकती , किसी भी काम कि नही है , बाज़ार से अकेले सब्जी भी नही ला सकती मेरी हेल्प के बिना , सच भाभी आप कितनी स्मार्ट और सुन्दर है , मै तो आपके जैसी वाइफ पाना चाहता था , पर किया भी क्या जा सकता है......।"
राहुल ने एक ठंडी आह भरी , उसके बगल मे बैठी उसकी वाइफ जया का चेहरा उतर गया । ये तो राहुल कि आदत थी सबसे अपनी बीवी कि बुराई करने कि , वो ये भी नही सोचता था की जया को कैसा लगता होगा । अगर जया उसको टोकती थी तो राहुल उसको कहता था ' अरे यार मै तो मज़ाक कर रहा था , तुम भी ना हद करती हो छोटी - छोटी बातों को लेकर लड़ने बैठ जाती हो ।' जया ने अब उससे कुछ कहना ही छोड़ दिया था । कुछ दिन पहले ही बगल वाले घर मे नये पड़ोसी आये थे रहने के लिये , उनका नाम स्मिता और सुभाष था , उनके यहा ही आज डिनर था राहुल और जया का , जया से बहुत दोस्ती हो गयी थी स्मिता की ।
आदत के अनुसार राहुल यहा भी जया की बुराई करने लगा था ।
"ऐसा क्यूँ कह रहे है भइया ? जया इतना अच्छा खाना बनाती है , सूट पर इतनी अच्छी कढ़ाई करती है इसके अँदर इतनी सारी खूबियाँ है सच कहूँ तो मै तो ढँग से खाना भी नही बना सकती...। " स्मिता ने राहुल की बात काटी ।
"अरे भाभी अच्छा खाना बनाने से क्या होगा ? अच्छा खाना तो होटेल से भी मिल जाता है , ये तो मेरे बिना खुद का खर्च भी नही उठा सकती है । " राहुल ने जवाब दिया ।
"अच्छा आप लोग ! बात कीजिये , हम लोग डिनर की तैयारी करते है ।" स्मिता ने ज्यादा बात बढ़ाना उचित ना समझा और जया को लेकर किचन मे आ गयी ।
"आपको बुरा नही लगता भाभी , भईया ऐसे आपकी बुराई करते है तो......। " स्मिता ने जया से पुछा ।
"करने दीजिये बुराई करते है तो , मै जानती हूँ ना मुझमे क्या खूबी है और क्या नही , अब तो आदत पड़ गयी है , वैसे भी मै कर क्या सकती हूँ , इसलिये चुपचाप उनकी बातें सुन लेती हूँ .....। "
स्मिता ने कुछ कहना चाहा फ़िर रुक गयी , दोनो मिलकर डिनर की तैयारी करने लगी
अगले दिन स्मिता जया के घर गयी और उससे कुछ कहा , फ़िर दोनो का आना -जाना एक दूसरे के घर बढ़ गया , अगर स्मिता नही जा पाती तो जया आ जाती और जया नही जा पाती तो स्मिता आ जाती । राहुल ने पूछा भी 'क्या बात है आज़कल तुम दोनों मे बहुत दोस्ती हो गयी है' , तो जया ने बहाना बना कर बात खत्म कर दी ।
राहुल जब ऑफिस से आया तो उसने देखा जया अच्छे से तैयार थी और बहुत खुश लग रही थी ।
"क्या हुआ ? कहीं जाना है क्या ...। " राहुल ने पुछा । " नही जी ! आप फ्रेश हो जाइये मै चाय बना कर लाती हूँ , आज डिनर भी मैंने आपकी पसंद का बनाया है । "
" अरे वाह क्या बात है ? आज इतनी मेहरबानी मेरे उपर....। " राहुल ने हँसते हुऐ कहा और फ्रेश होने चला गया ।
राहुल रूम मे आया तो देखा जया चाय बना कर ले आई थी । उसने चाय के साथ -साथ एक लिफ़ाफ़ा भी राहुल को पकड़ाया ।
" ये क्या है...? " कहते हुऐ राहुल ने लिफ़ाफ़ा खोला उसमे दो लाख का चेक था ।
"इतने पैसे किसके है ....? "
" हमारे ..."
" मतलब .....? "
" मतलब ये मेरे प्यारे पतिदेव ! ये मेरी कुकरी किताब का एडवांस है , मैंने किचन के अनुभव से जो कुछ सीखा था , उसे एक डायरी मे नोट करती थी , जिसे स्मिता ने पढ़ा और मुझे इसे पब्लिश करवाने की सलाह दी , उसी के हेल्प से मेरी ये किताब छपी है ...। " राहुल का चेहरा उतर गया था उसने फ़ीकी हँसी हँसते हुऐ जया को बधाई दी ।
" अच्छा आप चाय पियो मै खाना गरम करके लगाती हूँ " जया जाते -जाते पलटी - " और हाँ , मै एक बात कहना ही भूल गयी , अब मै अपने साथ - साथ आपका भी अच्छे सेखर्च उठा सकती हूँ ....। "
राहुल खिसियानी हँसी हँस कर चाय पीने लगा ।
शिल्पी कृष्णा
गोरखपुर
मौलिक व अप्रकाशित