विवेक और 41 मिनिट..........
तमिल लेखक राजेश कुमार
हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा
संपादक रितु वर्मा
अध्याय 11
जज सुंदर पांडियन का गुस्सा सातवें आसमान पर था | उनके पास उनका लड़का गोकुलवासन, बहू सुभद्रा थे | सामने डी. जी. पी. वैकुंड शर्मा |
“मिस्टर शर्मा............. ! मेरे ड्राइवर दुरैमाणिकम की बड़ी निर्दयता से हत्या हुए चार दिन हो गए | हत्यारा कौन है उसे पकड़ नहीं पाने के कारण आपका डिपार्टमेन्ट परेशान हो रहा होगा | विनोद कुमार के पिता जनार्दन ही इस हत्या के कर्ता धर्ता हैं मैं जो कह रहा हूँ उसका आधार है | पर आप जो कह रहे हैं उसका कोई आधार नहीं है | ये धमकी मुझे नहीं ये न्याय मूर्ति या न्याय की देवी को दी गई धमकी है |”
डी. जी. पी. शर्मा ने दीर्घ श्वास छोड़ा |
“मिस्टर सुंदर पांडियन............ आपके ड्राइवर की हत्या जिसने की उस हत्यारे को पुलिस और भी इन्टरेस्ट लेकर ढूंढ रही है | किसी भी क्षण हम उसे पकड़ लेंगे |”
“यही जवाब आप विगत चार दिनों से मुझे कह रहे हो मिस्टर शर्मा..............”
शर्मा आगे बोलें इसके पहले वॉचमेन कमरे के बाहर आकर संकोच के साथ खड़ा हुआ | हाथ में उसके छोटा सा पार्सल था |
“क्या है ?”
“कोरियर में यह पार्सल आया है साहब |”
गोकुलवासन ने जाकर उस पार्सल को लेकर देखा | एक डायरी के बराबर वह पार्सल था | To पते पर न्यायाधिपति सुंदर पांडियन के नाम के साथ पता भी स्केच पेन से मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था | From के पते में इंडिया नेशन न: 1, भारत माता मार्ग, भारती पुरम चेन्नई |
गोकुलवासन डी. जी. पी. को पार्सल देते हुए बोला “साहब उसके भेजने वाले के पते को पढ़ कर मन थोड़ा अजीब सा........”
उन्होंने उसे हाथ में लेकर देखा | उनके माथे पर बल पडा | पते को पढ़ते ही पता चलता है कि ये बोगस पता है | इसके अंदर क्या है खोल कर देखो गोकुलवासन |”
गोकुलवासन ने एक कैंची की सहायता से पार्सल को खोला | अंदर एक ऑडियो केसेट था|
“टेप रिकॉर्डर में डालो |”
गोकुलवासन ने मेज पर रखे टेप रिकॉर्डर के मुंह में केसेट को डाला फिर उसे ऑन किया |
केसेट घूमने लगा |
आधे मिनिट के मौन के बाद फिर एक आदमी की आवाज में अचानक गाना सुनाई देने लगा |
रिहाई.......... रिहाई
चाहिए रिहाई
निधी देवी हँसना चाहिए
चाहिए रिहाई |
धर्म के पनपने को
चाहिए रिहाई |
सच को ऊंचा उठने को
चाहिए रिहाई |
न्याय को जीने के लिए
चाहिए रिहाई
रिहाई......... रिहाई............ रिहाई
गाने के लंबा होते जाने से सबके चेहरे बदल कर पत्थर जैसे दिखाई देने लगे |
डी. जी. पी. वैकुंड शर्मा गोकुलवासन से बोले –
“ये पार्सल किस कोरियर सर्विस से आया है देखो |”
“देख लिया साहब.............. अर्ली बस्ट कोरियर |”
“वह कहाँ है..........?”
“मालूम नहीं है साहब |”
“गेट इट यलो पेज को देखो |”
गोकुलवासन तिपाई के नीचे के खाने में से येलो पेज की टेलीफोन डाइरेक्टरी निकाल कर पलटने लगा |
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