मिखाइल: एक रहस्य - 7 Hussain Chauhan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मिखाइल: एक रहस्य - 7

'लेडीज एंड जेंटलमैन, कृपया अपने सीट बेल्ट बांध लें, कुछ ही मिनटों में हम मुम्बई लैंड करेंगे, यहॉ का स्थानीय वक़्त रात के 09:30 मिनट है और मौसम खुशनुमा है। कृपया सभी यात्रियों से अनुरोध है कि अपने सारे इलेक्ट्रॉनिक्स सामान जैसे कि लैपटॉप, मोबाइल, अन्य गेमिंग डिवाइस को स्विच ऑफ कर दे, हमे आशा है कि आपकी यात्रा सुखद रही होगी, क़तार एयर वेज़ को चुनने के लिए आपका धन्यवाद।
क़तार की राजधानी दोहा से मुम्बई निकली हुई फ्लाइट QR-728 मुम्बई पहुंच चुकी थी। मिस्टर और मिसिज़ ओकले पहली बार भारत आये थे और उन्हें लेने के लिए एल.एस. डब्ल्यू. की तरफ से जय खुद आया था।
'आई थिंक धेट यू आर मिस्टर जय!' मिस्टर ओकले ने जय की तरफ जाते हुए जय को उनके एल.एस. डब्ल्यू के प्रोफाइल में देखे हुए फ़ोटो से पहचानने की कोशिश करते हुए पूछा।
'येह! एंड इफ आई एम नॉट रॉंग धेन यू आर मिस्टर एंड मिसेज़ ओकले, राइट?' जय ने मिस्टर ओकले के साथ हाथ मिलाते हुए कहा। मिस्टर ओकले ने आधी बांह वाला सफेद रंग का जिसपर पंख की स्काई ब्लू रंग में डिज़ाईन बनी थी वो पहना था और उसके साथ खादी के रंग की एक घुटनो तक आती हुई ट्रोउसेर पहनी थी जबकि मिसिज़ ओकले ने ग्रे रंग का बांह बगैर का टी-शर्ट और सफेद रंग की जीन्स पहनी थी।
'लेट्स गो, टुनाइट वी विल स्पेंड आवर नाईट इन मुम्बई, एंड टुमारो वी विल मूव फारवर्ड टू आगरा।' जय ने ओकले दंपति का सामान कम्पनी द्वारा उपलब्ध कराई गई कार में रखते हुए कहा और वे सभी होटल रॉयल की तरफ चल पड़े जहा एक रात के लिए ओकले दंपति के लिए जय ने पहले से ही कमरा बुक कर रखा था।

'ओके धेन! बी रेडी एट शार्प टेन ओ क्लॉक, टिल धेन गुड बाई! होटल पर ओकले दंपति को छोड़ने के बाद जय अपने निजी काम को निपटाने के लिए चल पड़ा

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७ साल पहले
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे
औरस के पास
'अब तो फरहाद तेरे मज़े ही मज़े है' रहीम ने फरहाद ही ओर देखते हुए कहा, जो ज़फर के साथ लखनऊ से आगरा की ओर ट्रक में भेड़-बकरी को डिलीवरी करने के लिए निकले थे।
'मज़े ही मज़े तो तुम्हारे भी है' फरहाद ने ज़फर के बाइसेप पर एक हल्का सा मुक्का मारते हुए कहा।
'अब क्या मुसीबत है?' फरहाद के सवाल का जवाब देने की बजाय अपने ट्रक को धीमा करते हुए कहा। जब फरहाद ने ज़फर से अपनी नज़रे हटाकर रास्ते की ओर देखा तो १०-१५ लोग हाथ मे डंडे लिए खड़े थे।
'अबे नीचे उतर' जब ज़फर ने अपने ट्रक को रोका तब उनमे से एक आदमी ट्रक की ओर आया और उन तीनों को धमकी दी। ज़फर, फरहाद और रहीम समज नही पा रहे थे कि आखिरकार क्या हो रहा था।
ज़फर, फरहाद और रहीम के ट्रक में से नीचे उतरते ही उस आदमी ने उनको ट्रक में क्या है वो बताने को कहा जिसने उन तीनों को नीचे उतरने की धमकी दी थी।
ज़फर जानता था कि आगे क्या हो सकता था इसीलिए उसने उस वक़्त उन लोगो की बात मानने में ही भलाई समझी और ट्रक का पिछला हिस्सा खोल दिया।
'ट्रक में भेड़ बकरियो के अलावा और कुछ नही है, भैयाजी!' ज़फर के साथ ट्रक चेक करने के लिए गए आदमी ने भैयाजी को बताया।
'यह कैसे हो सकता है? जानकारी तो मिली थी कि यह लोग हमारी गाय माता को कसाई खाने ले जा रहे है, यकीनन यह कोई षड्यंत्र है'
'अबे ए इधर आ!' भैयाजी ने फरहाद को अपनी उंगली से इशारा करते हुए बुलाया।
'कौन में?'
'हां, तू' भैयाजी ने रूखे पन से कहा।
फरहाद थोड़ा सहमा सा दिखाई दे रहा था लेकिन मन ही मन उसने सलवात पढ़ी और डर का घूंट गले से नीचे उतारते हुए हिम्मत जुटाकर आगे बढ़ा।
'बता सच क्या है?' जैसे ही फरहाद भैयाजी के पास पहुंचा तो उसी रूखे पन से भैयाजी ने उसे पूछा।
'कौनसा सच?' फरहाद समझ नही पा रहा था कि आखिरकार यह सब चल क्या रहा था और उसने थोड़ा हकलाते हुए पूछा।
'तू ऐसे नही बताएगा' ऐसा बोलते हुए भैयाजी ने फरहाद को एक जोर से थप्पड़ लगा दिया। भैयाजी के थप्पड़ से फरहाद मुंह के बल ज़मीन पर गिर पड़ा।
'तूने सुना नही? भैयाजी ने क्या कहा? चल बता सच क्या है? अभी फरहाद उठने की कोशिश कर ही रहा था कि उनमें से ही एक नए फरहाद को लात मारते हुए फिर से गिरा दिया। फरहाद के गिरते ही उसके आस-पास खड़े हुए लोग उसकी हालत देखकर हंसने लगे।
फरहाद को पिटता देखकर दूसरी तरफ ज़फर और रहीम का खून खौल रहा था और वे उसी वक़्त उन सभी से फरहाद की पिटाई करने का बदला ले लेना चाहते थे।
'मुझे नही पता आप सब किस बारे में बात कर रहे हो' फरहाद उसके आस पास खड़े हुए लोगो से बहुत डर चुका था। उसके दिमाग मे किसी अनहोनी होने के संकेत साफ थे। उसका दिल ज़ोरो से धड़क रहा था और मन ही मन वो अपने खुदा को याद कर रहा था ताकि वो उसे उन सब लोगो से बचा ले।
'अपने दोस्त को पीटते हुवे, दम तोड़ते देखोगे या फिर सच बताओगे? सच बताने पर हो सकता है कि हम सब तुम्हे जाने दे' भैयाजी ने फरहाद को एक और ज़ोर की लात उसके पेट पर मारते हुवे ज़फर और रहीम की तरफ देखते हुवे कहा।
गुंडो की पिटाई के कारण फरहाद का पहना हुआ सफेद कुर्ता अब धूमिल हो गया था और एक के बाद एक भैयाजी के आदमी फरहाद पर लातो की बौछार कर रहे थे। फरहाद के हाथ पांव और मुंह से अब खून भी निकलना जारी हो चुका था।
"अगर ऐसा ही चलता रहा तो फरहाद मर जाएगा" रहीम ने ज़फर की ओर देखते हुए कहा।
"नही ऐसा कुछ नही होगा, हमे किसी तरह फरहाद को ले कर यहां से जल्दी निकलना पड़ेगा" ज़फर ने फरहाद पे अपनी नज़रे गढ़ाये हुवे कहा।
"लेकिन कैसे?" रहीम भी थोड़ा सहमा हुवा प्रतीत हो रहा था।
"में इन लोगो को उकसाता हू, तब तुम फरहाद को इनकी पकड़ से छुड़ा लेना।" ज़फर ने रहीम को समजाते हुए कहा।
"लेकिन इतने सारे लोगो का तुम अकेले मुक़ाबला नही कर सकते" रहीम की बात में दम था।
"और कोई दूसरा चारा है हमारे पास?" ज़फर ने पूछा।
रहीम कुछ नही बोला, ज़फर ने सोच लिया था कि वो अब और अत्याचार बर्दाश्त नही करेगा। अपने पास खड़े आदमी को जिसने उनको नीचे उतरने की धमकी दी थी उसके मुंह पर उसने जोर से एक मुक्का मारा और उसे नीचे गिरा दिया। जब वो आदमी नीचे गिरा तो फरहाद को पिट रहे लोगो ने ज़फर पर हमला बोल दिया।
"अभी सही वक्त है, निकलो" अपने पास आते जा रहे लोगो को देख ज़फर ने हल्के से रहीम को बोला। उनका कामचलाऊ प्लान काम कर चुका था अब परेशानी की बात यह थी कि ज़फर को उन गुंडो से कौन बचाएगा? खैर रहीम के पास अभी उन सब बातों को सोचने के लिए वक़्त नही था, उसे फरहाद को उन लोगो के चंगुल से छुड़ाना था।
जब भैयाजी ने यह देखा कि फरहाद के दोनों दोस्त ने उसके आदमियो पर हमला कर दिया था तब उसने ज़फर की तरफ रुख किया, भैयाजी को ज़फर की ओर बढ़ते हुवे देखकर उसके लोग भी ज़फर की ओर बढ़ने लगे।
दूसरी तरफ फरहाद बुरी तरह भैयाजी ओर उसके लोगो से पीटने के बाद बहुत बुरी हालत में ज़मीन पर बेजान पड़ा था। रहीम ने देखा कि फरहाद की अभी सांसे चल रही थी, वो फरहाद को उठाने की कोशिश कर रहा था तभी भैयाजी के एक आदमी ने पीछे से रहीम को ज़ोर की लात मारी और उसे गिरा दिया। रहीम अभी उठता उससे पहले भैयाजी के आदमी ने फरहाद के पेट मे कांटा चुभो दिया और कांटे को पकड़े हुवे ही फरहाद नई उधर ही दम तोड़ दिया।
जब ज़फर ने फरहाद की चीख सुनी और जैसे ही उसका ध्यान भैयाजी और उसके आदमियो से हटा की तभी भैयाजी ने दरांती से ज़फर के गले पर ज़ोर से वार किया और ज़फर के गले से खून की फुंवार उड़ती हुई भैयाजी के मुंह पर लगी। ज़फर तड़पता हुवा ज़मीन पर गिर पड़ा और थोड़ी देर तड़पने के बाद दम तोड़ दिया।
"हमसे मुक़ाबला करने चले थे, हरामज़ादे!" ज़फर के खून को पौंछते हुवे भैयाजी ने कहा।
इन्ही दर्दनाक हादसो के बीच रहीम साई नदी से होते हुवे कही गायब हो गया जो लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे से महज दूरी पर थी।
"भैयाजी, वो तीसरा वाला भाग गया लगता है" भैयाजी के एक आदमी ने भैयाजी को जानकारी देते हुवे कहा।
"ढूंढो बे, उस हरामज़ादे को और जहा भी दिखे ज़िंदा गाढ़ दो साले को!" भैयाजी ने अपने आदमी को ज़ोर से गाल पर एक तमांचा मारते हुवे कहा जिसने भैयाजी को रहीम के गायब हो जाने की खबर सुनाई थी।

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