ग़ज़ल, शेर - २ Kota Rajdeep द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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ग़ज़ल, शेर - २

अब वोही पुराने ज़ख्म ताजियाना क्यों करें।
इश्क़ के दरख़्त पे नया आशियाना क्यों करें।___Rajdeep Kota

जब ये लालिमा कालिमा मैं तब्दील हो जाएं।
ऐसा न हो की फ़िर मिलना मुश्किल हो जाएं।___Rajdeep Kota

साहब में भूखा हूं मुझे खाना नहीं
थोड़ा रहम ही मयस्सर करा दो।
दिए की लौ डगमगाने लगी हैं
मेरी दोस्त से मुलाक़ात पलभर करा दो।

वोही आख़िरी जरिया हैं जीने का कोई
उनकी बातों से यादों से मेरा जिहन तरबतर करा दो।___Rajdeep Kota


कुछ भी हो जाएं
मुंह मत फेरना ईमान से
निवाला ठुकरा ना मत
मिलता हो जो एहसान से
आडंबरों के बादल छाए है चारो और
ख़ुद को हर कोई बड़ा बता रहा है भगवान से
तुम मिलो न मिलों वो एक ओर बात है
पर मेरे खत पढ़ लेना इतमीनान से
यारों डर उस मालिक का,उस खालिद रखो
खामखां डरते क्यों हो इन हैवान से
मेरा बाप कहो या तुम कहो उसे मेरी मा
बड़ा कोई नहीं है मेरे लिए हिन्दुस्तान से
ख़ुद को खुशकिस्मत समझूं जो मयस्सर हुई ये ज़मीं
अपार मुहम्मत करता हूं जी ओर जान से।
कोशिशें भले ही करें हमें मिटाने की फरेब
तिरंगा लहरा है ओर सदेय लेहरेगा सान से
उल्फत को पहचानो, की क्या होती हैं
मिटाने आए तो ख़ाक हो जाओगे कहता हूं मान से
आज़ाद था इसलिए छोड़ के चला गया
पर मुझे जलन क्यों होती है उस इंसान से।___Rajdeep Kota



जरूरत महसूस हुई थी यारों की
पर खड़े हुए है अपने ही पैरों पे।
सबब ख़ुद ही थे ख़ुद की बर्बादी के
तो इल्ज़ाम क्यों लगाएं गैरों पे।__Rajdeep Kota


साहब एक सूखा पत्ता हूं टेहनी से टूटा
तो ये जमीं संभाल लेगी।
मेरे यारों महफ़िल को अलविदा कहने दो
देर हुए तो मेरी दोस्त घर से निकाल देगी।
दोस्त पैसा ही इल्म पैसा ही ख़ुदा पैसा ही हैं सब कुछ
एक मछली को लुभा ओरो को पकड़ने खुद ही जाल देगी।

फितरत है उसकी आखेट की नहीं देता में उसे कोई आयुध
दू तो अभी लाके हाथ में कोई पशु की खाल देगी।
जानी पहचानी सौदागर थी वो इश्क़ की में भी गया बाज़ार सोच के की मुझे भी कुछ माल देगी।___Rajdeep Kota




बस्ती ला रंग आज फीका फीका क्यों हैं
क्या कोई इसे छोड़ कर चला गया।
मेरे कमरे में मचा रहें हैं सौर सन्नाटे
क्या कोई बिस्तर छोड़ कर चला गया।___Rajdeep Kota



मयस्सर न हुए फ़रिश्ते काली काली नींद में।
आना जाना था उसका काली काली नींद में।___Rajdeep Kota




वो प्यार के नाम पर भर ज़िन्दगी इम्तिहान
लेता रहा।
अभी इम्तिहान ख़त्म होगा यही सोच में ज़िंदगी
लुटाता रहा।___Rajdeep Kota



मैं रहा उम्र भर इंतज़ार मै
वो अपने रकीब के साथ था।___Rajdeep Kota




हर दिन मुझे सिर्फ़ तुम्हारा इंतज़ार करना था।
दूर दूर तक वस्ल का नाम ओ निशान नहीं था।___Rajdeep Kota





सोचता हूं तुझसे पल भर बेवफ़ाई कर लूं
दिल के नाम पर थोड़ी रुसवाई कर लूं
गालिबन सबकी मुहब्बत मैं दरार पड़ती देखी हैं
मुनासिब हो तो में अभी से थोड़ी सफ़ाई कर लूं।____Rajdeep Kota





बैचेन होते हैं अक्सर सवाल पे ये आके
इश्क़ की कोई मरजाद होती है या नहीं।___Rajdeep Kota




मिट नहीं जाते प्रेम के तंतु उम्र बसर होने से
भला इश्क़ को सही उम्र की जरूरत ही क्या।___Rajdeep kota



वो दिन गए तो लगता है पूरा जीवन ही बसर हो गया
वो बचपन के दिन
याद कर आंख नम करता हूं
लगता हैं कुछ पल
फ़िर से क्यों न जाऊं वो दिन मैं
ओर फ़िर से दोहराऊं मेरा अतीत।___Rajdeep Kota



जाने वाले गए थे आने का वादा किए।
भरोसा कर भी लिया बोहोत ज्यादा किए___Rajdeep Kota

रास्तों का ओर क्या कहूं
कहीं तो पूरे होते होंगे।
मुझसे बिछड़ ने वाले
क्या रात को ठीक से सोते होंगे।__Rajdeep Kota



रहा था मका रहने एक पुराना
बस्ती वालो ने ये भी गिरा दिया।
कसूरवार सा काम पहले उसने
ख़ुद किया ओर नाम मिरा दिया।___Rajdeep Kota



मेरी बस्ती मैं हर रोज़ कोई मरता है।
किसिको देह से हाथ धोना पड़ता हैं।
तो किसिको दिल से हाथ धोना पड़ता हैं।___Rajdeep Kota




ये वस्ल से अच्छा एक ओर भी जरिया हैं दिल्लगी का,
हम उसे आजकल बिछोह कहने लगे हैं।___Rajdeep Kota



सौ बातें तर्फी हो भले तुम्हारी,
ये मिट्टी से गद्दारी मत करना यारों।
जिस मिट्टी पे खेल तुम बढ़े हुए
उस मिट्टी का कर्ज़ भरना यारों।
वतन की उल्फत का दिया बूजने
मत दो, कुछ भी सहना पड़े यारों।
वतन की ख़ुशबू से सराबोर हो,
उसमें ही कहीं खोए रहना यारों।
समय नहीं है बिछड़ने का अभी,
साथ साथ हमें अभी चलना है यारों।
बैर ,बगावत, गुस्ताख़ी भूल सब,
चलो एक दूजे से इश्क़ करें यारों।
इस मिट्टी का हर एक हिस्सा हैं धरोहर
हमारी, सिर जुकाए नमन करें यारों।
मक्कारो, दुर्जनो, बदमाशों को,
इस मिट्टी से सदा निष्काशित करें यारों।___Rajdeep Kota




कुछ काफिले निकल तो पड़ते हैं
पर उसकी कोई मंज़िल नहीं होती।___Rajdeep kota



तिरी किस्मत में, मैं था ही नहीं तो फिर
मिरी किस्मत पे तेरा नाम अंकित क्यूं।___Rajdeep Kota



कुछ दर्द अंत घड़ी तक टिक के दर्द की पहचान लिए ही मिट जाते हैं,
बतलाना उसे आसान नहीं होता।___Rajdeep kota




मैंने भी रातों मैं अक्सर रात को जागते
देखा हैं कीसिके इंतज़ार मैं।__Rajdeep kota



ये मिरी मुरव्वत ही मिरी पहचान हैं यारों
ओर तुम कहो कि मैं इसे छोड़ दू।
मुद्दतों के बाद फ़िर तुमसे आ मिला
हूं, ओर तुम कहो कि में तुम्हे छोड़ दू।
कोई खल मिट्टी से निकला नहीं हूं मैं,
ठानू तो हवाओं का रुख भी मोड़ दू।___Rajdeep kota



मिरे साथ ही कोई फरिश्ता था मुद्दतो से।
मालूम हुआ बाद में कि था वो मिरी माँ।___Rajdeep Kota




अच्छा होता गर तू करीब होता।
पर मेरा ऐसा कहा नसीब होता।___Rajdeep Kota


ईमान सरीखा पत्थर ढूंढने चला था, इस जहां में।
ऐसा कोई पत्थर ही नहीं था जिसे ढूंढ़ता था, एक दिन इस जहां में।

शिष्टता है सदाचार है ईमान है तुझे परखना आता हो
तो ठीक, वरना बद्दियो का ढेर भी लगा है इस जहां में।

कुछ जुड़ा जुड़ा सा पड़ा है इर्द गिर्द
तो कुछ बिखरा बिखरा भी पड़ा है इस जहां में।

कुछ सहमा सहमा सा चल रहा तो
कुछ तेजियो की उचाई छू रहा है इस जहां में

टूटा हुआ दिल लिए दरबदर फिरते है,
कई आशिक़, श्याम सलोने तेरे इस जहां में।

कहीं अंधेरों की बोछारे गिर रही है तो
कहीं धूप तेज़ी से बढ़ रही है इस जहां में।

कुछ शरीफ़ है जिन्हें शराफ़त का रंग लगा है
बेईमानों की पंक्तियां भी कम नहीं है इस जहां मै।

किस किस की इबादत होगी मुझसे,
भगवानो का पूरा ढेर लगा है इस दुनियां मै।

शौर्य था, ख़ुमारी भी थी,थी भलमनसाही मगर
इंसानों का सौदा होता था कभी इस दुनियां में।

कपड़ों की चंपल की पैसों की अतिरिक्ती
है,लेकिन नंगे,निर्धन कई घूमते है इस दुनियां मै।




कोई इन पत्तो पे लिख रहा है मुझे...
क्या में इतना नाज़ुक हूं कि,
लिखाओसा जा रहा हूं इन पत्तो पे... Rajdeep kota




बोहोत जले है तेरी यादें मस्तिष्क में लिए।
दरबदर फिरते है, तेरे साथ बिताए पल संदूक में लिए।

प्रेम से तरबतर एक गोली,
भटकते रहते आजकल हर बाज़ार,बंदूक में लिए।

सूरज हर रोज़ डूब जाता है उन खिनों में
तुझे दिनभर न देखने का कष्ट, अश्क में लिए।



मेरे हाथों मैं आज वोही पुराने ज़ख़्म ताज़ियाना हो गए।
पर अफ़सोस, मरहम लगाने वाला आज नहीं हैं।__ Rajdeep Kota


आज छत से चांद फ़िका फ़ीका दिख रहा था।
लेकिन तू भी तो छत पे नहीं दिख रहा था।

कितना मूर्ख था में, मुझे उस पत्थर में
कल परवरदिगार दिख रहा था।

तेरे गुस्से भरे लहजे में भी, मुझे
तेरा प्यार उभलता हुआ दिख रहा था।

रईसो की दावते लगी थी,ओर कोई
भूखा बच्चा एक रोटी को तरसता दिख रहा था।

इन नदियों मैं, इन गलियों मैं, इन पेड़ों पे कभी
बच्चों का बचपन गुज़रता हुआ दिख रहा था।

कमबख्त उसे भले ही कहे पूरी दुनियां कुछ फर्क
नहीं पड़ता,मुझे तो उसमे मेरा प्यार दिख रहा था।

बेवजह मार दिया उसे "राज़",उन सियासतवालो ने,
उन्हें तो उसमे सिर्फ़ पैसा ही दिख रहा था।____Rajdeep Kota


न ओकात थी समंदर की
की मुझे खींच डूबा ले जाए
डूबे तो सिर्फ़ हम तेरी अदाओं में।___Rajdeep Kota




अल्फ़ाज़ की कमी है
वरना कविताओं का पूरा का पूरा ढेर लगवा दू।
उस खिलखिलाते चांद से उसकी
चांदनी थोड़ी देर उधार मगवा दू।

मेरा मन कई दिनों से उदास बैठा पड़ा है,
खुश हो इसलिए सोचा मन मंदिर में तेरी फोटो टंगवा दू।

तू बार बार ईमान को भूल जाता है"राज़"
सोचता हूं तेरी हथेली पे मुहब्बत शब्द लिखवा दू।___Rajdeep kota

मुजफ़्फ़र लिखे तो ठीक है
हम कहां लिखेंगे जफरनामा।
यादें मंज़िल-ए-सफ़र की बसी थी जिसमे
हमसे खो गया वे सफ़रनामा।___Rajdeep Kota


वो एक जमीं था, और मैं आसमान हो गया।
वो एक जूठ था, और में ईमान हो गया।

छाप उसकी कुछ बीते दिनों से थी नासमझ की
बस्ती में,पता नहीं कब, किस वक्त इंसान हो गया।

वो एक बुत था जो कल खंडहर में से मिला था खुदाई के दौरान,और देखो आज भगवान हो गया।___Rajdeep Kota



हाल-ए-अमलारा लिए कल मैं अमलदस्तूर भूले जा रहा था।
पता था,
उसे भूलना मेरा एक कुसूर होगा,
लेकिन यही कुसूर बार बार किए जा रहा था।___Rajdeep kota

अंदाज-ए-मुसिफ लिए हम, कल इकरारनामा लिख रहे थे।
कहा पता था हमे,
जमाने से अनभिज्ञ होके,
मुल्याहिन,सारहिन,महत्वहिन पहलू चुन रहे थे।___Rajdeep Kota

संभल के न चले जब चलना था,
परिणाम क्या हुआ,
हम रूपजाल मैं फंस गए...
आज रूपजाल में फंसे एक असिर है हम...
रूपजाल मैं फंसे असीर,
अब आब-ए-चश्म बहाने से क्या फ़ायदा..___Rajdeep kota



हर फ़रतुत मुर्ख नहीं होता, बेवकूफ़ नहीं होता, नीरर्थक नहीं होता, निकम्मा नहीं होता...
होता है तो सिर्फ बाहरी तरफ़ से बुड्ढा, लेकिन वास्तविकता में बुड्ढा भी नहीं होता...__Rajdeep kota

सब मेरे भीतर ही था,
मैं तो खामखां बाहर ढूंढे जा रहा था।
मेरा आशियाना..२
खो गया था कहीं तन्हाईयो बीच,
मैं तो उसे हसीन पल मैं ढूंढे जा रहा था।___Rajdeep kota

तेरे जिस्म ओर मेरी रूह के बीच,
बीते दिनों संधि हुई थी।
बेशक संधि हुई ही थी,
लेकिन आज पता चला कि दुरभीसंधि हुई थी।
संधि तो हुई ही थी...___Rajdeep kota

मेरे भीतर बीते कुछ दिनों से कोई भाव डेरा डाले रहता था...
बारिश के दिन क्या बीते...
वे तो लुप्त हो गया...____Rajdeep Kota



इस बार वजूद भी कुछ ओर था...
ओर इरादे भी कुछ ओर थे...
लेकिन प्रतिक्रिया वोही हुई...
जो पहले हुई थी...____Rajdeep Kota

आज कल सब हमे अफसानानविस कहने लगे है...
एक विस्मयकारी बात है...
अफसाना लिखते है, इसलिए अफसानानविस बना दिया...
हम तो बस जज़्बात की दुनियां में सहज़ से
लुप्त होके,कुछ चुनिंदा अल्फाजों को चुन के,काग़ज़ पे आवास दे देते है...
इसमें अफसानानविस कहा हो गए...?
____Rajdeep kota

नियाज़ी के यु बेवजह चले जाने का गम नहीं है हमे...
गम इस बात का है कि,
अतीत मैं, अल्फ़ाज़ उसने नियति के पेड़ से चुन चुन के अभिव्यक्त कीये थे...
ओर हमने ही उसे,
अनुरक्तता से सजी पलको पे बिठा के रखा था उस दिन...
फिर भी चला गया...
गम इस बात का है..._____Rajdeep Kota



वो अफ़ताब आसमान में सदेय अजहर रहेगा।
लफ़्ज़-ए-इश्क़ अज़र अमर रहेगा।
मुहब्बत को हादसा समझो या समझो
कुछ ओर, ये होता इधर उधर रहेगा।___Rajdeep Kota



मैं तो उस दिन ही मर चुका था।
जब उसे आख़िरी बार देखा था।
लेकिन मैं मरा हूं,
मेरे भीतर का कोई शख़्स अभी भी जिंदा है
जिसे सिर्फ़ उसका इंतजार है
सिर्फ़ उसका
वो नहीं मरा अभी भी
मरेगा भी कैसे
"जब तक वो जिंदा है"

(रूह)

तुम जिस्म हो
ओर में हूं एक दरबदर भटकती रूह,
किसी जिस्म को पाने
प्रियजन के क़रीब जाने
दरबदर भटकती रूह हूं मैं,
जिस्म को पाने की मेरी,
अधूरी ख्वाहिश कहीं रह न जाए अधूरी।
यहीं दुखद भावनाओ से घिरी
कहीं रह न जाऊं प्यासी।___Rajdeep kota



जिसे न था अज़ीज़ मुझसे, उसके पीछे भागा चला गया।
वो एक दलदल था, मैं तो उसमें ही खुपता चला गया।___Rajdeep Kota




वो एक अजनबी था तब तक सही था,
पहचान ही लंबे हिज्र की वज़ह बनी।
__Rajdeep Kota



(में तैयार हूं)

वो एक फूल हो जाए
तो मैं ख़ुशबू होने को तैयार हूं।
वो मेरा मालिक हो जाएं
तो मैं दास होने को तैयार हूं।
वो आसमां मैं चमकता
एक मेहताब हैं राज़
जमीं पे आके रूपहीन हो जाएं
तो भी उसका होने को तैयार हूं।
तुम उसे पराया कहो, बुरा कहो या
कहो कुछ ऑर,
वो मेरी राह का रहबर हैं, किसी
भी वक्त उसका होने जो तैयार हूं।
मेरी जरूरत हैं, मेरी फितरत हैं
हैं वहीं मेरी ख्वाहिश
दिल से कहता हूं
मैं उसका होने को तैयार हूं।
आलम भले ही
मुझे मनहूस कहें
बोहोत कुछ लुटाया है उसके वास्ते
ओर भी बोहोत कुछ लुटाने
तैयार हूं।_____Rajdeep Kota



बुतखाने की चोकट तक गया, फ़िर वापिस आ गया।
मेरे माजी अब तो कोई मर्म बतला ही दे,ले मैं आ गया।____Rajdeep Kota




एक रोज़ तेरी यादों ने भरे शब मैं मेरे भीतर जगह खोजनी चाही।
मिलते ही उनसे मैं सराबोर हो गया।___Rajdeep kota




यह चोट लगीं है कि लगाई गई है।
आग बुझी नहीं है बूजाई गई है।

मेरी आंखें जूठ नहीं बोलती कभी
वो जली नहीं उसे जलाई गई है।

जो न मिटी है न मिटेगी कभी
उल्फत की कहानी ही ऐसे रचाई गई है।

बोलते समय कुछ ख़ामोश था वो
लगता है कोई बात छुपाई गई है।

हर बार चुप हो जाता हूं यह सवाल सुनके,
यह दुनियां किसके हाथो बनाई गई है।



हर बदलाव अच्छे नहीं होते,
कुछ बदलाव दम निकाल देते हैं।___ Rajdeep kota


तेरे ज़िक्र से शुरू मेरे ज़िंदगी का फ़साना
तेरे ज़िक्र पे ही ख़त्म होगा।___Rajdeep Kota



ख़ुशी की बात हैं तेरे लिए, दूर जा ना।
बेहत कठिन होता है दिल को मनाना।


तसव्वुर मैं वो, गम मैं वो, आह मैं भी वो
आख़िर क्या मसला है उनसे।




अब फ़िर उसकी यादें सताने लगीं
बहकाने लगीं
सोचता हूं फ़िर बहक जाऊं।



सफ़र की आहटों से सहमा हो गया हूं।
मंज़िल आख़िर कब आने को है।___Rajdeep Kota



आज किसी और का जमाना है कल मेरा होगा
फ़िर तो यह आफताब, यह चांद ,यह तारे
सब कुछ मेरा होगा।___Rajdeep kota




ख़्वाब-ए-मुसलसल शब भर जारी रहा।
तेरा ख़्वाब मैं आना जब तक जारी रहा।_____Rajdeep kota



जब बात ईमान के राज़ की हुई, कुछ नाराज़ हो गया।
जब बात उल्फत के राज़ की हुई, में ही राज़ हो गया।


वो एक लिहाफ़ भी था, सर्द हवाओं से बचाने के लिए मुझे।
वो एक सूरज भी तो था, जलाने के लिए मुझे।


एक दिन गुज़रता नहीं आसानी से
बोहोत लंबी तन्हाई से गुज़रना पड़ता हैं



मेरा एक दिनों तुझमें विलीन होना होगा।
तब मैं, मैं नहीं रहूंगा।
तुम हो जाऊंगा।
__rajdeep Kota



फ़िर कीसिकी यादों का दौर जारी हुआ।
दिल आहिस्ता आहिस्ता भारी हुआ।



रोज़ की तरह वो मिलने नहीं आई।
लेकिन उसकी यादें मिलने चली आई।___Rajdeep Kota


शय्या पे सोने ही वाला था कि
तेरी यादों ने दरवाज़ा खटखटाया।



आज मेरी ख़ामोशी का सबब पता चला।
वो कई दिनों से मुझसे दूर है।
___Rajdeep Kota



कोई ऐसा इज़ाज हो कि, मैं आफ़ताब हो जाऊं।
इंतिख़ाब तेरे हाथों हो तो बता दे, मैं फूल हो जाऊं।___Rajdeep Kota



कोई ऐसा इज़ाज हो कि, मैं आफ़ताब हो जाऊं।
इंतिख़ाब तेरे हाथों हो तो बता दे, मैं फूल हो जाऊं।___Rajdeep Kota




आब-ए-चश्म, आब-ए-तल्ख़ न हो जाएं कहीं।
मेरा चश्म-ओ-चिराग़, धूमिल न हो जाएं कहीं।___Rajdeep Kota




मेरा देह आज नहीं तो कल इसी मिट्टी मैं मिल जाएगा...
फ़िर ढूंढ़ लेना मुझे...
____Rajdeep Kota






खता एक बार नहीं हज़ार बार करो।
वो आ रहा है यार, जरा इंतज़ार करो।
यह ज़माने पे, ये निच्छलो पे तो सही
चांद तारों पे भी अपना इख्तियार करो।




मेरी यादें जुड़ी है कुछ उस अनजान से।
अब छोड़ो ये गुस्ताख़ी कहता हूं, ईमान से।

एक बार बता तो दे, यह चांद तारो को
भी खींच लाऊंगा सिर्फ़ तेरे अरमान से।

एक दरार पड़ी है दिलों दीवार पे सुनले,
और दरारे पड़नी शुरू होगी गुमान से।

उस इमारत का एक पत्थर खिसका है अभी,
और कई खिसकेंगे कहता हूं ज़ुबान से।


नाराज़ हू आज उस मजहबी से,
इबादत कैसे होगी..?____Rajdeep kota



यह हादसा फ़िर हमारे साथ हुआ,
फ़िर दिल पे किसीने दस्तक दी।___Rajdeep Kota




रोज़ रातों मैं कोई चुपके से मेरी देहलीज से होता हुआ दरवाज़े पे कोई खत लिखा छोड़ जाता हैं।
जब उस खत को देखूं
तो सिर्फ़ मुहब्बत शब्द लिखा पाता हूं।____Rajdeep Kota


उसकी आदत थी सब की तरेह मुझे भी भूल जाना।
ओर भूल भी गया।
लेकिन मेरी तो ऐसी फितरत नहीं है।___Rajdeep Kota



आज सुषुप्त है,
एक दिन फ़िर वो खड़ा हो उठेगा।
और मेरे भीतर ही कहीं जगह खोझने लगेगा।___Rajdeep Kota


इन गद्दार को गद्दारी करना बेहत पसंद है।
हमसे चरागो को जलना बेहत पसंद है।

होती है सब की अपनी अपनी फितरत
किसीको आफताब, तो किसीको चांद पसंद है।

इन साहिबे मनसदो(सत्ताधीश) से कोई ज्यादा बदलाव कि आस न रखो, इन्हें कुछ ओर ही पसंद है।



उसकी सही फितरत कुछ ओर है, दिखा रहा कुछ ओर है।
हादसा बेहत बड़ा हुआ आज ,सच कुछ ओर है अख़बार में छिपा कुछ और है।___Rajdeep Kota




हम न थकें है ओर न थकेंगे।
भारतीय है ओर भारतीय ही रहेंगे।

शहादत की कसम ख़ाओ
फरेबियो, अब ओर नहीं बिकेंगे।

देखते है किसकी हिम्मत है छूने की,
यह झंडे देश के कोने कोने में लहरेंगे।

वतन है, हमारा वतन, तुम क्या जानो
वतन की उल्फत, सदेय इसकी हिफ़ाज़त करेंगे।

जन्मांतरों मैं भी भारतीय पहचान मिले,
ऐसी उस ख़ुदा से रोज़ दुआ करेंगे।

न रोक सका है कोई हमें, न रोक सकेगा,
दिन ब दिन उन्नतियो की उचाए छुएंगे।

इसी मिट्टी की साक्षी में जन्म लिया है,
आख़िरी इस मिट्टी में ही कहीं खो जायेंगे।___Rajdeep Kota




इस अजनबी से पता नहीं मेरी क्या ताल्लुकात(संबन्ध) है।

जितनी बार मिलू उसे, लगता कि पहली मुलाक़ात है।___Rajdeep Kota




घर से निकलकर, कुछ दूर हो गया।

ढाई अक्षर क्या पढ़ लिए, मगरूर(अभिमानी) हो गया।


नशे से भागते फिरता था वो आज तक

बुतखाने से क्या गुज़रा, नशे में चूर हो गया।


बोहोत घमंड था उसे अपनी जायदाद पे

अब क्या करेगा,देखो मजदूर हो गया।


तकदीरवान होगा सायद,एक दिनों

चाय बेचता था, आज मशहूर हो गया।

___Rajdeep Kota



जूठ, सच को बहका रहा है सुनो।

सच, जूठ न हो जाए कहीं__Rajdeep Kota




जेल में धकेल दिया मुझे,सायद कसूरवार समझते होंगे।

वे सब मेंढ़क इस कुएं को ही संसार समझते होंगे।___Rajdeep Kota




मेरे दास मेरे मालिक बनने चले है

चौर साहूकार बनने चले है... ___Rajdeep kota




बुतपरस्त अब नहीं रहा में, निराकार को मानता हूं।

कोई भी हो किरदार,अच्छी तरह निभाना जानता हूं।


बात शराफ़त की हो, सियासत की हो, या हो कुछ ओर, होठों पे रोज़ लफ़्ज ए ईमान रखता हूं।


अब यह आंसू भी शरारती अंदाज के हो गए है,

घर से निकलू तो चौकोर वस्त्र लिए निकलता हूं।


माना कि में बरफ का एक सख़्त टुकड़ा हूं,लेकिन

मत भूलो की उष्णता में आहिस्ता आहिस्ता पिघलता हूं।


सायद, तेरी काफ़िरे नेमत(कृतघ्नता) देख ही आज

इतना जलता हूं, इसलिए ऐसी ग़ज़लें लिखता हूं।

___Rajdeep Kota




कुछ गुत्थियां सुलझाने मेरा अतीत में जाना हुआ। देहलीज से गुज़रा ही कि उसका दरवाज़े से बाहर आना हुआ।


सूरज ढला की रोशनी गायब हो गई,ओर

फ़िर आसमान में चांद का छाना हुआ।




घर मैं पैर रखे नहीं की अभी से निकाला जा रहा है।

जूठा हो या हो सच्चा, प्यार दिखाया जा रहा है।


लगता है कोई बली का बकरा मिल गया है उसे

इसलिए हमे भुलाया जा रहा है।


ज़ख्म बेहत गहरा है, लगा ,दवाइया देंगे मुझे,

यहां तो वहीं ज़ख्म बार बार दुखाया जा रहा है।


मुझे शक बार बार होगा, कहता हूं तुझे

हररोज कईयो को बेहलया जा रहा है।


मुझे तो मार दिया उन्होंने, यहां तक तो ठीक था,

अब मेरी कब्र को भी मिटाया जा रहा है।


किसने आवाज़ दी ओ ख़ुदा के बंदे,

अज़ीज़ को ज़रा खिसक के कहां मैने"देखो मुझे बुलाया जा रहा है।


अफीम समझू, समझू मद्य की सुरा

जो यहां किसी के नाम बार बार पिलाया जा रहा है।


कल अख़बार मैं शहादत का वोही मसला छपा था,

पता नहीं सिपाही ख़ुद सो रहे है या सुलाया जा रहा है।


सच कुछ ओर है जूठ कुछ ओर है

अख़बार मैं कुछ ओर ही दिखाया जा रहा है।___Rajdeep Kota



कुछ दबे पड़े है राज़ मेरे भीतर सदियों से।

मिला था कल ख़्वाब में परियों से।


कल मेरी बस्ती में एक सूरज ,

भयभीत हो गया था कई दीयो से।


यह मुहब्बत मैं जलने की बात है

सर्दता नहीं मिलेंगी मुझे कई दरियो से।


वे स्वयं आग का ज्वाला है जलने को न कहो उसे

अभी बैठा है तो सिर्फ़ अपनी मजबूरियों से।



बोहोत दिनों से भूखा था

खाने बैठा तो ख़ाकसार(दिन, रंक) याद आ गया।

गुत्थियों से, तजुर्बों से, मुहब्बत से हराभरा

संसार याद आ गया।

____Rajdeep Kota


मेरे हिस्से के कुछ दिए उन्हें देकर आया हूं।

मेरे दुश्मनों की नींद हराम करके आया हूं।


सुना है तेरी सांसो जहां बड़ा वीरान पड़ा है सदियों से,

फ़िक्र मत कर,मेरे नाम के कुछ पौधे बुनकर आया हूं।


तेरी आंखों को जिस जिस दिन रुलाया है मैंने

उस उस दिन में ही आंसू बन बाहर आया हूं।


तेरे जिस्म के पत्थर इर्द गिर्द उखड़े पड़े है,

में उसकी मरम्मत करने आया हूं।


ओर नए चांद उगाने होंगे हमें "राज़"

अंधेरे ने मुझसे कहा था,में इस जहां पे हुकूमत करने आया हूं।_rajdeep Kota


एक उल्फत के ही साझेदार क्यों बन जाते हैं सब।

खिलते सूरज से हैं, फ़िर जुगनू क्यों बन जाते है सब।___Rajdeep Kota




हैं इश्क़ तुझे जितना भी लिंखु

ग़ालिबन सब कम ही पड़ेगा।___Rajdeep kota