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ग़ज़ल, शेर

सुना है आशिकों से उसके आशियानों मैं।
यहां सब हमारे ख़िलाफ़ है
कहीं ओर चलते हैं।
दोस्त तू काबिलियत देख
उसकी पीढ़ियां नहीं
गुलाब कीचड़ मैं ही
खिलते हैं।
समझ नहीं पाता कभी कभी मेरे
चाहने वाले को
चंद लम्हें भी वो मुझसे दूर कैसे रह सकते हैं।
बुलाते है ख़ुद ही महफ़िल में हमें
फ़िर पता नहीं बाद में
हमारे नाम से जलते क्यों हैं।
जब महबूबा से एक बोसा लेने के को डरते है
तो मुहब्बत करते क्यों हैं।___Rajdeep Kota


बदलता है मेरे बस्ती का रंग हर रोज़
क्या करे हम भी बदलना सीख गए।
यारों मुबारक बाद दो हमें
हम हमारे दुश्मनों के बीच रहना सीख गए।
हम ग़ज़ल लिख पाते है या नहीं पता नहीं
पर थोड़ा बोहोत समझना सीख गए
क्या करू बरसो से सफेद पोशो से रिश्ता था
हम भी बेवजह शोर मचाना सीख गए।
बेकरारी मैं कहां नींद आयेगी हमें जागते रहते हैं
ये चांद तारे भी देखके हमें जागना सीख गए।___Rajdeep Kota


खिताब नहीं चाहिए, तू मुझको काबिलियत दे दे।
बोहोत नथी तो थोड़ी, तू मुझको आदमियत दे दे।
महल हुए आज खंडहर, दीवारों में पड़ गए छाले,
जो क्षण भंगुर ना हो ऐसी तू मुझको मिल्कियत दे दे।

मासूम चेहरा शरीफ़ बनता दिखता है मुझको कभी कभी
कोई शरीफ़ ना कहे ऐसी तू मुझको मासूमियत दे दे।
रोज़ देखता हूं कोई न कोई चर्चे में होता हैं,मेरे भी
चर्चे दूर दूर तक हो ऐसी तू मुझको अहमियत दे दे।___Rajdeep Kota


जरूरत सिर्फ़ तब तक रहेगी
जब तक तुम कमाते रहोगे,
बोहोत लाड लड़ाएंगे दोस्त
जब तक तुम कुछ पिलाते रहोगे
ज्यदा नहीं तो थोड़ा कम होगा
जो दर्द कीसे से जताते रहोगे
सब बैरी जलने लगेंगे मिया
जो तुम सदेय मुस्कुराते रहोगे
अज़ीज़ तब तक ही रहूंगा
जब तक तुम कुछ खिलाते रहोगे।___Rajdeep Kota


मुजफ़्फ़र लिखे तो ठीक है
हम कहां लिखेंगे जफरनामा।
यादें मंज़िल-ए-सफ़र की बसी थी जिसमे
हमसे खो गया वे सफ़रनामा।___Rajdeep Kota


सफ़र की आहटों से सहमा हो गया हूं।
मंज़िल आख़िर कब आने को है।___Rajdeep Kota


एक काफ़िला ऐसा भी खड़ा हो
जो तेरे गांव से गुज़रता हो।
तो मैं भी काफ़िला का सदस्य बनू।___Rajdeep kota


कुछ आलिम भी थे उस महफ़िल मैं।
कुछ ख़ल भी थे उस महफ़िल मैं।

मैं था मेरे सब प्रिय अज़ीज़ भी थे, फ़िर
पता नहीं किसकी कमी थी उस महफ़िल मैं।

ग़म था, नशा था, था सन्नाटा चारों तरफ़
बस तेरे सिवा सब मौजूद था उस महफ़िल मैं।

कुछ भरा भरा सा था उस महफ़िल मैं।
तो कुछ ख़ाली ख़ाली भी था उस महफ़िल मैं।

सच जानने मुझसे एक कटोरा शराब का,
रखा गया था उस महफ़िल मैं।___Rajdeep Kota


क्या कोई तअल्लुक था मेरा उनसे...?
आज जब वो दूर हो रहा है मुझसे
तो यह चेहरे पे उदासी कैसी...____Rajdeep Kota



उसका आना मेरी ज़िन्दगी में सिर्फ़ एक वाकया था।
जो आता है, कुछ देर ठहरता है, और फ़िर चला जाता हैं।____Rajdeep Kota


पता नहीं,किसे कब और किस घड़ी, कब्र नसीब हो जाएं।
इससे पहले कि ख़ुदा हम तेरे ओर क़रीब हो जाएं।

अच्छा है मुहब्बत का किरदार, निभा लेंगे, कोई
उज्र नहीं है,पहले उसके मुनासिब हो जाएं।

दिल का पत्थर बिखरा पड़ा है चारों ओर,ख़ुदा
करे उसकी दस्तक से पहले वाजीब हो जाएं।

उसको रोशनी बेहत पसंद है, कुछ हो
सकता है हमारे बीच,जो सूरज मेरा नसीब हो जाएं।

उस चांद को छत पे ला सकु, वैसी
में सोचू ओर तू तरकीब हो जाएं।

अभी तू नसीब मै है तो आजमा ही लू,ज़रा क़रीब से,
वरना पता नहीं कब नसीब, बदनसीब हो जाए।

तुझे अंधा होता देखना चाहता हूं मेरे प्यार मै,
डर है कि कहीं खड़ा कोई रकीब हो न हो जाए।___Rajdeep Kota






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