"रुको राजन ,क्या तुम अक्षरवंशिका के सम्राट अभय हो ?"
"कौन हो तुम , ओर हमारे पथ में आकर हमें नाम से बुलाने का दंड जानते हो ?"
"तुम्हारा क्रोध ही तुम्हारे निर्दोष पुत्र कि जान लेगा"
"अपना मुख बंद करो मूर्ख ,हमे मृत्युदंड देने पर विवश मत करो"
"और तुम्हारी मृत्यु का कारण तुम्हारी बेटी राजकुमारी चंद्रवती होगी।"
"सैनिको ,बंदी बना लो इस दुष्ट को"
"दिखावे का क्रोध बंद करो राजन ओर 3 कदम पीछे हो जाओ अन्यथा हमे एक राजा को लात मारनी पड़ सकती है"
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राजा उस अजनबी को महल में एक गृह में भोजन करते हुए पूछते है : "श्रीमान ,आपने एक क्षण हमे लात मार कर घोर अनर्थ कर दिया था और दूसरे क्षण शिकारी के तीर से हमे जीवनदान दे दिया। अगर आप न होते तो आज अनर्थ हो जाता , हम प्रभावित हुए आपकी सूझबूझ ओर साहस देखकर ।"
(श्रीमान थोड़ा मुस्कुराकर फिर चिंतित भाव से भोजन करने लगते है)
राजन : "मगर आपने ऐसा क्यों कहा कि मेरा क्रोध ही मेरे निर्दोष पुत्र का जीव लेगा और मेरी पुत्री ही मेरी मृत्यु का कारण बनेगी !?"
श्रीमान : "समय आने दो ,सब समझ मे आने लगेगा"
(श्रीमान ने फिरसे नीचे देख कर चिंतित मुद्रा ग्रहण कर लि )
राजन : "क्या हुआ श्रीमान , आप चिंतित दिख रहे है ,ऐसी कोनसी परेशानी है जो हम दूर नही कर सकते !?"
(श्रीमान थोड़ा और मुस्कुराता है और फिरसे वही चिंता वाला भाव मुख पर आ जाता है)
राजन : "भोजन के बाद राजसभा का आयोजन है ,आप आमंत्रीत है श्रीमान "
श्रीमान : "हम अवश्य आएंगे।"
(राजसभा प्रारम्भ होने को हे ,सैनिक महाराज के आने का संदेश देते है ,सभा मे सभी लोग खुश है लेकिन अपरिचित श्रीमान चिंतित है )
(महाराज सभागृह में दाखिल होते है सभी महाराज का जयहो के नाद के साथ महाराज का स्वागत करते है ,
श्रीमान मूक अवस्था मे खड़े है ,उसे महाराज के आने की चिंता है।
महाराज को ये देख के थोड़ा आश्चर्य ओर थोड़ा क्रोध होता है मगर जीवनदान पाने की घटना को याद करके उसका क्रोध शांत हो जाता है ।)
मगर मंत्री ये सब देख के बर्दास्त नही कर पाया , स्वभाव से शांत व बुद्धिशाली मंत्री ने श्रीमान को अतिथीभाव कायम रखके राजसभा में श्रीमान को टकोर किया…
मंत्री : "महाराज आज्ञा चाहता हु…"
राजन :"बोलो मंत्री महोदय ,आज्ञा है"
मंत्री :" में राजसभा से कहना चाहता हु की हमारे महाराज की न केवल इस राज्य बल्कि छोटे मोटे राजा समेत आस पास के सभी राज्य महाराज का आदर करते है ,ओर एक राजा के प्रति हमारा कर्तव्य है कि हम उसका आदर उसी तरह करे जिस तरह करना चाहिए ।"
आप सुन रहे है ना श्रीमान ?
(श्रीमान नीचे देख कर कुछ सोचते हुए मंत्री की ओर आंखे घुमाकर देखा और कुछ नही बोले )
राजन : "हम देख रहे है आप जब से मिले हो तब से चिंतित प्रतीत हो रहे हो ,बताओ क्या परेशानी है ?"
श्रीमान : "क्या तुम वाकई सुनना चाहते हो ? तो सुनो राजन ! अगले कुछ क्षणों में मोत तुम्हे छू कर निकलेगी ।"
(महाराज समेत पूरी सभा खड़ी हो गई )
(तभी ऊपर से कड़ड़ की आवाज़ आई और राजसिंहासन के ऊपर का जुमर राजा के नाक और छाती को छिलता हुआ नीचे धस पड़ा )
(सैनिको ने श्रीमान को शरीर पर तलवार भाले चुभा कर घेर लिया )
राजन : "कौन हो तुम?"
मंत्री : "हमे तो ये कोई मायावी प्रतीत होता है"
महाराज : "कौन हो तुम मायावी राक्षस ,अपना परिचय दो यदपि हमे आपको मृत्युदंड के लिए विवश होना पड़ेगा"
श्रीमान : "तुम्हारी कटि नाक और मेरे शरीर मे चुभे गए हथियार से निकले रक्त का रंग एक ही है राजन !"
महाराज : " चुप हो जाओ मूर्ख ,हमारा इतना अपमान का फलस्वरूप हम तुम्हे मृत्युदंड देते है । सैनिको ,एक सप्ताह इसे भूखा प्यासा रख कर तड़पाओ ओर सप्ताह के अंत पर इसे शहर में ले जा कर इसे मृत्युदंड दिया जाए"
श्रीमान : " तुम्हारा क्रोध ही कारण बनेगा एकदिन तुम स्वयं अपने ही कारण से तड़पोगे !"
(महाराज के आदेश से सैनिक उस अपरिचीत को कैद में ले जाते है )
(मगर जाते जाते फिरसे एक बार महाराज की ओर देख कर बोलता है )
"राजन तुम आओगे मेरे पास "
"आज ही…."
"मध्यरात्रि पे तुम्हारी ही कैद में तुम केदी बनोगे"
(महाराज थोड़ा चिंतित हो गए । उसका चिंतित होना भी जायज़ था क्योंकि जो भी कुछ उसने बोला था वो अब तक हुआ है। उसकी वाणी में सच्चाई थी मानो वो सब कुछ जानता हो । मगर महाराज सोच में थे कौन है वो ,ओर क्यों वो इतना चिंतित है । क्या वो भविष्य जनता है या फिर उसकी वाणी सम्भव हो रही है !)