Remote se chalne wala gudda - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

रिमोट से चलने वाला गुड्डा - 2

रिमोट से चलने वाला गुड्डा

मज्कूर आलम

(2)

अरे छोड़ो न, कहां तुम इन चीजों में फंसी हो। तुम जैसी हो, मुझे वैसी ही सुंदर लगती हो।

मगर प्रतीक...

तब तक चाय खत्म हो गई थी। प्रतीक एक बार फिर लैपटॉप से उलझ गया था। उसे अपनी तरफ ध्यान न देता देख वह जिदभरे स्वर में बोली- ठीक है अगर मैं दुबली नहीं हो सकती तो क्या? कोई बात नहीं। मैं वह गुडिय़ा तो ले ही सकती हूं। स्लिम-ट्रिम गुडिय़ा! मुझे वह गुडिय़ा चाहिए। उसे गोद में लेकर मुझे उसमें अपना अक्स देखना है। दस साल पहले वाली पवित्रा को देखना है।

लैपटॉप बंद करता हुआ प्रतीक बोला- नौ बज गए हैं। एक घंटे में फटाफट तैयार हो जाओ। ब्रेकफास्ट के लिए चलते हैं। दस बजे तक वे उस छोटे से होटल के रेस्टोरेंट में थे। रिसेप्शनिस्ट खुद उठ कर वहां आ गया था। इस बात का वह पूरा ध्यान रख रहा था कि उन दोनों को किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो। जितने देर वे वहां रहें, रिसेप्शनिस्ट बीच-बीच में रेस्टोरेंट में आता-जाता रहा। वह उन्हें यह एहसास कराना नहीं भूला कि कि वे अपने ग्राहकों का खास ख्याल रखते हैं।

प्रतीक ने पवित्रा से कहा भी, होटल भले छोटा हो, लेकिन मुझे अच्छी बात ये लगी कि ये अपने ग्राहकों का बहुत ख्याल रखते हैं। ये अपना काम बहुत अच्छी तरह जानते हैं। ये है बिजनेस ट्रिक। इन्होंने तो मुझे अपना मुरीद बना लिया है। अगली बार भी जब मैं यहां आऊंगा तो इसी होटल में ठहरूंगा। इस बात पर पवित्रा चुप ही रही। ऐसा लगा कि उसे ये बात पसंद न आई हो।

नाश्ता कर वे दोनों वापस अपने रूम में चले गए थे। यहां आकर उत्साह से भरी पवित्रा प्रतीक से खूब सारी बातें करना चाहती थी। उसने प्रतीक को छेड़ा, याद है प्रतीक शादी के इन 6 सालों में हम कहीं बाहर नहीं गए। तुम जानते ही हो, मुझे इस बात का बेहद मलाल था। मैं हमेशा तुमसे इस बात के लिए लड़ती भी रही, लेकिन तुम और तुम्हारा काम... चलो कोई बात नहीं, देर आयद, दुरुस्त आयद। चाहे ऑफिशियल टूर पर ही सही। तुम मेरे साथ निकले तो...

कुछ देर तो प्रतीक पवित्रा से बात करता रहा, लेकिन देखा कि आज वह पूरे शबाब पर है। रुकने का नाम ही नहीं ले रही तो उसने कहा- हां, यार कल से मुझे साइट विजिट करनी है। आज का पूरा वक्त था, तो सोचा था कि कहीं घूमने चलेंगे। लेकिन बॉस ने कुछ जरूरी पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन तैयार करने को भेज दिया है। पूरा मजा खराब करके रख दिया है। बोलते-बोलते प्रतीक की नजर खिडक़ी की तरफ गई। बारिश रुक गई थी। वह पवित्रा की तरफ देखता हुआ बोला- बारिश रुक गई है। ऐसा करो पवि, तब तक तुम ही कहीं आसपास टहल आओ। मेरे साथ बैठ कर अपना भी दिन तो मत खराब करो। मैं जल्दी ही खाली होकर तुम्हें फोन करता हूं। फिर कहीं चलते हैं। डिनर बाहर ही लेंगे।

पवित्रा अकेले कहीं जाना नहीं चाहती थी। वह कहना चाहती थी, तुम बिन क्या जाना, लेकिन ऑफिस के काम का मतलब भी वह अच्छी तरह समझती थी। बड़ी अनिच्छा से उसने कहा, अच्छा मैं नीचे लॉबी से टहल कर आती हूं। उसने नीचे आकर रिसेप्शनिस्ट से जानकारी ली कि आसपास में घूमने लायक क्या है। उस अनजाने शहर में और कोई था भी नहीं, जिससे वह वहां के बारे में पूछती। रिसेप्शनिस्ट भी बड़े चाव से उसे बता रहा था। उसने सलाह भी दी, क्यों नहीं आप कहीं घूम आतीं हैं। हम अपने यहां के कस्टमर्स को टैक्सी भी मुहैया कराते हैं। यह कैटलॉग है, आप तय करें कहां जाना है। उसने एक पर्ची आगे बढ़ा दी थी।

नहीं, मेरे पति को कुछ जरूरी काम है। वह अभी नहीं जा सकते और उनके बिना मैं कहीं दूर जाना नहीं चाहती। बस पूछ कर रख रही हूं कि जब वह खाली हों तो डिसाइड करने में वक्त खराब न हो।

अच्छा तो आप ऐसा कर सकती हैं कि तब तक सामने झील में जो म्यूजियम है, वहां घूम लीजिए। वहां आपको बहुत कुछ अनोखा देखने को मिलेगा। एक से एक कबीलाई युद्धक हथियारें देखने को मिलेगी। म्यूजियम में काफी हथियार ऐसे हैं, जिनके बारे में आपने सिर्फ सुना होगा। देखा तो कतई नहीं होगा। संभव है सुना भी न हो। यकीनन वे युद्धक हथियार देखकर अच्छा लगेगा। अभी तो झील में बर्फ जमी है, इसलिए नाव से आप वहां नहीं जा पाएंगी। वर्ना वह भी एक शानदार अनुभव होता, लेकिन कोई बात नहीं। म्यूजियम तक जाने के लिए एक पुल भी है। आप चाहें तो उस रास्ते जा सकती हैं। हम गाड़ी के साथ आपको एक गाइड भी उपलब्ध करा देंगे। जब आपका मन करेगा आप एक कॉल कीजिएगा। पांच मिनट के भीतर टैक्सी आपके पास पहुंच जाएगी और उसके 10 मिनट बाद आप होटल में होंगी।

अजनबी शहर का अकेलापन अब उसे काट रहा था। थोड़ी देर पहले शहर का जो अनजानापन उसे अपनी ओर खींच रहा था, अब वही खलने लगा था। मौसम का असर भी उस पर होने लगा था। वह ठंड में ठिठुरने लगी थी। पवित्रा समझ रही थी कि रिसेप्शनिस्ट अपने धंधे की बात कर रहा है। लेकिन धंधा, काम जैसे शब्दों के बारे में वह उस वक्त सोचना भी नहीं चाहती थी। सबसे बड़ी बात यह कि इस वक्त उसके अकेलेपन का साथी भी तो वही था। उस समय वह ऐसा महसूस कर रही थी, जैसे वह जन्म-जन्मांतर से अकेली है। जब भी उसे जरूरत होती है, कोई उसके साथ नहीं होता। ऐसे में उस रिसेप्शनिस्ट का उसका ध्यान रखना, उसे रुचिकर लग रहा था। इस कडक़ड़ाती ठंड में उसके अपनत्व भरे बोल से उसे ऊष्मा मिल रही थी। रिसेप्शनिस्ट बता रहा था कि म्यूजियम यहां से मात्र 10 मिनट की दूरी पर है। आप जब चाहें वहां से वापस आ सकती हैं। आप बस फोन कर देना हमारी टैक्सी पांच मिनट के भीतर आपके सामने होगी। पवित्रा को उसका यह आइडिया पसंद आया। उसने सहमति में सिर हिला दिया। रिसेप्शनिस्ट थोड़ी देर फोन से उलझा रहा। दो मिनट के भीतर एक लंबा हैंडसम-सा लडक़ा उसके सामने खड़ा था। रिसेप्शनिस्ट ने उससे उसका परिचय करवाते हुए कहा, यह हैं हमारे टूरिस्ट गाइड असलम बेग। बाहर गेट पर टैक्सी लगी है। आप इनके साथ म्यूजियम देखने चले जाइए। उसने पवित्रा को एक फॉर्म भरने को दिया।

10 मिनट के भीतर दोनों म्यूजियम में थे। सच में बेहद भव्य और शानदार था संग्रहालय।

म्यूजियम में घुस कर बड़े अदब से सिर झुकाते हुए असलम ने कहा- हमारे यहां के हिल स्टेशन में आपका स्वागत है। यहां आपका साबका मध्यकाल के कुछ अजूबे हथियारों से होने जा रहा है। निश्चित रूप से इन अजूबे युद्धक हथियारों में किसी आधुनिक हथियारों जैसी संहारक क्षमता नहीं है, लेकिन इंसानी क्रूरता का चरम आपको यहां भी दिखेगा।

मोबाइल फोन और लैपटॉप भी है क्या यहां...?

क्या मैम...

मोबाइल फोन बोलते-बोलते उसे याद आया कि प्रतीक को तो वह यह बताना ही भूल गई है। फटाफट फोन निकाल कर प्रतीक को फोन लगाने लगी। और अपनी जीभ काटती हुई बोली, नहीं, नहीं कुछ नहीं... प्लीज कंटीन्यू...

असलम बोलने ही वाला था कि फोन लग गया। उसने प्रतीक को बताया कि वह संग्रहालय चली आई है, पास में ही है म्यूजियम। देखो, खाली होकर...

पवित्रा की बात पूरी होने से पहले प्रतीक बोल उठा, ठीक है, ठीक है। एन्ज्वॉय बेबी और बिना प्रतीक्षा किए फोन काट दिया...

पवित्रा असलम की तरफ मुखातिब हुई- सॉरी। जी क्या कह रहे थे।

असलम बताने लगा, मध्यकाल में आज की तरह संप्रभुता बताने वाली बड़ी-बड़ी भौगोलिक सीमाएं नहीं हुआ करती थीं। तब एक-एक गांव पर सीमाएं बदल जाती थीं। एक गांव में किसी दूसरे कबीला का आधिपत्य होता था तो दूसरे गांव में किसी और का प्रभुत्व। तब भी वे वैसे ही लड़ते थे, जैसे आज के पड़ोसी मुल्क... अलग-अलग कबीलों के लडऩे का अंदाज भी अलग-अलग होता था। कोई आमने-सामने की लड़ाई में पारंगत होता था तो कोई छापामार युद्ध का महारथी। किसी की पैदल सेना मजबूत थी तो किसी के घुड़सवार। यहां भी झील के इस और उस पार की कबीलाओं में जबरदस्त दुश्मनी थी। दोनों एक-दूसरे की गांवों पर कब्जा करना चाहते थे। कहते हैं इस झील को कब्जाने के लिए सौ साल से ज्यादा समय तक इन दोनों कबीलाओं में युद्ध होते रहे। दोनों तरफ की कई-कई पीढिय़ों ने इस युद्ध में अपनी कुरबानी दी। वह सुन रही थी, उसे लग रहा था मानो कोई डीवीडी चल रही है कंप्यूटर पर।

म्यूजियम की तरफ हाथ उठाता हुआ असलम बोला, ये सारे असलहे उसी समय के हैं। असलम के इतना बताते-बताते वे दोनों एक रैक के पास पहुंच गए थे। असलम बताता जा रहा था- ये देखिए, ये जो हथियार है। यह गैंडे और कछुए की खाल से बना है। यह ढाल है। कहते हैं कि इसके आर-पार कोई तलवार या भाला नहीं हो सकती है। तब दुश्मन की वार से बचने के लिए इसी ढाल का इस्तेमाल करते थे। उसके बाद थोड़ा आगे बढ़ा तो वह बोला तीर, तलवार, भाला, धनुष-बाण जैसे परंपरागत हथियार तो आपने बहुत देखे-सुने होंगे। आइए आपको अब उस सेक्शन में ले चलते हैं, जहां आपको ऐसे-ऐसे हथियार मिलेंगे, जिनके बारे में आपने शायद किस्से-कहानियों में भी न सुना हो।

यह है लोहे की बनी कटार। इसकी खास बात यह है कि इसमें तीन धार है। कहते हैं कि युद्ध में जब दौलतराव सिंधिया जाते थे तो उनके कमर में इस तरह की कटार जरूर होती थी। ये हथियार वहीं से इस कबीले में पहुंचा। उनके साम्राज्य का कोई कारीगर इधर चला आया था। पहले पहल उसने ही यहां इस हथियार को बनाया।

यह तो दिखने वाला कटार है, आजकल तो ऐसे-ऐसे कटार हैं, जो दिल को चीर भी दे और कोई उसे हथियार भी न कहे। इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ खुदा... लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं...

असलम आश्चर्य से आंखें फाड़े पवित्रा को देख रहा था, अरे ये तो मिर्जा गालिब का शेर है न। लगता है कि आप पर भी मध्यकाल का असर होने लगा। वह भी तो मध्यकाल के धरोहर ही थे न। जबकि पवित्रा निसंग भाव से कभी हथियार को तो कभी असलम को देख रही थी। वह जितनी बार भी असलम की तरफ देखती वह अपना सिर झुका देता, जैसे उसे उसकी बहुत कद्र हो। असलम ने जैसे ही सिर झुकाया उसकी नजरों के सामने गुडिय़ा के सामने प्रपोज की मुद्रा में बैठा वह गुड्डा फिर तिर गया।

यह देखिए मैडम, यह है गन शील्ड। असलम की आवाज गूंजी। कहते हैं हमारे यहां के कबीला में आने से पहले इसका इस्तेमाल फ्रांस में होता था। फ्रांस के राजा हेनरी आठवें के बॉडीगॉर्ड के पास यही गन शील्ड होती थी। इसके ऊपर ये जो लकड़ी का खांचा दिख रहा है न। यह इस हथियार को इस तरह से कवर कर लेता है कि सामने वाले को पता ही नहीं चलता कि इसके पीछे कोई हथियार है। यानी बिना किसी को यह गन दिखाए गोली मारी जा सकती थी।

पवित्रा बुदबुदाई- अब के तो दिख भी जाएं तब भी पता नहीं चलता कि हथियार ही हैं। वह रोज-रोज चलती रहती है। रिश्ते को उदासीन और वीर्यविहीन बनाती रहती है। जैसे ऑफिशियल वॉट्सअप ग्रुप से आते मैसेजेज...

जी। असलम ने चौंककर उसकी तरफ देखा। कुछ कहा क्या?

नहीं तो...

असलम आगे बढ़ा, यह देखिए मैडम। यह है स्प्रिंगयुक्त ट्रिपल ब्लेड वाला मध्यम आकार का चाकू। पवित्रा पलटी। दिखने में तो ये बिल्कुल चाकू सरीखा ही होता था, पर किसी के शरीर में जाने के बाद इस स्प्रिंग से खोला जा सकता था। जो अंदर ही अंदर किसी के भी शरीर को एक साथ तीन दिशाओं में चीर सकता था और वापस आते समय आंतों को भी बाहर निकाल सकता था।

सच में! मन, दिल और दिमाग को तो नहीं निकालती न... आश्चर्य से पवित्रा की आंखें चौड़ी हो गईं। उसके हाथ स्वयंमेव उस चाकू को उठाने के लिए आगे बढ़ गए। असलम ने तुरत टोका। मैडम गुस्ताखी माफ। लेकिन यहां की किसी ऐतिहासिक चीज को आप छू नहीं सकतीं।

इधर देखिए यह है मैनकैचर। इसकी खासियत यह है कि इससे ही किसी आदमी का सिर पकड़ कर दूर से ही उसे मारा जा सकता है।

जैसे आजकल के मोबाइल... नहीं।

वो कैसे मैडम?

अरे नहीं यार। वह खिलखिला पड़ी। बिंदास हंसी। मैं ऐसी ही हूं। बीच-बीच में ऐसे ही बिना मतलब के बोल पड़ती हूं। मैनकैचर से पहले सिर पकडक़र कुचल देते थे। अब बजरिये मोबाइल कॉल व्यक्ति पर कब्जा कर लेते हैं। कैरी ऑन यार...

और यह देखिए यह हथियार तो आज भी आपको यहां के रिमोट गांवों में जाएंगी तो लगभग इसी रूप में दिख जाएगा। यह है लड़ाकू हथौड़ा। यह आम हथौड़ा नहीं है। इसका इस्तेमाल युद्ध के मैदान में होता था। इसके एक वार से किसी के भी सिर के दो टुकड़े हो सकते थे।

पवित्रा को भूख लग आई थी। उसकी नजर घड़ी की तरफ गई। दो बज गए थे। उसके दिमाग में भी हथौड़े का वार हुआ। अभी तक प्रतीक का फोन नहीं आया। वह प्रतीक को फोन लगाने लगी। दो, तीन, चार... फोन बजता रहा, लेकिन उठा नहीं। वह बोली भूख लग आई है असलम साहब, कुछ खाना पसंद करेंगे आप।

मैडम आप कुछ ले लें। मुझे तो काम पर निकलने से पहले मेरी शरीके हयात रोज मेरा लंच पैक कर देती है। अगर आप यहां के स्थानीय खाने का स्वाद उठाना चाहें तो...

हां-हां क्यों नहीं। वे दोनों कैंटीन में आ गए थे। असलम अपनी बीवी के बारे में बता रहा था। वह हाउसवाइफ है। मुझे एक पल के लिए भी आंखों से ओझल होने देना नहीं चाहती। यही वजह है कि... आप यकीन नहीं करेंगी, मेरी नौकरी एक बहुत बड़ी टूरिज्म कंपनी में लगी थी। पैकेज भी काफी अच्छा था। लेकिन पोस्टिंग मुंबई दे रहे थे वे लोग। उसने मुझे जाने नहीं दिया। कहा मैं उतने बड़े शहर में नहीं रह पाऊंगी और तुम्हारा पूरा वक्त तो सिर्फ आने-जाने में निकल जाएगा। यहां कम से कम काम से फुरसत मिलते ही 10 मिनट में घर तो होते हो। बीच में भी बुला लेती हूं तो फुरसत निकालकर मेरे सामने आ तो जाते हो... इसलिए ये छोटी-सी नौकरी कर रहा हूं। मुझे भी अपनी बीवी की बात पसंद आई। आखिर कमाता किसके लिए हूं। अगर हम दोनों एक-दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम ही नहीं बिता पाएंगे तो कमा कर क्या करूंगा।

लकी गॉय। पवित्रा को अपनी ही आवाज दूर से आती लगी।

लंच के बाद वे वापस म्यूजियम में थे।

पेट भरते ही असलम पूरी तरह बदल गया था। वह दार्शनिक अंदाज में बोला, आज दुनियाभर में युद्ध और नफरत फैलाने के जितने भी तरीके आप देख रही हैं मैडम, यह मत समझिएगा कि यह हमने आज ईजाद किए हैं। यह सब प्राचीनकाल से पृथ्वी पर मौजूद हैं। भले ही धरती पर प्रेम पहले पनपा हो, लेकिन नफरत का फैलाव हमेशा से ज्यादा रहा है। उसी तरह नफरत भरे ये सारे असलहे अपने आदिम रूप में पहले भी विराजमान थे। बस हमने उसका आधुनिकीकरण कर दिया है। यूं कहिए कपड़े पहना दिए हैं। जैसे यह देखिए पत्थर फेंकने की लकड़ी की इन मशीनों को। इसकी सहायता से फेंके गए पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े किसी भी किले की हालत बिगाडऩे के लिए काफी होती थी। किले की दीवार चाहे कितनी भी मजबूत क्यों न हो यह उसे ढाह ही देती थीं, जैसे आज की टैंकें...

इधर देखिए इस तस्वीर में जो ये आबादीविहीन गांव है। इस पूरे गांव पर हजारों टन जलता तेल डाल दिया गया था और अब जरा हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों के बाद की स्थिति याद कीजिए।

यहां रखी इन नावों को देख रही हैं। इसे हेलबर्नर भी कहा जाता है। यह आत्मघाती नावें होती थीं। ये छोटी नावें बड़ी जहाजों के पास जाकर धमाका कर देती थीं। इस धमाके में हेलबर्नर में बैठा सैनिक भी मर जाता था। अब जरा आज के आत्मघाती दस्तों के बारे में याद कीजिए।

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