मिखाइल: एक रहस्य - 6 Hussain Chauhan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मिखाइल: एक रहस्य - 6

१९५७ का साल केरल राज्य के लिए एक ऐतेहासिक साल था, क्योकि कम्युनिस्ट पार्टी के नेता इलमकुलम मनक्कल शंकरन नंबूदरीपाद भारत के प्रथम बिन कोंग्रेसी नेता केरल के मुख्यमंत्री बने थे और ठीक उसी साल आलोक थॉम्पन का जन्म भी हुआ था जो आगे जा कर भारतीय राजनीति में अपना अलग स्थान बनानेवाला था।
आलोक का जन्म एक बेहद ही साधारण से परिवारमें हुआ था। आलोक के पिता एक माछिमार थे और उसकी माँ गृहिणी थी। आलोक के माता पिता ज़्यादा पढ़े लिखे नही थे लेकिन, माछिमारी के कारण उनका गुजरान हो जाता था। आलोक दिमाग से तेज़ था और उसके पिता चाहते थे कि वो पढ़ लिखकर तरक्की करे और समाज मे अपनी एक अलग पहचान बनाये। मेट्रिक तक तो केरल की पाठशाला में आलोक ने अभ्यास कर लिया लेकिन अब आगे की पढ़ाई केरल में थोड़ी मुश्किल थी। बेटे के उज्ज्वल भविष्य की खातिर आलोक के पिता ने अपनी थोड़ी सी ज़मीन जो उसे उसके पुरखो के द्वारा विरासत में मिली थी वो और अपना मकान बेच दिया और मुम्बई चले गए जो उन दिनों माया नगरी या फिर सपनो का शहर भी कही जाती थी।
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पिता द्वारा की गई कड़ी मेहनत को आलोक ने विफल नही होने दिया और बीकॉम करके अजित भोंसले के की कपड़े की फैक्ट्री में मुनीम के तौर पर काम करने लगा।
अजित ने अपने कैरियर की शुरुआत कपड़े के व्यापारी के तौर पर की थी लेकिन फिर वो कपड़ो की निकास की आड़ में सोने, हाथी दांत, और भी कई सारी चीज़ें जिनकी ब्लैक मार्किट में बहुत सी किम्मत थी उनकी तस्करी करने लगा। धीरे धीरे उसने अच्छी बैंक बैलेंस बना ली थी।
अजित हमेशा दूर की सोचता था, और इसी के चलते अजित अपनी कमाई आमदनी का एक तिहाई हिस्सा सामाजिक कार्य मे खर्च करता था और इसके बदले में कोई भी प्रत्याशा नही रखता था। अजित के इन्ही सामाजिक कार्यो के कारण उसका अपना अलग एक अनुयायियों का वर्ग था और यह वर्ग अब इतना बड़ा हो चुका था कि उसको आने वाले सालों में मुम्बई महानगर पालिका का चुनाव भी जीता सके।
साल १९९७ में एक राष्ट्र संघ नामक पार्टी की ओर से अजित ने मुंबई महानगर पालिका के चुनाव में हिस्सा लिया और उसे आसानी से जीत लिया। अजित के लिए अब आगे का रास्ता साफ था। अब राज्य में एम.एल.ए और फिर दिल्ली में सांसद।
अब करोबार के लिए अजित के लिए समय निकालना थोड़ा मुश्किल होता जा रहा था। लेकिन आलोक ने अजित के बिना भी कारोबार को अच्छी तरह से संभाल लिया था। अजित को आलोक पर विश्वास और भी बढ़ता जा रहा था और अजित ने कारोबार संबंधी सारे फैसले लेने का हक़ भी आलोक को दे दिया था, यहां तक कि आलोक पैसो के मामले में भी बिना अजित को पूंछे फैसले ले सकता था।
अब अजित को चिंता मात्र थी तो उसकी एक लौती बेटी सिमरन के ब्याह की, जिसने अभी ही आलोक के ग्रेजुएट होने के तीन साल बाद ही ग्रेजुएशन पूरा किया था।
अजित की नज़रों में वैसे तो कई लड़के थे, और वो जिससे चाहता उससे अपनी बेटी का हाथ सौंप सकता था लेकिन अजित को कोई ऐसा लड़का चाहिए था जो न केवल उसकी बेटी को संभाले बल्कि उसके व्यापार को और उसके द्वारा अर्जित की गई सभी सफलताओ को एक नए मुकाम पर पहुंचाए। अजित की नज़र में एक वैसा लड़का भी था, और वो कोई और नही बल्कि आलोक ही था। लेकिन अपने वहां काम करते हुए आदमी के साथ उसकी बेटी की शादी करना उसे पसंद नही था, इसलिए उसने एक दिन आलोक को अपने घर लंच पर बुलाया जहा उसने आलोक को अपने व्यापार की पार्टनरशिप का आफर दिया पर शर्त यह थी कि आलोक को उसकी बेटी सिमरन के साथ शादी करनी पड़ेगी।
आलोक एक शांत और सुलझा हुवा आदमी था। उसने बिना कोई देरी किये रिश्ते और पार्टनरशिप के लिए हा बोल दिया और कुछ ही दिनों में वे शादी के बंधन में बंध गए।
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