एक गांव में अपनी मां के साथ एक लड़की रहती थी, लड़की का पिता एक बार काम की तलाश में कई वर्ष पूर्व शहर गया, और फिर वापस लौट कर ना आया, लड़की अपनी मां के साथ रहती, लड़की हमेशा और हमेशा बच्चों के साथ खेलती|
उसकी मां ने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसका पढ़ने लिखने में बिल्कुल भी मन नहीं लगता है, इसलिए पढ़ने लिखने में तो बहुत ही कमजोर थी, स्कूल में उसकी खूब डांट पड़ती और पिटाई भी होती थी, इसलिए लडकी स्कूल भी कम ही जाती थी|
अक्सर खेलते रहने की वजह से उसे मां की सुननी पड़ती थी, लेकिन कभी भी किसी ने उसके चेहरे पर दुख या नाराजगी की एक शिकन तक नहीं देखी थी, वह हमेशा हंसती रहती थी, उसकी सांवली सूरत पर चार चांद लग जाते थे जब वह हंसती थी, उसके दांत उसके चेहरे पर मोतियों की लड़ी की तरह चमकते थे|
हर समय खुश रहने की बदौलत लोग उसे प्यार करते थे, बिन बाप की लड़की होने की वजह से मां भी उसे कुछ ना कहती थी, लेकिन गलती करने पर डांटती भी जरूर थी, क्योंकि वो उसकी जिंदगी संवारने के लिए जरूरी ही था, बेशक परमात्मा ने उसे औरों की भांति गोरी चिट्टी सूरत नहीं दी थी, लेकिन औरों के मुकाबले सीरत कहीं अच्छी दी थी|
और किसी ने कहा भी है, कि सूरत हो ना हो, लेकिन सीरत होनी चाहिए|
लड़की कभी किसी से नाराज नहीं होती, कभी भी कोई परेशानी में होता, तो झट से उसकी सहायता के लिए पहुंच जाती, और इसीलिए कभी-कभी परेशानियों का सामना भी पड़ता, खुद भी परेशानी में पड जाती है|
और इसी वजह से उसकी मां हमेशा परेशान रहती थी, कि किसी दिन और की भलाई के चक्कर में, खुद का कुछ बुरा न कर बैठे, कहीं किसी की मदद करते करते अपनी जिंदगी के लिए मुसीबत खड़ी करके, कहीं अपनी जिंदगी बर्बाद न करले, इसलिए उसके लिए हमेशा ही परेशान रहती थी|
बोल लड़की जिधर भी निकल जाती, चाची, ताई, दादी, भैया, भाभी, चाचा, ताऊ, काका, काकी, कहकर कोई न कोई रिश्ता निकाल लेती थी, और लग जाती थी बतियाने और खेलने कूदने|
और हां एक बात और, उसे और कोई काम आता था या ना, लेकिन खाना कमाल का बनाती थी, जो भी एक बार उसके हाथों से बना हुआ खाना खा लेता था, तो उंगलियां चाटते रह जाता, और हर कोई यही सोचता, यही दुआ करता, कि उसी के हाथों का बना हुआ खाना खाने को मिले, तो क्या ही बात हो|
इसलिए उसने किसी से पूछा कि, चाची कोई काम हो तो बताना, या दादी कोई काम हो तो बता देना, तो झट से हर कोई उसे खाना बनाने के लिए बुला लेता, और लड़की भी खूब मन से खाना पकाती थी, और सिर्फ खाना बनाती ही नहीं थी, जहां खाना पकाती थी, वहां खाना बनाने के बाद वहां दवा के यानी कि जम के खाना खाती थी, लोग उसे देख कर कहते थे, कि काश हमारी बेटी ऐसी होती, और जब भी उसकी मां मिल जाती,, तो लड़की की खूब तारीफ करते थे, कि तुझे बेटी नहीं भगवान ने तो तुझे मां दी है, हमारे घर में भगवान ने ऐसी ही बेटी दी होती, तो हम धन्य हो जाते, हम भगवान से यही दुआ करते हैं, कि वह जिस घर में भी जाए हमेशा खुश रहे, भगवान उसे अच्छा परिवार दे, उस बच्चे की आंखों में कभी आंसू ना आए, उसके चेहरे की हंसी कभी कम ना हो, सुनते ही उसकी मां का दिल खुशी से झूम उठा था, और वह अपनी बेटी की तारीफ सुनकर खुश हो जाती थी|
क्रमश:............