पिछले पार्ट में आपने देखा कि रजत पुलिस में कंप्लेंट करने से पहले फिर से एक बार अपने परिवार को उस खत के बारे में सोचने को कहता है, पर उसके पापा को ये बात अजीब लगती है। तभी कोई दरवाजा खटखटाता है और जब जीवा के पापा दरवाजा खोलते है तो सामने पुलिस इंस्पेक्टर खड़ा होता है। अब देखिए आगे!
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"जी! माफ कीजिये हम आपको डिस्टर्ब कर रहे है, वैसे में इंस्पेक्टर राजवंश।" इंस्पेक्टर अपने आंख पर से काले गॉगल्स हटाके जीवा के पापा से कहते है।
इंस्पेक्टर की नीली आँखे, भरावदार मूछें और बाहुबली जैसी बॉडी, पहनी हुई खाकी वर्दी पर एक अलग ही तेज दिखा रही थी। राजवंशने पूरे घर में एक नजर घुमाई।
मुख्य दरवाजे के सामने ही एक मंदिर आता है, ताकि घर के अंदर आते ही सबसे पहले भगवान के दर्शन हो। अगर हम मंदिर की तरफ मुँह करके खड़े हो जाये तो हमारे बाएं हाथ पर 2 सोफा और 4 कुर्सीयां एक के अंदर एक ऐसे रखी हुई थी। सोफे के पीछे स्लाइडिंग विण्डोज़ लगी हुई थी। जहाँ किचन के सामने से खिड़कीयां एकदम स्पष्ट दिखाई देती थी।
घर के अंदर आते ही दाहिने हाथ पर किचन और किचन की बाहर की दीवार के ऊपर भगवान शिव की बड़ी सी फ़ोटो-फ्रेम लगाई हुई थी। किचन की तरफ मुंह करके खड़े रहे तो हमारे बाएं हाथ की तरफ दो बैडरूम और हमारे दाहिने हाथ की तरफ एक और बेडरूम था जो कि वो मेहमानो के लिए था।
"जी! कोई बात नहीं इंस्पेक्टर साहब! आप अपना फर्ज ही निभा रहे है, वैसे आप अंदर तो आइए।" जीवा के पापा इंस्पेक्टर राजवंश से कहते है।
राजवंश घर के अंदर आता है और आभार व्यक्त करते हुए भाव से बोलता है,"धन्यवाद!"
"जी! इंस्पेक्टर साहब! बोलिये। हम आपकी क्या सहायता कर सकते है?" जीवा के पापा इंस्पेक्टर से कहते है।
इंस्पेक्टर नाम सुनके जीवा अपनी रखी हुई चाय का गेस ऑफ करके अपनी मम्मी के साथ बाहर आ जाती है।
राजवंश कहता है,"दरअसल आपके पड़ोस से एक FIR लिखाई गयी है। कुछ देर पहले, इसमे ऐसा है कि आपके पड़ोस के सभी घरों में किसी ने एक शायरी के साथ एक पुराने जमाने का खंज़र छोड़ दिया है--" जीवा के पापा कुछ बोलने जाये उससे पहले जीवा बात काट के बोल देती है,"हा! इंस्पेक्टर अंकल। अभी 50 मिनट पहले ही हमारे घर पे एक लड़का आया था, शायद उसी ने हमारे घर पे ये खत छोड़ा है और उसमें एक खंज़र भी था।" जीवा के इस जवाब में राजवंश को थोड़ा सा डर महसूस हुआ।
"ओह! तभी मै सोचूँ की जब मै घर आई तो बाहर इतनी भीड़ क्यों थी!?" जीवा की मम्मी सोचती है।
"क्या? आपके घर पे भी ये खत छोड़ा गया है? कमाल है! ये कैसे हो सकता है? एक ही साथ सब जगह मतलब की पूरी सोसायटी में ऐसे ही खत... और हाँ, साथ में कोई शायरी भी थी?" इंस्पेक्टर राजवंश जीवा से पूछता है।
"हाँ, इंस्पेक्टर अंकल! ये रही वो शायरी।" जीवा राजवंश से कहती है।
(शायरी के लिए पहला पार्ट पढ़िए।)
"तो ये है वो खंज़र!" राजवंश खंज़र को देखकर बोलता है।
"हा! इंस्पेक्टर साहब!" महेश्वरजी बोले।
"ये शायरी और खंज़र, दोनों सब के यहाँ एक जैसे ही आये है। तो बात ये हुई कि हमें अब उस ब्लैकमेलर को पकड़ना होगा। एक ऐसा ही केस मैंने 3 साल पहले सोल्व किया था और आज फिर से ये ऐसा ही केस मिला है।" इंस्पेक्टर कहता है।
"तो तो आपको इसका अच्छा अनुभव रहा होगा! वैसे क्या हम बाहर निकलके सबके साथ बात कर सकते है?" जीवा के पापा इंस्पेक्टर से पूछते है।
"हा, हा! क्यों नहीं? चलिये। ये तो और अच्छा रहेगा। वैसे आपका नाम? ये बातों के चक्कर में नाम तो पूछा ही नहीं।" इंस्पेक्टर जीवा के पापा से कहता है।
"जी! मेरा नाम महेश्वर पांडेय और ये मेरी पत्नी निर्मला पांडेय और ये मेरी बेटी जीवा और एडवान्स में कहुँ तो में एक इंजीनियर हूँ और में A.G. Bearings में काम कर रहा हूँ।."
दिखने में साँवली जीवा की मम्मी अपनी मीठी बातो से किसी का भी दिल जीत सकती थी और एक झलक तो आपने पार्ट-2 में देख ही ली होगी। और जीवा, अपनी माँ के वर्ण से बिल्कुल अलग। उसकी काली आंख से निकलता सूरज की रोशनी समान वो तेज और उसके शारीरिक सौंदर्य के आगे हेरोईन भी कम लगे। उसकी तारीफ भी कम पड़ जाए।
"मेरा बेटा भी वहीं काम करता था। पर आज वो इस दुनिया में नहीं।" थोड़े से गमगीन भाव से इंस्पेक्टर राजवंश बोले।
"ओह! दुःख हुआ जान के की अब वो आपके साथ नहीं है। में दिलगीर हूं पर क्या में आपके बेटे का नाम जान सकता हूँ?"
"नीरव! मेरे बेटे का नाम नीरव है।"
और इतना बोलते ही जीवा एक दुविधा में पड़ गयी। सोचने लगी,"क्या ये वही नीरव तो नहीं है? वैसे वो हो भी कैसे सकता है? वो तो जिंदा खड़ा रहता है हमेंशा वो भी उस खिड़की के बाहर ही। क्या वो उसका भूत है? ये भगवान! वैसे ऐसा क्यों सोच रही में? उसके नाम वाले तो हजारों होंगे। अब आने दो उसे, पूछती हुँ।"
"बेटा! जीवा बेटा! फ़ोन तो ले आना मेरा!" जीवा के पापा जीवा से कहते है। जीवा ने कोई जवाब नहीं दिया। दूसरी बार जीवा के पापा जीवा से कहते है और उसका हाथ पकड़ते है और जीवा को होश आ जाता है।
"जी! पापा!" जीवा कहती है।
"क्या हुआ? क्या सोचने में डूबी हो? जाओ जरा मेरा फ़ोन लेके आओ।"
"जी! कुछ नहीं।" कहके जीवा फ़ोन लेने जाती है।
इंस्पेक्टर को जीवा के बर्ताव पर थोड़ा सा शक जाता है पर वो Let Go करके जीवा के पापा और मम्मी के साथ बाहर आते है।
जीवा फ़ोन लेकर अच्छे से दरवाजा लोक करके बाहर आती है और कहती है,"ये लीजिये पापा आपका फोन।"
जीवा के पापा जीवा से फ़ोन लेते है और इंस्पेक्टर की बात में ध्यान देते है।
"क्या आपने किसी ऐसे किसी व्यक्ति को देखा जो इस सोसायटी का ना हो और अनजाना हो, जिस पर आपको शक गया हो।" इंस्पेक्टर बोलता है।
जीवा सोच रही थी कि अभी उस लड़के के बारे में बता दे जो उसके घर आया था। जिसका पूरा शरीर कीचड़ से गंदा हो चुका था। पर वो थोड़ी देर रुक गयी। उसने कुछ नहीं बोला।
थोड़ी देर के बाद 'कुमार' करके एक सोसायटी मेंबर बोला,"जी! इंस्पेक्टर साहब। मेरा नाम कुमार। मैं जब मेरे सोसायटी के गेट पर पहुँचा तो वहाँ से एक आदमी को जाते हुए देखा। उसका शरीर थोड़ा सा कीचड़ से गंदा हो गया था और हाँ वो बड़ी जल्दी में कहीं जा रहा था और इतनी जल्दी में था कि खुद का ही एक्सीडेंट करवा लेता!"
"ओह...ओ...! क्या आप में से किसी ने इस आदमी को देखा था?" इंस्पेक्टर बाकी के सोसायटी मेम्बर्स से पूछता है।
"औऱ आप अपना नाम इस हरीश (कॉन्सटेबल) को लिखवा दीजिये। आपका कहना बेहतर सबूत बन सकता है।" राजवंश, कुमार को कहता हैं।
"जी! सर!"
कुमार कॉन्स्टेबल के पास जाकर अपना नाम लिखवाता है।
तभी जीवा बोलती है,"हाँ! इंस्पेक्टर अंकल। मेरे घर पे ये खत इसी लड़के ने रखा होगा शायद! क्योंकि जब मैने उसके हाथ से पानी का गिलास वापिस लिया तो उसने मुझसे कहा कि 'भगवान आपको बचाये रखे!' ये बात मुझे इस खत के मिलने के बाद बहुत अजीब लगी।"
"ओह! अच्छा! आप भी अपना नाम हरीश को लिखवा दीजिये और आपने दूसरा क्या क्या देखा उस लड़के में जो अजीब था वो भी लिखवा दीजिये।" राजवंश जीवा से बोला।
"ठीक है, अंकल!" कहके जीवा हरीश के पास जाती है।
"तो आप सब ने किसी को भी यहाँ से जाते हुए नहीं देखा।" राजवंश सभी सोसायटी मेंबर्स से कहता है।
तभी सोसायटी का वॉचमेन गभराते गभराते आया और राजवंश से कहा,"सर, बाहर एम्बुलेंस आयी है और लोग कह रहे कि किसी का खून हुआ है।"
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क्या इस खून का इस खंज़र वाली घटना से कोई संबंध होगा? जानिए अगले पार्ट में। अगर संबंध है तो फिर ये खून किसने किया होगा?