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संबल

संबल

“मम्मी, मुझे नहीं जाना खेलने| मैं नहीं जाऊँगी|” – सुनीता ने रुआँसी-सी होते हुए अपनी माँ से कहा|

“तो अपने पिता जी से कह| मुझे नहीं पड़ना तुम्हारे झमेले में|” – कोमल ने कहा|

“मुझे पापा से डर लगता है| आप ही बात करो न प्लीज|” – सुनीता ने मिन्नत करते हुए कहा|

“चल देखती हूँ| एक बार तू स्कूल का होमवर्क तो कर|” – कोमल ने पीछा छुड़ाते हुए कहा|

सुनीता का चयन राज्य स्तरीय खेलों में हुआ था| वह शुरू से ही बहुत फुर्तीली थी| स्कूल वालों ने उसकी प्रतिभा को पहचाना और खेलों में डाल दिया| स्कूल की फ़ुटबाल की टीम बढ़िया थी, इसलिए उसे भी इसका चस्का लग गया| मिडिल कक्षाओं तक वह लड़कों के साथ खेलती थी| बाल तो जैसे उसके पैरों के साथ चिपक जाती थी और वह उसके साथ खूब मनमानी करती हुई सबको छकाती थी| अंडर फोर्टीन में वह नेशनल खेल आई थी, जिसके कारण उसका खूब मान-सम्मान हुआ था| स्कूल में वह स्टार थी| हाई स्कूल में आने के बाद उसे अंडर सेवनटीन में खेलना था| पहले वर्ष वह राज्य स्तर तक खेली, इस वर्ष फिर उसका राज्य स्तरीय खेलों में चयन हुआ था| सबको उम्मीद थी, कि वह इस बार नेशनल खेलेगी, लेकिन सुनीता का जोश दिनों-दिन कम होता जा रहा था| जिला स्तरीय खेलों में भी वह मन मारकर ही गई थी| उसकी कम होती रूचि माँ को नजर आई थी| उसने अपने पति राजेश से बात भी की थी| राजेश किसान है| वह बारहवीं तक पढ़ा है| उसे इस बात पर गर्व है, कि उसकी लड़की ने इलाके में उसका नाम चमकाया है| पत्नी की चिंता उसे फजूल लगी| कहने लगा, “हमने न इसे रोका है, न ही इसे खेलने को कहा है| यह अपनी मर्जी से खेलने लगी थी| दो साल पहले जब मुख्यमंत्री महोदय ने इसे सम्मानित किया था, तब कितना ख़ुश थी| अब थोड़ी बड़ी हो गई है, पहले की तरह ख़ुशी में उछलती नहीं, लेकिन इसका अर्थ यह थोड़ा है, कि इसकी रूचि खत्म हो गई है|”

कोमल को पति की बात सही लगी थी| वैसे भी वह इन मामलों में कम ही पड़ती थी| विवाह से पहले तो वह कभी गाँव से बाहर भी नहीं गई थी| उसके गाँव में दसवीं तक का स्कूल था, तो दसवीं कर ली| इसके बाद घर के काम-धंधे में लग गई| अठारह की उम्र पार करते ही उसकी शादी कर दी गई| उसके स्कूल में लड़कियों को खिलाने का रिवाज ही नहीं था| सुनीता तो छोटी-सी उम्र में कितनी जगह घूम आई, उसे तो अब भी अकेले जाने में डर लगता है, पर पति कहते थे, अब जमाना बदल गया है| अब लड़के-लड़कियों में कोई भेद नहीं| लड़कियों को मिले हुए मौकों का भरपूर लाभ उठाना चाहिए| सुनीता उठा भी रही है| वह उसे बताते थे, कि सुनीता अकेली तो नहीं होती| टीम में सोलह खिलाड़ी हैं, अध्यापक भी साथ होते हैं| जिले स्तर तक तो गाँव की दो-तीन लड़कियाँ भी होती हैं| इन बातों से उसे हौसला मिलता| जब सुनीता खेलकर वापस आती थी, तो अक्सर बेहद ख़ुश होती थी, उससे बातें भी करती थी| हाँ, पिता से बहुत कम बोलती थी| वैसे भी गाँव में मर्द चूल्हे-चौके में कम ही आते हैं| उनका काम खेत और घर के बाहरी हिस्से तक ही है| सुनीता को जो चाहिए होता था, वह उसे माँ के माध्यम से ही माँगती थी| आज भी उसने अपनी अनिच्छा माँ को ही बताई थी| कोमल ने पहले तो इसे अनसुना करना चाहा, लेकिन जब सुनीता अपनी बात पर अड़ी ही रही, तो उसे भी चिंता हुई, आखिर माँ है वह| रात को उसने पति से बात की थी तो उसने कहा, “कुछ नहीं होता| नखरे बढ़ गए हैं इसके| इसे कहो मन लगाकर खेले| देखा नहीं, आजकल खेल वालों को कितना पैसा मिल रहा है| सरकार धड़ाधड़ नौकरी दे रही है| सेहत अच्छी है, बारहवीं पास करते ही पुलिस में नौकरी पक्की समझो|”

“हूँ...|” – कोमल ने हामी तो भरी, लेकिन वह संतुष्ट नहीं थी| उसे न जाने क्यों डर लग रहा था|

अगले दिन कोमल ने यह बात गाँव की आशा वर्कर रेखा से की| रेखा उसकी पड़ोसन थी| वह गाँव की औरतों को जागरूक करने और लाभ देने के लिए चलाई गई सरकारी योजनाओं को घर-घर पहुँचाने का कार्य करती थी| कोमल को भी कई बातें बताती थी| कुछ बातें तो ऐसी होती, कि कोमल को यकीन ही नहीं होता था| बेटी की झिझक की बात उसने रेखा को बताई, तो रेखा ने पूछा, कि तूने उससे पूछा, कि वह क्यों नहीं खेलना चाहती|

“नहीं|” – कोमल ने जवाब दिया|

“है न पागल| बेटी से बात तो करनी चाहिए थी| कहीं कुछ ऐसी-वैसी बात तो नहीं?”

“ऐसी-वैसी मतलब? ”

“अरे बुद्धू लड़की सयानी हो गई है| कद-काठी से भी अच्छी है| ऊपर से जमाना खराब|”

“पर वे कहते हैं, कि सोलह लड़कियाँ होती हैं, अध्यापक भी होते हैं साथ| डर की कोई बात नहीं|”

“मानती हूँ सब, फिर भी ...”

“हूँ...” – कोमल सुन्न-सी हो गई| फिर सचेत होते हुए बोली, “मुझे तो शायद वह बताएगी नहीं, अगर तू ही उससे बात करे तो...”

“हाँ, ये ठीक है|”

“चलो शाम को भेजना मेरे पास|”

“ठीक है|”

“मुझे काम है, चलती हूँ|” – ये कहकर वह चली गई| सुनीता जब स्कूल से लौटी, तो उसने उससे कहा, “तुम्हारी रेखा चाची बुला रही थी तुझे| आज शाम को जाना उसके पास?”

“क्यों?”

“पता नहीं, कोई काम होगा|” – कोमल ने बात छुपाते हुए कहा|

“ठीक है|” – कहकर वह स्कूल का काम करने लगी|

शाम पाँच बजे के लगभग वह रेखा आंटी को मिलने चली गई| रेखा ने पहले तो इधर-उधर की बातें की, फिर खेल का जिक्र छेड़ा| बातों-ही-बातों में उसने सुनीता से यह उगलवा ही लिया, कि अब उसका मन नहीं करता खेलने को| जब उससे इसका कारण पूछा गया, तो उसने टाल-मटोल करना चाहा, लेकिन रेखा तो इन मामलों में धुरंधर ठहरी| उसके कुरेदने पर वह फफक-फफक कर रोने लगी| उसने बताया, कि उनका कोच उससे छेड़छाड़ करता है| पिछले वर्ष जिला स्तर के खेलों में वह किसी-न-किसी बहाने से उसकी छाती पर हाथ फेरता था| इस साल तो उसने एक दिन मौक़ा पाकर उसे पकड़ लिया और चूमने लगा| उसकी पैंटी में भी हाथ डाला|

जब रेखा ने कहा है, कि तुम्हारे साथ एक महिला शिक्षक भी होती है, तो उसने बताया, कि उसे तो फोन से ही फुर्सत नहीं मिलती| टीम की सारी व्यवस्था पुरुष कोच ही देखता है| उसी की मर्जी से टीम का चयन होता है| वह मुझे कहता है, कि तू परवाह न कर इस बार तुझे नेशनल खिलवा दूँगा, मगर बाहर कोई बात नहीं करनी, लेकिन मुझे नहीं खेलना नेशनल इस तरह से|

“तूने अपनी माँ को बताई ये बात?” – सच जानते हुए भी रेखा ने पूछा|

“नहीं, मुझे डर लगता है|”

“हूँ...”

“आप भी मत बताना, लेकिन मुझे खेलने नहीं जाना|”

“क्यों न बताऊँ?”

“क्योंकि सर धमकी देते हैं, कि उनकी पहुँच बहुत दूर तक है, वह उनके परिवार का जीना दूभर कर देंगे|”

“हूँ...तू जा| कुछ नहीं होगा तुझे और तेरे परिवार को|” – रेखा ने सुनीता का हौसला बँधाते हुए कहा|

अगले दिन उसने कोमल को सारी बात बता दी| कोमल के पैरों के नीचे से जमीं सरक गई| चेहरे का रंग उड़ गया| रेखा ने उसे संभाला, कि इसमें सुनीता की कोई गलती नहीं| हमें सुनीता का साथ देना होगा|

“इससे हमारी बदनामी होगी, नहीं, हम नहीं भेजेंगे सुनीता को|” – कोमल ने हड़बड़ाहट में कहा|

“वाह... कैसी माँ है तू, जो अपनी बेटी का भविष्य खराब कर रही है|”

“तो उसे सौंप दूँ हैवान के हाथ|”

“ये किसने कहा?”

“फिर ?”

“हम हैवान को सज़ा दिलाएँगे |”

“पर...”

“पर-वर कुछ नहीं दीदी, हमें जागरूक होना चाहिए| अगर तूने सुनीता से खुलकर बात की होती, उसे अपने विश्वास में लिया होता, तो समस्या इतनी न बढ़ती| सुनीता पिछले साल ही बता देती और हम उस कोच का हौसला न बढ़ने देते पर बिगड़ा अभी भी कुछ नहीं| मैं करती हूँ इनसे बात| ये करेंगे जेठ जी से बात| हम उस हरामी को सजा दिलाकर ही रहेंगे|”

रेखा का पति महेंद्र क्लर्क है| रेखा ने अपने पति को सारी बात बता दी| उसने राजेश को बताया| राजेश तो भड़क उठा| मरने-मारने पर उतर आया| महेंद्र ने उसे शांत किया| उसे लेकर वह जिला कार्यालय गया| उपायुक्त महोदय को लिखित शिकायत की गई और माँग की गई, कि टीम के साथ महिला कोच को भेजें| पुराने पुरुष कोच को भी उसकी गलत हरकत की सज़ा मिले| उपायुक्त महोदय ने विश्वास दिलाया, कि उस कोच को टीम के साथ नहीं भेजा जाएगा और उसके खिलाफ कार्यवाही भी होगी| रास्ते में उसने राजेश को समझाया, कि बच्चों की फीस भर देना, सामान ला देना मात्र ही माँ-बाप का फर्ज नहीं, अपितु प्रत्येक अभिभावक को अपने बच्चों से घुलना-मिलना चाहिए, ताकि वे अपनी समस्याएँ बेझिझक माँ-बाप को बता सकें| राजेश को अपनी गलती का अहसास हुआ| वह तो बेटी से ज्यादा बात भी नहीं करता था| कोमल ही देखती थी सब कुछ| कोमल को भी रेखा समझा चुकी थी| दोनों को अपनी गलती का अहसास हो चुका था| दोनों ने अपनी गलती सुधारी| बेटी से बात की| रेखा ने सुनीता में विश्वास पैदा किया, कि वह गलत हरकत होने पर चुप नहीं रहेगी, अपितु विरोध करेगी| माँ-बाप का संबल पाकर सुनीता फिर खिल उठी और राज्य स्तरीय खेलों की तैयारी हेतु जी-जान से जुट गई|

दिलबागसिंह विर्क

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