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अंतहीन तप, असली कलाम

अंतहीन तप

तीजा तीन साल के बेटे को पेड़ के नीचे बैठाकर पत्थर तोड़ने में व्यस्त हो गई। मन ही मन सोच रही थी ....अब तो कुछ दिनों की बात है फिर तो मैं महावीर के साथ शहर चली जाउंगी। महावीर ने एल एल बी की डिग्री कर ली है । एक साल की प्रैक्टिस भी पूरी होने वाली है उसके बाद तो वह स्वयम् की स्वतंत्र वकालत प्रारम्भ कर देगा । बहुत गयी थोड़ी रह गई। अब दिन फिरने वाले हैं। बेटे का भी शहर के अच्छे स्कूल में दाखिला करवा दूँगी। महावीर के लिए ये करूँगी वो करुँगी। वो ऐसे साहब बन कर आएगा वैसे जाएगा।
.... फिर अपने संघर्ष को याद करने लगी...अठारह बरस की आई थी जब ब्याह कर महावीर के घर में। वह तो केवल पांचवी पास थी । महावीर ने अभी बी. ए. किया था। घर में दरिद्रता का साम्राज्य था। बातों बातों में महावीर ने कहा "तीजा मैं वकालत की पढ़ाई करना चाहता हूँ लेकिन खेत से तो वृद्ध पिता जी खाने भर का ही अनाज पैदा कर पाते हैं।"
" आप चिंता मत करिये मैं मेहनत करुँगी। मैं पत्थर तोड़कर आपकी पढ़ाई का खर्च उठाऊंगी। "तीजा ने मज़बूती के साथ भरोसा दिलाया था।“

तभी एक टैक्सी की पौं पौं से उसकी तंद्रा टूटी । उसने देखा टैक्सी से महावीर आया था। दौड़ती हुई उसके पास गयी लेकिन उसके साथ एक महिला देख ठिठक गयी। उसने पूछा "ये कौन है?"
"हमारी वकालत की पढ़ाई पूरी हो गयी है। ये भी मेरे साथ वकालत कर रही है।"
"अब मुझे साथ ले चलोगे न शहर?"
"तीजा तुम शहर के जीवन के साथ तालमेल नहीं बैठा सकोगी । मैं आता रहूँगा ना यहाँ।"
सुनते ही तीजा वापस मुड़ गयी ।
"कहाँ जा रही हो तीजा?" महावीर ने आवाज दी।
बेटे की और इशारा करते हुए तीजा ने कहा "अभी एक और पुरुष को पढ़ाना बाकी है।"
फिर बड़े पत्थर पर हथोड़े से तेजी से बार बार चोट करने लगी। तीखी आवाज़ के साथ पत्थर कई टुकड़ों में बिखर गया।


असली कलाम

बैंक के अधिकारियों के तीन दिन के ट्रेनिंग प्रोग्राम के अंतिम दिन दोपहर पश्चात सत्र में मनोरंजन हेतु एक घंटे का एकल अभिनय का कार्यक्रम रखा गया था। कार्यक्रम के संयोजक ने एक जीन्स टी शर्ट पहने युवक का परिचय करवाते हुए कहा "आप हैं 'मि. नवीन' इस शहर के मशहूर नाट्य कर्मी ! आप कुछ ही क्षणों पश्चात एकल नाटक 'मैं बनूँगा कलाम' प्रस्तुत करेंगे। स्टेज के कोने में एक सहयोग पात्र रखा है । नाटक समाप्ति पश्चात आप सहयोग राशि उसमे डाल सकते हैं।"

कुछ ही देर में नवीन कई रंग के चिथड़ों से सिले फटे शर्ट और फ़टे पायजामे में स्टेज पर उपस्थित था।
नवीन ने नाटक में एक गरीब होनहार बच्चे द्वारा पिता की मृत्यु पश्चात काम के साथ साथ पढ़ने के संघर्ष की कहानी का मंचन किया । दमदार प्रस्तुति से सभी अधिकारी भाव विह्वल हो उठे ।
नाटक समाप्ति उपरान्त कार्यक्रम के संयोजक ने सहायता पात्र में 100 रूपये की सहायता राशि डाल कर शुरुआत की जो एक तरह से सबके लिए मानक राशि बन गयी थी। अमूमन सभी इस राशि का नोट डाल रहे थे। लगभग दस हज़ार रूपये की राशि एकत्र कर नवीन गाडी से रवाना हो गया। रास्ते में उसके नाटक के पात्र जैसी ड्रेस पहने एक लड़का चौराहे पर बैंक के अधिकारियों की गाडियोँ के शीशे खुलवाकर कैंडी बेचने का प्रयास कर रहा था लेकिन उस के आग्रह पर कोई तरस नहीं खा रहा था। इसी प्रयास में गाड़ियों से कैंडी के पैकेट स्पर्श होने से बच्चा उलझ कर फुटपाथ पर गिर पड़ा।
नवीन ने बच्चे को उठाया और पूछा " कैंडी कैसे दी?"
"पांच की एक। तीन लोगे तो दस में दे दूंगा?"
"सारी कितने में दे सकते हो?"
"क्यों मज़ाक करते हो साहब। सच में लेंगे तो दो सौ में दे दूंगा।"
"ये ले 500 रूपये।"
"लेकिन साब मेरे पास..."
"रखले ..मैंने अभिनय में ही सही, तुझे कुछ समय के लिए जिया है। तेरी पीडा का अंश महसूस किया है। तुझे नाटक नहीं आता ना, इस दुनिया में असली कलाम को तो इतना ही मिलेगा।"

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