असल जिंदगी.. Tarun Kumar Saini द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

असल जिंदगी..

हैं अपना दिल तो आवारा न जाने किस पे आयेगा.....

सुनियेगा एक बार गाना और बोल पर थोड़ा ध्यान दीजियेगा ।

ज़िंदगी और आवारापन बहुत कम लोग "जी" पाते हैं । दिल तो मानो अब एक बाय-पास या ओपनहार्ट सर्जरी का ब्रांड बन कर रहा गया हो ।

बचपन के आवारा दिन कभी लौट नहीं सकते... मगर उन आवारा पलों को याद कर हँस कर लोट-पोट जरूर हो सकते हैं । बचपन अगर जवानी के आईने से देखि जाए तो तश्वीर पर रेखाए एक अलग रूप में दिखती हैं हो सकता हैं शायद आप मचल उठे उस वक्त को फिर से ठीक उसी तरह जब बचपन में किसी चोकलेट की मिठास रोते हुए चेहरे पर एक मुस्कान दे जाती थी..... देखा जाए तो उस वक्त हम उस वक्त की कद्र नहीं करते थे और जल्द-से-जल्द जवानी की लहरों को छुना और महसूस करना चाहते थे... यह आपका अकेले का नहीं आप और मेरे जैसे लगभग सभी के साथ एक समान था....जिंदगी में अगर हिचकोले नहीं होंगे तो शायद इसके आनंद को हम महसूस नहीं करेंगे...जिंदगी में बदलाव के परिणाम अक्सर तय करते हैं की... आप के चेहरे पर रेखाए कैसी बनेगी.. आप और मेरे जैसे बहुत ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि आईना देख... तश्वीर की बदलती रेखाये आपको भी बदल देती है अक्सर अपने अनुरूप...और शायद आप ही क्या.. आप और मेरे जैसे बहुत हैं जो इसे पहचान भी नही पाते हैं

ज़नाब हर पल एक आवारापन का साथ मिलना और ज़िंदगी में कुछ ऐसा बुनना जो अक्सर आपकी बातें कर कुछ वक़्त खिलखिला सके । ज़िंदगी को उम्र देने की जद्दोजहत में रहकर... या तो ज़िन्दगी जी लीजिये या फिर कुछ उम्र ज़िंदगी को ज़िंदगी दे दीजिये ।

तभी तो बचपन और पचपन का आवारापन... किस्सो की वो दुकान है जिसमे बचपन कहानी लिखता हैं और पचपन कहानी सुनाता है... ये बस इन्ही दो दौर में किताब लिखी या पढ़ी जाती है । इस किताब के पन्नों की संख्या आपकी जिंदगी के ग्राफ को बनाती....

आप सोच रहे होंगे की ये कभी गाने की बात और कभी बचपन की बात, तो कभी दिल और ओपनहार्ट की बातें..... ।

रात के वक़्त भी कभी बातें करे और कभी-कभी उस अँधेरी रात से भी बातें करें.. जो चमकते हुए सितारों संग एक नया ही एहसास देती ही.. जो बादलो और चाँद के लुक्का-छुपी का खेल दिखाती हो... जो कभी इन्तेजार में तुम्हें चाँद को तरसाती हो.. रात में केवल वो ही नही छुपा जिसे अँधेरे की चद्दर में छिपाया जा सके.. बल्कि ये एहसासों की किताब भी बन जाती है.. जिसके हर पन्ने पर एक अलग कहानी होती है...

इसलिए सुबह का जल्दी उठना ही सेहत नहीं बनाता... कभी- कभी उस चाँद को पूरा ढलता देखें और उन लम्हों को जीये जिन्हें रात की रौशनी के सितारें कुछ अलग रौशनी देते हैं ।

इसलिए सब छोड़िये... जो उस वक़्त में गुजर गया जिसकी तश्वीर काली होने से आप आज परेशान हो... तो इस ढलती रात के साथ इन पलकों में कुछ सपने सँजोये और किसी ज़िंदगी को रौशन करने का प्रयास करें ।

गाना जरूर धीरे धीरे सुनियेगा... बहुत प्यारे बोल हैं ।

©तरुण कुमार सैनी "मृदु"