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केसरिया बालम पधारो म्हारे देश.......

केसरिया बालम पधारो म्हारे देश.......

अरावली पर्वत की गोद में बसा अजमेर जहाँ सुबह - शाम के अद्भुत नजारों को देखती आँखें नहीं अघातीं, पर्वतों के सीने से उठता धुंआ ह्रदय में ऐसा समाया कि कहीं और जाने की इजाजत ही नहीं दे रहा था l सितम्बर माह तो बरसात का होता है l बरखा रानी बादल की डोली पर सवार होकर झूमती - इठलाती घर - आँगन, खेतों में सज - संवर कर उतरती है l रिमझिम फुहारें तन - मन को भिगो कर उमंग से भर देती हैं l जैसा कि सब जानते हैं कि राजस्थान में वर्षा कम होती है, लेकिन, अब के बादल ऐसे झूमकर बरसे कि बस न पूछो.... l मन ने रिमझिम के कितने ही गीत - तराने गुनगुनाये l

दिन था 2 सितं 2019 और कार्यक्रम था ' शब्द निष्ठा सम्मान समारोह ' जो डॉ. अखिलेश पालरिया जी के निज निवास ' कला रत्न भवन ' अजमेर में आयोजित था l भव्य दिव्य इस आयोजन में देश भर से करीब सौ बाल साहित्यकार पधारे हुए थे l ऐसा लग रहा था, साहित्य का लघु कुंभ पालरिया जी के निवास पर लगा हो l बाल साहित्य महोत्सव में बाल कहानी प्रतियोगिता के विजेताओं का सम्मान था जिसमें मुझे भी मेरी बाल कहानी, ' गुल्लो बुआ ' के लिए सम्मान मिला l यह मेरे लिए गर्व की बात थी l आत्मविभोर थे हम, इस गरिमामय आयोजन में शामिल होकर और विस्मित भी थे, डॉ. पालरिया और उनके परिवार के साहित्य प्रेम और समर्पण से l यदि ऐसे साहित्य प्रेमी साहित्य जगत में होंगे तो निश्चित ही बाल साहित्य का भविष्य उज्जवल होगा जो देश की धवल छवि विश्व पटल पर अंकित करेगा l साहित्यकारों से खचाखच भरे कला रत्न भवन में चल रहे कार्यक्रम ने और बरखा की मनमानी ने मन को खूब भिगोया l आयोजन से शाम पांच बजे निवृत होकर हमने स्थानीय पर्यटन स्थलों को देखने का विचार बनाया और हम ओला बुक करके आणा सागर झील बारादरी देखने निकल गए l

यहाँ आणा सागर की ही बात करेंगे क्योंकि ऐतिहासिक धरोहर बारादरी को लोगों ने इस तरह गंदगी से भर दिया है कि मन वितृष्णा से भर गया l यहाँ तक कि बदबू के कारण फोटो लेना भी दूभर हो गया l तो चलिए, आणा सागर झील चलें -

सूरज अस्ताचल की ओर था और लहरें पुकार कर कह रही थीं कि सूरज, थोड़ा रुको ना l फिर टेर सुनकर सूरज का बादलों से झांक कर देखना, अपने रक्ताभ सौंदर्य के दर्शन लहरों को कराना इतना मनोहारी था कि हम मंत्रमुग्ध हो इस छटा को निहारते ही रह गए l आदरणीय गुप्त जी ने कैमरे को क्लिक किया और सूरज दादा कैद हो गए, मेरे साथ फोटो में l ऐसे सुहावने मौसम में मन मोटरबोट की सैर का आनंद लेना चाहता था, सो लिया l झील के बीचों - बीच बने हरे - भरे टापू की ओर हम कुछ पर्यटकों के साथ मोटरबोट में लाइफ जैकेट पहिने प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते जा रहे थे l ऊर्मियाँ नाव से टकरातीं और स्वर्ण रश्मियां ऊर्मियों से l अद्भुत संगीत छटा बिखर रही थी l टापू पर पहुँचते ही लहराते तख़्तनुमा पटिये पर जो रस्से से बंधे थे , कुछ नाविक पकडे हुए थे, उन्होंने हमारी नौका को संभाला, उसे बाँधा l सबने लाइफ जैकेट उतारी और हम अब खड़े थे हरे - भरे टापू में l किसी टापू में जाने का मेरा शायद यह पहला अवसर था l

आणा सागर झील का इतिहास बड़ा रोचक है, जैसा कि हमें नाविक ने बतलाया - सम्राट पृथ्वीराज चौहान की नगरी है अजमेर l मुगलों से जब पृथ्वीराज का युद्ध हुआ, तब मुगल सैनिकों के खून से यह जगह भर गई l मुग़ल परास्त हुए किन्तु मुगलों के खून से भी सम्राट को इतनी नफरत हो गई कि उसने उस रक्त सनी जगह की मिट्टी खुदवाकर बाहर फिंकवा दी l खुदाई होने से यहाँ झिर फूटी और धीरे - धीरे यही झील निर्मित हो गई l इस झील का नामकरण पृथ्वीराज चौहान ने अपने परदादा राजा आणा के नाम से किया और आणा सागर झील आज भी उनकी कहानी सुनाती है, यह किंवदंती भी हो सकती है l

दरअसल आणा सागर झील भारत में राजस्थान राज्य के अजमेर में स्थित एक कृत्रिम झील है l आणा सागर झील व अजमेर नगर का निर्माण पृथ्वीराज के पितामह आरुणोराज ( आणा जी ) ने बारहवीं शताब्दी के मध्य 1135 - 1150 ईस्वी में करवाया था l आणा जी द्वारा करवाये जाने के कारण ही इस झील का नामकरण ' आणा सागर ' प्रचलित माना जाता है l झील के लिए जल संभरण का कार्य स्थानीय आबादी द्वारा किया गया था l 1637 ईस्वी में शाहजहां ने झील के किनारे लगभग 1240 फुट लम्बा कटहरा लगवाया और पाल पर संगमरमर की पांच बारादरियों का निर्माण करवाया l झील के प्रांगण में स्थित दौलतबाग का निर्माण जहांगीर द्वारा करवाया गया जिसे सुभाष उद्यान के नाम से जाना जाता है l आणा सागर का फैलाव 13 कि. मी. की परिधि में विस्तृत है l

जिस टापू पर हम खड़े हैं, वह टापू तो बाद में बना l हमने टापू में पैर रखते हुए पूछा - यहाँ क्या है भाई ? मेरे हाथ से टिकिट लेते हुए बिल्कुल स्याह श्यामवर्ण व्यक्ति ने जिसके दांत बिल्कुल पीले, बाल श्वेत चमकीले थे, रहस्यमयी आवाज में कहा - अंदर जाकर देखिये मैडम l एक बार तो लगा, यह टापू रहस्यमयी है l टापू में हमारे साथ जो पर्यटक थे, उनके अतिरिक्त अंदर कोई भी नहीं था l हम जैसे ही टापू के अंदर गए, चार - पांच काली बिल्लियों ने हमें घेरा - म्याऊं म्याऊं ........ l मैंने कहा - मैं आऊं ? तभी देखा, वहां केंटीन है, एक आदमी भी वहां बैठा है l लेकिन केंटीन में कुछ था नहीं l अंदर बगीचा तो था किन्तु फुलवारी जैसा कुछ नहीं था l जितनी भी बेंच, कुर्सियां रखी थीं, सब पर भूरी - काली बिल्लियां आराम कर रही थीं l उनके बच्चे धींगा - मस्ती कर रहे थे l एक महिला कर्मचारी भी कुर्सी पर बैठी थी जिसकी मुस्कराहट ने मन को हल्का किया l हरियाली अवश्य थी l हमने कुछ फोटो लिए और टापू से वापिस होने के लिए पुनः उस लहराते तख़्त पर पहुंचे l झील के बाहर आते - आते छप्प - छप्प लहरों के साथ सूरज भी विश्राम गृह को चला गया l बत्तियां जल उठीं l घाट चमकने लगे l जहाँ चौपाटी लगती है, वहां लोगों की भीड़ में बच्चों की किलकारी गूंजती है l बहुत से जानवरों की अमूर्त छवियां उपस्थित हैं जो रणथम्भौर अभ्यारण्य की याद दिलाती हैं और घाट पर ही लगी है मूर्ति राजा आणा की जो सम्राट पृथ्वीराज चौहान के होने की याद दिलाती है l अब हम पुनः ओला से डॉ. पालरिया के निवास पर पहुँच गए जहाँ वे सपत्नीक प्रतीक्षा कर रहे थे l हम सभी ने भोजन उपरांत विश्राम किया l

प्रातः 3 / 9 / 2019 साढ़े आठ बजे चाय - नाश्ता कर पुष्कर तीर्थ सृष्टि - रचयिता ब्रह्मा जी के मंदिर दर्शनार्थ निकलना था l डॉ. पालरिया जी की मनुहार याद आती है -

रसगुल्ला लीजिए, गर्म करके लाता हूँ l

मैंने कहा - डायबिटीज है मुझे l

वे बोले - बाहर सब खाना चाहिए, घर में परहेज करना चाहिए l लीजिए एक और लीजिए l गुप्त जी ने मेरी ओर देखा, कहीं सचमुच मैं दो रसगुल्ले ना खा लूँ और उन्होंने मेरी प्लेट से रसगुल्ला उठाकर स्वयं खा लिया l

हास्य - विनोद के पल विस्मृत नहीं होते l

अजमेर से पुष्कर करीब एक घंटे का रास्ता है l हमने फिर ओला बुक की और पुष्कर के लिए रवाना हो गए l मन में उमंग उठना स्वाभाविक थी, सृष्टि रचयिता के दर्शन जो करना थे l पुष्कर पहुंचकर सोचा, चलो एक गाइड कर लेते हैं, विविध जानकारी मिल जाएगी l अब हमारे पंडित जी ही गाइड थे l हमने ब्रह्म सरोवर के दर्शन, आचमन, पूजन विधिवत किया l फिर ब्रह्मा जी की धवल मूर्ति के दर्शन कर हम धन्य हुए l भारत में ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर है l ब्रह्मा जी की पहली पत्नी सावित्री ब्रह्मा जी से रूठकर ऊँचे पर्वत पर चली गईं और आज भी वे वहां निवास कर रही हैं l इतनी कथा से संतुष्टि तो नहीं हो रही थी लेकिन हम सावित्री माता के दर्शन के लिए रोपवे से गए l अद्भुत, अनुपम नज़ारे देखकर मन मंत्रमुग्ध हो गया l मनसा देवी और मैहर माता शारदा के निवास स्थान से भी ऊँचा सावित्री माता का वास है जहाँ पर्वत, बादल सब उनके चरणों में झुके दृष्टिगोचर होते हैं l मैहर पर्वत की श्रेणियां शारदा माता को शीश झुकाती हैं तो अरावली पर्वत स्वयं सावित्री माता के चरणों में नतमस्तक दीख रहा था l

यात्राएं मेल कराती हैं कहीं प्रकृति से, तो कहीं अनजाने पथ पर अनजाने राहगीरों से l ऐसे ही मिल गई थीं सिरसा हरियाणा से नारायणी देवी, अपने पति के साथ रोपवे की टिकिट लेते समय l वे अपने पति से कह रही थीं, रुक जाओ जी, पाणी पीणे दो l मरना थोड़ी है, घबड़ाहट हो रही है l

मैंने सुना तो कहा - पानी है मेरे पास, पियेंगी l

वे मुस्कुराईं, पानी पिया, परिचय हुआ l वे गले मिलीं - जी आपका नाम ?

जी सुधा गुप्ता l

मैंने सुना है सुधा गुप्ता l हमारे सिरसा में, डॉ. शील कौशिक भी लिखती हैं l हरिगंधा में मैंने आपकी कहानी पढ़ी थी l मैं हतप्रभ थी l रचनाएं कितना बड़ा माध्यम हैं रिश्ते बनाने की, आत्मा से तार जोड़ने की !

वे बोलीं - मैं नारायणी देवी चावला, समाज सेविका हूँ l मुझे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मानित किया था l मैं सिरसा से दिल्ली जाने वाली अकेली महिला थी l

मैंने कहा - प्रधानमंत्री जी से बातचीत हुई थी ?

वे बड़ी दिलेरी से बोलीं - हाँ जी, मैंने कहा था, ये जो आप कहते हैं ना ' बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ ', अच्छी बात है l किंतु, ये सब कागजों में है, असलियत तो कुछ और ही है l अच्छा, तो वे क्या बोले ?

बोलने को क्या था उनके पास l

अड़सठ वर्ष की नारायणी देवी के चेहरे का तेज देखते ही बन रहा था l फिर वे अपने पति से बोलीं - लो जी, एक से एक हस्ती से मेरी मुलाकात होती है l बातचीत के दौरान मेरे पतिदेव ने भी बतला दिया था कि मुझे भी शिक्षा के क्षेत्र में मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सम्मानित कर चुके हैं l हम सब रोपवे से एक साथ ही सावित्री माता के दर्शन कर लौटे तो वे बोलीं - जी, आपको कुछ जलपान करा दूँ l हम पूरी बस सिरसा से साठ सवारी लेकर ब्रह्मा जी के दर्शनार्थ आये हैं l उनके खाने की व्यवस्था की जिम्मेदारी मेरी ही है l हम लोग गुरुद्वारा में रुके हैं l

मैंने कहा - धन्यवाद, फिर मिलेंगे किसी मोड़ पर l शील कौशिक को नमस्कार कहिये l

इस तरह मध्यप्रदेश के यात्री राजस्थान में हरियाणा के यात्रिओं से मिले l यात्राएं केवल घुमाती ही नहीं, दिल मिलाती हैं, रिश्ते बनाती हैं l नारायणी देवी की छवि फोटो के साथ ह्रदय के कोने में अंकित हो गई l

गुप्त जी ने ओला बुलाई और हम पुनः रवाना हुए डॉ. पालरिया जी के निवास स्थान पाल बिचला 15 / 145 , भरोसा अगरबत्ती के पास l

ड्राइवर ने कहा - दर्शन अच्छे हुए माता जी ?

हाँ, अच्छे हुए l पंडित जी ने पूजा - अर्चना करवाई और कुछ शार्ट में बताया l

पंडित जी क्या बताएँगे, कथा दरअसल यह है कि ( हम एकदम सुनने के मूड में आ गए ) - एक बार ब्रह्मा जी ने यज्ञ करवाया l यज्ञ की सारी तैयारी हो गई किंतु बिना पत्नी के यज्ञ नहीं हो सकता था अतः ऋषिवर ने कहा - शीघ्र पत्नी को बुलवाइए l ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र नारद से कहा - शीघ्र ही अपनी माता को बुला लाओ, मुहूर्त का समय हो गया है l नारद जी माता के पास गए और कहा, माता जी आप तो अच्छे से तैयार होकर आराम से यज्ञ शाला में आइये, पिता जी ने बुलाया है l सावित्री माता आराम से तैयार होने लगीं l इधर ब्रह्मा जी और ऋषि बेचैन थे, मुहूर्त निकला जा रहा था l उन्होंने नारद जी को पुनः भेजा l नारद जी ने अपने स्वभाव के अनुसार नारद - विद्या दिखाई - माता जी, आप तो आराम से आइये, यज्ञ की तैयारी हो गई है l सावित्री माता अच्छे से तैयार होने में मगन रहीं कि उन्हें कोई जल्दी नहीं है l इधर मुहूर्त निकला जा रहा था, तभी सामने से एक गुर्जर सुंदर कन्या अपने माता - पिता के साथ आती हुई दिखाई दी जिसका नाम गायत्री था l ब्रह्मा जी ने उसे ही सावित्री की जगह बिठालकर यज्ञ संपन्न करा लिया l कुछ देर हो जाने के बाद जब सावित्री माता आईं, तो उन्होंने अपनी जगह गायत्री को बैठे देखा l सावित्री को क्रोध आया और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि पूरे विश्व में ब्रह्मा जी का एक ही मंदिर होगा और कोई तुम्हें प्रसाद नहीं चढ़ायेगा l साथ ही नारद जी को श्राप दिया कि तुम जीवन भर चुगली यहाँ की वहां लगाते रहोगे, गायत्री को श्राप दिया कि पूरी गुर्जर जाति जब तक ब्रह्म सरोवर में स्नान नहीं करेगी तब तक उसे मुक्ति नहीं मिलेगी और अंत में सावित्री माता ब्रह्मा जी से रूठकर सदैव के लिए पर्वतवासिनी हो गईं l

ड्राइवर के मुख से यह कथा सुनकर मन विज्ञ हुआ l

हमने कहा - भाई, तुमने बहुत अच्छी जानकारी दे दी l

वह बोला - मैं सबको नहीं सुनाता हूँ, वो तो आप लोगों से मन मिला, तो सुना दिया l मैं भी ब्राह्मण हूँ l उसने एक कार्ड दिखाते हुए कहा, ये देखो जो पंडित आपको लेकर गया था ना, वह मुझे यह कार्ड दे गया है कहकर, कि कोई सवारी लाया करो तो उसे हमारे पास ही लाना l कुछ शेयर आपको भी दे देंगे l पर, मैं ऐसा ब्राह्मण नहीं हूँ l मैंने तो कह दिया, भक्त यहाँ दर्शन करके श्रद्धा से भंडारे के लिए दे जाते हैं, उनका पैसा हम खायेंगे तो, कहीं न कहीं से निकल जाएगा l बातें करते - करते हम पाल बिचला आ गए l गुप्त जी का मोबाईल मेप चालू था, उन्होंने जेब से पैसा निकालकर ड्राइवर को दिए l वह चला गया l किन्तु, थोड़ी ही देर बाद वह फिर वापस आया l गुप्त जी का चालू मोबाईल गाड़ी में ही छूट गया था l ड्राइवर ने मोबाईल की आवाज सुनी तो वह समझ गया और वह मोबाईल विनम्रता से वापस करके मुस्कुराता हुआ चला गया l उसको गुप्त जी ने धन्यवाद दिया l दुनिया में ईमानदार और अच्छे लोग भी हैं जिनसे यह दुनिया चल रही है l

शाम चार बजे पालरिया जी के यहाँ से विदा लेनी थी l अब हमें जैसलमेर के लिए रवाना होना था l डॉ. साब के साथ भोजन करके हम रेलवे स्टेशन आये l वे हमें स्वयं अपनी गाड़ी से छोड़ने आये l श्रीमती पालरिया के तन - मन की धवल छवि और बेटी निष्ठा की बरबस याद आती है l रात्रि करीब 12 बजे हम लोग जैसलमेर पहुंचे l पहिले से बुक होटल ट्रीबो बांसुरी में आकर टैक्सी रुकी और शानदार व्यवस्था के तहत होटल में रात्रि विश्राम किया l

अजमेर में राजस्थान जैसा कल्चर देखने को नहीं मिला लेकिन, जैसलमेर पहुँचने पर स्टेशन पर ही राजस्थानी आर्ट, वेशभूषा, वाणी ने आकर्षित किया l जगह - जगह लिखा हुआ था, ' स्वर्ण नगरी जैसलमेर में आपका स्वागत है ' l गणेश उत्सव प्रारम्भ हो चुका था l आज गणेश उत्सव का तीसरा दिन था l सारंगी की धुन कानों में गूंज रही थी, ' केसरिया बालम पधारो म्हारे देश ... ' l स्वागत गान की मनुहार रिझा रही थी l आश्चर्यचकित थे हम कि वाकई स्वर्ण नगरी है जैसलमेर l हर कहीं पीला पत्थर- घर, होटल, मंदिर हर कहीं पीले पत्थरों से जड़ी नगरी जैसलमेर l पैंतीस सौ रुपये के पैकेज में होटल बांसुरी ने आज के दिन का टूर तय कर दिया था l धूप बहुत तेज थी फिर भी टैक्सी करीब साढ़े आठ बजे आ गई l हम निकल पड़े जैसलमेर दुर्ग व प्राचीन मंदिर देखने l भाटी नरेश महारावल जैसल द्वारा निर्मित विशाल दुर्ग सोनार किला के नाम से प्रसिद्द है l किला एवं उसके भीतर स्थित आवास पीले रंग के विशाल खण्डों को तराश कर बिना गारे के प्रयोग से निर्मित किये गए हैं l आज भी वहां 300 परिवार रहते हैं l किले के प्राकार का घेरा लगभग पांच कि. मी. है l परकोटा 99 बुर्जियों एवं छज्जेदार अटारियों द्वारा सुसज्जित है l लंबी सर्पिल दोहरी प्राचीर जिनके मध्य 2. 5 मी. का अंतराल है l महारावल जैसल ने 1156 ई में इस दुर्ग का शिलान्यास त्रिकूट पर्वत पर किया था l त्रिकूट पर्वत का जिक्र रामचरित मानस में भी किया गया है l इस किले में कई भव्य हवेलियों एवं गज विलास का निर्माण किया गया l इस किले पर खिलजी, तुगलक, मुग़ल एवं राठोड सेनाओं ने कई आक्रमण किये l इस किले में विद्यमान शाही महल, लक्ष्मीनारायण मंदिर, रत्नेश्वर मंदिर, सूर्य मंदिर और जैन मंदिरों का समूह महत्वपूर्ण और दर्शनीय है l

नथमल की हवेली / पटवा की हवेली - पांच हवेली अद्भुत नक्काशी और शिल्प के साथ अपना वैभव लिए खड़ी है l पटवा एक उपाधि है, माला - गुरिया गहने का काम करने वाले पटवा हुआ करते थे l ये हवेलियां पटवों के वैभव की कहानी सुनाती है l पांच हवेलियों में दो गवर्नमेंट ने अपने अधीनस्थ ले ली है l एक हवेली कुछ कमजोर होने की वजह से बंद है l और दो को पर्यटकों के लिए दर्शनार्थ रखा गया है l पीले पत्थर पर गढ़ी गई नक्काशी देखकर दांतों तले उंगली दब जाती है l इन हवेलियों में आज भी लोग रह रहे हैं l नीचे दोनों तरफ पीले पत्थर के बर्तनों की दुकानें सजी मन को मोहती हैं l नीचे उतरने पर एक व्यक्ति राजस्थानी वेशभूषा में सारंगी बजा रहा था - ' केसरिया बालम पधारो म्हारे देस.......' l सारंगी की धुन मन को मोह रही थी l धूप बहुत तेज थी l पीले पत्थरों की जालीदार नक्काशी का वैभव विलास हम मन में संजोये ओला से रवाना हुए l रास्ते में जायका रेस्टोरेंट में दाल - बाटी, चूरमा और छाछ, सांगरे की साग का आनंद लेते हुए भोजन किया और पुनः होटल बांसुरी आ गए l

शाम पांच की ट्रिप के लिए मन में उल्लास हिलोरें ले रहा था क्योंकि कैमल राइडिंग और डेजर्ट रिसोर्ट की कल्पना से ही मन में अतिरिक्त उत्साह उमड़ रहा था l पैरों में थकान स्वाभाविक थी किंतु सनसेट देखना और कुलधरा हैरिटेज विलेज के साथ कैमल राइडिंग करना बेहद रोमांचकारी लग रहा था l करीब 4.30 बजे हम लोग तैयार थे और टैक्सी होटल के बाहर इंतजार कर रही थी l मौसम का मिजाज अब बदल रहा था किंतु, ऐसे में सनसेट दिखना मुश्किल लग रहा था l हमारे यहाँ तो सनसेट 5.45 बजे हो जाता है, उसी हिसाब से हमने ड्राइवर से कहा - जल्दी करो भई, हम कहाँ चल रहे हैं ?

उसने रास्ते में एक - दो स्पॉट दिखलाये और फिर बोला - हम कुलधरा चल रहे हैं l

कुलधरा ! ये क्या है ?

यहाँ खंडहर हैं l

खंडहर भी देखने लायक हैं ?

वह हंसा - मैडम, यहाँ के राजा के अत्याचार से त्रस्त होकर एक रात में ही 84 गाँव खाली हो गए थे l करीब 100 साल पहले लोग यहाँ से जितना बन पड़ा, ले गए l किंतु तब से अब तक गवर्नमेंट ने यहाँ कुछ नहीं किया l धीरे - धीरे ये गांव खंडहर हो गए l यहाँ कई भूतों वाली फिल्मों की शूटिंग हुई है l इसे भुतहा गांव भी कहते हैं, शाम के बाद यहाँ कोई नहीं आता l

रास्ते में सूरज बादलों के साथ लुकाछिपी खेलते हमारे साथ चल रहा था l

हमने कहा, अरे सनसेट कब होगा ?

ड्राइवर ने बताया, सनसेट यहाँ साढ़े सात बजे होता है, चिंता न करें l यदि मौसम ठीक रहा तो, ऊँट पर बैठकर आपको अवश्य देखने मिलेगा l

अब हम कुलधरा के खंडहरों में प्रवेश कर घूम रहे थे l टैक्सी बाहर ही थी l यहाँ शासन ने प्रवेश शुल्क लगाया है जिसे 50 /- देकर हमने चुकता किया l सचमुच कहीं टूटे मंदिरों के अवशेष थे तो कहीं छोटे - छोटे कमरों वाले मकान जहाँ प्रवेश करने पर लगता था, सचमुच भुतहा गांव है और आँखों में भूत वाली फ़िल्में चित्रित होने लगीं l कई एकड़ों में फैला यह गांव अपने समय की दास्ताँ सुना रहा था l समय से हम टेक्सी पर सवार हो रवाना हुए, डेजर्ट रिसोर्ट के लिए l बीच - बीच में बूंदा - बांदी होने लगी थी किंतु अगले ही पल धूप खिल जाती तो सनसेट देखने की उम्मीद जग जाती l टैक्सी अपनी रफ़्तार से भाग रही थी l कुछ दूर चलने पर रेगिस्तान की रेत ही रेत दिखाई देने लगी l यानि हम थार रेगिस्तान की ओर बढ़ रहे थे जहाँ हमारा डेजर्ट रिसोर्ट रुकने के लिए तय था l ऊँट की सवारी राजस्थानियों के लिए आम बात हो सकती है लेकिन मध्यप्रदेश वासियों के लिए बेहद ख़ास थी l हमें टैक्सी ने समय से पहुंचा दिया l हमें महिंद्रा खुली जीप से रेगिस्तान की सैर उम्र के हिसाब से थोड़ा रिस्की लगी इसलिए रेगिस्तान के जहाज पर बैठना ही आनंदकारी लगा और हम अब ऊँट पर बैठने के लिए तैयार थे l

लांग रेस पर जाएंगे या शार्ट ?

हमने कहा - भई, हम तो पहली बार बैठ रहे हैं ऊँट पर l

फिर लांग रूट पर चलिए l आप भी क्या याद करेंगीं, किस गाइड ने घुमाया है l

ऊँट रंगीन सजे - धजे राजस्थानी श्रृंगार में बैठा जुगाली कर रहा था l

ऊँट वाले ने कहा - आइये, आप आगे बैठिये, साहब पीछे बैठेंगे, इसी से पति - पत्नी के जोड़े की पहचान होती है l

लेकिन मुझे तो डर लग रहा है l

' यू डोन्ट वरी मैम ', निशफिकर होकर बैठिये l

मैं आगे बैठी और गुप्त जी पीछे l लेकिन जैसे ही ऊँट हिचकोले लेते हुए खड़ा हुआ, डर के मारे मेरी जान आधी हो गई l

मैंने उसे हिदायत दी, अपने ऊँट को दौड़ाना नहीं l

ओ के l

उसने मेरे दोनों पैर आजू - बाजू बनी हुई खोल में फंसा दिए l अब आप बेफिक्र एंज्वाय कीजिये l

डर कुछ कम हुआ था किंतु मैं जोर से पीतल की कमानी को थामे सोच रही थी, ऊँट की पीठ पर इतना पीतल बाँध दिया, इसे लगता नहीं होगा क्या ?

ऊँट चल पड़ा टुम्बक - टुम्बक l

गुप्त जी ने मोबाईल से सेल्फी ली तो ऊँट वाला बोला - मुझे दीजिये, ' आई एम फोटोग्राफर ' और उसने शानदार फोटोग्राफ लिए l

मौसम बेहद खुशनुमा हो गया था l सूरज क्षितिज में जाने को बेताब था और ऊँट अपनी मस्त चाल से चला जा रहा था l हमें जहाँ सूर्य और धरती का मिलन होते देखना था, लो वह मिलन हो भी गया l कैमरा क्लिक हुआ l ऊँट के काफिले और सवारियों की हंसी - किलकारियां गूंज रही थीं l शाम के धुंधलके में ऊँट ऊंचे - ऊंचे रेत के टीलों को पार करता कभी नीचे की ओर पाँव बढ़ाता चला जा रहा था l ऐसा लग रहा था, हम किसी फिल्म के पात्र हैं l

मैंने कहा - ऊँट वाले भाई, आपका नाम क्या है ?

' छोटे खान '

और आपके ऊँट का ?

मि. कोरेस्टर l

अरे वाह, इंग्लिश नाम क्यों ?

विदेशी आते हैं, उन्हें बताने के लिए ऐसे ही नाम रखने पड़ते हैं l

अच्छा कितने साल का है ये ?

नौ वर्ष का l इसी से तो हमारी जिंदगी है, ये चलेगा तो जिंदगी चलेगी l दूर गाँव से आते हैं हम l अभी ऑफ सीजन चल रहा है, तीन दिन से सवारी नहीं मिली थी l

अच्छा इसीलिए ये मस्त चाल से चल रहे हैं मि. कोरेस्टर ?

हाँ, आपको कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है मैडम ?

नहीं, नहीं, आनंद आ रहा है l

हल्की - हल्की पानी की बूँदें भी झर रही थीं l ऊंटों के काफिले चले जा रहे थे, कुछ आगे - कुछ पीछे l हमने देखा, सारे ऊँट दूसरे डायरेक्शन में मुड़ गए l हम अब अकेले ही थे l सामने रेत का बहुत ऊँचा टीला था l

अरे छोटे खान, सामने बहुत ऊँचा टीला है l

वह हंसा - चिंता न करें, मि. कोरेस्टर हैं ना l

अपनी मंजिल बहुत दूर है यानि के. के. रिसोर्ट अलग डायरेक्शन में है l आप तो रेगिस्तान और रेगिस्तान के जहाज की सवारी का आनंद लीजिये l

कोरेस्टर अब ऊँचे टीले से बिल्कुल नीचे उतर रहा था l दूर रिसोर्ट की रौशनी झिलमिला रही थी l कुछ संगीत की धुनें भी गूंज रही थीं, ' केसरिया बालम पधारो म्हारे देस........ ' l मैंने कहा - लगता है, प्रोग्राम शुरू हो गया l

हाँ, कहीं - कहीं शुरू हो गया है l

पानी की रिमझिम और कोरेस्टर के पाँव में बंधे घुंघरू के रुनझुन के साथ मगन हम आखिर रिसोर्ट पहुँच ही गए l अविस्मरणीय पल थे ये l सामने झंडे लहरा रहे थे, संगीत गूंज रहा था - ' केसरिया बालम पधारो म्हारे देस..... ' l

ऊँट से उतरकर हमने छोटे खान और मि. कोरेस्टर के साथ एक सेल्फी ली l गुप्त जी ने मि. कोरेस्टर और खान को कुछ इनाम भी दिया l वह खुश हुआ l रिसोर्ट में हमने जलपान किया l सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत के पहले राजस्थानी नर्तकी ने हम सबका तिलक लगाकर स्वागत ( खम्बाघणी ) किया l खुले मैदान में कुर्सियां लगी हुई थीं l बिजली - बादल चमककर, कभी गरज कर कह जाते, हम भी हैं लुत्फ़ उठाने आपके साथ और कुछ बूंदें गिर जातीं स्वागत में l

कलाकारों का परिचय संचालक ने कराया - ये शहनाई पर उस्ताद बिस्मिल्ला खां जिन्हें ' इंडियाज गाट टेलेंट ' में टी. व्ही में आपने देखा होगा, पूरी टीम के साथ l

सुनकर जोरदार तालियां गूंज उठीं l

और ये हैं नृत्यांगना करिश्मा सपेरा और पारो सपेरा, अस्सी कली के घाघरा में सजी - धजी ...... l

सभी कलाकारों का परिचय हुआ और फिर पारम्परिक स्वागत गान - ' केसरिया बालम पधारो म्हारे देस...... ' l

संगत दे रहे वाद्ययंत्रों के कलाकारों की अदाओं ने मन मोह लिया l इसके बाद एक के बाद एक घूमर की शानदार प्रस्तुति - ' कलिया कूद पड़ो मेले में, साईकिल पंचर कर लायो ' l करताल, तबला, शहनाई, सारंगी की जुगलबंदी गजब की थी l वहीँ खतरनाक आग का खेल जिंदगी चलाने के लिए, ये रिझाने के तरीके बेहद रोमांचकारी और रोंगटे खड़े कर देने वाले थे l पर, हमारे देश में कला के कद्रदान अभी भी बहुत कम हैं l विदेशी पर्यटक विस्मय से इन कलाकारों को देख रहे थे l अंत में हम सभी ने कार्यक्रम में शामिल होकर कलाकारों का हौसला अफजाई किया, नाचे - गाये, झूमे ... l और दाल - बाटी, चूरमा, सांगरे की साग राजस्थानी भोजन का आनंद लिया फिर वहां इटालियन तम्बू में रात गुजारने के बजाय होटल में ठहरना ठीक समझा l अतः हम फिर होटल बाँसुरी टैक्सी से वापस आ गए, रेगिस्तान की घिरती सांझ, मि. कोरेस्टर की सवारी, घूमर नृत्य, गूंजते संगीत - ' केसरिया बालम पधारो म्हारे देस..... ', स्वर्ण नगरी की अद्भुत छटा, कुलधरा का भुतहा गाँव और डूबते सूरज की लालिमा को मन में बसाये l

हमारा अंतिम पड़ाव था जोधपुर l जैसलमेर से शाम करीब पांच बजे ट्रेन से हम रवाना हुए तो रात्रि 11.30 पर जोधपुर स्टेशन पहुंचे l रंगीन कलाकृति, राजस्थानी लोककला से सुसज्जित स्टेशन देखकर मन प्रसन्न हुआ, लगा कि हम अलग - थलग रंग - रंगीले राजस्थान प्रदेश में हैं जो अपनी पहिचान स्टेशन पर ही बता रहा है l जयपुर गुलाबी शहर है, तो जैसलमेर पीला शहर और जोधपुर को ब्लू सिटी कहते हैं l स्टेशन से हम ओला बुक करके पहिले से बुक ' ट्रीबो मारवाड़ होटल एवं गार्डन ' पहुंचे l रात्रि विश्राम पश्चात् होटल में नाश्ता - पानी कर होटल मैनेजमेंट द्वारा तय टैक्सी से शहर घूमने निकले l हमारे पास होटल द्वारा दिया गया सिटी ब्रोशर था जिसमें मुख्य पर्यटन स्थल उम्मेद भवन ( पैलेस ), मेहरानगढ़ फोर्ट, मंडोर गार्डन स्मारक, गणेश भैरव मंदिर समाहित थे l हमें यह भी बताया गया कि शाम के वक़्त सरदार बाजार, घंटाघर देख सकते हैं l

चलिये, दुनिया के सबसे बड़े निजी महलों में से एक उम्मेद भवन पैलेस l महाराजा उम्मेदसिंह ने इस महल का निर्माण सन 1943 में करवाया l मार्बल और बलुआ पत्थर से बने इस महल का दृश्य पर्यटकों को खास तौर पर लुभाता है l इस महल के संग्रहालय में पुरातन घड़ियाँ और पेंटिंग्ज हैं l महाराजा की क्लासिक विंटेज कारें संग्रहालय के सामने बगीचे के एक हिस्से में प्रदर्शित हैं l यही एक बीसवीं सदी का महल है जो बाढ़ राहत परियोजना के अंतर्गत निर्मित हुआ l महल 16 वर्ष में बनकर तैयार हुआ l करीब 26 एकड़ भूमि में बने इस महल में वर्तमान में 347 कमरे हैं l इस अति समृद्ध भवन में अभी भी पूर्व शासकों का निवास स्थान है l इसके एक हिस्से में होटल चलता है, बाकी में संग्रहालय l यह महल ताज होटल का एक अंग है l

अब हमारी टैक्सी हमें पहुंचा रही थी राजस्थान के सबसे खूबसूरत किलों में से एक, ' मेहरानगढ़ किला ' जो पहाड़ी के बिल्कुल ऊपर बसा है l यहाँ से देखने पर पूरा जोधपुर नीला - आसमानी रंग का दिखाई देता है इसीलिए जोधपुर को ब्लू सिटी कहा जाता है l मोती महल, फूल महल, सुख महल देखने लायक खूबसूरत इमारतें हैं l 1806 ई में राजा मानसिंह ने इसका निर्माण करवाया था l दुर्ग में श्रंखलाबद्ध द्वार जयपोल, विजय द्वार इत्यादि हैं जो मुगलों के परास्त होने की कहानी सुनाते हैं l हम थककर चूर हो चुके थे, साथ ही किले की ऊँचाई देखकर हिम्मत जवाब दे रही थी लेकिन पता चला कि यहाँ तो दो मंजिल तक ले जाने के लिए लिफ्ट लगी है, जानकार मन को ढांढस हुआ l हमने तुरंत टिकिट खरीदा और लिफ्ट से दो मंजिल ऊपर पहुँच गए l लौटते वक़्त हम सारी मंजिलें देखते, समझते उतरे, तब पता चला, किला कितनी ऊँचाई पर है l अपने वैभव के साथ शान ओ शौकत से आज भी यह किला खड़ा वीरता की कहानियां सुना रहा है l किले के नीचे ही बैठा था राजस्थानी वेशभूषा में एक व्यक्ति जो सारंगी जैसा वाद्य यंत्र बजाते हुए सुरीले स्वर में गा रहा था, ' केसरिया बालम पधारो म्हारे देस..... ' l

अब हमें मंडोर गार्डन जाना था लेकिन पेट कह रहा था कि राजस्थानी भोजन का आनंद ले लो l हमने टैक्सी वाले को आवाज दी l उसने मंडोर के रास्ते में ही एक अच्छे से रेस्टारेंट पर गाड़ी रोक दी जहाँ सुस्वादु राजस्थानी भोजन दाल - बाटी, चूरमा, छाछ का भरपूर आनंद लिया l मंडोर गार्डन नाम से हमने समझा था कि मंदिर होंगे, मूर्तियां होंगीं l लेकिन यहाँ राजा - महाराजा , रानियों के स्मारक हैं जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है l इन स्मारकों में नक्काशीदार छतरियां हैं l गवर्नमेंट की तरफ से पूरी तरह व्यवस्था है, सुरक्षा है l कर्मचारियों की तरफ से पूरी चौकसी थी कि कोई भी चप्पल - जूते पहिनकर स्मारक के अंदर प्रवेश न करे l गर्मी बहुत अधिक थी, धूप तेज l हमने गार्डन में बिछी हरी दूब पर थोड़ी देर विश्राम किया, तभी देखा कि सिंचाई किये जाने वाले पाइप से फुहारे निकल रहे थे और दो अध कपड़े पहिने नन्हें - मुन्नों ने हमारा ध्यान आकर्षित किया l फुहारों से वे घूम - घूमकर नहाने लगे और उड़ते फुहारों से चुल्लू में पानी पीने के प्रयास में बार - बार गिरते फिर उछलते, किलोल करते रहे l ऐसा लगा, यदि हम भी अगर बच्चे होते तो इस तरह आनंद उठाकर गर्मी से राहत पा जाते l उनकी मस्ती की पाठशाला ने बचपन याद दिला दिया और हम तरोताजा हो गए l मंडोर गार्डन के बाहर बाएं रास्ते पर भव्य विशाल गणेश जी एवं भैरव जी का मंदिर है l गणेशोत्सव के सुअवसर पर अनुपम अनोखी छवि के दर्शन करके हम धन्य हुए l प्रसाद लेकर हम टैक्सी से पुनः होटल मारवाड़ पहुंचे l रास्ते में एक जगह लिखा था, ' रामकथा प्रारम्भ ', स्थान रावण का चबूतरा l पढ़कर हम चौंक गए, यहाँ रावण का चबूतरा ?

तभी टैक्सी वाले ने बताया - मंडोर रावण की ससुराल है l मंदोदरी यहीं की थी, उसी के नाम से इस जगह का नाम ' मंडोर ' है l

हमें यह पढ़कर अच्छा लगा, रामकथा, वह भी रावण के चबूतरे पर हो रही है l होटल पहुंचकर हमने थोड़ा विश्राम किया l थकान दूर होने पर सोचा, घंटाघर, गिरडी कोट और सरदार मार्केट देख ही लिया जाय l एक ऑटो करके हम लोग घंटाघर देखते हुए सरदार मार्केट पहुँच गये l छोटी - छोटी दुकानों वाली सकरी गलियों में छितरा रंगीन बाजार शहर के बीचों - बीच है l हस्तशिल्प की विस्तृत किस्मों की वस्तुओं के लिए यह मार्केट प्रसिद्द है l खरीददारों का यह मन पसंद स्थल है l यहाँ की चौपाटी में गरमागरम चाट खाना न भूलिये l हमने यहाँ से साड़ियां, चुन्नियाँ खरीदीं और गरमागरम चाट खाई, भले ही हमें ए. टी. एम. से पैसे निकालना पड़े l

राजस्थान में जैसलमेर, जोधपुर, अजमेर, पुष्कर सब घूमा लेकिन मन में फिर भी एक रिक्तता रह गई, भक्त शिरोमणि मीराबाई की जन्म स्थली देखने की l किंतु, समयाभाव के कारण यह संभव न हो सका l छह - सात दिन रंग रंगीला राजस्थान देखने के लिए पर्याप्त नहीं है l सोचा, फिर कभी कोई प्रोग्राम बनेगा तो छूटे स्थान अवश्य देखेंगे l अच्छा है, मन जिज्ञासु बना रहे तो मन की ताकत तन की ताकत बन ही जायेगी l दूसरे दिन प्रातः 7 बजे जोधपुर - इंदौर ट्रेन से अजमेर के लिए रवाना हुए जहाँ से हम दयोदय एक्सप्रेस से सीधे कटनी म. प्र. के लिए रवाना हो गए l मन में धुन गूंज रही थी, ' केसरिया बालम पधारो म्हारे देस........ ' l

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डॉ. सुधा गुप्ता ' अमृता '

दुबे कालोनी, कटनी 483501 म. प्र.

मोबा : 9584415174

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