शौर्य गाथाएँ - 7 Shashi Padha द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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शौर्य गाथाएँ - 7

शौर्य गाथाएँ

शशि पाधा

(7)

प्रथा–कुप्रथा

किसी भी समाज में सामिजिक प्रथाओं का अपना विशेष महत्व तथा तात्पर्य होता है | किसी न किसी विशेष कारणों से समाज के बुज़ुर्ग वर्ग ने इन प्रथाओं को बनाया होगा ताकि घर, गाँव और फिर देश में एकता, शान्ति एवं सौहार्द की भावना बनी रहे | यह प्रथाएँ देश, काल परिस्थिति के अनुसार बनती और बदलती रहती हैं | किन्तु ऐसा देखा गया है कि समय के साथ–साथ इन सामाजिक प्रथाओं का कहीं–कहीं दुरुपयोग भी होने लगा है |

अधिकतर ऐसी प्रथाओं का केंद्र बिंदु नारी ही होता है| राजस्थान में सती प्रथा के चलन से बहुत सी मासूम विधावाओं को अपने पति की चिता पर बैठ कर भस्म होने के लिए बाध्य करने के कितने ही दिल दहलाने वाले दृष्टांत मिलते हैं| वो अभागिन स्त्री अपने पति की मृत्यु से इतनी दुखी होती है कि उसे उस समय अपने प्रिय के साथ भस्म होने के सिवाय शायद कुछ और सूझता ही नहीं हैं |और फिर गाँव के गाँव इस अवसर पर एकत्रित हो कर इसे धार्मिक रूप दे देते हैं | ऐसी कुरीतियों के कारण एक असहाय नारी को असमय ही मृत्यु की गोद में झोंक दिया जाता है |

अगर आप मथुरा–वृन्दावन गये होंगे तो वहां मंदिरों के आस –पास की गलियों में सैंकड़ों विधवाओं को सिर मुंडवाए; जीर्ण –शीर्ण सी सफेद साड़ी पहने, हाथ में भिक्षा का कटोरा लिए बैठे देखा होगा| कहते हैं कि इन भोली भाली स्त्रियों को तीर्थ यात्रा के बहाने यहाँ पर छोड़ दिया जाता है और फिर ये कभी भी अपने घर लौट के नहीं जा सकतीं| इन पर यह अन्याय केवल इसलिए होता है कि उनका परिवार उन्हें बोझ मानने लगता है| क्या यह उन नारियों के साथ घोर अन्याय नहीं? यहाँ तक कि उस स्त्री के माता–पिता भी उसे अपने घर में आश्रय देने के लिए तैयार नहीं होते |

उत्तरी भारत के पंजाब और हरियाणा प्रान्तों में विधवा के पुनर्विवाह से संबंधित एक सामाजिक प्रथा है जिसे ‘ चादर ओढ़ाना’ के नाम से जाना जाता है | जब कोई स्त्री विधवा हो जाती है तो कई ग्रामीण परिवारों में उसके पति की मृत्यु की तेहरवीं पर या छमाही के अवसर पर सारा कुनबा एकत्रित होता है और विधवा के ऊपर उसके दिवंगत पति के परिवार से या तो बड़े भाई द्वारा या छोटे भाई द्वारा चादर ओढ़ाई जाती है| इस रीति के बाद वो उसकी ब्याहता स्त्री हो जाती है| पंजाब और हरयाणा दोनों कृषि प्रधान प्रांत हैं | जमीन ही इनकी संपदा है और इस संपदा को सुरक्षित रखने के लिए यहाँ के लोग कुछ भी कर सकते हैं | शायद अपनी ज़मीन को अपने ही परिवार में सुरक्षित रखने के लिए पुनर्विवाह की यह रीत निभाई जाती है ताकि उस मृतक की हिस्से की ज़मीन –जायदाद अपने घर में ही रहे |

विडंबना यह है कि चाहे उस विधवा की सहमति हो या ना हो; चाहे चादर ओढ़ाने वाला देवर या जेठ पहले से ही विवाहित हो और बाल बच्चों वाला हो, या विधवा की आयु से दुगुना हो, इन संवेदनशील बातों की परवाह न करते हुए भी परिवार की विधवा को यह रस्म पूर्ति के लिए बाध्य किया जाता है|

पुनर्विवाह होना तो किसी भी समाज की प्रगति का द्योतक है, किन्तु इसे किसी भी विधवा की सहमति के बिना उस पर थोपा जाना नारी का शोषण है, अन्याय है | कौन जाने जिस शादी शुदा सदस्य के साथ उसे बाँधा जा रहा है, उसकी स्त्री उसे स्वीकार करे या ना करे? कौन जाने वो उस घर में एक केवल सहायता करने वाले प्राणी (नौकर) की तरह ही रहे? ऐसे बहुत से दृष्टांत मिलते है जब ऐसी स्त्रियों के साथ बहुत दुर्व्यवहार होता है| किन्तु गाँव पंचायतें इस विषय में चुप्पी साधे बैठी रहती हैं या ऐसी रस्म निभाने के लिए असहाय विधवा को बाध्य करती हैं | इन्हीं दो प्रान्तों के अधिकतर युवा सेना में भर्ती होते हैं और मातृभूमि की रक्षा में वीरगति को भी प्राप्त करते हैं| इन शहीदों के परिवारों से जब यूनिट के प्रतिनिधि मिलने जाते हैं तो यह पता चलता है कि बहुत से शहीद सैनिकों की विधवाओं ने जब इस प्रथा का विरोध किया तो उन्हें उनके परिवार, समाज से तिरस्कार ही मिला और उन्हें घर गाँव छोड़ कर किसी अन्य स्थान पर आश्रय लेना पड़ा|

आज मैं आपको इस प्रथा से जुडी एक ऐसी महिला से परिचित कराती हूँ जिसने अपने पति के सैनिक परिवार से समर्थन और सहारा पाकर इस प्रथा का विरोध किया और बड़े साहस से अपने परिवार के दबाव को ठुकराया | इस तरह उस कर्मठ महिला ने मेहनत करके अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के योग्य बनाया और स्वयं मान–आदर के साथ स्वतंत्र जीवन जीने में सफल रही |

वर्ष ८० और नब्बे के दशक में आतंकवाद अपनी चरमसीमा पर था| उन्हीं दिनों भारत की उत्तरी सीमाओं पर कारगिल युद्ध के भयानक परिणाम स्वरूप कई वीरों के बलिदान भी हुए | ऐसे ही एक आतंकवादी हमले में सीमा पर तैनात हमारी पलटन के बहादुर सूबेदार महादेव सिंह भी भारत माँ की रक्षा करते हुए शहीद हो गये| सारा देश उन वीरों के साहस और शौर्य को साक्षात टेलीविजन पर देखता था | भावनाएँ ऐसी थीं कि भारत का जन मानस उन वीरों के लिए कुछ भी करने को तैयार था | भारत सरकार ने भी सैनिक विधवाओं की आर्थिक सहायता हेतु प्रचुर धनराशि देने का निर्णय लिया, ताकि उस शहीद का परिवार इस भीष्म दुःख के समय आर्थिक दृष्टि से अपने को सुरक्षित समझ सकें| किन्तु कई परिवारों में यही धनराशि कलह, स्वार्थ और लालच का कारण बन गई| शिक्षित परिवारों में भी शहीद सैनिक के माता –पिता और पत्नी के बीच यह कलह होने लगी कि आखिर कौन इस धनराशि का सही हकदार हो सकता है| कई परिवारों में तो इस धनको धोखे से अनपढ़ – मासूम विधवा से हथिया लिया गया |

बहुत से शहीद सैनिकों की पत्नियां कम पढ़ी लिखी होने के कारण बैंक आदि के नियमों से अपरिचित ही रहती हैं | ऐसे कई दृष्टांत देख कर हमारी पलटन के अधिकारियों ने यह निर्णय लिया कि अगर किसी सैनिक की पत्नी अनपढ़ है तो उसे इस धनराशी के सही उपयोग करने में सहायता दी जाए | यानि सरकार की ओर से मिली आर्थिक सहायता में मिली राशि को उस शहीद की पत्नी के नाम लम्बी अवधि के लिए फिक्स डिपाजिट के रूप में बैंक में रखा जाए | इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य यही था कि किसी विधवा के साथ धोखा धड़ी न हो |

सूबेदार महावीर सिंह के गाँव में जब हमारी यूनिट के प्रतिनिधि उनके परिवार से मिलने गये तो उनकी पत्नी ने यूनिट में हमारे पास आने की इच्छा जतलाई | क्योंकि वो बिलकुल अनपढ़ थी, बैंक आदि के नियमों का उसे पता नहीं था, यूनिट के अधिकारियों ने निर्णय लिया कि उसे यूनिट में बुला कर ही बैंक की कारवाई से अवगत कराया जाये तथा उसके बच्चों के भविष्य को लेकर सलाह मशवरा किया जाए| मैंने उससे केवल एक बार पत्र व्यवहार किया था | मैं भी उससे मिलने को आतुर थी | मैं उसे केवल नाम से जानती थी| उसका नाम चम्पा था |

जिस दिन चम्पा अपने परिवार के साथ पहली बार यूनिट में आई, हम कुछ सैनिक पत्नियाँ छावनी में बने अतिथि गृह में उससे मिलने गईं | हरयाणवी पोशाक में लम्बी महिला परिवार के सदस्यों से घिरी, चुपचाप सी कमरे में बैठी थी| उसने इतना लंबा घूँघट काढ़ा था कि मुझे समझ नहीं आ रहा था बिना उससे दृष्टि मिलाये कैसे उससे उसकी दुःख की बात | खैर, जो कुछ भी मैंने कहा, जो कुछ भी उसने सुना, हमारे बीच उसकी काली चुनरी का पर्दा बना रहा | मुझे यह अवश्य लग रहा था कि वो रो रही थी, क्योंकि मेरे हाथ में धरे उसके हाथ काँप रहे थे | मैंने उससे बार –बार यही कहा कि वो निसंकोच होकर हमें जो भी कहना चाहती है, कहे | ताकि हम उसकी सहायता कर सकें |

बातचीत के दौरान हमारी पलटन के एक अधिकारी ने उसे तथा उसके परिवार को बतलाना आरम्भ किया कि कैसे उसे मिली धनराशि को लम्बी अवधि के लिए बैंक में डाल दिया जाएगा ताकि वो उस आर्थिक सहायता का भविष्य में सही उपयोग कर सकती है| इस सारी बातचीत के अंतर्गत न जानें मुझे क्यों लग रहा था कि मुझे इससे अकेले में भी बातचीत करनी चाहिए, शायद वो अपने पति के बारे में बहुत कुछ जानना चाहती हो | मैं भी सैनिक पत्नी हूँ और मैंने उस अबोली के काँपते हाथों की भाषा को पढ़ लिया था | मैंने मेजर राज से कहा, “ आप इनके परिवार के साथ बातचीत कीजिए| मैं महावीर सिंह की पत्नी के साथ दूसरे कमरे में थोड़ी देर बैठती हूँ ताकि यह घूँघट से बाहर सहज हो कर मुझसे अपना दुःख बाँट सके|”

हम दोनों साथ के कमरे में गईं | वहाँ बैठते ही घूँघट हटा कर, संयत हो कर उसने मुझसे बातचीत करनी आरम्भ की | मेरे यह पूछने पर कि परिवार में उसे कोई कष्ट तो नहीं, वो फूटफूट कर रोने लगी | पति को खोने का दुःख अश्रुधार में बह रहा था | मुझे इस बात का पता था कि लगभग छह महीने से उनके पति पूर्वोत्तर सीमाओं पर तैनात थे और बहुत देर से छुट्टी पर भी नहीं गए थे |

मैंने बड़े स्नेह से उससे कहा, “ देखो, आपके पति ने हमारी यूनिट के उच्च उद्देश्य की रक्षा करते हुए अपना जीवन दान दिया है| हम सब आपके ऋणी हैं| अब हमारा कर्तव्य है कि आपकी सहायता करें | आप निसंकोच हो कर अपने मन की बात कहे|”

कुछ सहज हो कर उसने कहा, “ मेमसाब जी, मुझे ऐसा आभास हुआ है कि मेरे ससुराल वाले कुछ दिनों बाद परिवार के किसी विवाहित सदस्य के द्वारा मुझ पर ‘चादर ओढ़ाने”की रस्म की तैयारी कर रहे हैं | मैं इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं हूँ | मेरे अपने दो बच्चे हैं, मैं अपने बच्चों को स्वयं पाल पोस सकती हूँ | इस रस्म के बाद मेरा जीवन बदल जाएगा | मैं अपने बहादुर पति की स्मृतियों के बल पर हर कठिन घड़ी का सामना कर सकती हूँ | मुझे इस परिस्थिति से बचा लीजिए|”

यह सुन कर मैं स्तब्ध रह गई| मैंने ऐसी रीति के विषय में पढ़ा सुना ही था | आज मुझे इसके विरोध के लिए किसी नारी का साथ देना होगा !

मैंने उसका मन टटोलने के लिए पूछा, ” क्या आपके माता–पिता भी आपको बाध्य कर रहे हैं ?क्या वो नहीं आपको अपने घर में कुछ दिन रख सकते ताकि आप अपने मन की बात परिवार के सम्मुख रख सको |”

एक ठंडी साँस लेकर बहुत ही निराश शब्दों में उसने कहा, “ यह उनकी सहमति से हो रहा है क्यूंकि हमारे समाज में यही रीत है | अगर वो इसका पालन नहीं करेंगे तो पूरे जीवन भर अपमान भोगते रहेंगे| उन्हें अपनी बिरदारी से निष्काषित कर दिया जाएगा|”

अब समय था मुझे निर्णय लेने का| मैंने उससे कहा, “ इसका एक ही रास्ता है कि आप कुछ दिन हमारी पलटन में ही रहो| हम सब आपकी सहायता करेंगे और फिर जैसा चाहोगी वैसा करेंगे|”

उसने बड़े साहस के साथ यही कहा, “अगर आप साथ देंगी तो मैं इस परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार हूँ|”

कमरे से बाहर आते ही यह बात मैंने यूनिट के अधिकारियों को बताई |सब ने मिल-मिला कर उसके परिवार को समझाया कि अगर वो इस रीत के लिए तैयार नहीं है तो उसे मजबूर न किया जाए |परिवार के सदस्यों ने थोड़ा क्रोध जताया, थोड़ा अवरोध किया किन्तु जब सब के सामने चम्पा से यह पूछा गया कि यही आपका अंतिम निर्णय है तो उसने हामी में सर हिला | पता नहीं हमारा दृढ निश्चय देख कर अथवा घूँघट ओढ़े खडी उस विधवा के निर्णय को सुन कर क्या परिणाम हुआ कि उसका परिवार बहुत दुखी मन से उसे कुछ दिनों के लिए हमारे पास छोड़ कर अपने गाँव लौट गया|

यूनिट में अपने पति के मित्रों के परिवारों के साथ निश्चिन्त होकर चम्पा अपना जीवन यापन करने लगी |उसके बच्चे यूनिट के स्कूल में पढने लगे, उसे मिली धनराशि को भी लम्बे समय के लिए फिक्स डिपाजिट स्कीम में डाल दिया गया | वो पहली बार यूनिट में रहने आई थी किन्तु जल्दी ही सब से घुल-मिल गई और बड़े स्वाभिमान के साथ जीवन बिताने लगी|

हर दो या तीन वर्षों के बाद सैनिक अधिकारियों का स्थानान्तरण हो जाता है| मैं भी अपने इस परिवार को छोड़ कर एक नए परिवार, एक नये स्थान पर रहने चली गयी| यूनिट के लोगों से हमें प्रत्येक परिवार के कुशल मंगल की सूचना मिलती रहती थी| मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता थी कि सूबेदार महादेव यादव के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं थे |

गत वर्ष हमारी पलटन ने अपना २५०वा स्थापना दिवस मानाया| इस उत्सव में सभी पुराने सैनिक परिवारों को भी आमंत्रित किया गया| तीन दिन तक चलने वाले इस महामिलन के उत्सव में एक दिन वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों के परिवारों को सम्मान देने के लिए निश्चित था| ताकि नई पीढी भी उनसे मिल सके और उन वीरों के बलिदान को याद किया जाए| सभी आमंत्रित अतिथि तथा यूनिट के सदस्य उन वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक बड़े से मैदान में एकत्रित थे | समारोह के आरम्भ में एक अधिकारी ने यूनिट के २५० वर्ष पुराने गौरवमय इतिहास को दोहराते हुए विभिन्न युद्धों में वीरगति को प्राप्त हुए शहीदों को याद किया | अब कार्यक्रम था मैदान में उपस्थित उन शहीदों के परिवारों को स्मृति चिह्न भेंट करने का और इस विशेष कार्य के लिए मुझे आमंत्रित किया गया |

एक सैनिक अधिकारी एक-एक कर माइक्रोफोन पर शहीदों के नाम बोल रहा था और मैं उनके परिवारों को भेंट दे रही थी | जैसे ही सूबेदार महादेव का नाम बोला गया, मैंने देखा कि मेरे सामने मुस्कुराती हुई एक स्वावलंबी महिला खड़ी थी | मेरी आँखों के सामने कई वर्ष पहले का वो दृश्य कौंध गया जब मैं घूँघट में लिपटी, बेहद डरी हुई चम्पा से मिली थी | हम दोनों ही भावावेश में एक दूसरे के गले लग गईं |वो मुझे छोड़ ही नहीं रही थी और अस्फुट शब्दों में कुछ कहने का प्रयत्न कर रही थी| मैं भी उससे मिल कर बहुत खुश थी | हम दोनों ही एक दूसरे से वर्षों के अन्तराल के बाद मिल रही थी | मैं उससे बहुत कुछ पूछना चाहतीं थी| किन्तु समय का अभाव हमारी इस मिलन घड़ी के मार्ग में आ खड़ा हुआ | माइक पर एक अगले सैनिक शहीद का नाम बोला जा रहा था|

चम्पा ने फिर से कस कर मेरा हाथ थाम लिया | मैंने यूनिट की ओर से भेंट तथा स्मृति चिह्न देते हुए चम्पा से कहा, “तुम्हारे एक साहसी कदम ने बहुत सी नारियों का मार्ग प्रशस्त किया है| तुम्हारे सुखी जीवन के लिए और तुम्हारी संतान की सफलता के लिए तुम्हें आज मैं हृदय से बधाई देती हूँ |”

अब उसने जो मेरा हाथ छोड़ा तो उसमें कोई कम्पन नहीं था |

***