हर रविवार छुट्टी के दिन मौली अपने पड़ोस में रहने वाले बच्चों के साथ जानवरों को जंगल छोड़ने जाते और दिन तक घर आ जाते थे..
आज भी जब पड़ोस में रहने वाली खुशी जो मौली की उम्र की है आवाज दी तो मौली भागते हुए बाहर आई .. जल्दीबाजी में चप्पल पहनकर जाने लगी.. मौली की बड़ी बहन रेनू ने अपनी गाय ओर बैलों को खोल दिया ।
खड़ी क्या है? बेंत तो पकड़ ले-रेनू मौली को डांटते हुए बोली.
मौली ने तुरंत बेंत उठा ली। रेनू ओर मौली गाय बैलो को लेकर जाने लगे। पीछे से बिन्नी दौड़ती हुई आयी. मैं भी जाऊंगी आज? रेनू की तरफ देखते हुए बिन्नी बोली।
नहीं तू नहीं जाएगी-रेनू ने डांटते हुए कहा।
बिन्नी- मैने मा से पूछ लिया है, उन्होंने हां कहा.. मैं तो जाऊंगी..
इतना कहते ही वह जाने लगी। पीछे मौली और रेनू भी चलने लगी.
बिन्नी का ध्यान रखना और जंगल के अंदर मत जाना-मां आँगन से रेनु और मौली को समझते हुए कहती है।
हां मां-रेनु और मौली एक साथ कहते हैं।
पड़ोस में रहने वाली खुशी और उसकी छोटी बहन मिन्नी जो बिन्नी की उम्र की है , अप्पू ओर गोलू जो आसपास ही रहते है। खुशी अप्पू और गोलू मौली के साथ पढ़ते हैं। सभी अच्छे दोस्त हैं।
खुशी भी अपनी दो भैंसों को लेकर चल दी अप्पू ओर गोलू की भी दो दो गाय हैं।
घर के पास सड़क पार करके दूसरा गांव पड़ता है, जहाँ एक कच्चा रास्ता जो जंगल तक जाता है। रास्ता काफी चौड़ा है, जिसके किनारे छोटी झाड़ियां उगी हुई है। पास में दोनों तरफ लहलहाते खेत हैं पर घर बहुत दूर दूर पर है। कोई इक्का दुक्का घर जो रास्ते पर मिल जाएगा पूरे रास्ते केवल एक ही दुकान है जहां जरूरत का छोटा मोटा समान मिल सकता है।
सभी बच्चे साथ में खेलते मज़े करते हुए जा रहे हैं। इतने में खुशी कहती है- कितना धीरे चल रहे है ये(जानवरों की तरफ इशारा करते हुए) ऐसे तो जंगल पहुचने में देर हो जाएगी, फिर हम घूमेंगे कब? वापस भी तो आना है?
एक को बेंत मार दे, सब भागने लगेंगे- अप्पू कहता है।
खुशी-पर किसके मारू?
अप्पू- वो जो सबसे आगे जा रही है, मौली की गाय के मार दे।
गोलू-पागल गाय माता है। उसको नहीं मारते समझाते हुए कहता है।
सभी गोलू से सहमत होते हैं।
तो फिर बैल के मारें? खुशी फिर पूछती है।
नहीं बैल तो नन्दी बाबा हैं। उनको नहीं-रेनू कहती है।
इस बार भी सब रेनू की बातों से सहमत होते हैं ।
तो फिर किसको मारेंगे?-मौली बोली।
अब सब बच्चे भैंस की तरफ देखने लग जाते हैं।
कोई कुछ कहता इससे पहले खुशी भैंस के एक बेंत मार देती है।
बेंत पड़ते ही भैंस रम्भाने लगती है। अचानक बगल में चल रही गाय रुकती है और पीछे मुड़कर खुशी की तरफ दौड़ती है ।
खुशी एकदम सम्भलकर चिल्लाते हुए भागने लग जाती है!
खुशी विस्मय से चिल्लाते हुए-मौली तेरी गाय को क्या हो गया?
सभी बच्चे खिलखिलाकर हँसने लग जाते है।
तूने उसकी दोस्त को डंडी क्यों मारी?-बिन्नी मासूमियत से जवाब देती है।
दोस्त?-खुशी(हैरानी से)
हां सब जानवर आपस में पक्के दोस्त हैं-गोलू जवाब देते हुए बोला।
गाय खुशी को थोड़ा दूर भगाकर वापस आकर भैंस को सूंघती है और चलने लग जाती है।
देख वो कह रही कि मैने बदला ले लिया है! बिन्नी कहती
है.
सब बच्चे फिर से हँसते हुए चलने लगते हैं।
कितनी अजीब बात है पर सत्य है। जहाँ अलग अलग प्रजाति के जानवर एकसाथ रहते है तो उनमें प्रेमभाव स्वभाविक ही हो जाता है.. परन्तु हमारे देश में मनुष्य अलग अलग धर्मों के एक साथ रहते हैं, पर एकदूसरे के प्रति रिस्पेक्ट की नजरें तक नसीब नहीं होती..
जंगल शुरू होने से पहले विशाल बरगद का पेड़ है, उसकी कई विशाल शाखाएँ जमीन को छू रही थी। उसे देखते ही सब बच्चे शाखाओं में झूलने के लिए दौड़ पड़े सब जानवर भी जंगल की ओर निकल गए।
थोड़ी देर खेलने के बाद अप्पू बोला-क्यों ना आज जंगल के अंदर घुमा जाए।
गोलू-नहीं हम खो गए तो? जल्दी घर भी तो जाना है?
रेनू-वहाँ जंगली जानवर भी होंगें।
बस थोड़ी दूर ही जायेंगे और जल्दी वापस आ जाएंगे बहुत मज़ा आएगा, चलो ना? अप्पू जोर देते हुए बोला.
थोड़ी देर अप्पू के जोर देने पर सभी सहमत होकर जंगल की तरफ निकल पड़ते हैं।
जंगल में लकड़ी, घास लेने गांव के लोग जाते थे जिससे बहुत सारी पगडंडिया जंगल की ओर जाती हुई बनी हुई है, जिसमे सब चलने लगते हैं। सबसे आगे अप्पू, गोलू, रेनू बढ़ते हैं, पीछे मौली बिन्नी खुशी मिन्नी सब एकदूसरे का हाथ पकड़े डरते हुए चलते है।
थोड़ी दूर चलने पर उनको गाय भैंस घास चरते हुए दिखाई देते हैं। जिससे धीरे-धीरे सबका डर खत्म हो जाता है।
चलते चलते रेनू को खाईनुमा चौड़ा नाला दिखाई पड़ता है रेनू नाले के ऊपर पास जाकर देखती है। नाला थोड़ा गहरा था। तब उसे ध्यान आया यह तो वही नदी है जो उसके घर के पास से गुजरती हुई जंगल तक पहुचती है और यहाँ खत्म हो रही है। उस नदी में हमेशा पानी नहीं आता था, बरसात में जब बारिश होती है, तब ही नदी में पानी आता था। कल भी रात बारिश होने के कारण यहां नाले में पानी था। दलदल होने के कारण पानी मटमैला हो गया था।
इतने में पीछे से सभी बच्चे नदी देखने को उत्सुक होते है। नीचे जमीन गीली होने के कारण अचानक बिन्नी के पैर फिसल जाता है बिन्नी फिसलते हुए सीधे नाले में जा गिरती है।
सब बच्चे डर जाते है, रेनू की चीख निकल पड़ती है।
उधर नाले में कम पानी होने की वजह से बिन्नी उठ खड़ी होती है पानी उसकी कमर तक आ रहा था। बिन्नी बाहर निकलने की कोशिश करती है, फिसलन होने के कारण निकल नहीं पाती ।
रुक मैं आती हूँ-ऊपर खड़ी रेनु कहती है।
रेनु थोड़ा नीचे उतरकर बिन्नी को हाथ देने की कोशिश करती है। इतने में फिसलन की वजह से रेनु भी फिसलकर नाले में गिर जाती है।
सभी बच्चे खिलखिलाकर हँसने लग जाते है। दोनों की नाले से बाहर निकलने की कोशिशें विफल हो जाती है।
तुम सब एक दूसरे का हाथ पकड़कर हमे बाहर खींचो-रेनु कहती है।
सबसे पहले मौली नीचे उतरती है, फिर खुशी फिर अप्पू गोलू सबसे आखिरी में मिन्नी को खड़ी हो जाती है।
सब एकदूसरे का हाथ पकड़ लेते हैं।
मौली पहले बिन्नी का हाथ पकड़कर उसे ऊपर खिंचने की कोशिश करती है । हाथ गीले होने की वजह से बार बार बिन्नी का हाथ छूट जाता है। इतने में गोलू का पैर फिसल जाता है।
सभी बच्चे सीधे फिसलते हुए नाले में गिर जाते है।
कोशिश करते हुए कोई भी नाले से बाहर निकलने का प्रयास करता फिसलकर फिर से नाले में आ गिरता। ये देखकर सब हंस पड़ते । सबके लिए ये आनंदमय खेल बन चुका था । सब एकदूसरे को पानी में गिराने लगे।
बहुत देर हो चुकी है अब घर चलना चाहिए-चिंतित स्वर में रेनु सबसे कहती है।
गोलू-हां पर यह से बाहर कैसे निकलेंगे।
रेनु- इस नाले के ऊपर तरफ चलते हैं। जहाँ से निकलने का रास्ता होगा निकल जाएंगे।
सभी रेनु से सहमग होकर आगे बढ़ते है। कीचड़ होने की वजह से बार बार पैर फिसल रहे थे जिससे बच्चों को खेल प्रतीत होता था । सभी हंसते खेलते आगे बढ़ रहे थे।
कुछ दूर जाकर बच्चे नाले से बाहर आने में सफल हो जाते है।
हंसी मजाक करते हुए बच्चे नाले की दूसरी तरफ निकल जाते है जो घने जंगल की तरफ जाता था।
सभी के कपड़े भीगे हुए और कीचड़ से सने हुए है सब एकदूसरे को देखकर मजाक बनाते है.
रेनु सबको जल्दी चलने को कहती है, लेकिन उसे रास्ते का पता नही चल पा रहा था काफी दूर आगे चलने के बाद भी जंगल खत्म नहीं हुआ।
अप्पू-अभी तक तो पहुच जाना चाहिए था।
रेनु-हां शायद हम रास्ता भटक गए है?
क्या??? सभी बच्चे एक साथ जोर से बोलते हैं।
गोलू-अब हम घर कैसे जाएंगे ।
शायद हम नाले के दूसरी तरफ निकल गए है। हमें नाले को फिर से पर करना चाहिए।
इतने में जंगल से किसी जंगली जानवर की आवाजें सुनाई देती है बिन्नी डर के कारण रोने लगती है।
बिन्नी का रोना देखकर रेनु उसे चुप कराने की कोशिश करती है।
खुशी-रो मत बिन्नी। वरना भूत आ जाएंगे।
भूत का नाम सुनते ही मिन्नी भी रोना सुरु कर देती है। और बिन्नी का रोना ओर तेज़ हो जाता है।
सब उनको चुप कराते है और नाले की तरफ बढ़ते है।
लेकिन दोनों अभी चुप नही हुई थी दोनों बहुत डर गई और मा को याद कर रही थी।
उधर दिन ढलने को था घने जंगल में अब थोड़ा थोड़ा अंधेरा छाने लगा था।
सभी बच्चों के परिवारजन बच्चों के घर ना पहुचने पर चिंतित थे उन्हें ढूंढने भी लगे। मौली की माँ तो ना जाने कितने चक्कर लगा चुकी थी।
गोलू-आज तो घर पर मार पड़ेगी बहुत।
खुशी-हां अब तक घर पहुच जाते।
रेनु ओर मौली भी एकदूसरे को देखते है मार पड़ने का डर दोनों के चेहरों पर देखा जा सकता था।
आज तो माँ ने सख्त हिदायत देते हुए कहा था कि जंगल में मत जाना क्योंकि बिन्नी भी आज पहली बार साथ आई थी।
डर के कारण सभी बच्चे अपनी चाल तेज़ करते हैं।
बहुत देर बाद सागौन के पेड़ दिखाई पड़ते है जो कि जंगल के शुरू में लगे हैं।
सभी बच्चे राहत की सांस लेते हैं। उसके बाद बरगद का वही पेड़ आता है। जहां से जंगल शुरू होता है।
दिन तो लगभग ढल ही चुका था शाम के करीब 5 बजे होंगे ।
गांव की इकलौती दुकान में बैठे बूढ़े दादाजी बच्चों से जल्दी जाने को कहते है साथ में बताते है कि उनके घरवाले उनको ढूंढ रहे थे।
सभी दौड़ते हुए घर पहुंचते हैं।
रेनु मौली बिन्नी दूर से फलसे पर माँ को देखते है।
माँ के हाथ में बेंत है-मौली रेनु से कहती है।
बिन्नी को तो जंगल में खो जाने का ही डर था पर मौली और रेनु मार पड़ने के डर से डरी हुई थी।
परंतु उनसे ज्यादा डर माँ की आंखों में था जो शायद दोनों देखने में असमर्थ थी।
तीनो माँ के सामने कुछ दूरी पर आकर रुक जाती है।
सबसे आगे रेनु ओर मौली थी।
मौली के बगल में उसका हाथ पकड़े, थोड़ा मोली के पीछे छुपी हुई.. मिन्नी आंखों में आंसू भरे हुए,बड़ी मासूमियत से माँ को देखती है। गाल आंसू से भीगा हुआ कुछ सुख चुका था जो साफ देखा जा सकता था।
डरी सहमी बिन्नी को देखते ही मा के हाथों से बेंत छूट जाती है वह घुटनो के बल नीचे बैठती है और बिन्नी को गले लगा लेती है।
बच गए मौली धीमे से स्वर में दबी मुस्कुराहट में रेनु से कहती है। दोनों बहनों का डर गायब हो चुका था। और माँ का भी..
गले लगते ही बिन्नी जोर से रोकर कहती है माँ मुझे आपकी बहुत याद आयी। ईतना सुनते ही माँ के आंसू छलक जाते है।
मौली को आश्चर्य होता है मन ही मन सोचती है माँ क्यों रोई।
अचानक मौली ख्यालों से बाहर आती है आज उसकी मां उसे हमेशा के लिए छोड़कर जा चुकी है। आज उसे उस डर का अहसास हुआ जो उस दिन वह समझ ही नही पाई की माँ क्यों रोई थी। उस दिन वह माँ की आंखों में डर को को समझ नहीं पाई थी जो आज मौली की आंखों में था..ऐसे कई बातें थी जो आजतक समझ नही पाई थी आज धीरे धीरे सबके जवाब मिल रहे थे।
माँ को गाड़ी से उतारकर बरामदे में ले जाया गया जमीन पर लेटा दिया गया।
इधर किसी की जोर से आवाज आती है.. आँगन में उसके दादाजी पैसों की गड्डी जमीन पर फेंकते हुए रुन्दे स्वर में-मैने कहा था ना! उसको सही सलामत घर वापस लाना। पैसे नहीं चाहिए मुझे। बेबस से जमीन पर ढलने लगते है ।
कितना बेबस हो जाता है इंसान इस वक़्त । जानता है कि पैसों से जीवन नही खरीदा जा सकता फिर भी चाहता है कोशिश करता है कि खरीद सकू औऱ कुछ पल किसी अपने की ज़िन्दगी के लिए।
यही वो सत्य है जिसे जानते सब हैं, पर स्वीकार नहीं करना चाहते । ज़िन्दगी भर भागते रहते है उसके पीछे जिससे जरूरत की चीजें तो खरीदी जा सकती है पर खुशियां नहीं किसी की ज़िंदगी नहीं..
इंसान भूख से ज्यादा खा नहीं सकता.. क्या फर्क पड़ता है थाली में अलग अलग व्यंजन हो ना हो, पहनने को शाही लिबास हो ना हो.. रहने को आलीशान महल ना हो..क्या फर्क पड़ता है। अच्छी नींद के लिए सुकून जरूरी है..अपनों के साथ बिताए हुए चन्द लम्हे भी हमे इन सबके पास होने से कहीं गुना खुशी औऱ सुकून देते हैं.. हां आजकल इसे समझ कौन पाता है.. वक़्त बीत जाने के बाद अहसास होता है..
मौली अब भी आँगन में बैठी रो रही थी। किसी ने उसे उठाकर माँ के पैरों के पास बैठा दिया। मौली रोते हुए माँ के पैरों को छूती है, पैर एकदम ठंडे थे। आंखों में आंसू जो थमने का नाम नहीं ले रहे थे, वह धीरे धीरे गर्दन उठाकर माँ के चेहरे को देखती है ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वो सो रही हों । आज पहली बार मौली ने मां को ऐसे बेफिक्र सोते हुए देखा।
अक्सर तो वह उन्हें काम करते ही देखती थी। माँ से पहले सो जाना और उनके उठने के बाद उठना इन सबमें कभी ऐसा हुआ ही नही जब माँ को ऐसे देखती।
इतने शोर में भी माँ कितनी खामोश थी। ये खामोशी मौली के मन में जाने कितना शोर कर रही थी।
मौली अब भी सोच रही थी काश माँ अचानक उठ जाए और कहे कि रो मत में एकदम ठीक हूं और गले से लगा ले और इस बैचैनी को खत्म कर दे। धीरे धीरे उसके मन में अब भी किसी चमत्कार के होने की आशा घर कर रही थी।
शाम से रात हो चली थी। आस पड़ोस के लोग सान्त्वना देने आ जा रहे थे। मौली ओर उसकी बहन एक चारपाई में लेटे हुए थे। बरामदे में कुछ घर के लोग थे एक दो पड़ोसी साथ बैठे थे। चारपाई के एक कोने से कम्बल से सिर निकाल कर वह सामने बरामदे में मा को देख रही थी। हर वक़्त सोने वाली मौली, आज उसकी आँखों से नींदे गायब थी। रात भर इस आशा में की उसकी माँ क्या पता उठ जाए। अब उठेगी तब उठेगी इस आस में सवेरा भी हो गया। सुबह सब दाह संस्कार के लिए तैयारियों में लग गए। मा को ले जाया गया बहुत से लोग उनके साथ गए थे। दाह संस्कार क्या होता है मौली इससे अनजान थी। पर वह आस जो मौली के मन के कहीं कोने में पल रही थी वह अब भी टूटी नहीं थी।
दिन बीत चुका था | मौली फलसे पर ही नजरें गढ़ाए थी।
धीरे-धीरे मां के साथ गए लोग वापस आ रहे थे। गांव के लोग अपने घर जा रहे थे और घर के सदस्य घर मे आ रहे थे। दूर से उसने अपने पापा को धोती कुर्ते में मुरझाये से आते देखा। अब उसकी आस कहीं धूमिल सी होती नजर आ रही थी। नजरें जो उम्मीद का दामन थामें थी मन जो आस लिए बैठा था, सब खत्म होती जा रही थी।
गती पर गए लगभग सभी लोग वापस आ चुके थे, सिवाय मौली की माँ के.....