The Author Karishma Varlani फॉलो Current Read अतरंगी ज़िन्दगी... By Karishma Varlani हिंदी कविता Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books ऋषि की शक्ति ऋषि की शक्ति एक बार एक ऋषि जंगल में रहते थे। वह बहुत शक्तिशा... बुजुर्गो का आशिष - 9 पटारा खुलते ही नसीब खुल गया... जब पटारे मैं रखी गई हर कहानी... इश्क दा मारा - 24 राजीव के भागने की खबर सुन कर यूवी परेशान हो जाता है और सोचने... द्वारावती - 70 70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न... Venom Mafiya - 7 अब आगे दीवाली के बाद की सुबह अंश के लिए नई मुश्किलें लेकर आई... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे अतरंगी ज़िन्दगी... (1) 1.7k 9.4k 1). राहें......है चाह राहगीर को राह खत्म हो जाने कीहै चाह राहगीर को मन्ज़िल पाने कीराह में थका वो राहगीर देखता है बस एक बूंद उस पानी को ,जिससे आस है उसे अपनी प्यास बुझ जाने की ,होगी अवश्य ही कड़ी धूप उस राहगीर को तप जाने की पर क्या चिंता उसे जिसे ठंडक अपने सपनों के आशियाने की ,कुछ कुछ तो थी समता उस पथिक और अर्जुन में अवश्य हीतभी तो दोनों ने राहों में रहे रोडों की फिक्र ना की,,होगी लिखनी उसे अपनी दस्तान लहू लुहान कीहै चाह राहगीर को राह खत्म हो जाने की है चाह राहगीर को मन्ज़िल पाने की।।2). सुट्टे ज़िन्दगी के .......सुना था नहाने के बहुत फायदे होते हैंरात के तीसरे पहर काम करते थका तो सोचा चलो नहाने का लुफ्त ही उठा लेते हैंथकावट से चूर कब मेरा तन उस शय्या पर सो गया ,देखो दोस्तों मैं तो वेंटिलेटर पर भर्ती हो गया अब आंखे खुल ही कहाँ रही थी शायद कंप्यूटर पर बिछी ये आंखे बहुत थक चुकी थी,,पर बेलिहाज़ ये कान सब सुन रहे थेजब डॉक्टर मेरे ब्रेन स्ट्रोक की कथा मेरे बच्चों को सुना रहे थे।बगल में मेरी पत्नी रामायण को आँसुओं से भिगो रही थीहाय ज़िन्दगी तू कितनी कीमती है ये समझ मुझमें कल तक कहाँ थीजब डॉक्टर्स मेरे बेटे को ,,रिश्तेदारों को बस 3 घण्टे में बुलाने की सलाह दे रहे थेतब मेरी आँखें बस एक बार ,एक बार उन्हें और जी भर कर देखने की आकांक्षा बता रहे थेकामये हुए उन कागजों के धन का लोभ ,यम के दूतों को कहाँ था तो मैं तब बस अपनी ज़िंदगी में शेष रहे काश को गिन रहा था .....आज जबऑक्सीजन के बाटलों से अपनी हर सांस को तृप्त कर रहा हूँतो लगता है काश इसे भी पेड़ के नीचे सवेरे चैन से लिया होता की तुम्हारे हाथ की गरम रोटियां कितनी स्वादिष्ट लगती हैंप्रिय ये तुम्हे कभी कह दिया होतागाड़ी चलाते हुए सिर्फ सोचता ही रहा ,की बच्चों के साथ वक़्त बिताये कितने दिन हुएदोस्तों के साथ ठहाके लगाए जैसे बरसों ही बीत गए पर कागज़ों के गांधी ने इतना मोहित किया हुआ थातब मेरे पास ख्वाहिशो के लिए वक़्त ही कहाँ था ?काश की ज़िंदगी तूने इस कदर अलविदा ना कहा होताकि काश ये ज़िन्दगी का अंतिम प्रहर ना होता ,कि काश इस मौत में इतना काश ना होता ,कि काश इस मौत में इतना काश ना होता ।।ज़िन्दगी का सार जिस गीता में छिपा था उस गीता को मैने पढ़ा ही कहाँ था आज वो गीता मेरे अंतिम पलों में गायी जा रही थीपर तब मुझे ज़ोर शोर से यमदूत की चीख सुनाई आ रही थी,जाते जाते कुछ नुस्खे दे रहा हूँऐ दोस्त मैं ज़िन्दगी के सुट्टे दे रहा हूँकी ऐ ,ज़िन्दगी तू मौके हज़ार देती है जी जाने को पर हर मौका चला जाता है कागजों का जाम पी जाने को Nike Reebok का दिखवा तो मैंने बहुत किया है,पर ज़िन्दगी तू तो तराशती है हर लम्हा बस तुझ पर मिट जाने को।।3). तलाशती हूँ .....बहुत नाकामयाब हूँ भली तरह जानती हूँहौंसला खो चुकी हूँ , पर अब भी हवा में हूँ जानती हूँगिर जाउंगी उन आशाओं के आसमां से इस सच्चाई की धरती पर,पर जो मुझे सम्भाल सके ,मुझे कस सके किसी ऐसे को तलाशती हूँतलाशती हूँ जो मुझ नाकामयाब में एक कामयाबी की अलख को जगा सके तलाशती हूँ जो मुझे मेरी एक कामयाबी के ज़रिए मेरा पूरा हौंसला लौटा सकेतलाशती हूँ जब मेरे पंख कटे हों ,वो मुझे तब भी मेरे खाबों के जहां में फिर से उड़ा सकेतलाशती हूँ जो मेरे अवगुण नकार मेरे गुणों को पुनः उजागर कर सकेतलाशती हूँ जब हंसे दुनिया मेरे अवगुणों पर ,तब वो मेरे गुणों पर बस एक मीठी सी मुस्कान दे सके।। Download Our App