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गिद्ध - 2

गिद्ध

(2)

बस क्लच उठा कर बाहर निकल ही रही थी कि काशी ने आकर कहा ‘’दीदी गाडी लग गई है। रात को क्या बनाऊ? या आप बाहर खायेंगी?”

“मुझे नहीं खाना। तुम लोग अपने लिए जो चाहो बना लो। ......संगीता मेमसाब के यहाँ चलिए सलीम भाई।“ कह कर मै गाडी में बैठ गई।

बहुत दिनों बाद किसी डिनर में जा रही थी। दोस्तों की झाड़ खाने के बाद अपने ही बनाये खोल से बाहर आने की एक कोशिश थी आज।

“आप अभी आ रही है?”

किसी ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा। चौंक कर पलटी तो देखा सदाबहार कैसेनोवा डीके मुस्करा रहे थे। इतनी बेबाकी से हाथ रखना मेरे माथे पर सिकुडन डाल गया। फिर एक मुस्कान चिपका ली। जरा देर हो गई, पर अभी सात ही तो बजे है। पार्टी में बहुत करीबी लोग ही थे। लगता था मेरी प्रिय दोस्त और मेरे फेवरेट कपल ने यह पार्टी भी किसी को मेरे करीब लाने के लिए ही प्लान की है। संगीता मेरे गले लग गई। बोली, “बहुत खूबसूरत लग रही है तू .....पर किस काम की? तू तो भाव ही नहीं देती। अरे पागल! जिंदगी अकेले नहीं कटती। क्यों नहीं समझती कि कितने लोग दिल हथेली पर लिए तेरे पीछे फिरते है और तू है की नोटिस ही नहीं करती। अच्छा, सच बता .....ईमानदारी से कहना, क्या तुझे किसी की जरूरत नहीं महसूस होती?”

“कैसी जरूरत? मेरा काम करने को है तो मुलाजिम?” जान कर भी अनजान बन गई मैं।

....पर आज तो संगीता ठाने बैठी थी और भरी महफ़िल में पूछ ही लिया उसने “तुझे फिजिकल नीड्स नहीं ?”

अचकचा गई एकदम से। फिर बोल पड़ी, “अगर हो भी तो क्या जूठन खा लूँ? या दुसरे की थाली खींच लूँ?”

सन्नाटा सा छा गया एक पल को। फिर बात पलट दी उसने “”अरे मै तो टीज़ कर रही थी तुझे।“

ड्रिंक सर्व हो रही थी। सब जानते थे कि मै पीती नहीं पर ड्रिंक्स पहचानती हूँ। नानवेज भी नहीं खाती। कर्नल मेरे लिए ग्लास लाये मेरे मना करने पर कहा, “ये अल्कोहल नहीं है लाइम सोडा विथ आइस है।“

मैने ग्लास थाम लिया और सिप करने लगी। कुछ ज्यादा ही अच्छा टेस्ट था। ड्रिंक खतम होते ही एक और आ गई और मैने इस बार खुद ले लिया। मुझे नहीं पता था कर्नल ने उसमे वोडका मिक्स कर दी है जिसका सुरूर मेरी आँखों में झलकने लगा है। मुयुजिक शुरू हो गया। धीमा मादक संगीत। कई जोड़े पाँव थिरकने लगे। एक हाथ मेरे सामने बढ़ा। “कैन वी डांस?”

ना में सर हिला दिया मैने और बोली, “मुझे नहीं डांस करना,”

“ओके! कोई बात नहीं। हम बातें करते हैं।“

हमदोनों कार्नर में पड़े सोफे पर बैठ गए। कर्नल खुराना मेरा हाथ देखने लगे। हाथ दिखाना अपनी रेखाएं पढवाना मेरा हमेशा से प्रिय शगल रहा है। वो बोलते रहे और मै खिलखिलाती रही। तभी अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख दिया। मैने धीमे से हटा दिया और अपना हाथ खीच लिया, पर कर्नल तो आज न जाने किस मूड में था। मेरी कमर में हाथ डाल कर खीच लिया और बोला, “कितनी खूबसूरत हो तुम ....शादी नहीं करनी तो न सही .......एक डेट ही मेरे साथ कर लो।“

एक झटके से उसे धक्का दे कर दूर किया। उसने कहा, “मै बहुत प्यार करता हूँ तुमसे।“

“प्यार और तुम .......नहीं कर्नल खुराना ......तुम प्यार नहीं जानते। तुम्हारी आँखों में जब भी प्यार तलाशा मैने। वो कहीं नहीं नजर आया। बस एक आदिम भूख दिखी। कर्नल, .... जब भी किसी पुरुष की नज़रें मेरे चेहरे से फिसल कर गर्दन के नीचे टिकती है उसी पल उसकी नियत उजागर हो जाती है। वासना का मोहताज़ नहीं होता प्रेम और मै प्रेम तलाश रही हूँ। ....आज ही मैने तुम्हारे बारे में सोचना शुरू ही किया था की आज ही तुम बेनकाब हो गये।“

बिना होस्ट को बताये पार्टी छोड़ आई। घर पहुंची ही थी तो देखा अशोक मेरा इंतजार कर रहा है। अशोक मुंहलगा था। अभी बाईस चौबीस साल का ही होगा। उसकी नौकरी भी मैंने ही लगवाई थी। दीदी दीदी कह कर जब-तब सर खाता रहता। मेरे पर्सनल काम वो ही करता था, पर आज उसकी बकबक सुनने का बिलकुल मूड नहीं था मेरा। मैने उससे कहा “कल आना।“

“अरे नाही दीदी कल तक तो गजब हो जाएगा।“

“क्या हुआ कि गजब हो जाएगा? अच्छा बोलो…..?”

“दीदी, स्टेशन जाने वाली सडक पर .....पुल के पहले पुलिस की पिकेट लगी है।“

“वो तो वहां साल भर से लगी है। तो मै क्या करूँ?”

“बात तो सूनो आप पहले। ..... उन लोगों ने एक लड़की को बैठा रखा है। ....आप चलें और उसे अपने साथ ले आयें।

“तुम पागल हो क्या? हम कैसे जा सकते? अब टाइम भी तो देखो नौ बज रहे है और उस लड़की को कैसे ला सकते है अपने साथ? अगर उसने कह दिया वो मुझे नहीं जानती तो ? कमीने पुलिस वाले कुछ भी बक देंगे।“

“दीदी, अगर आप ने उसे नहीं छुड्वाया तो आज उस लड़की का क्या हाल होगा आप नहीं जानती।“

“क्या बकवास कर रहे हो ....साफ़ बताओ।“

अशोक ने जो बताया उससे मेरी रूह काँप गई। अशोक बता रहा था, “वो लड़की तेरह चौदह साल की ही होगी किसी अच्छे घर की और शहर के नामी स्कूल में आठवी क्लास में पढ़ती है।.... नम्बर कम होंगे या टीचर ने डांटा होगा तो बैग लटका कर चली जा रही थी क्न्फ्युज सी। उन पुलिस वालों ने उसे बिठा लिया टेंट की ओट में। मैने अपनी आँखों से देखा उससे पूछने के बहाने एक पुलिस वाला उसके गाल सहलाता है तो दूसरा बगल बैठा हुआ उसकी जांघो पर हाथ फेरता है। वो लोग देर रात का इंतजार कर रहे हैं। कोई कमरा ढूंढ रहे है। मुझसे भी कहा अपने कमरे की चाभी दे दो,…. सुबह दे देंगे। हम यह कह कर चले आये चाभी दोस्त के पास है।“

“तुमसे चाभी क्यों मांगी? तुमको कैसे जानते है वो?”

“उनमे से एक मेरे गाँव का रहने वाला है। उसी ने सब को बताया कि अकेले रहते है हम। नदी के इस पार पुल शुरू होते ही पुलिस पिकेट और उस पार ढलान वाली कालोनी में मेरा कमरा है। अक्सर सडक सूनी रहती है। चाभी के लिए बड़ी घुड़की दी पर जान छुड़ा कर भाग आये हम।....दीदी उस बच्ची को बचा लो नहीं तो उसकी लाश कल नदी में तैरते मिलेगी।“ उसकी आँख में आंसू भर आये।

सारा दृश्य मेरी आँखों से गुजर गया। चिड़िया को घेरे हुए पांच छह गिद्ध। जांघों पर हाथ फेरता सिपाही। पिंकी को निगलता अजीत और कर्नल खुराना ......सारी सूरतें गडमड होने लगी। घृणा का एक सैलाब उमड आया और हलक में अटक गया। .....चारों ओर गिद्ध ही गिद्ध। जिंदा मुर्दा मांस को नोचते गीदड़ नजर आ रहे थे। सूखे हलक में एक घूंट पानी उडेला और सोचने लगी क्या करू ! अरे! मै तो भूल ही गई। ईशान भी तो यही पोस्टेड हैं। उनका ही मुहकमा है यह। वो ही तो आजकल S.S.P है। मोबाइल उठा कर फोन लगाया । स्विच आफ मिला। बार बार ट्राई करती रही। न जाने कितनी बार मिलाया पर स्विच आप ही था। लैंड लाइन पर ट्राई किया तो उनके पर्सनल नम्बर पर कोई रिस्पांस नहीं। तभी मुझे ख्याल आया और फोन अटेंडेंट को फोन किया तो पता चला साहब सो रहे है। उसने कहा “बुखार है। कोई भी फोन लेने से मना किया है।“

“जगा दो और मेरा नाम बता दो जल्दी बात कराओ अर्जेंट है।“

“नहीं मैम, नौकरी चली जायेगी।“

“तुम बात तो कराओ। नौकरी नहीं जायेगी। हम कह रहे है।“

ईशान को जैसे पता चला मेरा फोन है, तुरंत फोन पर आये। हेलो बोलते ही उधर से आवाज़ आई, “अरे आपने याद तो किया। आपका फोन आया, जहे नसीब। ...... हुकुम करें।“

“मजाक छोड़िये ईशान ......और बात सुनिए। अगर जरुरी न होता तो कल फोन करते।“ पूरी बात और जगह बताई।

वो बोले “उस एरिया के थाने पर भेजवा दूँ ?”

“नहीं....!” चीख पड़ी, “सुनिए, आप उसे वहां नहीं भेजेंगे। आप उसे गीदड़ों के बीच से निकाल कर भेड़ियों की माँद में फेंक देंगे। आप से बेहतर कौन जानता है थाने की हकीकत। ईशान उस लड़की को आप अपने बंगले पर बुलाइए और पता पूछ कर उसके घर भेज दीजिये। ...... और हाँ उसके बाद मुझे फोन करिए कितनी भी रात हो मै इंतजार कर रही हूँ।“

“करता हूँ मै....”

फोन रख कर मै सोचने लगी कर्नल हो या सिपाही या दरोगा ……,चौदह साल की हो या चौतीस साल की......। सब इनके लिए बस गर्म गोश्त है। यह आदिम भूख है। ये गिद्ध है। बस मौका मिलना चाहिए । आधे घंटे भी नहीं हुए थे ईशान का फोन आ गया, “अरे यार तुम्हे थैंक्स। तुम न बताती तो कल तक हडकम्प मच जाता। वह कमिश्नर की बेटी है। बच्ची को घर भेज दिया। खुद माँ बाप ले गए। बहुत परेशान थे। चलो ये अच्छा हुआ आज तुमने एक नेक काम किया।“

“ईशान तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त हो..... शुक्रिया।“

“हूँ!” –लगा उधर एक मुस्कान तिर गई है। जानती हूँ बरसों से एक नरम कोना है ईशान के दिल में अपनी इस दोस्त के लिए जिसे उसने कभी ज़ाहिर नहीं किया और शायाद कभी करेगा भी नहीं। अगली सुबह के अख़बार में एक खबर छपी थी – “पुलिस का गुड वर्क.... पुलिस पेट्रोलिंग टीम ने उच्च अधिकारी की नाबालिक लड़की को नदी में कूदने से बचाया .......डिपार्टमेंट की तरफ से पुरस्कार की घोषणा।“

“ये कैसा गुड वर्क है ईशान ?” मैंने फोन पर ही पूछा था।

“तुम तो जानती हो मुझे .....उन सालों को तो आज ही सस्पेंड कर दिया मैने। अब सच तो नहीं कह सकता न यार। लड़की के पिता का भी दबाव था। फिर नौकरी का सवाल। अपने ही महकमे की बदनामी कैसे करता ......गुड वर्क ही तो था।

मै उस रात सो नहीं पाई थी। अब एक चाय पी कर सो लूँ यह सोच ही रही थी कि सेल बज उठा। संगीता थी। पूछ रही थी, “क्या हुआ? तुम बिना मिले क्यूँ चली गई? कोई बात हुई क्या?”

“नहीं। कुछ ख़ास नहीं। तू तो जानती ही है कि अब मुझ पर ज्यादा देर तक असर नहीं होता। झटक देती हूँ मै इन हादसों को। ये मर्द जात भी बड़ी कुत्ती चीज़ है। हर अकेली औरत इन्हें चाकलेट लगती है, जो इनका हाथ लगते ही पिघल जायेगी। खुराना भी उसी प्रजाति का प्राणी है। ,,,,, उसका चैप्टर बंद कर दे ,,,मै जिंदगी की जिस सडक पर अकेले चल रही हूँ, उस सडक का न आदि है न ही अंत। अगर सुकून भरी चहलकदमी है, तो कभी भागदौड़ भी। कोई सहयात्री नहीं। जरूरत है भी या नहीं ......पता नहीं! सोचती हूँ क्यूँ न इसे वक्त पर छोड़ ही दिया जाय..........!”

---दिव्या शुक्ला !!

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