रंग थे मेरे पास लेकिन… - 2 Hetal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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रंग थे मेरे पास लेकिन… - 2

में वहा जा पोहोची जहा.....

मुझे इस देखे हुए नजारेसे ये लगरहा था की शायद वहा मेरी दोस्त एक कोने में बेठी होगी सहमी हुई सी में उस कमरे में गई मेने पुकारा उसे, लगाकि वो सामने से आकर मुझे गले लगा कर रो पड़ेगी क्युकी इस हालात में सबसे ज्यादा जरुरत एक दोस्त को अपने दोस्त की होती हैं | कई आवाज लगानेके बावजूद वो बाहर नहीं आई बस कोने मेसे रोने की आवाज सुनाई दे रही थी वो आवाज मेरी दोस्त की नहीं थी कोई बुजुर्ग के जेसी आवाज थी मैंने आगे चलकर देखा तो वो बुजुर्ग ओर कोई नहीं बल्कि मेरीही दोस्त के दादाजी थे |

दादाजी को देखकर थोड़ी मनमे शांति हुई की चलो दादाजी को कुछ नहीं हुवा वो ठीक हैं लेकिन उसही वक्त मनमे एक पल सवालों का भूकंप सा उठ रहा था एकही पल में सवालोकी बोछार हो रही थी सबलोग यहाँ मेरी नजरो के सामने हैं मेरी दोस्त की माँ,उसके भाई,आप दादा दादी लेकिन वो नहीं थी जिसको मैं सबसे पहले रंग लगाना चाहती थी| वो तो कही दिखिहि नहीं अब मेरे सब्र की हद पूरी हो रही थी जल्दीसे मुझे उनको देखना हैं बसअब में उसको गले लगाना चाहती थी मेरे लिए दोस्त के अलावा कोई भी रिश्ता मायने नहीं रखता था रंग तो कबसे बिखर चुके थे |बस अब तो उसे ही देखना था मैं उसके कमरे में पोहोची उसको ढूंढा लेकिन वो कही नहीं मिली मेरी नजर उस कोने में पड़ी जहा वो अक्सर बैठा करती थी चाहे वो खुश हो या दुखी पुरे घर में भले ही ढूंढ लिया करो लेकिन मिलती तो वही ही हैं उसकी मनपसंदीदा जगह पे आज भी मुझे वही मिली लेकिन वो नहीं उसका शब था में खुद को ही नहीं संभाल पा रही थी दोस्त की माँ को कैसे संभाल पावुंगी मेरे पास तो कोई शब्द ही नहीं थे बोलने को नाही हिंमत थी की मेरी दोस्त के पास जाकर उसके शब पर से कफन उठा पावु |

दोस्ती की थी निभाए बिना वापस कैसे लौट आती ?मैं उसके पास गई मैं होश मैं ही नहीं थी की उसको कुछ कह सकू क्या कहु उसके पास जाकर |

पास गई दोस्तिकी कसम दी उठाया लेकिन उसने ठान लिया हो जैसे की कुछ भी हो जाये वो नहीं मानेगी मेरी बात मेने भी ये तेय कर ही लिया था उसको जगाये बिना मैं भी नहीं मानूगी लेकिन खुदा के सामने हमारी कहा चलती हैं मेने भी कहा की "यार बस भी कर मान भी जा इतना भी दोस्तोसे रूठना अच्छी बात नहीं देखो तुम रुलाने के लिए कर रही हो तो देखो में .................."

यार उठ भी जाव लेकिन वो नहीं मानी मेरी बात शायद उसने सुना ही नहीं था मुझे थोड़ी देर में उसको ले जाने केलिए उसके भाई ,पापा ,दादाजी ,चाचा आए और उसको कंधे पर उठा कर "राम नाम सत्य हैं ,राम नाम सत्य हैं "ये नारा बोलकर उसे ले चले मेरी दोस्त का हाथ मेरे हाथो से छुट गया या "यु कहू की उस दिन के बाद किस्मित से दोस्ती का रिश्ता ही छुट गया था | ………


क्रमशः