रंग थे मेरे पास लेकिन… - 1 Hetal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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रंग थे मेरे पास लेकिन… - 1

रंग थे मेरे पास लेकिन… भाग 1

हमारे जिंदगी में कुछ रंग इतने मायने रखते हैं कि जैसे वोही हमारे जीने का जरिया बन जाते हैं ।
है मेरी भी जिंदगी में ऐसे ही कुछ रंग थे,हा सही पढ़ा थे जो सिर्फ अब खयालो में ही हैं जिंदगी से मिट चुके हैं लेकिन यादो में युही बरकरार हैं।बेरंगी जिदगी तो सिर्फ बिताई जा सकती हैं। खुशी के पल हो तो हसीन बन जाती हैं,गम की छांव हो तो फाँसी बनके गले मे ही अटक जाती हैं ना मर सकते हैं ना जी सकते हैं। पढ़ लीजिए अब कुछ रंगोंके मायने ऐसे भी


में सबसे पहले उसको रंग लगाना चाहती थी, इसलिए उसे बिना बताए उसके घर पहुचना था |सफ़ेद पंजाबी ड्रेस पहन कर और ढेर सारे रंग लेकर उसके घर जाने केलिए, मेरी हमसफर की पहचान अपनी स्कूटी को लेकर निकल गई , चेहरे पर हल्किसी हसी थी मेरे,और क्यों ना हो उसे बिना कहे मिलने जो वाली थी| कहे बिना किसी खास को मिलना ये बात ही कुछ ओर होती हैं |


उसके घरके पास पोहोचिही थी वहा देखा तो कितने लोग ने सफ़ेद रंग के कपडे पहेने थे, लेकिन क्यों ना पहेनते आज होली का त्यौहार जो था | बच्चों ने होली खेलने के चक्कर में जो हाथ में आया वो पहन लिया था | करीबन ८ बजने आये थे लिकिन किसीके कपड़ो पर रंग नहीं देखा | लगता था के जेसे ये सब मेरा ही इंतजार कर रहे हो | अरे नहीं ऐसे अछे दिन कहा जो वो सभी हमारा इंतजार करे लेकिन ,ना जाने क्यों उस लोगो को देख कर मन में डर सा लग रहा था | मेने स्कूटी को एक बाजु खड़ा किया ,थोड़ी देर में पीछे से जोर जोर से रोनेकी आवाज सुनाई दी,पीछे मुड़कर देखा तो कुछ औरते थी |जेसेकी कोई इस दुनिया में ना रहा हो और उसके अंतिम बिदाई हो रही हो |


ये सब उसके घर के नजदीक ही था | अब तो जेसे मन में तूफान सा उठ रहा हो , में जल्दीसे उसके घरेमें गई देखा तो ये सब लोग यहाँ आकर ही रो रहे थे | मेने लोगो को एक बाजु करते हुए आगे पोहोच रही थी |एक हाथ में रंग थे ,और दूसरा हाथ मन में हो रही घबराहट का पसीना जो चेहरे पे आया था उसे अपने दुपट्टे से पोछ रहा था | आगे चलकर देखा तो मेरी दोस्त के भाई, पापा और माँ रो रहे थे , मुझे देखकर आंटी ओर रोने लगे | क्युकी में और मेरी दोस्त हमउम्र जो थे, मुझे भी अपनी बेटी जेसा ही मानते थे | में आंटी के पास गई और अपने हाथोसे उनके आंसू पोछे,उन्होंने मुझे दुसरे कमरे के ओर इशारा किया | मुझे लगाकि दादाजी की उम्र हो गई थी तो शायद.... में जल्दीसे उस कमरेके ओर जा पहोची , मुझे लगा की ये सब देखकर वो सहेम गई होगी या शायद रो भी रही होगी | क्युकी वो अपने दादाजी के बहोत ही करीब थी |


में उस कमरे के ओर जा पोहोची जहा.........