किससे कहूँ Mahima Shree द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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किससे कहूँ

“हाँ! हाँ! वही! वाह! दोनों मिल गई”

सुबू के हाथों में साड़ी देखते ही रश्मि चहकने लगी।

“ला मुझे थमा,“अब नीचे आजा”

“रुक जा मैं टेबल पकड़ती हूँ । आराम से उतर, पैर ठीक से जमा के रख। देख चोट ना लगे!!“

रश्मि की कुछ दिन पहले ही शादी हुई है। विवाह के बाद पहली बार मायका आई है।

सुबू के मचान से उतरने के बाद रश्मि ने झट से दोनों साडियाँ उठा के अपने गालों से लगाया फिर कोमलता से हाथ फेरने लगी । उसकी आँखो की चमक और चेहरे की हँसी देखने लायक थी।एक साउथ सिल्क की चौड़ी बॉडरवाली साड़ी थी जिसका जमीन टूह- टूह लाल और बॉडर काला था । दूसरी वाली बिना पार की शिफान साड़ी थी जिसका रंग बादामी था ।

रश्मि दोंनो साडियों को दायें-बायें कंधे पर रख कमरे के बीच रखे ड्रेसिंग टेबल में खुद को निहारने लगी।

“सच्च!! आप तो इत्ती गोरी , इतनी सुंदर हो दीदी! ये रंग तो आप पर बहुत खिल रहा है। “

सुबू भी साथ में चहकने लगी। तब तक कमरे में बड़ी माँ और शिखा भी आ गई।

शिखा ने साड़ियों को एक नजर देखा, आँखे कुछ पल को चमकी फिर सामान्य हो गई।

बड़ी माँ ने देखते ही कहा- ”अरे! दोनों साड़ियाँ तुम क्यों ले रही हो तुम्हारी शादी में जितना देना था दे चुकी |अब ये साड़ियाँ शिखा को उसकी शादी में देने के लिए रखा है।“

यह बात सुनते ही रश्मि बिफर पड़ी- “क्या ?... ये मेरी साड़ियाँ हैँ| मैंने कितनी मेहनत से मार्केट में ढ़ूढ कर इक्ठ्ठा किया था। गौने में साथ ले जाने के लिए रखा था । शिखा को आप कैसे दे देंगी। मैं इसे ले जा रही हूँ। मेरी सास और जेठानी को नहीं जानती आप! दोनों हर बात में कितना ताना मारती हैं।“

मायके से क्या क्या ले के आई हूँ। मुझे अपने ससुराल में दिखाना भी होता है। इतना कुछ सुनने के बाद जाहिर है बड़ी माँ चुप रह गई।

रश्मि और शिखा की उम्र में सिर्फ दो साल का फासला है। शिखा भले ही छोटी है मगर रश्मि से समझदारी में दस साल आगे है। रश्मि बड़ी बहन है । पर स्वभाव बच्चों सी। सारा दिन खिल-खिल करते रहना। सबका अटेंशन पाना और बात-बात पर खुश हो कभी रुठ जाना । वहीं शिखा छोटी हो कर भी स्थिर , गंभीर और समझदारी से भरी हुई । शायद इसलिए शिखा माँ के ज्यादा करीब थी। दोनों के व्यवहार देखकर लगता ही नहीं कि दोनों एक-ही माता-पिता की संतान हैं।

बड़ी माँ की ये दोंनो लाडली बेटियाँ बात व्यवहार में उत्तर –दक्षिण हैं। रश्मि बड़ी होकर भी चंचल और अल्हड़ है । ये उसके हर व्यवहार में दिखता है। दोनों के स्वभाव में जमीन-आसमान का अंतर होने से हमेशा तना-तनी उनके बीच बनी रहती। कभी भी दोनों के विचार आपस में नहीं मिलते।रश्मि जीतना अपने आपको अभिव्यक्त करने में विश्वास करती वहीं शिखा अपने आपको हमेशा शांत रहना ही पसंद करती।

रश्मि को नई चीजें ट्राई करने में बड़ा मजा आता। किचेन में उसे हमेशा तरह – तरह के प्रयोग करते देखा जाता । जब भी कोई नई रेसिपी किसी पत्रिका या टी.वी पर देखती तुरंत उसको बनाने में जुट जाती।उसके उत्साही स्वभाव से दोंनो बड़े भाई तो बहुत खुश होकर नई रेसिपी की तारिफ के पूल बाँध देते ।लेकिन उसके बाद रसोई का हाल ऐसा होता कि सारी वाह -वाही बड़ी माँ की डाँट से हवा हो जाती।

सुबू काकी की बेटी थी , घर में सबसे छोटी। रश्मि उसको अपने साथ लगाये रहती। अपनी सहेलियों को बुला कर मजमा लगाये रहती। मैदे सी सफेद, तीखे नैन-नक्श, लम्बे सुंदर बालो वाली रश्मि की सबसे बड़ी कमजोरी थी उसकी अपनी प्रशंसा सुनने की आदत। दिन रात उसका ध्यान अपने बालों और चेहरे के लिए नये-नये फेसपैक बनाने लगाने में रहता।उससे सबंधित पत्र- पत्रिकाओं के कटिंग एक बॉक्स में इक्ठ्ठे करते रहती। चेहरे की चमक के लिए सुबह गुनगुना नींबू पानी पीती, नाश्ते में पालक का सूप, सलाद और एक रोटी लेती। अपनी पोशाके हमेशा खुद ही डिजाइन करती पर कई बार संयोग से कई बार छोटा सील जाता तो उसे मजबूरी में शिखा को देना पड़ता। खूबसूरत आँखों वाली शिखा रश्मि से लम्बी और पतली थी ।

रश्मि हमेशा अपने दोंनो बड़े भाइयों से लाड़ पाती।सबसे बड़े भाई जो आइपीएस की तैयारी कर रहा था सारा दिन उसे आवाजे लगाते रहता।

रश्मि कहाँ हो ?

“कॉफी पिलाना।“

“पाँच चाय भेजना बैठक में मेरे कुछ दोस्त आये हैं”

“मेरी कमीज प्रेस कर देना प्लीज़, मेरी प्यारी बहन तुम्हीं तो हो न।“

“आज कुछ स्पेशल बना रही हो क्या रात में मेरे कुछ दोस्त डिनर पर आयेंगे। “

“क्या बनाऊँ बड़े भईया”

“अरे कुछ भी कितना स्वादिष्ट बनाती हो जो इच्छा हो”

“अच्छा तुम्हारी सहेलियाँ कैसी हैं। तुमलोगो में झगड़ा तो नहीं हो गया।

“क्यों”

“आजकल आती नहीं तुमसे मिलने इसलिए पूछा।“

“कैसे आपने सोच लिय़ा कि झगड़ा हो गया?”

“ लड़कियों में आपस में ही ईर्ष्या तो आम बात है ना”

“किसने कहाँ कि हम आपस में ईर्ष्या करते हैं?”

“ये तो सदियों पुराना सत्य है कि स्त्रियों में ईर्ष्या कुट- कुट के भरी होती है। वे आपस में ही एक दूसरे से जलती भुनती रहती हैं।“

“क्या बकवास है। जाइये हम आज से आपका कोई काम नहीं करने वाले!”

“अरे! रश्मि सुन तो.. मैं तो मजाक कर रहा था। अच्छा बताओं तो! कैसी है तुम्हारी सहेली”

“कौन वाली ? मेरी तो बहुत सारी सहेलियाँ हैं।“

“वही सोने सी रंगतवाली “

“कौन स्वर्णलता या हेमलता”

“हाँ! वही बड़े भाई ने ब्लस किया”

बोर्ड तक रश्मि का जीवन बड़े भाई और सहेलियों के इर्द गीर्द घुमता रहा।

कॉलेज में पहुँचते ही भाइयों की दिल दिमाग चौकन्ने हो गये। बड़ी माँ को हिदायत दिया गया रश्मि के लिए सादा गंभीर रंग की कुरतियाँ बने।उस दिन लाल कुरती सफेद सलवार और दूपट्टे के साथ कॉलेज जाने के लिए तैयार दिखी रश्मि को भाइयों ने कपड़े बदलवा के ही दम लिया। उसे हल्के स्याही रंग की कुर्ती पहन कर जाने की इजाजत मिली। एक दिन भाइयों की नजर उसके लंबे करीने से तराशे नाखूनों पर पड़ गई।भाइयों ने मिलकर उसके नेल पेंट से सुसज्जित हाथों को पकड़ के लंबे नाखून काट डाले।रश्मि चिल्लाती रही, मना करती रहती भाई मजे लेते हुये उसके मेहनत से तराशे नाखून काट दिये गए। शिखा बड़े भाईयों के पास बैठ चुपचाप सब देखते हुए मुस्कुराती रहती। कितना भी रगड़ा-झगड़ा हो

मगर रश्मि भी भाइयों के इस व्यवहार को प्यार ही समझती ।उनके आज्ञा पालन में कोई कमी नहीं रखती।बड़ी माँ- पिताजी से ज्यादा वह बडे भाई से ही उसकी नजदीकियाँ दिखती। वहीं शिखा ये सारा तमाशा बस बैठ कर देखा करती। उसे रसोई या मेकअप, नये ड्रेसेज किसी भी चीज में कोई विशेष रुची नहीं दिखाती। शिखा पढ़ाई में औसत छात्रा थी। वहीं रश्मि पढाई में भी हमेशा अव्वल रहती। जिसके कारण रश्मि अपनी ही बहन को बेवकुफ समझती और अपने-आपको बहुत बुद्दिमान ।

रश्मि की शादी के नौ महीने बाद ही शिखा की शहर के बड़े प्रतिष्ठित व्यवसायी के बेटे से हो तय गई । लड़का बहुत सुंदर और सुशील था। साथ एमबीए की डीग्री और बड़ी कंपनी में जॉब भी कर रहा था। रश्मि के मन को पहला बड़ा झटका लगा। उसे लगा मेरी बहन जो मुझसे हर मामले में उन्नीस है उसे इतना अच्छा ससुराल और वर दोनों कैसे मिल गया । वह भी एक बार में ही। वही वह इतनी रुपवान और गुणवान है। तब भी दो साल तक उसके लिए वर ढूंढने में लगा। एक डॉक्टर से विवाह तय भी हो गई तो इंगजेमेंट के दिन उसके छोटे भाई से किसी की झड़प हो गई और मामला आत्मसम्मान पर आ गई ।रिश्ता टूट गया। अंत में घरवालों ने किस्मत पर सब छोड़कर उसकी शादी पास के एक कस्बे में बेरोजगार इंजिनियर से कर दी। उसके ससुरालवाले इतने दकियानुसी और गंवार निकले कि मार्डन ख्यालो और परिवेश में पली-बढी लड़की को समझ ही नहीं पाते और हर वक्त उसे नीचा दिखाने और चरित्र पर ऊंगलियाँ उठाने से नहीं चुकते। उधर बेरोजगार पति घरवालों के ताने और अपनी बेरोजगारी से त्रस्त हमेशा उसे ही दोषी ठहराकर लड़ता ही रहता । रश्मि शिखा के भाग्य को देखकर कब ईर्ष्या से भर गई उसे भी नहीं पता होगा।

पर जब भी दोनों बहने मायके आती तो शिखा के ठाठ-बाट ऐशो-आराम, गहने-कपड़े और पति के प्यार में उसके खिले रुप-यौवन को देखकर पहले चकित होती ।जब उसे बातों ही बातों में पता चला कि हनीमून पर दोनों दूबई गए थे। और फिर न्यू ईयर सेलिब्रेट करने श्रीलंका जाने वाले हैं। तो उसका दिल बिल्कुल बैठ गया था। शाम होते-होते सबसे लड़ पड़ी थी। कि सबने मिलकर उसे नरक में ढकेल दिया। और फिर अपने ससुरालवालों के पिछड़ी सोच और घुटनभरे व्यवहार और टार्चर को बताती। रश्मि के साथ शादी के पहले दिन से ही ये हो रहा था। बात तो सही ही थी । उनके स्वभाव के बारें में रिशेप्शन के दिन ही पता चल गया था ,जब भैया ने गिफ्ट में दोनों को हनीमुन के लिए अपनी बहन और जवाई को गोवा का टिकट दिया था। और उनलोगों ने ये कहकर लौटा दिया की हमारे यहाँ कोई हनीमुन पर नहीं जाता। रश्मि के ससुरालवाले दकियानुसी पुराने ख्यालों के तो हैं ही साथ ही अंहकारी भी। उसी दिन रश्मि ने अपने आपको समझा लिया की धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। उसने बहुत सब्र रखा पर उसके चेहरे का लावण्य और हँसी कहीं खो गई थी। पति उसे सपोर्ट करने के बजाए अपने परिवारवालों के साथ उसे नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। इसलिए शिखा के दाम्पत्य सुख को देखकर उसके अपने मन का दुख कब ईष्या में बदल गया उसे कभी पता ही नहीं चला। । किंतु जब भी मायके आती और शिखा से भेंट होती तो उसे अजीब अजनबी नजरों से देखती। एक दूरी बना के रखती। जबकि शिखा उसके दुख को समझती और उसे खूब बातें करती ।बड़ी बहन का सम्मान देती।जब ससुराल में होती तो नियमित बड़ी बहन को फोन कर उसका हाल-चाल लेती। जब भी पता चलता कि ससुरालवालों ने उसे सताया है और पति से भी झगड़ा हुआ है तो अपने पति के साथ उसके ससुराल पहूँच कर अपनी बड़ी बहन के साथ दिन-भर बिताती। शिखा ने अपनी बड़ी बहन की तीखी बातों और नजरों का कभी भी बूरा नहीं माना। उसे पता था कि रश्मि दी के साथ अच्छा नहीं हुआ। वह दुखी है। उसका जीवन बंधनों में जकड़ गया है। जब भी रश्मि का फोन आता उसे मिलने चली जाती। उसके पति भी उसका पूरा सपोर्ट करते।

कुछ वर्षों के संघर्ष के बाद रश्मि के पति भी अब बड़ी कंपनी में जेनरल मैनेजर हो गये। रश्मि अब उनके साथ ही कंपनी के शानदार फ्लैट में रहती है।दो बच्चे हो गए।महंगी गाड़ी आ गई है। उसके पास अब दुनिया की सभी सुख-सुविधाएं हैं। पर शिखा के प्रति उसका व्यवहार और सोच नहीं बदली। उससे ईर्ष्या ही करती रही, मन में द्वेष रखती और सबको उलाहने देती रही कि मेरी कैसी शादी करवाई? और इसे कुछ नहीं आता राज भोगते फिरती है। और जब भी मिलती बातो ही बातो में उस पर व्यंग बाण छोड़ने से नहीं चुकती। । शिखा को समझ में ही नहीं आता इसमें उसकी गलती क्या है ? ये तो अपनी किस्मत होती है। बल्कि अब कभी-कभी उसे भी इस बात का दुख लगता रश्मि दीदी को मैंने हमेशा बड़ी बहन का मान दिया। उनके दुख की घड़ी में हमेशा साथ खड़ी रही। पर मुझे अपनी छोटी बहन के तौर पर उनसे प्यार पाने का जो हक है उन्होंने कभी दिया ही नहीं।रश्मि दी क्यों कभी बड़ी बहन नहीं बन पाती ?।दिल को दरिया कर एक बार उसे खुलकर गले से लगाती तो सही। सारे गिले-शिकवे दूर हो जाते। खुद तो हमेशा सबको अपनी व्यथा सुनाती रहती हैं। कभी मेरे मन की पीड़ा भी तो सुने। कहूँ भी तो किससे कहूँ?