मिखाइल एक रहस्य - 2 Hussain Chauhan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मिखाइल एक रहस्य - 2

मेरे प्यारे जोनाथन,
जेड हमेशा कहा करती थी ज़िन्दगी भी एक जादूगरी ही है, हर पल हर वक़्त रहस्य और रोमांच से भरी पड़ी हुई, कोई भी नही कह सकता कि अगले पल क्या होनेवाला है। और हुआ भी कुछ ऐसा ही, जब तुम छः साल के थे और हम बड़े ही खुश थे कि तुम्हारे आनेवाले जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी रखे और ठीक उसी वक़्त एक दर्दनाक हादसे में तुम्हारी माँ जेड हमे छोड़ के चली गयी। खैर छोड़ो इन सब बातों को, आज तुम्हारे डैडी का आखिरी शो है और इसके बाद हम इंडिया चले जायेंगे, तुम चाहते हो न कि में तुम्हे ताजमहल दिखाऊ? मेरा वादा है तुमसे हम एक दिन ताज जरूर देखेंगे, मेरे प्यारे जोनाथन। लेकिन एक बात हमेशा याद रखना जोनाथन, ज़िन्दगी रोमांच से भरी पड़ी है। कोई नही जानता अगले पल क्या होनेवाला है। ऊपरवाले से बड़ा और कोई जादूगर नही।
तुम्हारे प्यारे डैडी
मुरली सिवाल
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अपने डैडी द्वारा लिखा गया यह आखिरी खत जोनाथन कई मर्तबा पढ़ चुका था, यहां तक कि उसको भी नही पता था कितनी बार, और अब तो वो नौ साल का बच्चा भी नही रहा था, वो एक बेहद ही जवान हैंडसम लड़का बन गया था, ५ फ़ीट ७ इंच की हाइट, गेहुआ रंग का उसका वर्ण, बिना फ्रेम के फ्रेमलेस चश्मे उसकी आँखों पर जंचते थे, बेहद ही सामान्य से उसके बाल और उसकी पतली सी दाढ़ी उसके चेहरे को और भी आकर्षक बनाती थी, और एक दम परफेक्ट शरीर का धनी अब वो बन चुका था, और उसकी आंखें झील सी गहरी थी, उसकी आंखें देख लगता था मानो उसमे कई अनकहे और अनसुलझे से राज़ दबे हुए थे। अपने डैडी मिखाइल के अचानक और बिल्कुल रहस्यमयी तरह से गायब हो जाने के बाद उसकी जिंदगी में बहुत कुछ बदल गया था। यहां तक कि उसने अपना नाम भी जोनाथन सिविक से बदल कर जय सिवाल कर लिया था। और जैसा कि उसके पिता ने उससे वादा किया था कि एक न एक दिन वे ताज ज़रूर देखेंगे वो साल में तीन या चार महीने आगरा में ही बिताता था। अपने पिता की गुमनामी की वजह जानने के लिए उसके बहुत कोशिशें की लेकिन सिर्फ और सिर्फ असफलता ही उसे हाथ मिली। अब उसने अपने डैडी से मिलने की अपनी चाह भी त्याग दी थी और बस बिना किसी मकसद की जिंदगी जिये जा रहा था।

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नागवा बीच,
दीव
दिसंबर १९, १९६१ को लश्करी कार्यवाही करते हुवे भारत सरकार ने पुर्तगालियों के पास के दीव और दमन को आज़ाद करा लिया था और इन्हें केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। जो गुजरात के जूनागढ़ जिले के बहुत ही पास में पड़ता है। वैसे देखा जाए तो नागवा की कुल बस्ती १४,००० लोगो की है लेकिन इसके लंबे २१ किलोमीटर समुद्री तट के कारण यहां पर्यटकों की काफी भीड़ रहती है।

दीव में विदेश से आये हुए लोगो के साथ ज़्यादातर गुजरातियों को देखा जा सकता है और इसकी एक प्रमुख वजह गुजरात की दारू बंधी भी है। ज़्यादातर गुजराती लोग दीव में सिर्फ और सिर्फ दारू पीने के मकसद से ही आते है और दारू का पान कराने में 'मदिरा डॉट कॉम' नामक एक बार बहुत ही लोकप्रिय था जिसका प्रमुख कारण अन्य बार से उसकी थोड़ी कम कीमतें और फ्री का वाई-फाई था। जो किसी भी शराबी या नेट का उपयोग करनेवालो को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए काफी था।

उस दिन मौसम बड़ा ही खुशनुमा था, ठीक ठीक धूप खिली हुई थी और समुद्री ठंडी हवा भी चल रही थी। दोपहर का वक़्त होने के कारण बीच पर ठीक-ठाक चहल-पहल भी थी। कुछ समुद्र में डुबकियां लगाते हुए मज़े से नहा रहे थे, तो कुछ सेल्फी खींच रहे थे और कुछ लोग हमेशा की तरह दारू पार्टी करने में व्यस्त थे।

लेकिन इन सब में जय बिल्कुल विपरीत सा दिख रहा था, उसने बैंगनी रंग का पूरी स्लीव वाला टी-शर्ट पहना हुआ था, और साथ ही में डार्क ब्लू रंग की जीन्स पहन रखी थी। उसके श्वेत रंग के जूते भी उसकी स्टाइल के हिसाब से मैच हो रहे थे।

बार वालो ने बाहर बनाई हुई कैनोपी के नीचे रखे हुए एक कामचलाऊ प्लास्टिक के टेबल पर वो अपना लैपटॉप ऑन किये हुए फ्री के वाई-फाई से अपना कार्य पूरा करने में लगा हुआ था। उसके टेबल पर महज़ एक बिसलेरी की पानी की बोतल और एक खुला हुआ चिप्स का पैकेट था।

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'ट्राइंफ धी स्कूल ऑफ एथिकल हैकिंग' जिसकी स्थापना बिनोद चंद्रा ने सन १९९८ में कोलकाता में की थी और जिन्होंने अभी कुछ साल पहले ही अपनी एक ब्रांच गुजरात के अहमदाबाद में भी शुरू की थी। निरमा कॉलेज से बीसीए की हुई माहेरा ने अमेरिका में हैकिंग का अभ्यास करने का ख्वाब देखा था और इसी कारण प्रारंभिक हैकिंग को सीखने के लिए उसने अहमदाबाद में बिनोद चंद्रा की ट्राइंफ धी स्कूल ऑफ एथिकल हैकिंग में दाखिला कराया था।
माहेरा अपने अभ्यास में आधा दिन व्यस्त रहती थी और अपना खरचा पानी निकालने के लिए अहमदाबाद के डी-मार्ट नामक मॉल में आधे दिन नौकरी करती थी। दीवाली में मिली कुछ दिनों की छुट्टी के कारण कुछ दिन वो अपने साथी मित्रो के साथ दीव आयी हुई थी। लेकिन उसके मित्रो के मुकाबले वो बिल्कुल विपरीत थी। उसके सभी मित्र बार मे पार्टी करने में व्यस्त थे जबकि माहेरा अपने लैपटॉप में घुसी पड़ी थी और इतनी ठंडी हवा चलने के बावजूद भी उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे उभरी हुइ थी।

माहेरा का टेबल जय के टेबल से थोड़े ही कदमो की दूरी पर था। जय को वैसे तो कभी किसी लड़की में अभी तक दिलचस्पी नही हुई थी, लेकिन माहेरा में कुछ अलग था। उसे पहली बार देखते ही जय को लगा कि वो बिल्कुल उसके जैसी थी। वो थोड़े समय तक अपने टेबल से उसको देखता रहा लेकिन फिर उससे रहा नही गया और वो अपना लैपटॉप बैग उठाकर उसकी तरफ चल पड़ा।

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'मे आय शेयर योर टेबल?' कुछ देर माहेरा को ऐसे ही लैपटॉप पर काम करते हुए देख जय से रहा नही गया और माहेरा से जान पहचान बनाने की गुस्ताखी वो कर बैठा।
'प्लीज़' माहेरा ने अपने पास पड़ी हुई खाली प्लास्टिक की कुर्सी को पीछे खींचते हुए कहा।

माहेरा के इस बेबाकपन से जय को ज़रा सी भी हैरानी नही हुई क्योंकि वो जानता था कि दुनिया हर एक पल आगे बढ़ रही थी और हर एक पल बदलाव का पल था और वो भी अपने पिता की कही हुई बात को पूरी तरह से मानता था कि ज़िन्दगी किसी जादूगरी से कम नही, ज़िन्दगी रहस्यों और रोमांच से भरी पड़ी हुई है। कोई नही कह सकता कि अगले पल क्या होनेवाला है।

'थैंक्स फ़ॉर शेयरिंग योर टेबल, यू मिस...?' जय ने जान पहचान आगे बढ़ाने की कोशिश करते हुए माहेरा की तरफ हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।

'माहेरा, माहेरा खान' जय की तरफ बिना देखे और बिना उसकी तरफ हाथ आगे बढ़ाए एकदम नज़रे अपने लैपटॉप की स्क्रीन पर गढ़ाए उसने अपना परिचय कराया।

'वैसे देखा जाए तो लोग छुट्टियां मनाने दीव आते है, और एक तुम हो जो अपने लैपटॉप में बिजी हुई हो।' जब माहेरा ने जय की तरफ अपना हाथ आगे नही बढ़ाया तो तब जय ने अपना हाथ पीछे करते हुए पूछा।

'वैसे देखा जाए तो मैं भी तुमसे यही सवाल पूछ सकती हू। क्योकि, तुम भी तो कुछ देर पहले अपने लैपटॉप में ही बिजी थे। कुछ मेरी तरह ही।' अपने लैपटॉप को बंध करते हुए बैग में रखते हुए वो बोली। अभी भी उसने अपनी नज़रे जय की ओर नही फेरी थी। लेकिन उसमें कमाल की सतर्कता थी, जो किसी हैकिंग का व्यवसाय करनेवाले में होनी आवश्यक थी।

'हां, तो मिस्टर जय, क्या मदद कर सकती हूं मैं आपकी?' माहेरा ने जय की ओर मुड़ते हुए पूछा, उसके खुले काले लंबे घने बाल बहुत ही खूबसूरत दिख रहे थे, उसके चेहरे पर एक भी मुंहासा नही था। देखने मे वो बिल्कुल किसी फिल्म या विज्ञापन में काम करनेवाली मॉडल की जैसी थी।

'नही... बस में तो सिर्फ इंट्रो....'

'हेय! माही हम जा रहे है, तू चल रही है न हमारे साथ?' माही की किसी सहेली ने दूर से हाथ हिलाते हुए माही को आवाज़ लगाई और जय की जान-पहचान आगे बढ़ाने वाली बात आधी अधूरी रह गयी।

'ठीक है, मिस्टर जय! आपको कोई काम नही है तो फिर मुझे चलना चाहिए।' माहेरा ने अपना लैपटॉप का बैग अपने शोल्डर पर चढ़ाते हुए कहा।

'बाई धी वे, इट्स नाइस टू मीट यु, मिस्टर जय!' अभी जय कुछ बोल पाता इससे पहले ही माहेरा ने जय की ओर शेक हैंड करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।

'इट्स नाइस टू मीट यु टू.. मिस माहेरा' जय ने बिना कोई क्षण गंवाए माहेरा का हाथ पकड़ते हुये कहा।

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