लम्हों की गाथा - 4 सीमा जैन 'भारत' द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

लम्हों की गाथा - 4

  • लम्हों की गाथा
  • (10)
  • "काशी दिआं लकिरां"
  • जब से नशामुक्ति अभियान से जुड़ी तब से ही काशीबाई को जानती हूँ।तीन बच्चे और शराबी पति जो हर रोज़ अपनी तो अपनी काशीबाई की मज़दूरी के पैसे भी ज़हर में डुबो देता।

    काशीबाई, कभी रोटी, कभी भूखे पेट तो कभी नमक चावल खाकर अपने दिन काट रही थी।

    आज काशीबाई मुझे अपने साथ अपनी झोंपड़ी में ले गई बोली-"दीदी, चलो ना! आज बहुत दिनों बाद रोटी के साथ भाजी बनाई है।"

    ज़मीन पर बैठी मैं काशी को देख रही थी।उसके चेहरे की ख़ुशी ने मुझे भी सुकून दिया।

    चूल्हे के ऊपर कोयले से खिंची लकीरों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया।मैने पूछा-"ये क्या है काशी?"

    उसने बोला-"दीदी, हम अनपढ़ अपने पैसों का हिसाब कैसे रखे?तो ये लकीरें उसीके लिए है।रोज़ पैसे मिलते तो एक लकीर और पति ने कमाई ले ली तो लकीर काट देती।"

    मैने लकीरों को ध्यान से देखा तो कहा-"अरे, पर इसमें तो ज़्यादा लकीरें कटी है।"

    काशी ने चहकते हुए कहा-"ऊपर नही, नीचे देखो दीदी! यहाँ लकीरें नही कटी है।दीदी तुम्हारी बातें सुनकर ही तो मेरे मरद को बात समझ में आई।चार दिन पहले जब ये लकीरें देखी तो रो पड़ा, वो कहने लगा-तू, बच्चों के साथ कितना भूखा रही री! इतनी सारी कमाई मैं पी गया? अब हम मिलकर रोटी खायेंगे और बच्चों को भी भरपेट खिलायेंगे।"

    अपने आँचल से आंसू पोंछती काशीबाई बोली-"ये भाजी वो ही लाया है दीदी।"

    रोटी का कौर हाथ में लिए मै सोच रही हूँ मै सीखने आई हूँ या सिखाने? कल नही, आज के साथ जीना ही जीवन है।

    ***

  • (11)
  • खाली हाथ
  • इस शहर में हम कुछ दिन पहले आये।एक बड़ी कंपनी में हम पति-पत्नी दोनों काम करते है।

    माता-पिता भी साथ है, क्या करें इकलौती सन्तान होने का दण्ड!

    पिता जी रिटायर्ड हो चुके है।उनको इशारों में हम समझा चुके है कि वो अपना गुज़रा अपनी जेब से कर ले।

    हम दोनों की गाड़ियाँ, बेटे का आवासीय विद्यालय, ख़र्चे का कोई अंत है क्या?

    आज मेरा सहकर्मी रवि घर आया था। उसके साथ किसी से मिलने जाना था।

    रवि बोला-"सर, ये शहर आपके लिए नया है मैं गाड़ी ले कर आता हूँ साथ में चलते है।

    आते-जाते उसने माँ से कब और कितनी दोस्ती कर ली पता ही नही चला।

    मन्दिर हो या बाज़ार वो कैसे जाते ये पूछने का काम हम दोनों ने कभी नही किया।

    रीता कहती-"एक बार सेवा करना शुरू करोगें तो आफ़त गले पड़ जायेगी।ख़ुद ही करने दो उन्हें अपने काम।"

    बेटे को लेकर बगीचे तक गया था।घर के बाहर रवि की गाड़ी खड़ी देखी।

    रवि की गाड़ी में झांककर मैंने कहा-"आज कैसे? किसी... से मिलने जाना है क्या?"

    रवि ने बड़े इत्मिनान से जवाब दिया-"नही सर, आज छुट्टी है तो सोचा माँ-बाबा को शहर घुमा देता हूँ।पिछली बार बाबा मन्दिर से लौटते समय भटक गये थे, तो बड़ी मुश्किल हो गई थी।जब तक इनको रास्ते याद न हो जाये मैं ही इनको घुमा दिया करूँगा।माँ के साथ रहता हूँ तो मुझे घर की कमी नही लगती।"

    आज पहली बार धक्का लगा जैसे कोई ... हाथ से छूट गया हो।

    एक अविवाहित लड़का इस समय किसी लड़की या दोस्तों के साथ भी हो सकता था, उसकी जगह ये मेरे माँ...

    माँ-बाबा से याद नही कब हाथ हिला कर....

    वो तो बिना कुछ बोले रवि की गाड़ी में बैठ गये।

    मैं हारा सा अपने बेटे की उंगली थामे...

    ***

  • (12)
  • नादान
  • "नमस्कार पण्डित जी, कैसी रही काशी यात्रा अनुज के साथ? सम्मेलन में तो उसनें झंडे गाड़ दिए होंगें? आठ साल के बच्चे के मुख से कंठस्थ श्लोक सुनकर लोगों ने क्या कहा?"

    पण्डित जी ने झल्लाते हुए कहा-"कहते तो तब जब वो मंच पर टिकता, वो तो पास के मन्दिर में चला गया था। वहाँ वी.आई.पी. लाइन में लग गया और श्लोक बोलता हुआ हाथ पकड़कर बुजुर्गों को मन्दिर में ले जा रहा था।पण्डित की वेशभूषा और श्लोक सुनकर लोग उसे रास्ता दे रहे थे।"

    -"माने उसने शास्त्रार्थ नही किया?

    -"क्या ख़ाक करता! उसका मन तो लोगों में रमा था।दूसरी बार बाहर गया तो उसे देखकर मेरा सर घूम गया वो एक महिला की चप्पल ढूँढने में मदद कर रहा था। इस नादान को शास्त्र याद करने थे इसने जीवन में उतार लिए।"

    -"अब क्या पण्डित जी, काशी में अनुज को पढा़ई नहीं करवाओगे?"

    -"कुछ नहीं, इसको डॉक्टरी की पढा़ई करवा दूंगा। मानव सेवा के साथ कम से कम अपना पेट तो भर लेगा। पंडिताई के क्षेत्र में टिके रहने के गुण इसमें नहीं है।"

    ***