दिवाली के फटाके आदित्य पारीक द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दिवाली के फटाके

मोहल्ले के घरों में रंग रोशन हो रहा था और उनसे निकलने वाली भीनी भीनी गंध ने माधव को दीवाली के आने का संकेत दे दिया माधव ने उत्सुकता से माँ से पूछा

"हमारे घर में रंग नही होगा क्या माँ"

" इन सब का रंग गंदा है मेने इन सब से अच्छा रंग मंगवाया है वो आएगा तब हम घर के रंग करवाएंगे माधव की माँ ने उसे गले लगा बेबसी ओर गरीबी को छुपाते हुवे बोला"

घर की आर्थिक स्थिति का सही मायने में जिम्मेदार घर का पुरुष होता है गलत लत ओर व्यसन की आदत ने कही खुशहाल परिवारों की जिंदगी को नर्क से भी बदतर बना दिया है जहाँ आर्थिक तंगी के साथ साथ शारीरिक उत्पीड़न और तथाकथित सभ्य समाज के द्वारा किये जाने वाला मानसिक उत्पीड़न को सहन करना पड़ता है और उस बेबस नारी की क्या गलती होती है जो अपने पिता का घर छोड़ के आती है किसी ओर का घर बसाने के लिए मीता भी तो उन्हें बेबस नारियो में से एक है

" पांच साल पहले की बात थी नवम्बर का महीना वातावरण में घुली हल्की ठंडक के साथ सर्दी ने साल 2014 में दस्तक दी और मीता के जीवन मे विजय ने

परिवार में इकलौती बेटी होने के कारण बड़े लाड़ प्यार से परवरिश हुए थी मीता की परिवार में सबकी लाडली थी नाजुक फूल की तरह सहेजा था उसके पिता ने उसे

विजय सरकारी महकमे में नोकरी करता था दिखने में आकर्षित ओर सभ्य मीता के पिताजी उसके आफिस में किसी रिश्तेदार के साथ उसे देखने गए और पहली मुलाकात में ही मन ही मन रिश्ता तय कर आये

ना मीता से उसकी राय लेना उचित समझा ना ही विजय के बारे में अधिक जानकारी बटोरना उन्हें बस उसकी सरकारी नोकरी आकर्षित कर रही थी, ओर होता भी तो यही है समाज मे सरकारी नोकरी को सम्मान की नजर से देखा जाता है राय बना ली जाती है कि सरकारी नोकरी वाले का जीवन बड़े ठाट बाट ओर आराम से गुजरता है पर बहुत सी बार बिना सोचे समझे लिए गए फैसले जीवन भर दर्द देते है मीता ओर उसके पिता के साथ भी तो यही सब होने वाला था।

विजय एक आदतन शराबी था साथ ही उसे जुवे ओर अय्याशियों की लत लगी हुई थी फिर मीता के पिता इस से अनभिज्ञ क्यों थे शायद उनके इतने बड़े फैसले को लेकर उनका उतावलापन

खेर बड़े धूम धाम से इकलौती बेटी को विदा किया गया उसके नए जीवन में यश वैभव समृद्धि की मंगल कामनो के साथ

कुछ दिन बड़े आराम से गुजरे ससुराल में मीता के नई बहू जो थी वो उस घर की विजय आफिस से आने के बाद उसे बाजार की सहर कराने ले जाता जरूरत की शॉपिंग करवा देता और चाइये भी क्या एक औरत को उसके पति से बस प्यार और सम्मान

इतवार का दिन था , सासु माँ ओर विजय की लड़ने की आवाज सुन मीता की नींद खुली सुबह का समय था लगभग 6 बज रहे थे

" तुझे कितनी बार समझाया सुधर जा ये शराब बर्बाद कर देगी तुझे ओर तेरे परिवार को तनख्वाह के नाम पर कुछ भी नही आता है इस घर मे वो तो शुक्र मना तेरे बड़े भाई का जो हर महीना घर ख़र्च के लिए पैसे भेज देता है"
(विजय का बड़ा भाई दिल्ली में अच्छे ओहदे की पोस्ट पर था)
मीता की सासु माँ विजय को समझा रही थी विजय बड़बड़ाता हुआ घर से बाहर चला गया

ये सब सुन एकबार तो मीता के पैरो तले जमीन खिसक गई मानो सब अरमान जो उसने सजोये थे एक एक कर उस से दूर जा रहे हो वो बेहतर जीवन की उम्मीद जो उसे विजय से थी मानो एक झटके में टूट गई हो

मीता खुद को संभाल ते हुवे आँसुओ को पोछते हुवे अपने कमरे से बाहर निकली ओर अपनी सासु माँ ने पैरो को छू कर उनसे पूछा

"माजी आप क्या बोल रही थी उन्हें"
खुश रहो आओ बेठो कुछ भी तो नही वो.... तो हम ऐसे ही बात कर रहे थे मीता की सासु उस से वो सब छुपाते हुवे बोली जो मीता पहले ही सुन चुकी थी

खेर समय अपनी रफ्तार से चलता रहा मीता जो फूल सी नाजुक ओर सुंदर सी एक लड़की जो अब विजय के रोज रोज की मारपीट और मानसिक यातनाओ को सहन करते करते पतली दुबली हो गई थी चहरे पर झाइयां पड़ गयी थी।

"इधर बैठ तुझे खाना रखूं सुबह से इधर उधर भाग दौड़ कर रहा है " माधव को पास बुलाते हुवे मीता बोली

"माँ पापा मेरे लिए फटाके कब लाएंगे सारे दोस्तो के पापा तो उनके लिए बहुत सारे फटाके लेकर आ गए"

ओर आज तो दीवाली भी आ गई फिर में कब फटाके चलाऊँगा ओर अपने तो अभी तक मिठाई भी नही आई माधव रोता हुआ मीता से बोला"

तेरे पापा को आने दे ढेर सारे फटाके ओर मिठाई मांगाउगी मेरे बेटे के लिए माधव के सर को सहलाते हुवे मीता ने उसे तसल्ली दी

इधर उधर की खेल कूद की थकान के कारण माधव को नींद आ गई थी।

मीता ने विजय के डर से साड़ियों में कुछ पैसे छुपा रखे थे जो शायद उसे मायके वालों से मिले थे उनके संभाल रही थी ताकि माधव को कुछ फटाके दिला सके

तीसरे फहर का समय था मोहल्ले में दीवाली की वजह से रौनक वे चहल पहल बड़ी हुए थी कुछ बच्चे जो फटाके चला रहे थे कुछ अपनी नई ड्रेस के बारे में दोस्तो को बता कर इतरा रहे थे महिलाएं दीवाली की तैयारियों में लगी हुई थी और मीता कुछ पैसे जो उसे मिले थे उन्हें गिन रही थी ताकि माधव को फटाके दिला सके

विजय घर के अंदर आया
" कहा थे सुबह से ओर आपके कपड़ो पर ये धूल क्यों लगी है छि आपके मुंह से शराब की बदबू भी आ रही है आज तो शर्म कर लेते दीवाली है आज
मीता झलाते हुवे विजय से बोली"

विजय के कपड़े मिटी में सनी हुवे थे शायद शराब के अधिक सेवन की वजह से कहि गिर गया था या सो गया था
यही पर था काम था मुझे सर मत खा मेरा मीता को धक्का देते हुवे विजय बाथरूम की ओर चल गया

"मेरा टॉवल कहा है"
विजय मीता पर चिल्लाता हुवा बोला

"ये लो पकड़ो"
मीता विजय को टॉवल पकड़ा रसोई की ओर चल गई विजय के लिए चाय बनाने

विजय को चाय का कप पकड़ा उसके पास बैठ गई

" माधव सुबह से फाटकों की जिद कर रहा है सब दोस्तो के फटाके आ गए जिद करता करता सो गया, इसके लिए कुछ फटाके ओर मिठाई ले आओ खुश हो जाएगा सुबह से याद कर रहा हूं आपको"
मीता उम्मीद ओर उत्तशुकता से विजय की ओर देखती हुए बोली

"हा देख लूंगा अभी" विजय रूखे स्वर में मीता से बोला

" फिर कब देखोगे कुछ देर में तो दीवाली मनने वाली है"

"सर मत चाट मेरा पैसे नही है मेरे पास बिना फाटकों के भी दीवाली मन सकती है"

मीता की आंखों से आंसू छलक गए शायद ये ममता के आंसू थे उस बेबस माँ के आंसू थे जो अपने बच्चे की खुशी से बढ़कर खुद की खुशी को भी जगह नही देती है

" मेरे पास है थोड़े से पैसे इसके फटाके ओर कुछ मिठाई आ जाएगी"

विजय ने खुश होते हुवे मीता की ओर देखा शायद उसकी खुशी का कारण कुछ और था जो मीता कहा समझ पाती

खेर मीता से पैसे लेकर विजय थोड़ी देर में फटाके लाने की बोल बाहर चल गया

माधव उठ चुका था उठ ते ही फाटकों की जिद पकड़ ली

"मेरे फटाके कहा है पापा कब आयेगे "

"मेने तेरे पापा को बोल दिया वो फटाके लेने गए मेरे बेटे के लिए माधव को गोद मे लेते हुवे मीता बोली "
माधव का बाल ह्रदय बहुत ज्यादा खुश था फटाके जो आ रहे थे उसके लिए

"में दोस्तो को बोल कर आ रहा हु मेरे पापा बहुत सारे फटाके लेने गए मेरे लिए " माधव खुश होकर मीता को बोलते हुई बाहर भाग गया
ओर मीता बनावटी मुस्कान लिए उसकी ओर हस दी शायद अंदर से बहुत ज्यादा चिंतित थी

समय निकलता गया अंधेरा सा होने लगा माधव घर मे फटाके करता हुआ इधर से उधर चह चहाता हुवा दौड़ रहा था मीता विजय का इंतजार करती हुईं बड़बड़ा रही थी
लक्ष्मी पूजन हो चुका था चारो ओर फाटकों की आवाज़ सुनाई दे रही थी बच्चे नई नई ड्रेस पहने इतरा रहे थे
कुछ बच्चे फाटकों से भरे बेग लिए मोहल्ले में घूम रहे थे शायद प्रतिस्पर्धा लगा रहे थे दिखाने के लिए की किस के पास कितने फटाके है
माधव ओर मीता अभी भी इंतजार में थे कि विजय फटाके लेकर आएगा
माधव फटाके फटाके करके सो गया था
मीता अभी भी आश में थी कि शायद वो आ जाये
रात को ग्यारह बजे घर का दरवाजा किसी ने जोर से बजाया
मीता ने गेट खोला
विजय था बाल बिखरे हुवे थे कपड़े और मुह जोरदार बदबू मार रहा था मीता को धक्का देते हुवे अंदर आ गया शायद अत्यधिक शराब के सेवन की वजह से सही नही चल पा रहा था हॉल में फर्श पर बेशुध होकर गिर गया शायद सो चुका था

मीता कमरे में एक कोने में बैठ कर रो रही थी अपनी किस्मत को कोस ते हुवे पिछेल चार सालों की तरह इस साल भी दीवाली नशे की भेंट चढ़ गई
बस आवाज़े गूंज रही थी घर मे फ़सरे सन्नाटे को चीरते हुवे फाटकों की जो बच्चे छोड़ रहे थे जिनके पापा शायद विजय से अलग थे जिन्होंने नशे की जगह परिवार को चुना था


आदित्य पारीक