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खूनी डायन - 1

शोभा और समर के फ़्रेंड्स ने समर वेकेशन्स पर शोभा के मामा के गाँव चन्दनपुर जाने का प्लान बनाया।
चंदन पुर के घने जंगल, ऊंचे ऊंचे पर्वत और कल-कल की ध्वनि से गुन्जित झरने इंसान को ही नहीं बल्कि प्रवाशी पशु-पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम थे।
चंदनपुर में हर साल कई पर्यटक घूमने के लिए आया करतें हैं। चंदनपुर एक अच्छा पर्यटन स्थल था।
सभी ने लोकल बस से ही जाने का प्लान बनाया और निकल पड़े चन्दनपुर की सैर करने के लिए।
शाम के समय सभी बस पकड़कर चन्दनपुर के लिए रवाना हो गए।
शोभा और समर बस की खिड़की से ढलती हुई शाम का आनंद ले रहे थे।
शाम होने की वजह से हवा थोड़ी ठंडी हो गई थी,मगर दोपहर की चिलचिलाती धूप का असर उसमें अभी भी था, जो दोपहर के वक्त तेज़ और जानलेवा लू के रूप में बहती है।
आस पास खड़े पेड़ और झाड़ के विभिन्न प्रकार के फूलों की मनमोहक खुश्बू मन को आनंदित कर रही थीं।
ग्रामीण अपने मवेशियों को अपने घर वापस ला रहे थे।

शोभा की फ्रेंड पलक भी अपने बॉयफ्रेंड साहिल के साथ आई थी।
मुख्य मार्ग ख़त्म हो गया था और चंदनपुर का मार्ग प्रारम्भ हो गया था।
अंधेरा कब्जा जमाने लगा था।
सुदूर क्षेत्र में फैले घने जंगल के पेड़ अपनी मौन मुद्रा में खड़े थे।
शोभा अभी तक बाहर के नजारों को देखे जा रही थी। उसको इनसब में रुचि के साथ एक अलग लगाव सा था,क्योंकि शोभा का बचपन यही पर गुजरा था।
शोभा को चंदनपुर की डायन वाला किस्सा जो उसे उसके मामा सुनाया करते थे, वो उसे अच्छी तरह से याद था।
उसने पलक और साहिल की ओर देखा जो उसकी आगे वाली सीट पर बैठे हुए थे।
वो दोनों आपस में हसी मज़ाक कर रहे थे। शायद दोनों प्रेमियों को ये मालूम नहीं था कि वो अभी गाँव में न कि शहर में।
उन दोनों को उस बस में बैठे ग्रामीण घूरे जा रहे थे।
जब साहिल और पलक की नजर गाँव वालों पर पड़ी तो दोनों एक दूसरे से अलग हो गए।
ये सब देखकर शोभा और समर मुस्कुरा पड़े।
रात हो चुकी थी, बस ड्राइवर ने बस की लाइट ऑन कर ली।
अब केवल बस के अंदर बैठे व्यक्ति लाइट में दिख रहे थे और चारों तरफ जहां तक नजर जाती वहां तक सिर्फ़ गहरा अंधकार पसरा हुआ था।
"भैया! आगे बस रोक देना।" - शोभा ने बस ड्राइवर से कहा।

"क्यूँ, क्या हुआ।वो रास्ता तो चंदनपुर को जाता है।" - बस कंडक्टर ने हैरान होते हुए कहा।


"हाँ, हम सबको चंदनपुर ही जाना है। यही पर रोक दीजिए।"


"लेकिन इस वक्त चंदनपुर कोई नहीं जाता। और इस रास्ते से सूरज ढल जाने के बाद तो बिलकुल नहीं। तुमको नहीं पता क्या?" - बस में बैठे एक बुजुर्ग ने कहा।


" बाबा मुझे सब पता है। मेरे यहां मामा जी रहते हैं, चलो गाइस।"


" लेकिन, बेटा!"


" क्या हुआ, बाबा जी आप कुछ कहना चाहते हैं क्या? "-समर ने बुजुर्ग से पूछा।


" छोड़ न, यार चल। कुछ नहीं है। मैं हूँ न साथ में। बचपन बीता है मेरा यहाँ, चप्पा चप्पा जानती हूँ यहां का, चलो फिजूल की बातो में मत पड़ो।"-शोभा ने समर को खींच कर बस से नीचे उतार लिया।


चारों दोस्त बस से चंदनपुर के कच्चे रास्ते पर उतर गए और बस अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गई।
बस के चले जाने के बाद चारों तरफ़ अंधेरा छा गया था।
सभी लोगों ने अपना फोन निकाल कर फ्लैश लाइट जला ली।


" शोभा, वो बाबा किसके बारे में बोल रहा था?" - समर ने बात को दोहराते हुए कहा।


"चल न यार तु एक ही बात को पकड़ लेता है बस!" - पलक ने बात को काटते हुए कहा।


"समर, घर पहुँचते ही बताती हूँ ओके।" - शोभा ने आश्वासन दिया।


"ओके।"

रास्ता कच्चा और चारों तरफ से जंगली झड़ियों से घिरा हुआ था।

" यार! ये रास्ता पहले से काफी बदल चुका है, कितना मुश्किल हो रहा है, चलना। 10 साल पहले ये ऎसा नहीं था।" - शोभा ने परेशान होते हुए कहा।

" शायद, कोई यहां से नहीं गुजरता। लगता है कि ये काफ़ी दिनों से बंद पड़ा है।" - समर ने मोबाइल की फ्लैश सभी फ़्रेंड्स की ओर करते हुए कहा।

" कई दिनों से नहीं, बल्कि कई सालों से बंद पड़ा है। "-पलक ने सबकी ओर देखते हुए कहा।

"ऎसा है,क्या? शोभा।" - साहिल ने शोभा से पूछा।

" शायद, हाँ।"-शोभा ने सहमति जताई।

" तो अब क्या होगा यार! क्या हम सब फँस गए?" - साहिल ने घबराते हुए कहा।

"नहीं यार! रास्ता कई सालों से बंद है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम फँस गए हैं। थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ेगा,बस।"-शोभा ने सभी की हिम्मत बड़ाई।


सभी फ़्रेंड्स उस रास्ते पर आगे बढ़ने लगे। शोभा सबसे आगे चल रही थी, क्योंकि वह उस रास्ते को जानती थी।
रात का अंधेरा गहराता जा रहा था। उस सूनसान रास्ते पर उन चारों दोस्तों के अलावा किसी भी इंसान का नामोनिशान नहीं था।
हवा अभी भी कुछ गर्माहट लिए हुए थी और दोपहर की तुलना में कम गति से बह रही थी।

समर और साहिल ने गर्मी की वजह से अपनी शर्ट उतार ली थी क्योंकि उनका गर्मी की वजह से हाल बेहाल था।
समर अपने फोन में इतना बिज़ी था कि उसे मालूम ही नहीं पड़ा कि वो अपने दोस्तों से कितना दूर हो गया है।

"पलक! समर कहां है?" - शोभा ने अपने फोन की फ्लैश को इधर-उधर समर को ढूंढते हुए कहा।

"यहीं तो था,अभी।"

"वो, रहा समर, समर...... क्या कर रहा है तू वहां जल्दी आ इधर।" - साहिल ने समर को बुलाते हुए कहा।

समर इतनी दूर था कि रात के अंधेरे में उसके फोन फ्लैश की टिमटिमाती हल्की रोशनी दिख रही थी।

"हाँ! आया...... ।" - समर ने अपना ध्यान से फोन हटाते हुए कहा।

" अरे, ये क्या है?"

समर के पीछे साइड में खड़े पेड़ से एक जोरदार खरखराहट की आवाज से एक गठरी जैसी चीज गिरी।

"दोस्तों जल्दी से इधर आओ। यहां कुछ है!"

सभी समर के पास आते तब तक समर उस अनजान चीज के पास पहुंच गया।
फ्लैश की रोशनी में समर को वह चीज हिलती हुई नजर आई।
जैसे ही समर उस के और करीब गया तो वह अनजान चीज मूव करने के साथ एक खौफनाक आवाज भी निकाल रही थी।
समर काफी डर चुका था, वह कुछ सोच या समझ पाता तब तक समर का हाथ एक अनजान खूनी पंजे की गिरफ्त में था।
समर की रूह अचानक हुए हमले से कांप उठी।
उसने आनन फानन में अपने हाथ को छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन उस खूनी पंजे की गिरफ्त बहुत मजबूत थी।
हङबङाहट में समर का फोन नीचे गिर गया जिससे वह उस अनजान खौफनाक जीव को नहीं देख सका।
वह जीव अभी भी भयानक आवाजें निकाल रहा था।
समर समर अपना हाथ छुड़ाने में नाकाम रहा तो उसकी एक भयंकर चीख निकल पड़ी।

"क्या हुआ? समर।" - शोभा ने समर के पास आकर घबराते हुए पूछा।

"व्व्वो....!" - समर ने अंगुली से सामने वाले पेड़ की ओर इशारा किया।
उसकी आँखो में दहशत साफ दिख रही थी।
समर कुछ ज्यादा नहीं बोल पाया और वह बेहोश हो गया।


"ये तो बेहोश हो गया है।"

"क्या हुआ इसे?कोई बताएगा मुझे, चल क्या रहा है यहाँ ये सब,हां!"

"साहिल तु शांत रह ओके, समर बेहोश पड़ा है और ऊपर से तू बेवजह हाइपर हो रहा है। चल, इसे उठा।" - पलक ने साहिल को समझाते हुए कहा।

"समर ! कुछ तो बोलो, क्या हुआ तुम्हें। "

" लगता है, समर पर किसी जंगली जानवर ने हमला किया है।"-साहिल ने शोभा की ओर देखते हुए कहा।

" यार! अब क्या होगा। साहिल तू कुछ करना। "-पलक ने घबराते हुए कहा।

" अगर ये बात मामा जी को पता चली न तो वो बहुत गुस्सा करेंगे। "-शोभा ने कहा।

" तेरी वजह से ही ये सब हुआ है! दूसरे रास्ते से ले चलती। यही रास्ता क्यूँ ले आई और ऊपर से रात को।"

"तू शांत रह ओके, शाम को तेरा ही प्लान था, चलने का मैंने तो सुबह को ही बोला था। और मुझे क्या पता था कि यह रास्ता बंद हो जाएगा। "

" यार! शांत हो जाओ। कोई उपाय ढूंढो। यहां हम लड़ने नहीं समर वेकेशन मनाने आएं हैं यार।
साहिल तू अपने बैग से पानी की बोतल निकाल।"

साहिल ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और पानी की कुछ बूंदें समर के चेहरे पर छिड़की तो समर घबराता हुआ उठ बैठा।

" क्या हुआ? समर तेको!"-पलक ने कहा।

"बोल न समर क्या हुआ तेरे साथ जो तुम इतना घबरा गए थे कि बेहोश हो गए। "-शोभा ने समर के सामने बैठकर दोनों हाथ पकड़ते हुए कहा, मानो वह समर को झकझोर कर उसे होश में आने की कोशिश कर रही हो।

"अबे! तेरे हाथ से तो खून निकल रहा है यार! तु बोलता क्यूँ नहीं है कुछ। क्या कोई जानवर था? "-साहिल ने उसका हाथ देखते हुए कहा।

" न्न्न्न्नहीं....... व्व्व्व्वो... जानवर नहीं किसी भयानक चेहरे वाली बुढ़िया जैसी दिख रही थी।"

"क्या???"

"हां! यार। वो शायद अभी भी यही कहीं आसपास है। "

सभी दोस्तों के चेहरों पर डर अब साफ साफ दिखाई देने लगा था।


तभी......

पास की झाड़ियों के हिलने आवाज आई। सभी उसी तरफ मोबाइल की फ्लैश करके देखने लगे।

" चलो! दोस्तों, अब हम सब को यहां से निकलना चाहिए। यहाँ कुछ ठीक नहीं लग रहा है। "-पलक ने इधर उधर अपनी नज़ारों को घुमाते हुए कहा।

"हां, चलो।"

क्रमशः ~~~
संपूर्ण कहानी पढ़ने के लिए नीचे लिंक ?
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?सोनू समाधिया रसिक ??

Myultimatestories1.blogspot.com


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