गुमशुदा की तलाश - 32 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुमशुदा की तलाश - 32


गुमशुदा की तलाश
(32)




कमरे में छत से लटके बल्ब की दूधिया रौशनी में बने वृत्त को सरवर खान बिना किसी वजह के बस यूं ही देख रहे थे। यहाँ करने को कुछ था नहीं। दिन और रात का भी पता नहीं चलता था। सरवर खान एक अंदाज़ के हिसाब से नहा कर नए कपड़े पहन लेते थे।
एक आदमी दिन में तीन बार खाना लेकर आता था। वह उनके उतारे हुए कपड़े लांड्री के लिए ले जाता था। जब दोबारा वह खाना लेकर आता था तो साथ में उनके धुले और आयरन किए हुए कपड़ों का पैकेट होता था।
सारी सुनिधाओं के बावजूद भी इस कमरे में अकेले बंद रहना एक मेंटल टॉर्चर था। हर समय बस नीले रंग से रंगी उन दीवारों को देखते रहना उन्हें पागल किए दे रहा था। अकेले रहते हुए उनका दिमाग अजीब से खेल खेल रहा था। कभी उन्हें लगता कि शकीना उनके पास बैठी है। वह उनसे शिकायत कर रही है।
'आप बस अपने काम में ही खोए रहते हैं। मेरे लिए भी कोई समय है आपके पास।'
सरवर खान उसे समझाने लगते।
'शकीना ये केस पूरा हो जाए बस। फिर देखना कम से कम छह महीनों तक कोई नया केस नहीं। सारा वक्त बस तुम्हारा और शीबा.....'
अपनी बात कहते कहते उन्हें एहसास होता कि वह तो बस अपने आप से ही बात कर रहे हैं। कभी उन्हें लगता कि शीबा ज़ोर ज़ोर से रो रही है। वह परेशान है कि अब्बा कहीं चले गए हैं। वह चिल्ला उठते।
'रो मत मेरी बच्ची। अब्बा कहीं नहीं गए। वह कुछ दिनों में लौट आएंगे।'

रौशनी के वृत्त को घूरते हुए वह सब इंस्पेक्टर राशिद को याद करने लगे। गोदाम में जब वह उसके साथ कैद थे तब वह उससे बात कर लिया करते थे। पर यहाँ वह एकदम अकेले हैं।
सरवर खान समझ रहे थे कि रॉकी ने उन्हें यहाँ इस तरह क्यों कैद करके रखा है। दरअसल वह उन्हें मानसिक रूप से कमज़ोर कर तोड़ देना चाहता था। वह उनसे बदला ले रहा था। क्योंकी उन्होंने उसके उस साम्राज्य को बर्बाद कर दिया था जो मदन कालरा के तौर पर उसने खड़ा किया था।
सरवर खान ने भी तय कर लिया था कि वह रॉकी के किसी भी टॉर्चर के आगे घुटने नहीं टेकेंगे। वह अपनी हिम्मत बनाए रखेंगे। खुद को टूटने नहीं देंगे। एक दिन इस जगह से बाहर अवश्य निकलेंगे।
सरवर खान ने अपना प्रौस्थैटिक पांव निकाल कर रख दिया था। उन्होंने एल्यूमीनियम की फोल्डिंग बैसाखी उठाई। उसके सहारे खड़े होकर टहलने लगे। वह चाहते थे कि उनके शरीर की शक्ति बनी रहे।
सरवर खान ने अपना दिमाग बिपिन के केस पर लगा दिया। वह सोंच रहे थे कि अब तक रंजन वापस आ गया होगा। उनके लापता होने की बात सुन कर ज़रूर उसने केस की ज़िम्मेदारी संभाल ली होगी। उसकी सहायता के लिए वहाँ इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह भी हैं। दोनों मिल कर केस सॉल्व करने की कोशिश करेंगे।
वह कुछ देर तक उस छोटे से कमरे के एक छोर से दूसरे छोर तक टहलते रहे। फिर पास पड़ी रिवाल्विंग कुर्सियों में से एक पर बैठ गए।
कमरे का दरवाज़ा खुला। पर यह समय खाना लाने का नहीं था। अभी कुछ ही समय पहले ही तो उन्होंने खाना खाया था। फिर कौन हो सकता है ? सरवर खान ने अपनी रिवाल्विंग कुर्सी दरवाज़े की तरफ घुमाई।
सामने रॉकी खड़ा था।
"कैसे हैं खान साहब ? सोंचा आपके हालचाल ले लूँ।"
कह कर वह दूसरी रिवाल्विंग कुर्सी खींच कर उस पर बैठ गया। सरवर खान ने कुछ नहीं कहा। पर वह पूरी कोशिश कर रहे थे कि रॉकी को उनकी मानसिक स्थिति का अंदाज़ा ना लग सके।
"आपको यहाँ किसी चीज़ की कमी तो नहीं। हो तो हुक्म दीजिए। कमी पूरी कर दी जाएगी।"
सरवर खान कुछ देर चुप रहे। फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ बोले।
"रॉकी.... तुम्हारा खेल मैं समझ रहा हूँ। पर एक बात समझ लो। मैं भी टूट जाने वालों में नहीं हूँ।"
"जानता हूँ खान साहब। अपनी एक टांग खोकर भी आप टूटे नहीं। नकली पांव पर चल कर इतने बड़े जासूस बन गए। पर एक बात तो आप भी मानेंगे। ज़िद्दी तो मैं भी कम नहीं हूँ।"
"हाँ मानता हूँ मैं तुम्हें। अपना सब कुछ खोकर दोबारा पा लेना भी आसान नहीं होता है। तुम्हारे भीतर ज़िद तो है।"
"चलिए फिर देखते हैं कि दो ज़िद्दियों के बीच की जंग में कौन बाज़ी मारता है।"
"लेकिन याद रखो मेरी और तुम्हारी ज़िद में फर्क है। मेरी ज़िद सही राह के लिए है जबकी तुम्हारी ज़िद तुम्हें गलत राह पर ले जा रही है।"
"ये तो अपनी अपनी समझ है खान साहब। मेरी ज़िद ने भी मुझे ऊँचाइयां छूने की ताकत दी है।"
"सही कहा रॉकी....बात समझ की है। तुम नहीं समझ पा रहे हो कि जिन्हें तुम ऊँचाइयां समझ रहे हो वो तुम्हें गर्त में ले जा रही हैं।"
"छोड़िए इस बहस को खान साहब। कुछ और बात करते हैं। वैसे मुझे लगता है कि आपके पास मेरे लिए कई सवाल हैं।"
रॉकी की बात सही थी। सरवर खान के मन में बहुत कुछ था जो वह जानना चाहते थे। उन्होंने रॉकी से पूँछा।
"तुम दोबारा जैसमिन वालिया से कब मिले ? बिपिन से तुम्हारा क्या संबंध है ?"
"तो आप जैसमिन के बारे में भी जान गए।"
"हाँ.... मैंने सुना था कि बिपिन तुमसे मिला था। गायब होने वाली रात सीसीटीवी फुटेज में बिपिन के साथ एक लंबी लड़की देखी गई। जैसमिन भी लंबे कद की थी। इसलिए यह अंदाज़ लगाना कठिन नहीं कि वह लड़की जैसमिन हो सकती है।"
"पहचाना तो आपने सही। वह जैसमिन ही थी।"
"जैसमिन बिपिन को लेकर कहाँ गई ? वह तुमसे क्यों मिलता था ?
"खान साहब आप तो उतावले हो रहे हैं। आपके सारे सवालों का जवाब एक एक कर देता हूँ।"

रॉकी सरवर खान को अपनी और जैसमिन के मिलने की कहानी बताने लगा।

अपना रूप और नाम बदलने के बाद रॉकी ने अपनी खोई हुई सल्तनत को वापस पाने के लिए कोशिशें शुरू कर दीं। अभी उसके पास हवाले के ज़रिए दुबई के खाते में जमा किए गए पैसों में से कुछ बचे थे। उनके दम पर उसने लंदन में एक खास लाइफ स्टाइल अपनाई। वह महंगे बार, कैसीनो में जाता था। वहाँ जाने का मकसद था कि वह ड्रग्स का कारोबार करने वालों के संपर्क में आ सके।
वह अक्सर लंदन के प्रसिद्ध बार और कैसीनो द डार्क लेन में जाता था। वहाँ वह कैसीनो में दांव लगा कर बड़ी रकम जीतता था। द डार्क लेन में ही उसकी मुलाकात ऐलेक्ज़ेंडर रीड से हुई। ऐलेक्ज़ेंडर लंदन के ड्रग्स माफियाओं में से एक था।
रॉकी जानता था कि ऐलेक्ज़ेंडर ही वह व्यक्ति है जिसके द्वारा वह फिर से ड्रग्स के कारोबार में अपनी पैठ बना सकता है। उसने वह रास्ता तलाशना शुरू किया जिससे वह ऐलेक्ज़ेंडर का विश्वास जीत कर उसके नज़दीक जा सके।
रॉकी ने ऐलेक्ज़ेंडर के बारे में पता करना शुरू किया। अपनी पड़ताल में उसे पता चला कि अफगान मूल के ड्रग्स माफिया अली अमानी से उसका छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों के बीच अक्सर ही एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी रहती थी।
कुछ दिनों पहले लंदन के एक व्यापारी का पुराना बंगला नीलाम हुआ था। यह बंगला करीब सत्तर साल पुराना था। बंगले के खिड़की और दरवाज़े ओक की लकड़ी के बने थे। आबनूस की लकड़ी का फर्नीचर था। कई प्रसिद्ध कलाकारों की कलाकृतियां थीं। इन सबके साथ बंगले की नीलामी हुई थी।
उस नीलामी में लंदन के कई अमीर पहुँचे थे। ऐलेक्ज़ेंडर और अली भी इस नीलामी में शामिल थे। लेकिन बाज़ी ऐलेक्ज़ेंडर ने मार ली। अली को यह अपना अपमान लगा। वह ऐलेक्ज़ेंडर से इसका बदला लेने का मौका तलाशने लगा।