गुमशुदा की तलाश - 30 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुमशुदा की तलाश - 30


गुमशुदा की तलाश
(30)



प्रोफेसर दीपक वोहरा आंचल की गुस्ताखी पर आग बबूला था। वह समझ नहीं पा रहा था कि अचानक इस लड़की में इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई कि वह ना सिर्फ उसकी परवाह किए बिना होटल से चली गई बल्कि उसकी कॉल को रिकॉर्ड कर उसे ब्लैकमेल कर रही है।
प्रोफेसर दीपक वोहरा ने एक चाल के तहत कार्तिक को आंचल के नज़दीक जाने को कहा था। उसने कार्तिक के ज़रिए आंचल के वो दोनों वीडियो बनवाए थे। उसने अब तक अपने मकसद में उन वीडियो का प्रयोग किया था। पर अब वह अपनी वासना की पूर्ति के लिए आंचल को मजबूर करना चाहता था। लेकिन उसकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। आंचल वहाँ से भाग गई।
बिपिन कुछ ही लोगों से बात करता था। उनमें एक था प्रोफेसर दीपक वोहरा। बिपिन प्रोफेसर के अंतर्गत अपनी रीसर्च कर रहा था। इस सिलसिले में अक्सर उसकी बात प्रोफेसर से होती रहती थी।
बिपिन बहुत समय से इस बात को महसूस कर रहा था कि समाज में नशे की पैठ बढ़ती जा रही थी। यह नशा हर उम्र हर तबके के लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। लेकिन इसके सबसे अधिक शिकार किशोर व युवा हो रहे हैं।
बिपिन बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति था। अपने आस पास हो रही घटनाओं का उस पर बहुत प्रभाव पड़ता था। जिस पीढ़ी पर देश व समाज को आगे ले जाने का दायित्व उसका नशे के चंगुल में फंस कर अपना जीवन बर्बाद कर लेना बिपिन को बहुत तकलीफ देता था।
हलांकि उसकी रिसर्च का विषय क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी था। पर बिपिन ने इस बात पर विचार करना शुरू किया कि आखिर नशे के बढ़ते चलन का कारण क्या है। वह इंटरनेट पर युवाओं में बढ़ती नशे की आदत पर लेख पढ़ता रहता था। अपनी स्टडी में उसने पाया कि युवाओं में नशे के लिए रुझान का प्रमुख कारण अवसाद है।
उसने अवसाद और उसके कारणों पर अध्ययन आरंभ किया। वह इस नतीजे पर पहुँचा की यदि अवसादग्रस्त लोगों को अवसादमुक्त किया जा सके तो लोगों को नशे के चंगुल से निकाला जा सकता है।
एक दिन उसने ड्रग्स एवं अन्य प्रकार के नशों पर होने वाले एक सेमीनार के बारे में सुना। वहाँ प्रमुख वक्ताओं में एक थे देश के जाने माने मनोचिकित्सक डॉ. हरिशंकर पाई थे। वह उस सेमीनार में भाग लेने के लिए गया। वहाँ डॉ. पाई के व्यक्तव्य को सुन कर उसने ठान लिया कि वह अवसाद और नशे की आदत के संबंध को सही प्रकार से समझने का प्रयास करेगा।
बिपिन अपने इस अध्ययन के लिए हॉस्टल से बाहर रह कर उन लोगों से मिलने लगा जो नशे के आदी थे। उसने पाया कि उनमें से अधिकांश जाने या अनजाने अवसाद के शिकार थे।
परंतु उसके सामने समस्या यह आ रही थी कि यदि वह नशे के अड्डों पर जाता था तो वहाँ वह उनसे खुल कर बातचीत नहीं कर सकता था। वहाँ उसे जान का खतरा हो सकता था। अतः उसने प्रयास किया कि वह ऐसे लोगों से उनके घर पर मिल कर बातचीत करे। पर यहाँ भी समस्या थी। ऐसे लोगों के घरवाले किसी भी प्रकार का सहयोग देने को तैयार नहीं थे। उनका मानना था कि वह पहले ही अपने परिवार के सदस्य की स्थिति से परेशान हैं। अतः वह उन्हें और परेशान ना करे।
बिपिन ने अनुभव किया कि समाज में अभी भी अवसाद जैसी बीमारी के प्रति लोग गंभीर नहीं हैं। अक्सर वह इसके लक्षणों को समझ नहीं पाते हैं। अतः सही इलाज नहीं कराते हैं। जो लोग रोग को पहचान लेते हैं वह भी शर्मिंदगी के भय से खुल कर सामने नहीं आते। यह बात समस्या को और बढ़ा देती है। वह चाहता था कि जल्द से जल्द इस समस्या की जड़ तक पहुँच कर उस पर काम करे।
उसे अपने एक दोस्त से पता चला कि आंचल की दोस्ती ऐसे एक लड़के अरुण निश्चल से रही है जो नशे का आदी है। अतः बिपिन कैंटीन में आंचल से मिला। उसने आंचल से अरुण का नंबर ले लिया।
वह अरुण के माध्यम से उन लोगों से मिला जो उसकी तरह अवसादग्रस्त थे और नशे में सुकून तलाशते थे। इस बीच बिपिन की अरुण के पिता से भी बातचीत हुई। वह अपने बेटे की इस हालत को देख कर बहुत दुखी थे। बिपिन भी अरुण से व्यक्तिगत लगाव महसूस करने लगा था। उसने उसकी मदद के लिए उसे एक स्वयंसेवी संस्था स्पंदन के रिहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती करा दिया।
उसके बाद से ही बिपिन ने तय कर लिया कि वह जल्द से जल्द अवसाद की ऐसी दवा की खोज करेगा जो रोगी को लाभ पहुँचाए और उसके साइड इफेक्ट कम हों।
बिपिन इस दिशा में अपनी खोज में जुट गया। अपनी रीसर्च के दौरान उसे सेरोटोनिन नामक हार्मोन के बारे में पता चला। यह एक ऐसा हर्मोंन होता है जो हमें खुश व उत्साहित बनाए रखता है। यदि किसी कारणवश इस हार्मोन के उत्पादन में बाधा आती है तो व्यक्ति हतोत्साहित व बुझाबुझा रहने लगता है। यदि यह अवस्था देर तक चलती है तो वह व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है।
बिपिन उन स्रोतों के बारे में पता करने लगा जिनसे सेरोटोनिन को प्राप्त किया जा सकता हो। उसने कई तरह की वनष्पतियों में इसका पता लगाने का प्रयास किया। इसी खोज में उसे चिंता हरण फूल के बारे में पता चला।
बिपिन प्रोफेसर दीपक वोहरा। को अपना आदर्श मानता था। अतः अपने जीवन के सबसे बड़े लक्ष्य को उनके साथ साझा करता था। उसने प्रोफेसर दीपक को चिंता हरण फूल के बारे में बताया।
प्रोफेसर दीपक वोहरा दोहरी ज़िंदगी जी रहा था। उसका एक और रूप था जो लोगों के सामने नहीं आया था। वह बहुत जल्द दौलतमंद बनना चाहता था। इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार था।
उसकी दोस्ती ईगल क्लब के मालिक रॉकी से थी। रॉकी चाहता था कि प्रोफेसर दीपक अपने ज्ञान का प्रयोग कर एक ऐसे नशे का ईजाद करे जो सस्ता हो पर मार्केट में मौजूद हर नशे को पीछे छोड़ दे।
प्रोफेसर दीपक इसी विषय में प्रयास रत था। दीपक ने उसे अवसाद की दवा बनाने की अपनी इच्छा के बारे में बताया। प्रोफेसर दीपक चिंता हरण फूल के बारे में जानता था जो नशा करने के काम आता था।
चिंता हरण फूल सेरोटोनिन हार्मोन का अच्छा स्रोत था। प्रोफेसर दीपक जानता था कि सेरोटोनिन की मात्रा यदि अधिक हो जाए तो यह व्यक्ति को एक तरह के नशे की स्थिति में पहुँचा देता है। लेकिन यदि यह बहुत अधिक हो जाए तो शरीर को नुकसान पहुँचा सकती है।
प्रोफेसर दीपक चाहता था कि चिंता हरण फूल पर बिपिन रीसर्च करे जिसका लाभ वह उठाए।
प्रोफेसर दीपक ने ही चिंता हरण फूल की जानकारी बिपिन तक पहुँचा दी। जब बिपिन ने उसे बताया कि उसे चिंता हरण फूल के बारे में पता चला है तो प्रोफेसर दीपक ने उसे इस बात के लिए प्रेरित करना आरंभ किया कि वह इस फूल के बारे में सही तरह से अध्ययन करे। वह इस बात का पता लगाए कि फूल से सेरोटोनिन को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इसकी कितनी मात्रा दवा के लिए सही है। कितनी मात्रा में यह नशे का काम करता है। कितनी मात्रा शरीर के लिए हानिकारक है।
बिपिन ने प्रोफेसर दीपक को बताया कि जिसने उसे चिंता हरण फूल के बारे में बताया है वह उसे नंदपुर गांव ले जाने की तैयार है। नंदपुर और उसके आसपास के इलाकों में यह फूल पाया जाता है।
प्रोफेसर दीपक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अवसाद की दवा बनाने में उसकी हर संभव मदद करेगा।