गुमशुदा की तलाश - 27 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुमशुदा की तलाश - 27


गुमशुदा की तलाश
(27)


रंजन सरवर खान के लापता हो जाने की खबर सुन कर बहुत दुखी था। इंस्पेक्टर सुखबीर ने उसे सारी स्थिति बताते हुए कहा।
"रंजन तुम जब पिछली बार सरवर जी के साथ आए थे तो उन्होंने साइबर कैफे के सामने की सीसीटीवी फुटेज निकालने को कहा था। उस फुटेज में बिपिन एक लंबे कद की लड़की के साथ नज़र आया था। पर उस लड़की की शक्ल नहीं दिख रही थी।"
"हाँ सर जब मैने चरक हॉस्टल के गार्ड से बात की थी तो उसने भी बताया था कि गायब होने वाली रात बिपिन किसी लंबी लड़की के साथ था। शायद वह रिनी थी। जिसका ज़िक्र बिपिन ने अपनी नोटबुक में किया था।"
"नहीं रंजन.... वह रिनी नहीं थी। बिपिन ने लिखा था कि रिनी उसे गांव ले गई थी। सरवर जी ने बिपिन के केस में कुछ जानकारियां हासिल की थीं। उनके हिसाब से बिपिन जिसके साथ गांव गया था वह मंझोले कद की थी। ये लंबी लड़की कोई दीप्ती नौटियाल है। इसका पता सब इंस्पेक्टर नीता ने किया है।"
"सर बिपिन के केस में और क्या नई जानकारियां मिली हैं ?"
इंस्पेक्टर सुखबीर ने रंजन को अब तक केस में जो सामने आया था वह बता दिया।
"हम लोग सरवर जी और सब इंस्पेक्टर राशिद को खोजते उस बंगले तक पहुँच गए थे। लेकिन वह लोग उन्हें पहले ही वहाँ से ले जा चुके थे।"
रंजन सोंच में पड़ गया। कुछ याद कर बोला।
"इंस्पेक्टर सर मैंने सर के लिए रेंट पर एक कार ली थी। वह लॉज में ही है। इसका मतलब है कि सर ईगल क्लब किसी और तरह से गए थे।"
"उन्होंने सब इंस्पेक्टर राशिद से कहा था कि वह खुद उसे थाने से पिक कर लेंगे। वह किस साधन से गए कह नहीं सकता। तब मैं थाने में नहीं था।"
रंजन उठ कर खड़ा हो गया।
"धन्यवाद सर.....आपने फोन कर सरवर सर के लापता होने की सूचना दे दी। नहीं तो शायद मैं एक दो दिन और मम्मी को दिलासा देने के लिए रुक जाता।"
"रंजन मैं तो पहले ही तुम्हें बता देता। पर सरवर जी ने मुझे तुम्हारे पिता की मृत्यु के बारे में बताया था। इसलिए मैंने सोंचा कि पहले मैं कोशिश कर लूँ। पर अब मुझे लगा कि तुम्हें सूचित करना ज़रूरी है।"
"सर बहुत अच्छा किया। सर की अनुपस्थिति में केस को देखना मेरा दायित्व है। सर के बारे में पता लगाने का सबसे सही तरीका है कि रिनी और दीप्ती में से किसी एक को खोज निकाला जाए।"
"सही कह रहे हो रंजन। दीप्ती के बारे में हम पता कर रहे हैं। तुम इस रिनी का पता लगाओ।"

रंजन लॉज वापस आ गया। उसने अपना कमरा छोड़ कर सरवर खान के कमरे में रहना शुरू कर दिया था। कमरे में पहुँच कर सबसे पहले उसने वो स्कैन किए कागज़ निकाले जो बिपिन के सामान में मिले थे। उसने उन्हें पढ़ना शुरू किया।
उसने तीन शब्दों को अलग लिख लिया। सेरोटोनिन, चिंता हरण फूल, नंदपुर गांव। तीनों को मिला कर जो बात सामने आई उसके हिसाब से बिपिन रीना के साथ नंदपुर गांव गया होगा। जहाँ कोई चिंता हरण फूल मिलता था। जो सेरोटोनिन का अच्छा स्रोत होगा। यही बिपिन की वह खोज होगी जिसके बारे में उसने लिखा था।
नंदपुर जाकर कई बातों का खुलासा हो सकता था। रंजन ने अपने मोबाइल पर नंदपुर को गूगल सर्च किया। दो नतीजे सामने आए।
एक नंदपुर पश्चिम बंगाल में था।
दूसरा राजस्थान में पंजाब के बार्डर से सटा गांव था।
रंजन ने चिंता हरण फूल को गूगल सर्च किया। उसका संबंध राजस्थान के गांव से निकला।
रंजन की मंज़िल तय हो गई थी। अब सफर पर निकलना था।

चार घंटे की बस यात्रा के बाद रंजन नंदपुर से कोई पाँच किलोमीटर पहले भीमापुर गांव में उतरा। इतनी देर बस में बैठे बैठे उसका शरीर अकड़ गया था। उसने अंगड़ाई लेकर मांसपेशियों का तनाव कम किया। उसके बाद इधर उधर नज़र दौड़ाई। कुछ दूर चाय की छोटी सी दुकान दिखाई पड़ी। रंजन को चाय की तलब लग रही थी। वह चाय की दुकान पर चला गया।
दुकान पर दो और लोग बैठे थे। चाय पीते हुए रंजन ने पूँछा।
"भाई नंदपुर कैसे पहुँचा जा सकता है ?"
उन दो मर्दों में से एक जो जवान था बोला।
"नंदपुर तो केवल जुगाड़ गाड़ी से ही पहुँच सकते हो।"
रंजन ने कुछ आश्चर्य से उसकी तरफ देखा। वह आदमी समझ गया कि उसे जुगाड़ गाड़ी के बारे में कुछ नहीं पता। उसने हाथ उठा कर ईशारा करते हुए कहा।
"वो देखो.....वो आ रही है जुगाड़ गाड़ी।"
रंजन ने नज़र उठा कर उस ओर देखा जिधर वह आदमी इशारा कर रहा था। एक अजीब सी गाड़ी थी। मोटर साईकिल के पिछले हिस्से को निकाल कर उसे एक ट्राली से जोड़ा गया था। उसमें एक पुरानी गाड़ी का इंजन लगा था। ट्राली में दोनों तरफ लकड़ी के पटरे से लोगों के बैठने की सीट बनाई गई थी।
जुगाड़ गाड़ी के रुकते ही पीछे बैठे लोग उतरने लगे। सबसे पैसे लेने के बाद ड्राइवर चाय की दुकान पर आकर बैठ गया। उसने चाय के लिए आर्डर किया। रंजन उठ कर उसके पास जाकर बोला।
"मुझे नंदपुर जाना है। आप जाएंगे।"
जुगाड़ गाड़ी के ड्राइवर ने उसे गौर से देखा।
"शहर से आए हो ?"
"हाँ.... मुझे नंदपुर जाना है। चलेंगे ?"
"क्यों नहीं चलेंगे। चाय पी लें। फिर जैसे ही सवारी पूरी होगी चले चलेंगे।"
रंजन जाकर अपनी जगह पर बैठ गया। जुगाड़ गाड़ी के ड्राइवर ने चाय खत्म की उसके बाद आवाज़ लगाने लगा।
"नंदपुर.... नंदपुर....."
सवारियां पूरी होने पर जुगाड़ गाड़ी नंदपुर की तरफ बढ़ चली।
रंजन जब नंदपुर पहुँचा तो दोपहर के दो बज रहे थे। रंजन यह नहीं जानता था कि उसे गांव में किसके घर जाना है। पूँछताछ का सिलसिला कहाँ से शुरू करना है। वह तो बस नंदपुर के लिए निकल पड़ा था। अब वह सोंच रहा था कि आगे क्या करे।
सुबह लॉज से वह दो टोस्ट खाकर चला था। तबसे पेट में एक कप चाय के सिवा कुछ नहीं गया था। उसे ज़ोर से भूख लगी थी। पर गांव में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिख रही थी जहाँ वह कुछ खा सके। वह अब पछता रहा था। उसे जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए थी। तैयारी के साथ आना चाहिए था। कुछ नहीं तो चिप्स या बिस्कुट के पैकेट ही रख लेता। पर अब पछताने से क्या लाभ था।
रंजन गांव में घूम रहा था। मिट्टी की दीवारों वाले कच्चे घर थे। दीवारों पर चित्रकारी की गई थी। दीवारों के ऊपर टोपीनुमा गोल छप्पर थे। देखने से ही लग रहा था कि गांव में बहुत गरीबी है। लोग छोटे मोटे रोज़गार कर जीवनयापन करते हैं।
लोग उसे घूर घूर कर देख रहे थे। वह भी नहीं समझ पा रहा था कि किसी से क्या कहे। पर इस तरह कब तक गांव में घूमता रहता। उसे एक नवजवान दिखाई पड़ा। वह औरों से अलग लग रहा था। उसने पारंपरिक कपड़े ना पहन कर पैंट शर्ट पहना हुआ था। रंजन ने उसे रोका।
"हे भाई....ज़रा ठहरना...."
वह नवयुवक अपनी जगह पर रुक गया। रंजन उसके पास पहुँच कर बोला।
"भाई यहाँ कोई ढाबा या होटल होगा जहाँ खाना खा सकें।"
"नहीं यहाँ ऐसी कोई जगह नहीं है।"
"अच्छा तो कोई दुकान होगी जहाँ बिस्कुट या चिप्स के पैकेट मिल जाएं।"
उस नवयुवक ने हाथ से इशारा करते हुए कहा।
"वो सीधे जाकर बाएं मुड़ जाइएगा। वहाँ वैद्य जी का घर है। उन्होंने घर में दुकान खोली है। वहाँ शायद मिल जाए।"
रंजन उसे धन्यवाद देकर बताई हुई दिशा की ओर बढ़ गया। वैद्य जी का घर और घरों से कुछ अलग था। वह छोटा था। पर पक्का बना था। घर के बाहरी हिस्से में एक छोटी सी लकड़ी की गुमटी रखी थी। गुमटी के अंदर पचास बावन साल का एक आदमी बैठा था।
"क्या चाहिए ?"
"आप वैद्य जी हैं।"
"अच्छा तो दवाई लेने आए हो। ज़रा रुको मेरा पोता आता ही होगा। वह दुकान संभाल लेगा। फिर अंदर चल कर तुम्हारी बात सुनते हैं। तब तक बैठो।"
वैद्य जी ने गुमटी के पास पड़ी लकड़ी की बेंच की तरफ इशारा किया।
"नहीं मैं दवा लेने नहीं आया हूँ। मुझे कुछ खाने का सामान चाहिए।"
"तो ऐसे बोलना चाहिए था। तुमने पूँछा आप वैद्य हो तो हम समझे दवा लेने आए हो। खाने का बहुत सामान तो है नहीं। हम तो बच्चों के लिए कंपट, नमकीन, बिस्कुट वगैरह रखते हैं। ये नमकीन के पैकेट लटके हैं। बिस्कुट का एक ही पैकेट बचा है।"
रंजन ने देखा छोटे छोटे नमकीन के पैकेट थे। बिस्कुट का पैकेट भी बहुत छोटा था। पर और कोई चारा नहीं था। उसने नमकीन के दो पैकेट और बिस्कुट खरीद लिए। वैद्य जी से इजाज़त लेकर वहीं बेंच पर बैठ कर खाने लगा।