'नीहारिका का कन्यादान मैं और सीमा नहीं बल्कि तुम और सविता करोगे क्योंकि तुम दोनों को ही नैतिक रूप से ये अधिकार है .'' सागर के ये कहते ही समर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा और हड़बड़ाते हुए बोला -'' ये आप क्या कह रहे हैं भाईसाहब !...नीहारिका आपकी बिटिया है .उसके कन्यादान का पुण्य आपको ही मिलना चाहिए .हम दोनों ये पुण्य आप दोनों से नहीं छीन सकते .'' सागर कुर्सी से उठते हुए सामने बैठे समर को एकटक दृष्टि से देखते हुए हाथ जोड़कर बोला -'' समर तुम मेरी बहन के पति होने के कारण हमारे माननीय हो .तुमसे मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि नीहारिका का कन्यादान तुम दोनों ही करना .मैं नीहारिका को भी अँधेरे में नहीं रखना चाहता .....सीमा...कहाँ है नीहारिका ? उसे यही बुलाओ !'' सागर के ये कहते ही सीमा ने नीहारिका को आवाज़ लगाई .नीहारिका के ''आई माँ '' प्रतिउत्तर को सुनकर सविता ,समर ,सीमा व् सागर उसके आने का इंतज़ार करने लगे .नीहारिका के स्वागत कक्ष में प्रवेश करते ही चारों एक-दूसरे के चेहरे ताकने लगे .
नीहारिका ने सब को चुप देखकर मुस्कुराते हुए कहा -अरे भई इस कमरे में तो कर्फ्यू लगा है और मुझे बताया भी नहीं गया .'' नीहारिका के ये कहते ही सबके चेहरे पर फैली गंभीरता थोड़ी कम हुई और सब मुस्कुरा दिए .सविता ने अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए नीहारिका का हाथ पकड़कर उसे अपनी कुर्सी पर बैठाते हुए कहा -''लाडो रानी..अब यहाँ बैठो और और सुनो भाई जी तुमसे कुछ कहना चाहते हैं .'' सविता के ये कहते ही नीहारिका भी एकदम गंभीर हो गयी क्योंकि उसने अपने पिता जी को ऐसा गंभीर इससे पहले दो बार ही देखा था .एक बार जब बड़ी दीदी प्रिया की विदाई हुई थी और दूसरी बार तब जब मझली दीदी सारिका की विदाई हुई थी .दोनों बार पिता जी विदाई के समय बहुत गंभीर हो गए थे पर रोये नहीं थे जबकि माँ व् बुआ जी का रो-रो कर बुरा हाल हो गया था .''नीहारिका बेटा '' पिता जी के ये कहते ही नीहारिका के मुंह से अनायास ही निकल गया -'' जी पिता जी ...आप कुछ कहना चाहते हैं मुझसे ?'' नीहारिका के इस प्रश्न पर सागर कुर्सी पर बैठते हुए बोला -''हां बेटा ..आज मैं अपने दिल पर पिछले चौबीस साल से रखे एक बोझ को उतार देना चाहता हूँ ...हो सकता है आज के बाद तुम्हें लगे कि तुम्हारे पिता जी संसार के सबसे अच्छे पिता नहीं है पर मैं सच स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ .बात तब की है जब मेरी दो बेटियों का जन्म हो चुका था . और तुम अपनी माँ के गर्भ में आ चुकी थी .मैं दो बेटियों के होने से पहले ही निराश था .सबने कहा ''पता कर लो सीमा के गर्भ में बेटा है या बेटी ..यदि बेटी हो तो गर्भ की सफाई करा दो '' मैंने तुम्हारी माँ के सामने ये प्रस्ताव रखा तो उसने मेरे पैर पकड़ लिए .वो इसके लिए तैयार नहीं थी पर मुझ पर बेटा पाने का जूनून था .मैंने तुम्हारी माँ से साफ साफ कह दिया था कि यदि टेस्ट को वो तैयार न हो तो अपना सामान बांधकर मेरे घर से निकल जाये .तुम्हारी माँ मेरे दबाव में नहीं आई .ये देखकर मैं और भी बड़ा शैतान बन गया और एक रात मैंने प्रिया और सारिका सहित तुम्हारी माँ को धक्का देकर घर से बाहर निकाल दिया .तुम्हारी माँ दर्द से कराहती हुई घंटों किवाड़ पीटती रही पर मैंने नहीं खोला .ये तुम्हारी दीदियों को लेकर मायके गई पर वहां इसके भाई-भाभी ने सहारा देने से मना कर दिया और कानपुर सविता व् समर को इस सारे कांड की जानकारी फोन पर दे दी तुम्हारे मामा जी ने .सविता और समर जी यहाँ आ पहुंचे .सविता ने तब पहली बार मेरे आगे मुंह खोला था .उसने दृढ़ स्वर में कहा था -'' भाई जी भाभी के साथ आपने ठीक नहीं किया .मेरे भी तीन बेटियां हैं यदि ये मुझे इसी तरह धक्का देकर घर से निकाल देते तब मैं कहाँ जाती और आप क्या करते ? ये तो दो बेटियों के होने पर ही संतुष्ट थे .मेरी ही जिद थी कि एक बेटा तो होना ही चाहिए ....तब ये तीसरे बच्चे के लिए तैयार हुए .अब सबसे ज्यादा प्यार ये तीसरी बेटी को ही करते हैं और आपने इस डर से कि कहीं तीसरा बच्चा बेटी ही न हो जाये भाभी को फूल सी बेटियों के साथ रात में घर से धक्के देकर बाहर निकाल दिया ..पर अभी इन बच्चियों के बुआ-फूफा मरे नहीं है .मैं लेकर जाउंगी भाभी को बच्चियों के साथ अपने घर ...अब भाई जी ये भूल जाना कि आपके कोई बहन भी है !'' मैं जानता था कि सविता मेरे सामने इतना इसीलिए बोल पाई थी क्योंकि उसे समर का समर्थन प्राप्त था .मैंने गुस्से में कहा था -'' जाओ ..तुम भी निकल जाओ .'' सविता ने अपना कहा निभाया और तुम्हारी माँ व् दीदियों को कानपुर ले गयी .वहीं कानपुर में तुम्हारा जन्म हुआ .यहाँ मेरठ से मेरा तबादला भी कानपुर हो गया .स्कूल के एक कार्यक्रम में हमारे बैंक मैनेजर शर्मा जी को मुख्य-अतिथि के रूप में बुलाया गया .उनके साथ मैं भी गया .वहां तुम्हारी प्रिया दीदी ने नृत्य का एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया .प्रिया की नज़र जैसे ही मंच से मुझ पर पड़ी वो नृत्य छोड़कर दौड़कर मेरे पास आकर मुझसे लिपट गयी .वो बिलख-बिलख कर रोने लगी और मैं भी . मेरी सारी हैवानियत को प्रिया के निश्छल प्रेम ने पल भर में धो डाला . मैनेजर साहब को जब सारी स्थिति का पता चला तो उन्होंने बीच में पड़कर सारा मामला सुलझा दिया।
सीमा ने जब पहली बार तुम्हे मेरी गोद में दिया तब तुमने सबसे पहले अपने नन्हें-नन्हें हाथों से मेरे कान पकड़ लिए ..शायद तुम मुझे डांट पिला रही थी .सविता ,समर व् सीमा ने ये निश्चय किया था कि इस घटना का जिक्र परिवार में बच्चों के सामने कभी नहीं होगा पर उस दिन से आज तक मुझे यही भय लगता रहा कि कहीं तुम्हें अन्य कोई ये न बता दे कि मैं तुम्हे कोख में ही मार डालना चाहता था . नीहारिका बेटा ये सच है कि मैं गलत था ..तुम चाहो तो मुझसे नफरत कर सकती हो पर आज अपना अपराध स्वीकार कर मैं राहत की साँस ले रहा हूँ ..मुझे माफ़ कर देना बेटा !'' ये कहते कहते सागर की आँखें भर आई .नीहारिका ने देखा सबकी आँखें भर आई थी .नीहारिका कुर्सी से उठकर सागर की कुर्सी के पास जाकर घुटनों के बल बैठते हुए बोली -पिता जी ..ये सब मैं नहीं जानती थी ...जानकार भी आपके प्रति सम्मान में कोई कमी नहीं आई है बल्कि मुझे गर्व है कि मेरे पिता जी में सच स्वीकार करने की शक्ति है ...मेरे लिए तो आज भी आप मेरे वही पिता जी है जो बैंक से लौटते समय मेरी पसंद की टॉफियां अपनी पेंट की जेब में भरकर लाते थे और दोनों दीदियों से बचाकर दो चार टॉफी मुझे हमेशा ज्यादा देते थे और मैं भी पिता जी आपकी वही नीहारिका हूँ जो चुपके से आपके कोट की जेब से सिक्के चुरा लिया करती थी ...नहीं पता चलता था ना आपको ?'' नीहारिका के ये कहते ही सागर ने उसका माथा चूम लिया .समर भी ये देखकर मुस्कुराता हुआ बोला -'' अब नीहारिका तुम ही निर्णय करो कि तुम्हारा कन्यादान मैं और सविता करें या तुम्हारे माँ-पिता जी ?'' नीहारिका लजाते हुए बोली -'' फूफा जी ...ये आप दोनों ही जाने .'' ये कहकर वो शर्माती हुई वहां से चली गयी .समर ने सागर के कंधें पर हाथ रखते हुए कहा -'' कन्यादान भाईसाहब आप ही करेंगें ..और अब तो आपने अपने हर अपराध का प्रायश्चित भी कर लिया है .'' समर के ये कहने पर सागर ने सीमा व् सविता की ओर देखा .उन दोनों की सहमति पर सागर ने भी लम्बी सांस लेकर सहमति में सिर हिला दिया .